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प्रो. जयराम प्रसाद : शहीद जगदेव प्रसाद के प्रतिबद्ध सिपाही

शहीद जगदेव प्रसाद के निकटतम सहयोगी प्रोफ़ेसर जयराम प्रसाद किडनी कैंसर की बीमारी से ग्रस्त होकर 13 जनवरी को इस दुनिया को छोड़ गये। उन्हें 2-3 फरवरी, 2017 को होने वाले ‘जगदेव प्रसाद मेला’ में अध्यक्षता के लिए बुलाया गया था, जहां भारत-भ्रमण पर निकली फॉरवर्ड प्रेस टीम उनसे मिलने वाली थी। उनकी मृत्यू के एक सप्ताह पहले ही उपेन्द्र पथिक ने इस आलेख में उनके संघर्षों और योगदान को याद किया था

शहीद जगदेव प्रसाद के कारवां को आगे बढ़ाने के लिए आजीवन संघर्षशील रहे शोषित समाज दल के राष्ट्रीय संरक्षक और शोषित साप्ताहिक पटना के प्रधान संपादक प्रो. जयराम प्रसाद सिंह आज कल किडनी में कैंसर जैसे लाइलाज बीमारी से जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। पर उनसे मिलने जाने वालों को वे एक ही संदेश दे रहे हैं कि भाई कारवां रूकना नहीं चाहिए।

अस्वस्थ प्रोफ़ेसर जयराम प्रसाद से मिलने पहुंचे मानव संसाधन विकास मंत्री (राज्य) उपेन्द्र कुशवाहा

नपा-तुला,स्पष्ट,नीति सिद्धांत से जुङे लगातार भाषण देने और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की उनके गुणों के सभी कायल हैं। लगभग पचास साल की राजनीतिक, सामाजिक और पत्रकारिता के जीवन में इनपर आजतक किसी ने न तो आरोप लगाया और न किसी ने कोई शिकायत की।

बिहार,झारखंड, उत्तर प्रदेश,मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में सक्रिय राजनीतिक दलों का शायद ही कोई राजनेता इन्हें नहीं जानता होगा या उनके साथ कहीं न कहीं मंच साझा नहीं किया होगा।

राजनीतिक क्षेत्र में समाजवाद स्थापित करने के लिए शोषित समाज दल और सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में मानववाद स्थापित करने लिए प्रो. जयराम प्रसाद सिंह हमेशा संघर्षशील रहे।

पटना के पालीगंज थानांतर्गत पैगंबरपुर में एक गरीब किसान के घर 1 जनवरी 1938 को जन्मे जयराम प्रसाद के पिता रामपति सिंह की हत्या तब कर दी गयी थी जब वे मात्र 7 वर्ष के थे। उनकी माता रिकेबिया देवी ने किसी प्रकार पाला पोषा। तीन भाइयों में सबसे छोटे जयराम प्रसाद सिंह कहते हैं कि उनकी पढ़ाई –लिखाई, राजनीतिक खर्चा और पारिवारिक खर्चा उनके बङे भाई मुनेश्वर सिंह ने उठाया। यहां तक कि उनके बड़े भाई को उन्हें पढ़ाने के लिए धनबाद स्टेशन पर चाय भी बेचनी पङी थी, बाद में उन्हें धनबाद के लायकडीह कोलियरी में नौकरी लग गयी।

प्रोफ़ेसर जयराम प्रसाद

शिक्षा- 1950 में मिडिल स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी से पास की। इमामगंज(पटना) के बगल में कहरौल गांव स्थित अपने नानीहाल में रहकर हाई स्कूल फखरपुर में पढ़ाई की। नवम वर्ग में पढने के क्रम में 1952 में पहली बार जगदेव बाबू से वहीं मुलाकात हुई थी और प्रभावित हुए।  बाकी बीए और एमए(1965) की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से पूरी करके राममोहन राय इंस्टीटयूट(डिग्री स्तर) पटना में हिन्दी विभाग का विभागध्यक्ष बने। वह कालेज बाद में आर. पी. एस. कॉलेज के नाम से प्रचलित हुआ। इस दौरान उन्होंने प्रयाग से साहित्यरत्न और आचार्य बद्रीनाथ सर्वभाषा महाविद्यालय पटना में रसियन भाषा में डिप्लोमा भी प्राप्त कर लिया। पीएच. डी के लिए इंगलैंड जाने की तैयारी भी हो गयी, उनके बङे भाइ खर्चा देने को तैयार हो गए, तभी जगदेव बाबू से पुनः मुलाकात हो गयी और उन्होंने नौकरी छोङकर राजनीति में सक्रिय होने का आदेश दे दिया।

बस क्या था, वहीं से जगदेव बाबू के कहने पर शोषित दल में शामिल हो गए। 1969 में पहली बार पालीगंज विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लङ गए। थोङे से वोट से हार गए। चुनाव लङने के लिए उनके बङे भाई ने उन्हें अपनी पूरी कमाई, 400 रूपये, दे दी थी। 1972 में दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र से शोषित समाज दल से ही चुनाव लड़े,1977 में रफीगंज से बाद में कुर्था से

चुनाव लड़े, इसके बाद उत्तर प्रदेश के चंदौली और बिहार के जहानाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव ल लड़े, पर कहीं भी सफलता नहीं मिली। सफलता क्यों नहीं मिली, इसके जवाब में प्रो. जयराम बाबू साफ कहते हैं कि कोयरी जाति के धनी लोगों ने उनका हमेशा यह कहकर विरोध किया कि इनके पास है ही क्या। लंगटा चुनाव जीत ही जाएगा तो क्या फायदा होगा।

शोषित समाज दल औरंगाबाद से रामप्रसाद सिंह कहते हैं कि जब रफीगंज से चुनाव में हार गए तो उनके आंख से आंसू निकल गये। उनका कहना था कि बलिगांव कुशवाहा बहुल गांव है।  चुनाव में उन्हें छोङकर कोई कुशवाहा उम्मीदवार नहीं था, फिर भी वोट उन्हें नहीं मिला।

बिहार के राजनीतिक संत

उनके एक और शुभचिंतक रामानुज सिंह गौतम कहते हैं कि वे बिहार के राजनीतिक संत हैं जिनपर राजनीति के दौरान कोई दाग नहीं लगा। इनकी स्वच्छ छवि के कारण ही राजनीतिक बेइमानों ने इन्हें आगे बढ़ने से रोका।

एक जनसभा में बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदयनारायण चौधरी और अन्य वक्ताओं के साथ प्रोफ़ेसर जयराम प्रसाद

पालीगंज के पूर्व विधायक एन. के नंदा अपने फेसबुक पर कहते हैं कि प्रो. साहब हमारे राजनीतिक गुरू हैं। इसी प्रकार पूर्वमंत्री बसावन भगत कहते हैं कि प्रोफेसर साहब हमारे गार्जियन हैं। उनके कारवां को आगे बढ़ाना हमलोगों का कर्तव्य बनता है। कुर्था विधायक सत्यदेव सिंह कुशवाहा, जहानाबाद विधायक मुन्द्रिका सिंह यादव समेत कई राजनेता उन्हें अपना आदर्श-पुरूष मानते हैं। जिस भी मंच पर बिहार के बङे-बङे राजनेता प्रो. जयराम बाबू के साथ मिलते हैं, सभी उनका मान-सम्मान और आदर से नाम लेते हैं।

उन्हें कई बार बिहार की राजनीति में कई दलों के नेताओं ने प्रत्यक्ष-परोक्ष दूसरे दल से चुनाव लड़ने का ऑफर दिया था पर उन्हें गंवारा नहीं हुआ, जगदेव बाबू के मरने के बाद सोशलिष्ट पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिलदेव सिंह ने सिंबल पर पालीगंज से चुनाव लड़ेने का न्योता दिया था।  यदि वे स्वीकार कर लेते तो जीत सुनिश्चित थी पर जगदेव बाबू का कारवां समाप्त हो जाता।  उसी प्रकार 90 के दशक में भी ऑफर मिला पर त्याग दिया। वरना कब के विधायक–मंत्री बन गये होते।

प्रो. साहब कहते हैं कि उन्हें कर्पूरी ठाकुर, सुमित्रा देवी, रामलखन सिंह यादव और जगजीवन राम काफी मानते थे, जगजीवन राम ने तो 25 के करीब चिट्ठियां भी लिखी थी उन्हें। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ भाषण देने के आरोप में 1975 में आपातकाल में डीआइआर के तहत उन्हें कुर्था से गिरफ्तार कर जहानाबाद जेल भेज दिया गया था, कुछ दिनों बाद उन्हें गया सेन्ट्रल जेल भेज दिया, जहां छात्र नेता लालू प्रसाद और जय प्रकाश नारायण यादव ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था। पर उन्हे दूसरे ही दिन उन्हें दूसरे जेल में ट्रांसफर कर दिया। उसी समय नक्सली नेता चारू मजूमदार मारे गए थे। जेल में एक शोकसभा हुई, जिसकी अध्यक्षता उन्हें करनी पङी, तो उन्हें भी नक्सली करार दे दिया गया।

जगदेव बाबू ने 1969 में ही उन्हें शोषित साप्ताहिक का संपादक और शोषित दल का राष्ट्रीय मंत्री बना दिया था। बाद में लखनऊ से प्रकाशित अर्जक साप्ताहिक के संपादक नन्द किशोर जी से बात हुई, उनके माध्यम से उत्तर प्रदेश के पूर्व वित्तमंत्री, समाज दल और अर्जक संघ के संस्थापक राम स्वरूप वर्मा से मुलाकात हुई। उन्होंने रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद के बीच सेतु बनकर मुलाकात करवाया, जिसके फलस्वरूप 7 अगस्त को पटना में शोषित दल और समाज दल का विलय करके शोषित समाज दल बना, जिसके राष्ट्रीय अध्यक्ष-रामस्वरूप वर्मा और राष्ट्रीय महामंत्री- जगदेव प्रसाद बनाए गए। उन्हें राष्ट्रीय मंत्री बनाया गया। 5 सितंबर 1974 को कुर्था में प्रखंड कार्यालय पर प्रदर्शन करते हुए जगदेव बाबू को पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी। उसके बाद राष्ट्रीय महामंत्री और शोषित साप्ताहिक के प्रधान संपादक की जिम्मेवारी उन्हें सौंपी गयी। बाद में शोषित समाज दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष तथा रामस्वरूप वर्मा की मृत्युपरांत राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए। शारीरिक अस्वस्थता के बाद इन्हें राष्ट्रीय संरक्षक चुना गया।

बगैर किसी पूंजीपति के केवल जनता से मिले चंदा से शोषित समाज दल को इन्होंने अबतक बेदाग, स्वच्छ छवि वाला राजनीतिक दल को बरकरार रखा, और हमेशा आंदोलन करते रहे। उसी का नतीजा है कि मंडल आयोग का लागू होना, मतदाता परिचय पत्र, अनिवार्य शिक्षा अधिनियम लागू होना, आदि संभव हुआ, भले ही क्रेडिट कोई ले जाए पर यह सोच और आंदोलन शोषित समाज दल का ही रहा है, जिसका प्रमाण भी है।

शहीद जगदेव प्रसाद मेला, 2015 में उपस्थित प्रोफ़ेसर जयराम प्रसाद

जगदेव बाबू की हत्या के बाद कुर्था में प्रत्येक वर्ष उनकी जयंती पर 2 फरवरी से तीन दिनों का शहीद जगदेव राष्ट्रीय मेला लगाने में जयराम बाबू की अहम भूमिका को भूलाया नहीं जा सकता। यह मेला सांस्कृतिक कार्यक्रम, जादू, नाटक के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वास और कुरीतियों को उजागर कर मानववाद और समाजवाद स्थापित करने का मेला है।

प्रो. जयराम प्रसाद सिंह की अध्यक्षता में ही शहीद जगदेव कॉलेज कुर्था, जगदेव मेमोरियल कॉलेज अंगारी, पारसनाथ कुशवाहा कॉलेज, अछुआ, हाई स्कूल पैगंबरपुर, जरखा हाई स्कूल पालीगंज, जगदेव हाई स्कूल डिहुली, जगदेव उच्च विद्यालय, अराप आदि शुरू किया गया।

उनके सैंकङो आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, कवि हृदय के कारण दर्जनों कविताएं छपी हैं, मंचों पर उन्होंने सुनाएं है। दलित साहित्य अकादमी के द्वारा 1988 में ज्ञानी जैल सिंह के हाथों उन्हें डॉ. आंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

सिद्धांतों पर अडिग

जाने-माने दलित विचारक श्योराज सिंह बेचन ने अपने पीएच. डी. शोध पत्र में उनके बारे में उल्लेख किया है कि शायद भारत का यह पहले लीडर और पत्रकार होंगे, जो प्रतिमाह घर-घर जाकर शोषित साप्ताहिक के लिए ग्राहक बनाते हैं, चंदा करते है और पत्रिका छापते हैं।

इन्होंने कभी धन अर्जित करने और सुख-सुविधा भोगने की लालच में कोई गलत काम नहीं किया और न नीति, सिद्धांत से कभी समझौता किया। इनके चारो पुत्र, रवीन्द्र सिंह, अभय सिंह,संजय सिंह,और अजय सिंह, से जब मैंने पूछा कि आपको अपने पिता से कोई शिकायत है, क्योंकि उन्होंने परिवार और बच्चों के लिए कुछ नहीं किया, तो उन्होंने जबाब दिया कि ‘हमलोग जान चुके हैं किजो विचारक होते हैं, धुन के पक्के होते हैं, उनके लिए पूरा समाज ही परिवार होता है, औऱ वे अपने परिवार के लिए कुछ नहीं करते, इसलिए हम दुखी नहीं हैं।’ उनकी पत्नी रासमनी देवी कहती हैं, ‘मैं पैबंद लगाकर साङी पहनती आयी हूं, मुझे उनसे कोई शिकायत नहीं है, पर उन्होंने जगदेव बाबू के नीति,सिद्धांत के लिए अपना और अपने परिवार के सुख तो त्याग दिया, इतने दिन में उन्हें क्या मिला? जगदेव बाबू के बेटा सब अरबपति हो गया। आज बीमार हैं, तो देखने भी नहीं आया कोई। मदद की बात तो दूर है।’

प्रो. जयराम बाबू ने पटना के आइजीएमएस में एक भेंटवार्ता में कहा कि शोषित समाज दल और अर्जक संघ को आगे बढ़ाने में दल और संघ के हजारों लोगों ने मदद की है पर लक्ष्मण चौधरी,रघुनीराम शास्त्री,रामचन्द्र कटियार, एस. आर. सिह आदि ने जो कदम से कदम मिलाकर चलने का काम किया है, वह स्तुत्य है।

जब मैंने उनसे पूछा कि ‘आपकी कमजोरी क्या है?’ तो उन्होंने झट से जबाब दिया कि ‘चाय जब भी और जितना भी मिले मैं नहीं छोङता। दूसरी कमी यह है कि जब कोई बे-सिर पैर के कोई आलोचना करता है तो मुझसे बर्दाश्त नहीं होता और मैं जो भी होता है, स्पष्ट कह देता हूं, जिससे उन्हें चोट लगती होगी।’

उन्होंने यह भी कहा कि ‘संस्थापक अध्यक्ष और मानववादी दार्शनिक रामस्वरूप वर्मा और जगदेव प्रसाद के साथ मिलकर काम करने का जो अनुभव हमें प्राप्त हुआ है, वह शायद ही किसी को मिला होगा। वह मेरे लिए जीवन को सफल बनाने वाला सुखदायी समय है। उनके विचार, नीति सिद्धांत और कार्यक्रम देश और समाज के शोषित, पीङित, वंचित जन के लिए बहुत उपयोगी हैं। मुझे इस बात का भी कोई अफसोस नहीं है कि मैं जीवन में विधायक, मंत्री ,सांसद नहीं बन सका। हाँ, इससे ऐसा लगता है कि शायद लोगों को अभी तक असली शत्रु और मित्र का अनुभव नहीं हो सका है।


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लेखक के बारे में

उपेन्द्र पथिक

सामाजिक कार्यकर्ता व पत्रकार उपेंद्र पथिक अर्जक संघ की सांस्कृतिक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। वे बतौर पत्रकार आठवें और नौवें दशक में नवभारत टाइम्स और प्रभात खबर से संबद्ध रहे तथा वर्तमान में सामाजिक मुद्दों पर आधारित मानववादी लेखन में सक्रिय हैं

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