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“अर्जक संघ के विचारों ने मुझे आइएएस बनाया”

दिव्यांशु मानते हैं कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बहुजनों की भागीदारी अभी भी न्यून है। अधिक से अधिक बहुजन आगे आएं और प्रतियोगिता के जरिए अपनी प्रतिभा पूरे देश के सामने साबित करें

सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता ही देशभक्ति की कसौटी है। ऐसा नहीं हो सकता है कि कोई सामाजिक न्याय की बात न करे और वह देशभक्त होने का दावा करे।” संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 204वां स्थान हासिल करने वाले अर्जक संघ के विचारों के बीच पले बढे दिव्यांशु पटेल का कहना है कि विकसित समाज की बुनियाद ही सामाजिक न्याय है।” पटेल इन दिनों  जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में पीएचडी शोधार्थी हैं।

दिव्यांशु पटेल (पीछे खड़े) के पिता का मुंह मीठा करते विवेक कुमार

पटेल कहते  हैं  कि “विषमता की खाई इतनी बड़ी है कि जबतक वंचित तबके को उनका वाजिब हक नहीं मिलेगा, तबतक न तो देश आगे बढेगा और न ही समाज। यहां तक कि उच्च जातियों के लोगों को भी यह समझना चाहिए। मेरी यह सफ़लता सामाजिक न्याय की विचारधारा को समर्पित है।”

अर्जक संघ से जुड़ाव के संबंध में पूछने पर दिव्यांशु ने बताया कि उनके परिवार में वो पांचवी पीढ़ी के सदस्य हैं जो मानववादी विचारधारा से प्रभावित हैं। उनके पिता डॉ अवधेश प्रताप वर्मा ने विस्तार से बताया कि उनके दादा और पिता भी सामाजिक न्याय के लिए समर्पित थे , इस हेतु दिव्यांशु के दादाजी ने सदैव शिक्षा के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन को लक्ष्य बनाया जिसमे वंचित तबके की भागीदारी सुनिश्चित हो सके । दिव्यांशु के पिता जी ने निजी प्रसंग का जिक्र करते हुए विस्तार से बताया कि कैसे उन्हें और उनके तमाम लोगों को योग्यता के बावजूद उचित पद मिलने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा । लेकिन दिव्यांशु के पिता ने हमेशा हर मुश्किल को मौका समझ कर संघर्ष करते हुए अपनी योग्यता के मुताबिक पद हासिल किया। बताते चलें कि दिव्यांशु के पिता डॉ अवधेश प्रताप वर्मा जी को एमए में राज्यपाल स्वर्ण पदक मिला था किंतु उन्हें योग्यता अनुरूप प्रोफेसर की नौकरी हासिल करने में 17 वर्षों का लंबा इंतजार करना पड़ गया और उस बीच वो पोस्ट आफिस में क्लर्क की नौकरी करने पर विवश हुए। आज उस प्रसंग का जिक्र करते हुए भावुक डॉ वर्मा ने कहा कि ये मेरी निजी क्षति नही देश की क्षति है जो गोल्ड मेडलिस्ट क्लर्क बन कर काम करता रहा और तमाम अयोग्य प्रोफेसर बन गए। वहीं दिव्यांशु के पिता ने कहा उनके संघर्ष ने दिव्यांशु को भी संघर्ष के साथ सफलता हासिल करने को प्रोत्साहित किया।

दिव्यांशु की सफ़लता पर अर्जक संघ के सदस्यों ने भी उन्हें बधाई दी है। अर्जक संघ के सांस्कृतिक समिति के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुमार पथिक ने कहा कि अर्जक संघ के परिवार से एक और सितारे का उदय हुआ है। पूरे समाज को दिव्यांशु से अपेक्षा है। इससे समाज के अन्य युवाओं को प्रेरणा मिलेगी।

वहीं जेएनयू में एम फ़िल और पीएचडी के सीटों की संख्या 83 फ़ीसद कम करने के फ़ैसले के संबंध में पूछने पर दिव्यांशु ने समर्थन व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि आज जेएनयू में शिक्षक-छात्रों के बीच अनुपात चिंतनीय स्तर पर पहुंच चुका है। एक-एक बैच में 90 से अधिक छात्र-छात्रायें हैं। इसके अलावा जेएनयू और अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालयों में ओबीसी श्रेणी के शिक्षक नहीं हैं। पहल तो इस बात की हो कि जेएनयू जैसे विश्वविद्यालयों में ओबीसी एवं एससी श्रेणी के अधिक से अधिक शिक्षक नियुक्त हों। इससे छात्रों को लाभ मिलेगा।

अपने शिक्षक प्रो विवेक कुमार के प्रति आभार व्यक्त करते हुए दिव्यांशु ने बताया कि वर्ष 2012 में उनका चयन सीआरपीएफ़ में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर हो गया। लेकिन तब प्रो कुमार ने उन्हें इसे अस्वीकार करने की सलाह दी और पूरा फ़ोकस यूपीएससी व पीएचडी पर करने की सलाह दी। प्रो कुमार के साथ एक प्रसंग सुनाते हुए दिव्यांशु ने बताया कि एम फ़िल का शोध जमा करते समय उनके शिक्षक ने गुरु दक्षिणा की बात कही थी और तब उन्होंने कहा था कि दो वर्षों में आईएएस बनकर दिखाऊंगा।

बहरहाल दिव्यांशु मानते हैं कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बहुजनों की भागीदारी अभी भी न्यून है। अधिक से अधिक बहुजन आगे आयें और प्रतियोगिता के जरिए अपनी प्रतिभा पूरे देश के सामने साबित करें। उन्होंने यह भी कहा कि स्पष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत के अलावा सफ़लता का कोई विकल्प नहीं है।

लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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