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दलितों के हत्यारे को किसने मारा?

ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या को एक मिथक बनाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है, यह समझना जटिल नहीं है। वजह यह कि आज भी बिहार के सामंती उसे भगवान मानते हैं और उनके भगवान की हत्या का पाप न तो सामंती ताकतों के सहयोग से बनी तत्कालीन राज्य सरकार के माथे पर लगे और न ही इसका श्रेय किसी गैर सवर्ण को मिले। जाहिर तौर पर इस मामले में कई पेंचोखम तो आयेंगे ही

300 से अधिक दलित-पिछडों की हत्याओं की आरोपी रणवीर सेना का संस्थापक बरसमेसर सिंह उर्फ  ब्रह्मेश्वर  मुखिया मारा जा चुका है। पांच वर्ष पहले 1 जून 2012 को उसे आरा के कातिरा मोहल्ले में ही गोलियों से छलनी कर दिया गया था। जुलाई 2012 के अपने अंक में फ़ारवर्ड प्रेस ने

1 जून 2012 को अपने ही मुहल्ले (आरा शहर का कातिरा मुहल्ला) में ब्रह्मेश्वर मुखिया को गोलियों से भून दिया गया था

इस हत्याकांड के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से एक आलेख प्रकाशित किया था। आलेख में राज्य सरकार द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम की जांच शैली पर सवाल उठाया गया था। इसमें सबसे महत्वपूर्ण वह गोलियां थीं, जिन्होंने बिहार के कसाई कहे जाने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया की जान ली थी। ( जुलाई 2012 में फ़ारवर्ड प्रेस में प्रकाशित आलेख यहां देखें)

मुखिया के हत्या के मामले को  बाद में राज्य सरकार ने रणवीर सेना समर्थकों के दबाव में आते हुए सीबीआई को सौंप दिया। लेकिन सीबीआई की स्पेशल टीम पांच साल बीतने के बाद भी इस गुत्थी को सुलझाने में असफ़ल रही है कि जिन गोलियों ने ब्रह्मेश्वर मुखिया की जान लीं और घटना स्थल पर जो खोखे मिले थे, वे अलग-अलग क्यों थे? वहीं इस संबंध में पूछने पर बिहार के तत्कालीन पुलिस महानिदेशक रहे अभयानंद सेवानिवृति के बाद अब पल्ला झाड़ते हुए नजर आते हैं।

दूरभाष पर बातचीत में उन्होंने बताया कि 31 दिसंबर 2014 को सेवानिवृत होने के बाद उन्होंने पुलिस से संबंधित सभी विषयों को छोड़ दिया है। यह उल्लेखनीय है कि तब एसआईटी का नेतृत्व कर रहे भोजपुर रेंज के तत्कालीन डीआईजी अजिताभ ने स्वीकारा था कि मुखिया के शव अंत्यपरीक्षण के समय चिकित्सकों के साथ वे अभयानंद के कहने पर ही मौजूद थे। वहीं पटना में इस मामले की जांच  कर रहे  सीबीआई अधिकारी ने कुछ भी बताने से इन्कार किया।

जेल से बाहर हैं पुलिस के “अपराधी”

इस पूरे मामले में बिहार पुलिस की एसआईटी ने जिन पांच लोगों को अभियुक्त माना था, वे सब जमानत पर हैं। इनमें वह अभय पांडेय भी शामिल है जो लंबे समय तक पुलिस की नजर में फ़रार रहा था। इसके अलावा आरा शहर का कुख्यात हरे राम पांडे जिसकी लंबे समय से मुखिया के साथ अदावत थी और पुलिस ने तब मुखिया की हत्या में उसे साजिशकर्ता माना था, जेल से बाहर है।

मुखिया की मौत पर सभी दलों के भूमिहार नेताओं ने जताया था शोक

मुखिया के पीछे की राजनीति

आतंक का पर्याय रहे मुखिया ने वर्ष 1995 में रणवीर सेना के गठन कर तब एक के बाद 27 बड़े नरसंहारों को अंजाम दिया था। वर्ष 2002 में गिरफ़्तार मुखिया को जेल से मुक्ति वर्ष 2006 में तब मिली जब भाजपा के समर्थन से नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने। तब रणवीर सेना और उसके राजनीतिक संरक्षकों को लेकर गठित किये गये जस्टिस अमीरदास आयोग को भंग कर दिया गया। वह भी तब जबकि आयोग ने अपनी पूरी रिपोर्ट को तैयार कर लिया था। हालांकि अगस्त 2015 में कोबरा पोस्ट ने एक स्टिंग आपरेशन में रणवीर सेना और भाजपा नेताओं के बीच संबंध को जगजाहिर किया था।

बहरहाल मौजुदा समय में राष्ट्रीय जनता दल सरकार में शामिल है। जिस समय राज्य सरकार ने अमीरदास आयोग को भंग किया था तब राजद के नेताओं जिनमें लालू प्रसाद तक शामिल थे, ने राज्य सरकार की निंदा की थी। लेकिन अब जबकि वे स्वयं इस सरकार में साझेदार हैं तो इस सवाल को लेकर मौन हैं।

“मेरे पिता की हत्या राजनीतिक साजिश”

2 जून 2012 को मुखिया समर्थकों ने शव यात्रा के दौरान पटना पर किया था कब्जा, मूकदर्शक थी सरकार

अपने संस्थापक की हत्या को लेकर रणवीर सेना खामोश नहीं है। ब्रह्मेश्वर मुखिया का बेटा इन्दू भूषण सिंह मानता है कि उसके पिता की हत्या राजनीतिक थी। राजनीति के कारण ही सीबीआई को उसका काम नहीं करने दिया जा रहा है। पूछने पर उसने बताया कि भाजपा के बड़े नेताओं जिनमें बिहार भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मंगल पांडेय और सुशील मोदी शामिल हैं, से कई बार अनुरोध किया था। तब भाजपा सरकार में शामिल थी। हालांकि यह पूछने पर कि यदि रणवीर सेना ने हत्यारे की पहचान कर ली है तो उसका नाम सार्वजनिक क्यों नहीं कर रही, इन्दू भूषण सिंह ने बताया कि हम कानून में विश्वास रखते हैं। बताते चलें कि प्रारंभ में रणवीर सेना के द्वारा जदयू के पूर्व विधायक सुनील पांडे को लेकर आरोप लगाया गया था।

वहीं रणवीर सेना के मगध जोन का पूर्व कमांडर सत्येन्द्र शर्मा इस बात को स्वीकारता है कि मुखिया की हत्या की जांच सही तरीके से नहीं चल रही है। वह यह भी आरोप लगाता है कि मुखिया की हत्या राज्य सरकार के निशाने पर की गयी थी। उसके मुताबिक राज्य सरकार नहीं चाहती है कि इस मामले की सही तरीके से जांच हो और हत्यारे सामने आयें। सत्येन्द्र शर्मा ने यह भी कहा कि सीबीआई ने भी जांच में बहुत समय लगा दिया है, लेकिन अब रणवीर सेना चुप नहीं बैठेगी। उसके मुताबिक आगामी 1 जून को पटना में रणवीर सेना के शीर्ष सदस्य बैठेंगे और इस संबंध में कोई निर्णय लेंगे।

11 जुलाई 1996 को बथानी टोला में रणवीर सेना ने की थी 21 दलित-पिछड़ों की सामूहिक हत्या

बहरहाल ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या को एक मिथक बनाने का प्रयास क्यों किया जा रहा है, यह समझना जटिल नहीं है। वजह यह कि आज भी बिहार के सामंती उसे भगवान मानते हैं और उनके भगवान की हत्या का पाप न तो सामंती ताकतों के सहयोग से बनी तत्कालीन राज्य सरकार के माथे पर लगे और न ही इसका श्रेय किसी गैर सवर्ण को मिले। जाहिर तौर पर इस मामले में कई पेंचोखम तो आयेंगे ही। सवाल आज भी बना हुआ है कि क्या मुखिया की हत्या दलित-पिछडे समुदाय की ओर से बदले की कार्रवाई थी?


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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