h n

मौर्य शासकों ने शुरू की जन्मदिन मनाने की परंपरा

सम्राट अशोक को अष्टमी के दिन से विशेष लगाव था, ऐसे संकेत मिलते हैं। उसने प्रत्येक पक्ष की अष्टमी के दिन बैल, बकरा, भेड़ा, सुअर और इसी तरह के दूसरे जीवों का वध नहीं करने का आदेश जारी किया था। बता रहे हैं राजेंद्र प्रसाद सिंह

अभी तक के ज्ञात इतिहास के अनुसार भारत में जन्मदिन मनाने की परंपरा मौर्यशासन में प्रारंभ हुई। भगवतशरण उपाध्याय ने स्ट्रेबो (अमेसिया, 64 ईपू.19ई) को उद्धृत करते हुए लिखा है कि चंद्रगुप्त मौर्य अपना जन्मदिन प्रतिवर्ष बड़े पर्व के रूप में धूमधाम से मनाया करता था। (वृहतर भारत पृ. 35-36)

सम्राट अशोक भी अपना वार्षिक जन्मोत्सव मनाया करता था तथा इतिहासकारों ने संकेत किया है कि ऐसे ही वार्षिकोत्सव के दिन उसने कैदियों को मुक्त करने की प्रथा प्रारंभ की थी। (प्राचीन भारत का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, पृ.321)

samrat-ashok
सम्राट अशोक

सम्राट अशोक को अष्टमी के दिन से विशेष लगाव था, ऐसे संकेत मिलते हैं। उसने प्रत्येक पक्ष की अष्टमी के दिन बैल, बकरा, भेड़ा, सुअर और इसी तरह के दूसरे जीवों का वध नहीं करने का आदेश का जारी किया था। (पाटलिपुत्र की कथा, पृ.152)

पाटलिपुत्र के जिस वार्षिकोत्सव का जिक्र बड़े गर्व के साथ चीनी यात्री फाहियान (399-411 ई.) ने किया है, वह चैत्र शुक्ल अष्टमी के दिन मनाया जाता था। फाहियान ने लिखा है कि बीस बड़े और सुसज्जित रथों वाले विशाल जलूस प्रत्येक साल निकाले जाते हैं और साल के दूसरे महीने की आठवीं तिथि को इन्हें शहर में घुमाया जाता है। ऐसे जलूस और शहरों में भी निकाले जाते हैं। (प्राचीन भारत का इतिहास, बी.डी.महाजन, पृ.463)

कई इतिहासकारों ने फाहियान द्वारा उद्धृत वार्षिकोत्सव की तिथि को समझने में भूल की है। उन्होंने आज के चन्द्र कैलेंडर की माह गणना प्रणाली के मद्देनजर वैशाख मान लिया है। कारण कि आज की तारीख में वैशाख ही हिंदी कैलेंडर का दूसरा महीना है।

मगर फाहियान आज से कोई 1600 साल पहले गुप्तकाल में भारत आया था और उस समय में साल का प्रथम माह फाल्गुन था। आप कैलेंडर सुधार समिति (1955 ई.) की रिपोर्ट जाँच लें, जिसमें लिखा है कि जो उत्सव 1400 वर्ष पहले जिन ऋतुओं में मनाए जाते थे, वे 23 दिन पीछे हट चुके हैं। वर्तमान में वसंत संपात चैत्र में होता है। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को वर्ष का प्रथम दिन मनाया जाता है। वसंत संपात प्रतिवर्ष 20:24.48 मिनिट पहले हो जाता है। इसलिए फाहियान के समय में संवत्सर का प्रथम माह फाल्गुन था और साल का दूसरा महीना चैत्र था।

इसलिए फाहियान ने जिस वार्षिकोत्सव का अपने यात्रा-विवरण में जिक्र किया है, वह चैत्र शुक्ल अष्टमी को मनाया जानेवाला अशोकाष्टमी है। अशोकाष्टमी का विस्तृत विवरण हमें कृत्यरत्नावली, कूर्मपुराण तथा व्रत परिचय में मिलता है। (पुराणकोश, पृ.36)

मगर पौराणिक संदर्भों की अशोकाष्टमी में अशोक वृक्ष का महत्व स्थापित है। अब आप अशोक वृक्ष और सम्राट अशोक के बीच संबंध की जाँच के लिए बौद्ध ग्रंथ दिव्यावदान का अध्ययन करें, जिसमें लिखा है कि नामसाम्य के कारण सम्राट अशोक को अशोक वृक्ष बहुत प्रिय था या हजारी प्रसाद द्विवेदी की उस चंवरधारणी यक्षिणी को याद करें जो मथुरा संग्रहालय में अशोक वृक्ष का पौधा लिए खड़ी है।

अत: यह साफ़ है कि चैत शुक्लाष्टमी (इस साल 14 अप्रैल) को मनाया जानेवाला वार्षिकोत्सव अशोकाष्टमी मूलत: सम्राट अशोक का जन्मदिन है, जिसमें पुराणकारों ने सावधानीपूर्वक सम्राट अशोक को विस्थापित करके सिर्फ अशोक वृक्ष को जोड़ लिया है।

(फारवर्ड प्रेस के फरवरी, 2016 अंक में प्रकाशित )


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

राजेन्द्र प्रसाद सिंह

डॉ. राजेन्द्रप्रसाद सिंह ख्यात भाषावैज्ञानिक एवं आलोचक हैं। वे हिंदी साहित्य में ओबीसी साहित्य के सिद्धांतकार एवं सबाल्टर्न अध्ययन के प्रणेता भी हैं। संप्रति वे सासाराम के एसपी जैन कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं

संबंधित आलेख

व्यक्ति-स्वातंत्र्य के भारतीय संवाहक डॉ. आंबेडकर
ईश्वर के प्रति इतनी श्रद्धा उड़ेलने के बाद भी यहां परिवर्तन नहीं होता, बल्कि सनातनता पर ज्यादा बल देने की परंपरा पुष्ट होती जाती...
सरल शब्दों में समझें आधुनिक भारत के निर्माण में डॉ. आंबेडकर का योगदान
डॉ. आंबेडकर ने भारत का संविधान लिखकर देश के विकास, अखंडता और एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया और सभी नागरिकों को...
संविधान-निर्माण में डॉ. आंबेडकर की भूमिका
भारतीय संविधान के आलोचक, ख़ास तौर से आरएसएस के बुद्धिजीवी डॉ. आंबेडकर को संविधान का लेखक नहीं मानते। इसके दो कारण हो सकते हैं।...
पढ़ें, शहादत के पहले जगदेव प्रसाद ने अपने पत्रों में जो लिखा
जगदेव प्रसाद की नजर में दलित पैंथर की वैचारिक समझ में आंबेडकर और मार्क्स दोनों थे। यह भी नया प्रयोग था। दलित पैंथर ने...
राष्ट्रीय स्तर पर शोषितों का संघ ऐसे बनाना चाहते थे जगदेव प्रसाद
‘ऊंची जाति के साम्राज्यवादियों से मुक्ति दिलाने के लिए मद्रास में डीएमके, बिहार में शोषित दल और उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय शोषित संघ बना...