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हैदराबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव : रोहित वेमुला के एएसए का शानदार प्रदर्शन

हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय छात्र संघ (एचसीयूएसयू) चुनाव परिणामों से यह साफ़ है कि एचसीयू, जो लम्बे समय से ब्राह्मणवादियों - चाहे वे “प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष” हों या “दकियानूसी”- का गढ़ रहा है, फुले-आंबेडकरवाद ने अपनी जगह बना ली है। बता रही हैं मनीषा बांगर

uohहैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय छात्र संघ (एचसीयूएसयू) चुनाव के परिणाम घोषित हो गए हैं। आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एएसए) – जिसके पांच छात्र सदस्यों, जिनमें रोहित वेमुला भी शामिल थे, को निलंबित किया गया था – दूसरे सबसे बड़े विद्यार्थी संगठन के रूप में उभरा है।  यह संगठन जस्टिस फॉर रोहित वेमुला अभियान का नेतृत्व कर रहा है। प्रशांत धोंता, काव्या, सुन्कान्ना, विजय, मुन्ना व एएसए के सभी सदस्यों को बधाई। रोहित की माँ राधिका और आंध्रप्रदेश सरकार के पूर्व प्रमुख सचिव माधव राव गुरु सहित एचसीयू के कई अध्यापक और सामाजिक कार्यकर्ता इस लड़ाई में सहभागी रहे हैं। वे भी धन्यवाद के पात्र हैं।

अगर फुले-आंबेडकरवादी विचारधारा का विश्वविद्यालय कैंपस में प्रसार करने के प्रति एएसए की प्रतिबद्धता और एनएसयूआई व एबीवीपी का पिछलग्गू न बनने की उसकी दृढ नीति के चलते ही अगस्त 2015 से घटनाओं का वह  दौर शुरू हुआ, जिसके दौरान रोहित को अपनी जान लेने पर मजबूर होना पड़ा, पुलिस ने 22 मार्च 2016 को कैंपस में ज्यादतियां कीं और विद्यार्थियों को गिरफ्तार किया, तो ये परिणाम फुले-आंबेडकरवादियों के इरादों को और मज़बूत करेंगें। इन परिणामों से यह साफ़ है कि एचसीयू, जो लम्बे समय से ब्राह्मणवादियों – चाहे वे “प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष” हों या “दकियानूसी”- का गढ़ रहा है, में फुले- आंबेडकरवाद ने अपनी जगह बना ली है।

यह प्रशंसनीय है कि एएसए ने साम्यवादी विद्यार्थी संगठनों से गठजोड़ नहीं किया और अपनी शक्ति का परिक्षण किया। जहाँ तक पदों पर कब्ज़ा करने का प्रश्न है, एएसए का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा और वह एसएफ़आई-एआईएसए गठबंधन और एबीवीपी से पीछे रहा। अन्य बहुजन संगठनों, जैसे बहुजन स्टूडेंट्स फोरम (बीएसए), ट्राइबल स्टूडेंट्स फोरम (टीएसए) व दलित स्टूडेंट्स यूनियन (डीएसयू) ने उसका साथ नहीं दिया और वे एसएफ़आई-एआईएसए गठबंधन से जुड़ गए। एसएफ़आई और एआईएसए दरअसल उच्च वर्णों के विद्यार्थियों के संगठन हैं, जिनके साथ कुछ एसटी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक भी जुड़े हुए हैं। मुस्लिम स्टूडेंट्स यूनियन, जिसका कैंपस में कोई ख़ास प्रभाव नहीं है और जो अब तक एएसए का साथ देता आया है, को अपेक्षित समर्थन नहीं मिल सका। अधिकांश मुस्लिम विद्यार्थी एसऍफ़आई या एएसए के साथ जुड़े हैं।

hcusu_rohiths-mother-radhika-at-the-university-of-hyderabadरोहित वेमुला और उनके साथियों के जनवरी में निलंबन के पहले तक एएसए व अन्य बहुजन विद्यार्थी संगठनों के संबंध सौहाद्रपूर्ण नहीं थे। रोहित वेमूला की आत्महत्या के बाद वे सब एचसीयू की जॉइंट एक्शन कमेटी के तहत एक झंडे तले आये और संयुक्त रूप से संघर्ष किया। परन्तु इसके बाद भी उनमें स्थायी एकता स्थापित न हो सकी और अब वे सब अपनी-अपनी राह चले गए हैं। इसका कारण नीतिगत एकता का अभाव, चीज़ों को देखने के तरीकों में अंतर या कैंपस के बाहर के तत्वों का राजनीतिक प्रभाव हो सकता है।

आज आवश्यकता इस बात की है सभी बहुजन विद्यार्थी संगठन मिल-बैठ कर यह सुनिश्चित करें कि उनके आपसी विवाद सुलझ जायें। ज्ञातव्य है कि एएसए सहित ये चारों संगठन चार साल पुराने भी नहीं हैं और इसलिए इनके बीच असहमतियों का कोई लम्बा इतिहास नहीं है। अगर वे ऐसा नहीं करते तो उन्हें या तो एसएफआई या एनएसयूआई या एबीवीपी के साथ मिलना होगा। अन्यथा उनका अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। अगर बहुजन विद्यार्थी संगठन अपना संयुक्त मोर्चा बना लेते तो शायद चुनाव परिणाम कुछ दूसरे होते। ऐसा क्यों न हो सका, इस पर विचार ज़रूरी है।

परन्तु इस सब से बाद भी, एएसए का प्रदर्शन सराहनीय रहा है। अब ज़रुरत इस बात की है कि कैंपस के अन्दर और उसके बाहर, रोहित एक्ट बनाये जाने की मांग को लेकर जबरदस्त अभियान चलाया जाये ताकि उच्च शिक्षा संस्थानों में हाशिये पर पड़े समुदायों के विद्यार्थियों को क़ानूनी संरक्षण उपलब्ध हो सके। इस संदर्भ में मैं कहना चाहूंगी कि भारतीय प्रजातंत्र को मजबूती  देने के लिए युवाओं की उर्जा, वौद्धिक शक्ति और उनकी सामाजिक ताकत के इस्तेमाल और बहुजनों की मुक्ति के अभियान में बामसेफ, मूलनिवासी विद्यार्थी संघ और मूलनिवासी संघ, कैंपस और उसके बाहर विद्यार्थियों और शिक्षकों का साथ देने के लिए पूरी तरह कटिबद्ध हैं।

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लेखक के बारे में

मनीषा बांगर

डॉ. मनीषा बांगर पेशे से चिकित्सक और पीपुल पार्टी ऑफ इंडिया-डी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वे हैदराबाद के डेक्कन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज में गेस्ट्रोएंटेरोलोजी व हेपेटोलोजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। पिछले एक दशक में उन्हें भारत और विदेश में अनेक विश्वविद्यालयों व मानवाधिकार और फुले-आंबेडकरवादी संगठनों व संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा लैंगिक समानता, स्वास्थ्य व शिक्षा से लेकर जाति व फुले, पेरियार और आंबेडकर जैसे विषयों पर अपने विचार रखने के लिए आमंत्रित किया जाता रहा है।

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