बहनों, हम अंधविश्वास के जिस जाल में फंसे हैं, वह हमारी गुलामी का एक फंदा है, जिससे मुक्त हुए बिना हम बाबा साहेब डा. आंबेडकर के दिखाये रास्ते पर चलकर मुक्त नहीं हो सकते। कभी काले रंग का धागा, कभी लाल रंग का धागा- माता लोगों से पूछो तो कहती हैं, ‘नजर से बचाए खातिर बाँध लई हैं,’। लड़कों से पूछो तो जवाब आता है, ‘अरे ! फैशन में पहने हैं।’ कल सलीमपुर गाँव में गये, तो वहां पर मैंने एक बच्चे से पूछा तुम हाथ में ये काला धागा बांधे हुए हो, क्यों बांधे हो ? तो वह कहता है कि ये त्रिलोकीनाथ का धागा है। मैंने कहा, ‘अच्छा त्रिलोकीनाथ! कौन है त्रिलोकीनाथ?’ बोला, ‘तीन लोक के मालिक और चौदह भुवन के मालिक का धागा एक पतला-सा! मैंने कहा, ‘त्रिलोकीनाथ ई नहीं कहे कि कितना पढ़े हो? उसने कहा, ‘हाईस्कूल पढ़ के छोड़ दिए।’ मैंने पूछा, ‘त्रिलोकीनाथ ई नहीं कहे कि तीन लोक के हम मालिक हैं तो तुम एक लोक के मालिक तो हो जाओ, कम से कम पढ़ लिख के,’ तो चुप ! आप अपने बच्चों को बता ही नहीं रहे कि इस धागे में शक्ति है कि बाबा साहब की बनाई हुई कलम में शक्ति है, उनके दिए अधिकार में शक्ति है। आप ये जान लीजिये कि हमारे और आपके लिए चमार जाति में पैदा हुआ उसकी क्या नज़रा रे भईया!’
इस काले रंग के धागे में ब्राह्मण ने हमारे गले में हड्डी टांग रखी थी। ये आज़ादी के बाद की बात हम बता रहे हैं, इसी काले रंग के धागे में घंटी बंधी थी, पैर में काले धागे में घुंघरू बाँध रखा था। जानते हैं क्यों, क्योंकि हम अछूत थे और ये अछूत की निशानी थी कि जब हम सड़क पर चलें तो घंटी और घुंघरू की आवाज़ होए और ये पता चल जाये कि इधर से अछूत आ रहा है और हम लोगों (ब्राह्मण) को सावधान हो जाना चाहिए, हमारी परछाई भी उनके ऊपर पड़ जाये तो उन्हें घर जाकर नहाना पड़े। हमारे गले में मटका टंगा हुआ था कि हम थूंके तो मटका में थूंके, हमें सड़क पे थूकने का अधिकार नहीं था। कमर में हमारे झाडू लगी हुई थी कि हम जब चलें पाछे-पाछे हमार पैर का निशान जोन है कि मिटत चले, का है कि कौनो ब्राह्मण का पैर पड़ जाई तो ओके फिर से नहाई के पड़ी। आपको लगता है कि आपको ये सारे अधिकार ऐसे ही मिल गए हैं। बाबा साहब ने संघर्ष किया था, बाबा साहब ने संविधान में लिखा था इसलिए ब्राह्मणों ने हमारे गले से घंटी उतरवाई, पैरों से धागा उतरवाया। ये आपकी गुलामी का धागा था, इस धागे को तोड़कर फेंक दीजिये। ब्राह्मण जैसे ही इस काले धागे को आपके गले में देखता है, और आपसे आपकी जाति केवल पूछ देता है तो यह लगता है कि सौ फीट नीचे जमीन में चले गये हैं। जाति पूछ लिया कैसे बताएं कि चमार जाति के हैं, कैसे बताएं!
मैं एक ऊंचे पद पर हूँ फिर भी हमारी जाति कभी नहीं बदलती। 7 महीने मुझे नौकरी करते हुए हुआ था। कुछ महीनों के अंदर इन ब्राह्मणों ने मेरे कमरे का ताला तोड़कर मेरा सामान बाहर फेंक दिया था। जानते हैं क्यों? क्योंकि मैं चमार औरत थी और उसके साथ-साथ मैं ऐसी ही जागरूकता का कार्यक्रम वहां चला रही थी, उन्होंने सोचा, इसको सबक सिखाना चाहिए, मेरी जाति नहीं बदली रात भर मैं सड़क पर रही, शादी भी नहीं हुई थी तब-सड़क पर रहे। अगले दिन हमने अख़बार में निकलवाया, एफ.आई.आर. दर्ज करवाई, लेकिन उस एक रात जो मैंने सड़क पर बिताई तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे समाज में मेरे जैसी पढ़ी-लिखी लड़की के साथ ऐसा हो सकता है, तो मेरे समाज के साथ कैसा हो सकता होगा। तब मैंने कहा कि मेरी जरुरत वहां नहीं है। मेरी जरुरत आप लोगों के बीच में है। तब हम निकलकर के आप लोगों के बीच में आये। मैं आपको बताऊँ डिपार्टमेंट में एक बार एक पंडित जी, त्रिवेदी जी आये रहे। जब परिचय की बात आई तो हम अकेले चमार। हमारे विभाग के चीफ ने परिचय दिया कि, ‘ये हमारे विभाग में नई-नई आई हैं, इनका नाम है…….। वे मेरे सरनेम से मुझे पहचान नहीं पाये, अंदाज लगाने लगे तो मैंने कहा, ‘क्या है कि आप मुझसे जाति पूछने की कोशिश कर रहे हैं क्या?’ वह तुरत सकपका गया, नहीं- नहीं मैडम मैं आपकी जाति नहीं पूछ रहा। मैंने कहा, ‘नहीं सर आप लोग बोलते हो न कि औरतों की कोई जाति नहीं होती, बोल देते हो न। मैंने उनसे कहा कि भैया मेरी माई जो हैं, वो पंडिताईन रही और बाप जो है वो चमार रहै। ये ब्राह्मण लोग इतने धूर्त इतने चालाक रहे कि जो लड़का ठीक-ठाक रहने वाले रहे चाहे वो चमारे जाति का क्यों न हो अपनी लड़किया को टांग देते हैं साथ में। वैसे ही ब्राह्मण रहे हमारे नाना वो टांग दिए अपनी लड़किया, हमार माई को हमार पिताजी के संगे। अब तुम बताओ हमार कौन बिरादरी है सर! ते एकदम चुप, कौनो जवाब नाय है ओकरे पास। ई मजबूती आपको अपने बच्चों में लानी है। ये मजबूती नहीं लानी है कि किसी ने जाति पूछ दी तो 100 फुट नीचे घुस जाये। ये मजबूती गले में बंधे काले रंग के धागे से नही आएगी, क्योंकि ब्राह्मण इसे देख के जनता है कि ये मेरा गुलाम है, कि हम उसके पालतू कुत्ता हैं। अपने दिमाग से इन सारे धागों का भय निकालिए। तोड़कर फेंक दीजिये, इन धागों को ये सारी निशानियां ब्राह्मणों ने औरतों पर कैसे डाली है! शादी हो रही है न बौद्ध धर्म से शादी हुई कि हिन्दू धर्म से शादी हुई! हिन्दू धर्म से हुई, अच्छा चलिए …. तो मैं आपको बताऊँ मेरी शादी भगवान बुद्ध को साक्षी मानकर हुई, बाबा साहब को साक्षी मानकर हुई और हमारी शादी जब बुद्ध को साक्षी मानकर होती है तो उसमें औरत और आदमी को एक बराबर अधिकार होता है। भगवान बुद्ध बताते हैं कि औरत आदमी एक बराबर। सिन्दूर अगर औरत को दिया जाता है तो आदमी की भी तो शादी होती है, इसको क्यों नहीं दी जाती! बड़ी हंसी आती है, इस बात पे लेकिन सही बात ये है कि बिछिया अगर औरत को पहनाई जाती है, तो आदमी को भी तो पहनाई जानी चाहिए- शादी तो दोनो जन की होती है कि नहीं, आदमी तो जैसे आता है, दूल्हा बनकर के पूरी जिंदगी ऐसे ही रहता है और हम शादी के पहले कुछ रहते हैं और शादी के बाद हमें कुछ और बना दिया जाता है, जैसे हम कोई विश्व सुन्दरी हो गये हैं- सबसे सुंदर महिला हम हो गये, ऊपर से नीचे तक इतना लदा-फदा दिया जाता है कि बेचारी दुल्हन को दो लोग एक इधर से एक उधर से पकड़कर चलते हैं, चलते हैं कि नहीं चलते हैं। कभी उतना भारी भरकम पहनी ही नहीं होती है, पकड़ के चलती हैं। तो मेरी शादी भगवान् बुद्ध को साक्षी मानकर हुई, जिसमें आदमी और औरत को एक बराबर अधिकार होता है सिन्दूर और बिछिया नहीं पहनाया जाता है, जैसे हम शादी के पहले रहे शादी के बाद भी एक-दूसरे के सहयोगी, एक– दूसरे के दोस्त बनकर के जिंदगी की गाडी को आगे बढ़ाएं। अगर मेरी शादी हिन्दू धर्म के अनुसार होती तो मेरा पति तो यह कहता न कि ‘का इतनी गर्मी में घूमती हो गाँव-गाँव। चला घरे चला लड़का बच्चन के पाला, रोटी बनावा हमार माई दादा के सेवा करा।’
मेरी शादी हुई, मुझे भी ज्ञान नहीं था, ‘खूब गहना पहने थे- शादी होकर पहुंची ससुराल, मुंह दिखाई की रसम के समय मैंने कुल मेहरारू से प्रश्न किया, ‘आप सारी तो मेरी माँ लोग हो न, भई सास हो तो आप मेरी माँ लोग हो, इस बात का जवाब दीजिये कि सर से पाँव तक जो मैंने सोना चांदी पहन रखा है ये किसकी बदौलत है। उनमें से एक उठी और बोली, ‘भई तुम्हारे ससुर इंजिनियर हैं, नौकरी करत हैं, चढोले हो तो तुम पहन ले हो। हम कहे बिलकुल ठीक बात है। हम कहे अच्छा एक बात और बतावा कि हमार ससुर, जो इंजिनियर हैं, नौकरी करत हैं, यह किसके बदौलत। उनमें से एक फिर खड़ी हुई, ‘अरे वो पढ़त-लिखत हैं, तो नौकरी करत हैं।’ ‘बिलकुल ठीक बात’, हम कहे, ‘ई बतावा हमार ससुर पढ़-लिख कैसे पाये, फिर एक बोली, गाँव में पास में पाठशाला है न वहीं पे पढ़ लेने,’। हम कहे, ‘ठीक बात है, अब एक बात और बताइए गाँव के पास के पाठशाला में हमार ससुर के पढने का अधिकार कौन दिलाये रही, तो कुल मेहरारू चुप।’ लेकिन एक बच्ची थी वह उठ के खड़ी हुई और बोलती है कि ‘गाँव की पाठशाला में पढने का अधिकार तो हमको बाबा साहेब ने दिलाया।’
एक बार की बात और है, बुआ सास का घर था- निरंकारी बाबा की फोटो लगी हुई थी। हम कहे जब सारा अधिकार बाबा साहेब ने दिया ये पक्का मकान जो हम बैठे है, ये नीचे जो हम टाट बिछा के सब बाबा साहब की बदौलत, तब क्यों निरंकारी बाबा की फोटो लगाये रहे?’
‘अगर छुआछूत दूर हुआ है समाज से तो दिखाई भी तो देना चाहिए। आज तक हम क्यों चमरौटी में रह रहे हैं, बाबा साहब के संविधान बना होने के बावजूद हम क्यों इस चमरौटी में रह रहे हैं, ये कैसे सत्संगी लोग आप लोगों को बेवकूफ बना सकते है। आपकी मुक्ति तो इन बच्चों को पढ़ाने लिखाने में हैं, इन बच्चों को ताकतवर बनाइए कमजोर मत बनाइए। ये जो एफआईआर कराने का जो अधिकार दिया है, वो किसी निरंकारी बाबा ने नहीं बल्कि बाबा साहेब ने दिया है, तो आप खुद से सोचिये इन देवी-देवताओं ने, इन निरंकारी बाबा लोगों ने आपको क्या दिया और हमारे बाबा साहब ने क्या दिया?’ एक बात और कह के अपनी बात खत्म करुँगी एक गाँव में एक ग्राम प्रधान थी, बड़ी सुंदर सी थी, हम देखे कि उसके हाथ में एक सुंदर-सा गंडा बंधा हुआ था हम पूछे कि ‘ए बहनी ई का बांध लेय हो,’ तो कहे, ‘कुछो नाय दीदी बुखार होय गयलो तो बंधवाय रह, हमने कहा तोंके बुखार चढ़े तो तू डॉ. के पास जाना ई गंडा-ताबीज बांधे से मरज दूर होला! इन ताबीजों को इन गंडों को इन धागों को आप निकलकर फेंकिये!’ अब मैं वापस आ जाती हूँ, मेरी शादी हुई मैं अपनी शादी वाली बात थोड़ी और आपको बता दूँ कि खूब गहना-वहना पहन के हम बैठे थे स्टेज पे तो हमको भंते जी बोले ‘बेटा आप जो ये सोना चाँदी पहनी हैं, ये आपका असली गहना नहीं है, का है कि कोई चोर एक दिन आएगा डकैती डालेगा और सोना-चाँदी लेकर चला जायेगा, ये असली गहना नहीं है।’ भंते जी बोले, ‘आपकी शादी हो रही है, आपका सबसे बड़ा गहना है आपकी बुद्धि, बुद्धि से विवेक आता है, विवेक से सही-गलत की पहचान होती है, तुम्हारी बुद्धि तुम्हारा सबसे बड़ा गहना है।’ भंते जी फिर बोले, ‘तुम्हारा चरित्र तुम्हारा सबसे बड़ा गहना है।’ भंते जी फिर बोले, ‘तुम्हारा तीसरा और सबसे बड़ा गहना तुम्हारी बोली है।’ भंते जी बोले, ‘कोई तुम्हारे द्वार आये तो उसे एक गिलास पानी पिला दो, उसे रोटी खिला दो और प्रेम से उसका हालचाल पूछ लो यही तुम्हारा सबसे बड़ा गहना है। ये गहना तुमसे कोई चोरी नहीं कर सकता।’ यही गहना लेकर मैं ससुराल गई और उसी का ये परिणाम है कि मेरे सास-ससुर ने मुझसे कहा है कि तुमको जो ज्ञान है, उससे अपने लोगों को जगाओ। मेरी शादी में सिंदूर नही लगाया गया, मुझसे कोई औरत कह सकती है कि मैं विधवा हूँ लेकिन मेरे पति तो मेरे साथ खड़े हैं, तो कह भी नहीं सकती, तो फिर क्यों किसी औरत को आप विधवा कहती हैं ? क्या है कि इस सिंदूर से आदमी की उम्र का कोई लेना देना नहीं होता है। जैसे औरतें जिनके माथे पर सिन्दूर नहीं लगा होता उन्हें मनहूस मानती हैं शुभ अवसर पर उनका होना अपशकुन मानती है, लेकिन क्यों भाई अगर कम उम्र में औरत विधवा हो जाती है, दूसरी शादी नहीं करती है कि अपने बच्चों को पालेंगे-पोसेंगे, बड़ा करेंगे शादी का समय आता है तो औरतें कहती हैं, इसकी परछाई भी नही पड़नी चाहिए। मुझे देख लीजिये और एक विधवा को देख लीजिये क्या अंतर है। बिना सिंदूर के तो वे भी रहती हैं और मैं भी रहती हूँ। अपने आपसे जो भेदभाव हम औरतों ने बना रखा है इसको खत्म कीजिये। छोड़ दीजिये पुरानी मान्यताओं को, अपना नहीं बदल सकती तो इस नई पीढ़ी को तैयार करिए, इसको आगे बढाइये अपने बच्चों को पढाईये लिखाइये
लिप्यांतर : मनीषा बडगुजर
फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्त बहुजन मुद्दों की पुस्तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्य, सस्कृति व सामाजिक-राजनीति की व्यापक समस्याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in
अम्बेडकर ने केवल धर्म और जाति के विनाश का ही नारा नहीं दिया था परन्तु पूंजी का भी! हालाँकि उनका प्रजातंत्र मार्क्सवादी भगत सिंह के समाजवाद से भिन्न था!
मजदुर वर्ग, किसान, औरतों के उत्पीडन का अंत, बराबरी पूंजीवाद के दफ़न से ही संभव है!
Madam u doing great job after reading your speech i hv broken thrown all religious thread which i wear. Thanks mam and i promise i wl spread ur msg to all, first in my house.
*जानिए IPC में धाराओ का मतलब …..*
*धारा 307* = हत्या की कोशिश
*धारा 302* = हत्या का दंड
*धारा 376* = बलात्कार
*धारा 395* = डकैती
*धारा 377* = अप्राकृतिक कृत्य
*धारा 396* = डकैती के दौरान हत्या
*धारा 120* = षडयंत्र रचना
*धारा 365* = अपहरण
*धारा 201* = सबूत मिटाना
*धारा 34* = सामान आशय
*धारा 412* = छीनाझपटी
*धारा 378* = चोरी
*धारा 141* = विधिविरुद्ध जमाव
*धारा 191* = मिथ्यासाक्ष्य देना
*धारा 300* = हत्या करना
*धारा 309* = आत्महत्या की कोशिश
*धारा 310* = ठगी करना
*धारा 312* = गर्भपात करना
*धारा 351* = हमला करना
*धारा 354* = स्त्री लज्जाभंग
*धारा 362* = अपहरण
*धारा 415* = छल करना
*धारा 445* = गृहभेदंन
*धारा 494* = पति/पत्नी के जीवनकाल में पुनःविवाह0
*धारा 499* = मानहानि
*धारा 511* = आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों को करने के प्रयत्न के लिए दंड।
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हमारेे देश में कानूनन कुछ ऐसी हकीक़तें है, जिसकी जानकारी हमारे पास नहीं होने के कारण हम अपने अधिकार से मेहरूम रह जाते है।
तो चलिए ऐसे ही कुछ
*पांच रोचक फैक्ट्स* की जानकारी आपको देते है,
जो जीवन में कभी भी उपयोगी हो सकती है.
*(1) शाम के वक्त महिलाओं की गिरफ्तारी नहीं हो सकती*-@@@.
कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर, सेक्शन 46 के तहत शाम 6 बजे के बाद और सुबह 6 के पहले भारतीय पुलिस किसी भी महिला को गिरफ्तार नहीं कर सकती, फिर चाहे गुनाह कितना भी संगीन क्यों ना हो. अगर पुलिस ऐसा करते हुए पाई जाती है तो गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ शिकायत (मामला) दर्ज की जा सकती है. इससे उस पुलिस अधिकारी की नौकरी खतरे में आ सकती है.
*(2.) सिलेंडर फटने से जान-माल के नुकसान पर 40 लाख रूपये तक का बीमा कवर क्लेम कर सकते है*-
पब्लिक लायबिलिटी पॉलिसी के तहत अगर किसी कारण आपके घर में सिलेंडर फट जाता है और आपको जान-माल का नुकसान झेलना पड़ता है तो आप तुरंत गैस कंपनी से बीमा कवर क्लेम कर सकते है. आपको बता दे कि गैस कंपनी से 40 लाख रूपये तक का बीमा क्लेम कराया जा सकता है. अगर कंपनी आपका क्लेम देने से मना करती है या टालती है तो इसकी शिकायत की जा सकती है. दोषी पाये जाने पर गैस कंपनी का लायसेंस रद्द हो सकता है.
*(3) कोई भी हॉटेल चाहे वो 5 स्टार ही क्यों ना हो… आप फ्री में पानी पी सकते है और वाश रूम इस्तमाल कर सकते है*-
इंडियन सीरीज एक्ट, 1887 के अनुसार आप देश के किसी भी हॉटेल में जाकर पानी मांगकर पी सकते है और उस हॉटल का वाश रूम भी इस्तमाल कर सकते है. हॉटेल छोटा हो या 5 स्टार, वो आपको रोक नही सकते. अगर हॉटेल का मालिक या कोई कर्मचारी आपको पानी पिलाने से या वाश रूम इस्तमाल करने से रोकता है तो आप उन पर कारवाई कर सकते है. आपकी शिकायत से उस हॉटेल का लायसेंस रद्द हो सकता है.
*(4) गर्भवती महिलाओं को नौकरी से नहीं निकाला जा सकता*-
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के मुताबिक़ गर्भवती महिलाओं को अचानक नौकरी से नहीं निकाला जा सकता. मालिक को पहले तीन महीने की नोटिस देनी होगी और प्रेगनेंसी के दौरान लगने वाले खर्चे का कुछ हिस्सा देना होगा. अगर वो ऐसा नहीं करता है तो उसके खिलाफ सरकारी रोज़गार संघटना में शिकायत कराई जा सकती है. इस शिकायत से कंपनी बंद हो सकती है या कंपनी को जुर्माना भरना पड़ सकता है.
*(5) पुलिस अफसर आपकी शिकायत लिखने से मना नहीं कर सकता*
आईपीसी के सेक्शन 166ए के अनुसार कोई भी पुलिस अधिकारी आपकी कोई भी शिकायत दर्ज करने से इंकार नही कर सकता. अगर वो ऐसा करता है तो उसके खिलाफ वरिष्ठ पुलिस दफ्तर में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. अगर वो पुलिस अफसर दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम *(6)*महीने से लेकर 1 साल तक की जेल हो सकती है या फिर उसे अपनी नौकरी गवानी पड़ सकती है.
*इन रोचक फैक्ट्स को हमने आपके लिए ढूंढ निकाला है*.
ये वो रोचक फैक्ट्स है, जो हमारे देश के कानून के अंतर्गत आते तो है पर हम इनसे अंजान है. हमारी कोशिश होगी कि हम आगे भी ऐसी बहोत सी रोचक बाते आपके समक्ष रखे, जो आपके जीवन में उपयोगी हो।
*इस मैसेज को आगे भी भेजना और अपने पास सहेज कर रखना, आपके कभी भी ये अधिकार काम आ सकते हैं।*
✍अधिकार✍.
बोधिसत्व बाबा साहब डाक्टर भीमराव अम्बेडकर आप को सत सत नमन ।
Jay bhim