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आदिवासी घेरेंगे संसद

संवैधानिक अधिकार, स्वाभिमान, सम्मान, पहचान, अस्तित्व, अस्मिता और अपने जल, जंगल, जमीन की रक्षा और स्वशासन के लिए आदिवासियों के संगठन जय आदिवासी युवाशक्ति (जयस) ने सन् 2018 में संसद घेराव का आह्वान किया है, संगठन का दावा है कि इस घेराव में बड़ी संख्या में आदिवासी दिल्ली पहुंचेंगे

संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचि का अब तक अनुपालन न होने के कारण आदिवासी समुदाय काफी क्षुब्ध है। 16 अक्टूबर 2016 को दिल्ली के झंडेवालान स्थित आंबेडकर भवन में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, ओड़िशा, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, असम समेत देश के विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने “जय आदिवासी युवा शक्ति” (जयस) के बैनर तले आयोजित “मिशन 2018”  की बैठक में हिस्सा लिया और 2018 में अपनी मांगों को लेकर संसद के घेराव की रणनीति पर बातचीत की।

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मिशन 2018 के लिए आयोजित बैठक में आदिवासी प्रतिनिधि

विभिन्न राज्यों से आए प्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि “आदिवासियों के अस्तित्व, परंपरा और संविधान द्वारा प्रदत्त विशेष प्रावधानों की रक्षा करने वाले राष्ट्रपति और संबंधित राज्य के राज्यपाल अब तक अपनी जिम्मेदारी निभाने में असमर्थ रहे हैं। वहीं अलग-अलग सरकारों ने भी आदिवासियों के साथ गैरजिम्मेराना रवैया अपनाते हुए आदिवासियों के संवैधानिक एवं मूलभूत अधिकारों का हनन करने में अपनी भूमिका निभाई है। जिसके कारण आदिवासी समुदाय भयंकर गरीबी, भूखमरी, कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी और विस्थापन जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, जबकि पांचवीं और छठी अनुसूचि के उल्लंघन से आदिवासियों की खनिजों से संपन्न कीमती जमीन कारपोरेट और बड़े पूंजीपतियों के हाथ में चली गयी है और कारपोरेट तथा बड़े पूंजीपति मालामाल हो रहे हैं।”

प्रतिनिधियों ने सरकार के कार्यकलापों पर सवाल उठाया कि “संविधान में आदिवासियों को मिले विशेष प्रावधान के बावजूद भी आज आदिवासियों की इतनी बुरी स्थिति क्यों है? पांचवीं और छठी अनुसूचि के होने के बावजूद भी आखिर अनुसूचित क्षेत्र में आदिवासियो की जमीन गैरआदिवासियों के हाथ में कैसे चली गयी?” उन्होंने आदिवासियों के प्रति सरकार के रुखे रवैये के कारण अब आदिवासी समुदाय के साथ मिलकर आर-पार की आंदोलन का संकल्प व्यक्त किया। आदिवासी प्रतिनिधियों ने तय किया कि वे लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर संसद का घेराव करेंगे और अपने संविधानिक अधिकार और पहचान की मांग करेंगे। उन्होंने इस आंदोलन को “मिशन 2018” नाम दिया है।

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बैठक में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड, राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधि के तौर पर ‘जय आदिवासी युवा शक्ति’ (जयस) संरक्षक डॉ हिरालाल अलवा, साप्ताहिक ‘दलित आदिवासी दुनिया’ के संपादक मुक्ति तिर्की, मिशन 2018 सलाहकार डॉ. पारस रावत, इंदौर जयस के अध्यक्ष रविराज बघेल, महाराष्ट्र जयस के स्टार प्रचारक राजकुमार पावरा, संजयकुमार सरदार सिंह, दीपक अहिरे, हरदा जिला मिशन 2018 के प्रभारी टी.आर. चौहान, मिशन 2018 के सलाहकार एम.एल. शाक्य, शुभमदेव ठाकुर, नेशनल जयस सदस्य कृष्णा कलम, नेशनल जयस स्टार प्रचारक साहेब सिंह कलम, मिशन 2018 प्रभारी सदस्य रोशन कुमार गावित, मिशन 2018 भोपाल सलाहकार शरद सिंह कुमरे, मिशन 2018 देवास सलाहकार रामनारायण ठाकुर, विंध्य प्रदेश रीवा जयस प्रभारी डॉ अजीत मार्को, मिशन नेशनल जयस सदस्य वासुदेव वर्नोट, मिशन 2018 प्रभारी सदस्य अवधराज सिंह मरकाम, मिशन 2018 प्रभारी सदस्य दिलशरण सिंह शयाम, मिशन 2018 प्रभारी सदस्य अवधप्रताप सिंह ओयाम, नेशनल जयस सदस्य राकेश कुमार मरकाम, मिशन 2018 राजस्थान प्रभारी सदस्य भजनलाल मीना, मिशन 2018 बेतुल प्रभारी सदस्य प्रो. जामवंत कुमरे, श्रीमती राखी कुमरे, मिशन 2018 ओड़िशा प्रभारी सदस्य रजनी किरन बा, नेशनल जयस सदस्य अनिल मरकाम, मिशन 2018 हरदा प्रभारी ध्रुव चौहान, मिशन 2018 ओड़िशा प्रभारी सदस्य जितेंद्र कुमार मुखी, मिलीता डुंगडुंग, मिशन 2018 बुरहानपुर-खंडवा प्रभारी सदस्य राजेश पाटिल, मिशन 2018 ­­झारखण्ड प्रभारी सदस्य राजू मुर्मू, मिशन 2018 उत्तर प्रदेश प्रभारी सदस्य कवलेश्वर प्रसाद, मिशन 2018 महाराष्ट्र प्रभारी सदस्य अमित तड़वी, मिशन 2018 उत्तर प्रदेश प्रभारी सदस्य अरविंद गोंड, नेशनल जयस सदस्य दिलशरण सिंह सरपंच, नेशनल जयस सदस्य धर्मवीर मरकाम, नेशनल जयस सदस्य मनोज ठाकुर ने अपने विचार रखे। बैठक का संचालन मिशन 2018 नेशनल जयस मीडिया प्रभारी राजन कुमार ने किया।

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बैठक में सर्वसम्मति से मिशन 2018 को सफल बनाने के लिए प्रत्येक जिले से 100-100 जिला प्रचारक घोषित किए गए, जो गांव-गांव जाकर संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूचि के बारे में विस्तृत जानकारी देंगे।

“मिशन 2018” के तहत आदिवासी समुदाय की निम्न मांगे हैं:

1-अनुसूचित क्षेत्रों में पांचवीं और छठी अनुसूची को सख्ती से लागू करना।
2- संविधान में अनुसूचित जनजाति की जगह आदिवासी को संवैधानिक मान्यता देना।
3- अनुसूचित क्षेत्र के अतिरिक्त आदिवासी बहुल क्षेत्रों में संविधान के तहत ट्राइबल एडवाइजरी काउंसिल (टीएसी) का गठन कर आदिवासियों के सुरक्षा, संरक्षण और विकास कायम करना, उनके अधिकार, पहचान और सम्मान की रक्षा करना।
4- विश्व आदिवासी दिवस (9 अगस्त) को राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया जाए।
5- आजादी के बाद से सत्तर वर्षों में विस्थापित हुए लगभग तीन करोड़ आदिवासियों के पुनर्वास, सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं रोजगार के पुख्ता इंतजाम किया जाए।
6- वनाधिकार कानून 2005 को सख्ती से अनुपालन किया जाए।
7- भारत के विभिन्न राज्यों में विलुप्त हो रहे जनजातीय समुदाय जैसे बैगा जनजाति, असुर जनजाति, जारवा, ओंग जनजाति, पहाड़िया जनजाति जैसे सभी आदिम जनजातियों का सुरक्षा और बचाव की विशेष प्रावधान किया जाए।
8- आदिम परंपराओं, आदिवासी संस्कृति, आदिवासी भाषा का संरक्षण करने के लिए विशेष संवैधानिक प्रावधान किए जाए।
9- आदिवासी जमीन में मौजूद खनिज संपदा पर आदिवासियों का प्रथम अधिकार हो।
10- आदिवासी क्षेत्रों में व्याप्त भयंकर भूखमरी, कुपोषण, बद्त्तर स्वास्थ्य सेवाओं, बेरोजगारी, पलायन जैसे मूलभूत समस्याओं के निराकरण के लिए आयोग का गठन किया जाए।

लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

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