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जमीन के कारण खिसक रही रघुवर दास की जमीन

बिरसा मुंडा का उलगुलान आंदोलन जमीन पर अधिकार को लेकर ही शुरु हुआ था और तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने सीएनटी एक्ट बनाकर अपने खिलाफ़ चल रहे आंदोलन को विराम दिया था। तब यह सुनिश्चित किया गया था कि आदिवासियों की कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल गैर कृषि कार्यों के लिए नहीं किया जा सकेगा

मामला झारखंड के आदिवासियों की जमीन से जुड़ा है। हाल ही में मुख्यमंत्री रघुवरदास के द्वारा राज्य में पहले से चल रहे

झारखंड विधानसभा के मुख्य द्वार पर विरोध करते विपक्ष के नेता सह पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन

सीएनटी(छोटानागपुर टीनैंसी) एक्ट(1908) और एसपीटी(संथाल परगना टीनैंसी) एक्ट(1949) में संशोधन के जरिए यह प्रयास किया गया कि आदिवासियों की जमीन पर गैर आदिवासियों का अधिकार सुनिश्चित हो सके। दिलचस्प यह कि विधानसभा में पूर्ण बहुमत रहने के बावजूद रघुवर दास सरकार ने इसके लिए एक अध्यादेश का सहारा लिया। हालांकि बाद में जब सवाल उठने लगे तब सरकार ने विधानसभा में संशोधन विधेयक के रुप में पेश किया, जिसका व्यापक विरोध हुआ था। यहां तक कि विधानसभा के अंदर भी गैर संसदीय तरीके से सरकार का विरोध किया गया।

 

रघुवर के विरोधियों में अपने भी शामिल

विद्रोह की आग़ केवल विधानसभा के अंदर ही नहीं बल्कि पूरे झारखंड में फ़ैल चुकी है। हालत यह हो गयी है कि इस आग में अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का वरदहस्त प्राप्त रघुवर दास की कुर्सी भी जलने लगी है। जमीन को लेकर लगी आग कितनी प्रचंड है, इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि झारखंड से भाजपा के वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और यहां तक कि प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने भी सीधे-सीधे मुख्यमंत्री रघुवर दास पर सवाल उठाया है। अपनों से मिल रहे तीखे विरोध के साथ ही रघुवर दास को झारखंड मुक्ति मोर्चा और झारखंड विकास मोर्चा के नेताओं का विरोध भी झेलना पड़ रहा है। इन सबके अलावा झारखंड के आदिवासी अब इस मामले को लेकर सड़क पर उतर चुके हैं। हाल ही में आदिवासियों ने बिरसा मुंडा(जन्म 15 नवंबर 1875, मृत्यु 9 जून 1900) के शहादत दिवस के मौके पर रांची स्थित भाजपा के प्रदेश कार्यालय में घुसकर वहां चल रहे “मोदी फ़ेस्ट” कार्यक्रम में व्यवधान उत्पन्न किया था।

 

नया मुख्यमंत्री चुनने की कवायद हुई तेज

एक बार फ़िर सीएम बनने को तैयार हैं अर्जुन मुंडा

अब इस पूरे मामले में एक मोड़ आ गया है। नया मोड़ यह कि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने रघुवर दास को हटाकर एक नया मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लगभग ले लिया है। बीते 17 जून को इस संबंध में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने वरिष्ठ नेता राम माधव को रांची भेजा था। राम माधव ने भाजपा के सभी विधायकों के साथ बंद कमरे में करीब 4 घंटे तक बैठक की। दिलचस्प यह है कि जब यह बैठक चल रही थी तब मुख्यमंत्री रघुवरदास जमशेदपुर में थे। वहीं एक और दिलचस्प तथ्य यह कि विधायक नहीं होने के बावजूद अर्जुन मुंडा बैठक में शामिल रहे।

इस पूरे मामले में सत्ता परिवर्तन को लेकर फ़िलहाल अधिकारिक तौर पर किसी ने अपना मुंह नहीं खोला है। मसलन फ़ारवर्ड प्रेस से बातचीत के दौरान लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष सह वरिष्ठ सांसद करिया मुंडा ने सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव को आदिवासियों के हितों पर कुठाराघात करने वाला बताया। उन्होंने आक्रोशपूर्ण शब्दों में कहा कि इतना बड़ा फ़ैसला रघुवर दास जी द्वारा बिना किसी विचार विमर्श के लिया गया। यहां तक कि पार्टी नेताओं के बीच भी इसकी चर्चा नहीं की गयी। हालांकि सत्ता परिवर्तन के संबंध में पूछने पर श्री मुंडा ने कहा कि उन्हें इस मामले में फ़िलहाल कुछ नहीं कहना है।

अन्य नेताओं की बात करें तो भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ भी स्वीकारते हैं कि राज्य सरकार का यह दांव उलटा पड़ चुका है। बताते चलें कि गिलुआ रघुवर दास के विश्वासपात्रों में सबसे आगे हैं। लेकिन आदिवासियों के तीखे विरोध के कारण उन्होंने भी अपना तेवर बदल लिया है। पूछने पर वे कहते हैं कि सरकार को हर हाल में सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधनों को वापस लेना चाहिए।

इस प्रकार मुख्यमंत्री पद को लेकर भाजपा में कई गुट बन चुके हैं। मुख्यमंत्री की रेस में कई आदिवासी नेताओं के नाम सामने आ रहे हैं। इनमें अर्जुन मुंडा और लक्ष्मण गिलुआ स्वयं भी शामिल हैं। भाजपा के अंदर मचे इस घमासान और सीएनटी व एसपीटी एक्ट में किये गये संशोधनों के कारण बैकफ़ुट पर आये झारखंड मुक्ति मोर्चा को भी संजीवनी मिल गयी है। पू्र्व मु्ख्यमंत्री सह विधानसभा में विपक्ष के नेता हेमंत सोरेन ने पहले ही दिन से विरोध को सदन से झारखंड के गांवों तक ले जाने की बात कही। वहीं उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री सह सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन ने इस मामले को संसद में उठाया और इस बाबत राष्ट्रपति को पत्र भी लिखा। जबकि झारखंड के पहले मुख्यमंत्री और झारखंड विकास मोर्चा के अध्यक्ष बाबुलाल मरांडी ने भी इसी बहाने अपनी राजनीति को फ़िर से जिंदा कर लिया है।

पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों की भी थी आदिवासियों की जमीन पर नजर

बाबुलाल मरांडी : सरकार के फ़ैसले से मिली राजनीतिक संजीवनी

बहरहाल दिलचस्प यह है कि झारखंड में आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन पर नजर केवल रघुवरदास सरकार की ही नहीं रही है। अदिकांश पूर्ववर्ती मुख्यमंत्रियों मसलन शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा और हेमंत सोरेन ने अपने-अपने कार्यकाल में आदिवासियों की जमीन पर गैर आदिवासियों के अधिकार को अपने-अपने तरीके से मुकम्मिल करने की पूरी कोशिश की। एक उदाहरण यह कि वर्तमान में रघुवरदास का तीखा विरोध करने वाले अर्जुन मुंडा जब मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने भी सीएनटी एक्ट की धारा 50 में बदलाव किया था जिसके जरिए सरकार जन उपयोगी कार्यों के लिए आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण कर सकती है।

 

उलगुलान से लेकर डोमिसाइल तक

दिलचस्प यह भी है कि बिरसा मुंडा का उलगुलान आंदोलन जमीन पर अधिकार को लेकर ही शुरु हुआ था और तत्कालीन अंग्रेजी हुकूमत ने सीएनटी एक्ट बनाकर अपने खिलाफ़ चल रहे आंदोलन को विराम दिया था। तब यह सुनिश्चित किया गया था कि आदिवासियों की कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल गैर कृषि कार्यों के लिए नहीं किया जा सकेगा। हालांकि जमीन हस्तांतरण की सीमित स्वतंत्रता आदिवासियों को दी गयी थी। जिसे बाद में जब बाबुलाल मरांडी ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में “डोमिसाइल” नीति बनाकर और सख्त करने की कोशिश की। उन्होंने आदिवासियों की जमीन क हस्तांतरण केवल आदिवासियों को किये जाने एवं झारखंड के मूल निवासी होने की शर्त भी निर्धारित कर दी थी। हालांकि तब गैर आदिवासियों ने उनका पुरजोर विरोध किया और भाजपा ने उन्हें दूध में पड़े मक्खी की तरह निकालकर फ़ेंक दिया। बाद में पिछले वर्ष अप्रैल में रघुवर दास ने बाहरी लोगों को झारखंड के मूल निवासी होने संबंधी परिभाषा में बदलाव लाने के लिए “डोमिसाइल” नीति में बदलाव किया। इस कारण भी आदिवासी नाराज हुए थे।

 

रघुवर के इन बदलावों से आक्रोशित है झारखंड

मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पिछले वर्ष मानसून सत्र के दौरान सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट में मुख्य रुप से तीन अहम संशोधन पेश किया। पहला संशोधन सीएनटी एक्ट की धारा 21 और एसपीटी एक्ट की धारा 13 में किया गया है। इसके तहत रैयतों को व्यवसायिक कार्य यथा दूकान, होटल, मैरिज हाल निर्माण आदि की छूट हो। भूमि को समय-समय पर सरकार द्वरा निर्धारित गैर कृषि कार्यों व अन्य जन उपयोगी कार्यों के लिए किया जा सकेगा। इसके पीछे सरकार की मंशा ऐसी जमीनों पर गैर कृषि लगान लगाने की भी थी।

जमीन पर सरकार की नजर, गुस्से में झारखंड

इस बारे में पूर्व मु्ख्यमंत्री अर्जुन मुंडा कहते हैं कि “राज्य सरकार के इस संशोधन से आदिवासियों की जमीन की परिभाषा ही बदल जायेगी और वह सीएनटी व एसपीटी एक्ट के दायरे से ही बाहर हो जायेगी। एक बार यदि ऐसा हुआ तो आदिवासी फ़िर से अपनी जमीन कभी वापस नहीं पा सकेंगे। यदि जमीन की प्रकृति बदल जाती है तो फ़िर सीएनटी एक्ट की धारा 71-ए निष्प्रभावी हो जायेगी। साथ ही सरकार के मालिकाना हक बने रहने की बात भी बेमानी हो जाएगी जिसका प्रावधान सीएनटी एक्ट की धारा 50 में किया गया है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की शरण में झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास

रघुवर दास सरकार ने दूसरा अहम बदलाव सीएनटी एक्ट की धारा 49(1) में किया है। पहले सरकार जनोपयोगी कार्यों के अलावा खनन अथवा उद्योग के लिए ही आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण कर सकती थी। लेकिन संशोधन के बाद किसी भी कार्य के लिए ट्राइबल एडवाइजरी कमिटी की अनुशंसा पर आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है। उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री इस कमिटी के अध्यक्ष और सभी पार्टियों के आदिवासी विधायक इसके सदस्य होते हैं।

 

क्यों किये गये सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन?

उलगुलान : जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के अधिकार के लिए बिरसा मुंडा ने किया था आह्वान

रघुवर दास सरकार द्वारा किये गये इस संशोधन के संबंध में महत्वपूर्ण यह है कि राज्य सरकार ने रांची में “उड़ता झारखंड” नामक उद्यमी समागम का आयोजन किया था। इस समागम में अडाणी, अम्बानी, टाटा और जिंदल समूह सहित सभी बड़े औद्योगिक घरानों ने भाग लिया था। तब राज्य सरकार ने उद्योगपतियों को आदिवासियों की जमीन के औद्योगिक इस्तेमाल को लेकर कई वायदे किये थे। इन वायदों के कारण ही झारखंड में करीब साढे छह लाख करोड़ के औद्योगिक निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। यही वजह रहा कि झारखंड “इज आफ़ डूइंग बिजनेस” (उद्यम के लिए उपयुक्त) रैंकिंग में तीसरे स्थान पर आ गया था। लेकिन सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधनों के बाद हुए विरोध के कारण सातवें स्थान पर आ गया है।

इन संशोधनों के बाबत पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं कि संशोधनों का परिणाम अत्यंत ही भयानक होगा। संविधान की अनुसूची 5 के तहत गठित झारखंड राज्य की मूल अवधारणा ही बदल जायेगी। आदिवासी अपने जल, जंगल और जमीन से बेदखल कर दिये जायेंगे।

बहरहाल सीएनटी व एसपीटी एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव के विरोध को लेकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सजग है। यही वजह है कि झारखंड की राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने संशोधन प्रस्ताव को अपनी सहमति नहीं दी है। उधर दिल्ली के राजनीतिक गलियारे में झारखंड के भाजपाई नेताओं की आवाजाही तेज हो गयी है। बीते 12 जून को मुख्यमंत्री रघुवर दास ने दिल्ली आकर पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने की कोशिश की। इनके पहले अर्जुन मुंडा के अलावा कई नेताओं को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने दिल्ली बुलाकर मामला सुलझाने की कोशिश की है। लेकिन रघुवर दास की राजनीतिक जमीन खिसकती नजर आ रही है वजह यह कि भाजपा किसी भी हाल में दलितों और आदिवासियों को नाराज करने के मूड में नहीं है। वजह यह भी कि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही झारखंड विधानसभा चुनाव भी होने हैं।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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