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भगाना और मिर्चपुर के दलितों को ‘राष्ट्रवादी भोज’ में शामिल होने का इंतजार

केंद्र और हरियाणा में सत्तासीन भाजपा सरकार को दलितों से सच्ची हमदर्दी है तो उन्हें हिसार में दलितों से मिलना चाहिए। हिसार में डाबड़ा कांड, दौलतपुर कांड, गंगवा में दलित हत्या सहित दलितों पर सैंकड़ों अत्याचार की घटनाओं के पीडि़त न्याय के लिए तरस रहे हैं

केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल पू्रे होने पर पूरे देश में “मोदी फ़ेस्ट” के अलावा दलितों के घर में “पालिटिकल फ़ूड फ़ेस्ट” का दौर जारी है। हरियाणा के हिसार जिले के भगाना और मिर्चपुर के दलितों को भी भाजपा के लोगों का इंतजार है।

हरियाणा के भगाना के दलितों के संघर्ष के नायक वीरेन्द्र बागोरिया (बाएं)

हालांकि भगाना कांड संघर्ष समिति के नेता वीरेंद्र सिंह बागोरिया व जगदीश काजला ने भारतीय जनता पार्टी के नेता व हरियाणा सरकार के नुमाइंदों ने हिसार में एक दलित परिवार के घर खाना खाने की कार्रवाई को पूरी तरह ड्रामेबाजी व नौटंकी करार दिया है। उनका कहना है कि जिस हिसार शहर में मिर्चपुर के वाल्मीकि समाज के सैंकड़ों परिवार लगभग पिछले सात साल से आगजनी व दो आदमियों को जिंदा जलाने की घटना के बाद वेदपाल तंवर के फार्म हाउस पर 47 डिग्री तापमान में प्लास्टिक व पॉलिथीन के तंबूओं में पशुओं से भी बुरी हालत में जीवन जीने पर मजबूर है, वहीं भगाना के दलित 21 मई 2012 से गांव से बहिष्कार के बाद हिसार के लघु सचिवालय प्रशासनिक भवन के सामने न्याय के लिए संघर्ष कर रहे हैं। इस हालात में भाजपा नेताओं ने मिर्चपुर व भगाना के दलितों के साथ बैठकर भोजन करना चाहिए था, जिससे उनकी तकलीफ और मांगों के बारे में सही पता चल जाता व प्रशासनिक अधिकारियों का सच और झूठ भी आमने सामने होता।

पांच वर्षों से पुनर्वास की आस जोह रहे मिर्चपुर के विस्थापित दलित

बागोरिया कहते हैं कि बीजेपी नेताओं से पुछना चाहिए था कि दलित परिवार देश की आजादी के 70 वर्ष बाद भी केवल 30 गज के मकान में रहकर अपना जीवन यापन कर रहे हैं, जिस मकान में उन्होंने खाना खाया था। उनका कहना है कि भाजपा व सरकार को दलितों से सच्ची हमदर्दी है तो हिसार में डाबड़ा कांड, दौलतपुर कांड, गंगवा में दलित हत्या सहित दलितों पर सैंकड़ों अत्याचार की घटनाओं के पीडि़त न्याय के लिए तरस रहे हैं। इनकी हालात जाननी चाहिए थी। दलितों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल रहा है या नहीं, बीपीएल कार्ड धारकों को राशन मिलता है या नहीं, दलितों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं वहां पर अध्यापक है या नहीं, इसके अलावा उनको मिलने वाला 20 प्रतिशत आरक्षण, जिसमें लाखों की संख्या में हरियाणा प्रदेश व केंद्र सरकार में रिक्त पद पड़े हैं, उस बैकलॉग को भरना चाहिए। केवल दलितों के घर खाना खाने मात्र से उनका विकास नहीं हो जाएगा। भाजपा के नेताओं ने दलितों से यह भी पूछना चाहिए कि उन्हें मंदिर चाहिए या शिक्षा व रोजगार, गाय चाहिए या दूध देने वाली भैंस, जिससे उसके परिवार का पालन पौषण हो सके।

बनारस में एक दलित के घर भोज खाते भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह

बागोरिया ने कहा कि मिर्चपुर व भगाना के दलित परिवार हिसार के विधायक व संसदीय सचिव के घर से दो समय खाना खाने के निमंत्रण का इंतजार कर रहे हैं। ताकि खाना खाने के बाद वे न्याय की बात कर सके। इससे उनका कुछ खर्चा भी बचेगा और अच्छा खाना भी मिलेगा और विधायक व सरकार को उनके हालात का भी पता चल जाएगा। आज से पहले विधायक कमल गुप्ता, भाजपा जिलाध्यक्ष सुरेंद्र पूनिया विपक्ष में रहते हुए कभी भी इन लोगों से नहीं मिले और सरकार में रहते हुए भी कभी मिलने की कोशिश नहीं की। इससे साफ पता चलता है कि मौजूदा सरकार के दिल में दलितों के लिए कितनी जगह है। अगर ये सरकार ऐसा नहीं करती है तो साफ बात है कि यह खाना खाने का ड्रामा आने वाले चुनाव के लिए केवल दिखावा है, परंतु आज दलित और पिछड़ा अपने सम्मान व अधिकारों को ठीक से समझने लग गए हैं और अधिकारों के लिए मरना भी सीख चुके हैं।

बहरहाल यह भी सत्य है कि देश के कई हिस्सों में दलितों के घर “मोदी भोज” की सच्चाई अब सामने आ चुकी है। पश्चिम बंगाल में तो यह बात निकलकर सामने आयी कि मुख्तार अब्बास नकवी ने बाहर से खाना मंगवाकर खाया। यानी दलितों के घर में दलितों से प्रेम का आडंबर अब सभी को नजर आने लगा है। देखना दिलचस्प होगा कि आडंबर ही सही, क्या भाजपाई मिर्चपुर और भगाना के विस्थापित दलितों के साथ बैठकर भोज करने का नैतिक साहस दिखायेंगे या नहीं।


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