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तैमूर : नामकरण की धार्मिक राजनीति

उस समय भारत जैसी कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं थी और हर राज्य एक अलग देश था। हम सब जानते हैं कि बाबर को राणा सांगा ने आमंत्रित किया था ताकि वह बाबर के साथ मिलकर इब्राहिम लोधी को हरा सके। मुस्लिम राजाओं के दरबारों में उच्च पदों पर हिन्दू हुआ करते थे और यही बात हिन्दू राजाओं के बारे में भी सही थी

हमारे समाज पर सांप्रदायिक मानसिकता की जकड़न भयावह है। हमारा समाज इतिहास को राजाओं के धर्म के चश्मे से देखता है। सांप्रदायिक विचारधारा, इतिहास की चुनिंदा घटनाओं और व्यक्तित्वों का इस्तेमाल, इतिहास का अपना संस्करण गढ़ने के लिए कर रही है। यही विचारधारा दोनों समुदायों के बीच घृणा के बीज बो रही है। मुस्लिम सांप्रदायिक तत्व, हिन्दुओं के प्रति घृणा फैलाते हैं तो हिन्दू संप्रदायवादी हमसे कहते हैं कि मुसलमानों से नफरत करो। इसी घृणा से उपजती है सांप्रदायिक हिंसा, जो कि अधिकांश मामलों में सोची-समझी साजिश के तहत भड़काई जाती है। इस हिंसा में मासूम लोग मारे जाते हैं और समाज का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण होता है, जिसका लाभ सांप्रदायिक ताकतें उठाती हैं। सांप्रदायिक शक्तियां अंतर्धामिक विवाहों और ऐसे सांस्कृतिक आचरणों की विरोधी हैं, जो विभिन्न धर्मों के लोगों को एक करते हैं। इन दिनों मुस्लिम पुरूष और हिन्दू महिला के बीच विवाह को ‘लव जिहाद’ कहा जाता है और यहां तक कि इस तरह के विवाहों से उत्पन्न संतानों को भी निशाना बनाया जा रहा है।

पिता सैफ अलीखान की गोद में तैमूर

गत 20 दिसम्बर, 2016 को करीना कपूर और सैफ अली खान के पुत्र ने जन्म लिया। उन्होंने उसका नाम तैमूर (जिसे तिमूर भी उच्चारित किया जाता है) रखा। इसके बाद सोशल मीडिया पर बवाल मच गया। कई सांप्रदायिक तत्वों ने नवजात शिशु को कोसा। उनकी शिकायत यह थी कि बच्चे का नाम तैमूर क्यों रखा गया। तैमूर ने सन 1398 में दिल्ली पर आक्रमण कर लूटपाट की थी और बड़ी संख्या में आम लोगों की हत्या कर दी थी। यह दिलचस्प है कि उन दिनों दिल्ली पर तुर्की मुसलमान बादशाह मोहम्मद बिन तुगलक का शासन था।

तैमूर, चंगेज़ खान और औरंगजे़ब को भारत के मध्यकालीन इतिहास का खलनायक बताया जाता है और उन्हें आज के भारतीय मुसलमानों से जोड़ा जाता है। चंगेज़ खान मंगोल था और उसने मंगोल साम्राज्य की स्थापना की थी। वह मुसलमान नहीं वरन शेमनिस्ट था। उसने भी उत्तर भारत में लूटपाट और मारकाट की थी। औरंगजे़ब को एक ऐसे तानाशाह के रूप में देखा जाता है जिसने जज़िया लगाया, लोगों को ज़बरन मुसलमान बनाया और हिन्दू मंदिरों को नष्ट किया। इन राजाओं का दानवीकरण तो किया ही जाता है, उनकी क्रूरताओं के लिए आज के भारतीय मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। यह नितांत हास्यास्पद है। आज के भारतीय मुसलमानों का तैमूर, औरंगजे़ब या चंगेज़ खान से कोई लेना-देना नहीं है। ये राजा अलग-अलग धर्मों के थे और उन्होंने अपने धर्म के लिए लड़ाईयां नहीं लड़ी थीं।

सभी विजयी राजा, चाहे वे किसी भी धर्म या क्षेत्र के रहे हों, विजित इलाके में लूटपाट और मारकाट करते थे। इस लूटपाट को औचित्यपूर्ण सिद्ध करने के लिए कई बार उनके दरबारी उसे धर्म से जोड़ देते थे। परंतु यह मानना भूल होगी कि किसी एक धर्म के राजा ही खूनखराबा और लूटमार करते थे। जिस युग की हम बात कर रहे हैं, उस युग में न तो कोई अंतररार्ष्ट्रीय कानून था और ना ही राष्ट्रवाद की वह अवधारणा थी, जिससे हम आज परिचित हैं। राजा अपने साम्राज्य के मालिक हुआ करते थे और उनसे कोई प्रश्न पूछने की इजाजत किसी को नहीं थी। सभी धर्मों का पुरोहित वर्ग यह सिद्ध करने में लगा रहता था कि उनका राजा जो भी करता है, वह धर्म के अनुरूप है और उसे ईश्वर की स्वीकृति प्राप्त है। उस समय भारत जैसी कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं थी और हर राज्य एक अलग देश था। हम सब जानते हैं कि बाबर को राणा सांगा ने आमंत्रित किया था ताकि वह बाबर के साथ मिलकर इब्राहिम लोधी को हरा सके। मुस्लिम राजाओं के दरबारों में उच्च पदों पर हिन्दू हुआ करते थे और यही बात हिन्दू राजाओं के बारे में भी सही थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिवाजी महाराज

आज भारत में मुस्लिम राजाओं और ऐसे राजाओं, जो अपने नाम से मुसलमान लगते हैं, को खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। दूसरी ओर, शिवाजी, राणा प्रताप और गोविंद सिंह जैसे नायकों को हिन्दुओं का नायक बताया जा रहा है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का कहना था कि शिवाजी, राणा प्रताप और गोविंद सिंह के सामने एक राष्ट्रवादी बतौर गांधीजी बौने थे। जहां आज शिवाजी को एक महान राष्ट्रीय नायक के रूप में महिमामंडित किया जा रहा है वहीं यह दिलचस्प है कि शुरूआत में देश के कुछ इलाकों, विशेषकर गुजरात व बंगाल में, शिवाजी को राष्ट्रीय नायक के रूप में स्वीकार करने का खासा प्रतिरोध हुआ था। ये वे दो इलाके हैं जहां शिवाजी की सेनाओं ने लूटमार की थी और बेगुनाहों को कत्ल किया था। आज हालत यह हो गई है कि अगर कोई कहे कि शिवाजी की सेना भी लूटमार और मारकाट करती थी तो उसे ‘राष्ट्रीय नायक’ का अपमान बताया जाता है। बाल सामंत नामक एक सज्जन, जो हिन्दू राष्ट्रवादियों के प्रिय बाल ठाकरे के नज़दीकी थे, ने अपनी पुस्तक ‘शिवकल्याण राजा’ में करीब 21 पृष्ठों के अध्याय में केवल शिवाजी की सेनाओं द्वारा की गई लूटमार का वर्णन किया है। उन्होंने डच व ब्रिटिश स्त्रोतों के हवाले से शिवाजी की सेना द्वारा बड़े पैमाने पर की गई लूटमार और हत्याओं का वर्णन किया है। अशोक ने कलिंग में किस तरह का कत्लेआम किया था और खून की नदियां बहाई थीं, यह हम सबको ज्ञात है। अधिकांश राजाओं ने या तो अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए अथवा अपने शत्रुओं से बदला लेने के लिए युद्ध किए।

सांप्रदायिक विचारधारा का बोलबाला बढ़ने के साथ ही इतिहास की विवेचना करने का तरीका भी बदल गया है। शिवाजी की सेना द्वारा की गई लूट को नरेन्द्र मोदी औरंगजे़ब की खज़ाने की लूट बता रहे हैं! मराठा सेनाओं द्वारा श्रीरंगपट्टनम के हिन्दू मंदिर को नष्ट किए जाने की घटना को सांप्रदायिक इतिहासकारों द्वारा छुपाया जाता है। सन 1857 का भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम भी इतिहास को तोड़ मरोड़कर प्रस्तुत करने वालों की कारगुज़ारियों का शिकार हुआ है। जहां हिन्दुत्व चिंतक सावरकर उसे भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम बताते हैं वहीं इसी विचारधारा के एक अन्य बड़े झंडाबरदार गोलवलकर का कहना है कि यह विद्रोह इसलिए असफल हुआ क्योंकि इसका नेतृत्व एक मुसलमान, बहादुरशाह ज़फर के हाथों में था, जो हिन्दू सिपाहियों को लड़ने के लिए प्रेरित न कर सका। हम सब जानते हैं कि यह विद्रोह इसलिए असफल हुआ क्योंकि पंजाबियों और गोरखाओं ने अंग्रेज़ों का साथ दिया।

सांप्रदायिक विचारधारा, इतिहास को तोड़नेमरोड़ने और उसके चुनिंदा हिस्सों को गलत ढंग से प्रस्तुत कर अपना उल्लू सीधा करती है। कुछ लोगों ने तो सभी हदें पार करते हुए, सैफ अली खान और करीना कपूर के नवजात पुत्र को आतंकवादी और जिहादी तक बता डाला। सभी बच्चों का इस दुनिया में स्वागत किया जाना चाहिए। सैफ अली खान ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अपने लेख में लिखा है कि किस तरह उनके विवाह को लव जिहाद बताया गया था और उसका विरोध हुआ था। एक ट्वीट में हिन्दू लड़कियों को यह चेतावनी दी गई है कि वे मुसलमान लड़कों से विवाह न करें क्योंकि अगर वे ऐसा करेंगी तो वे किसी चंगेज़ खान या किसी तैमूर या किसी औरंगजे़ब को जन्म दे सकती हैं। विघटनकारी विचारधारा आखिर हमारी सोच को कितना नीचे गिराएगी।


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लेखक के बारे में

राम पुनियानी

राम पुनियानी लेखक आई.आई.टी बंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।

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