h n

मलाला तुम मर नहीं सकती  

आंबेडकर ने महिलाओं की शिक्षा को समाज के विकास के लिए सबसे अनिवार्य माना था। पाकिस्तान की मलाला युसुफजई ने जब शिक्षा का हक मांगा तो तालिबानियों ने उनहें गोली मार दी थी। वह बच गईं। मलाला को समर्पित है कंवल भारती की यह कविता :

मलाला तुम मर नहीं सकती

  • कंवल भारती

तालिबान तुम से  डर गया मलाला

तुम्हारी तहरीक ने तालिबान को परास्त कर दिया

तुमने इस्लाम को बचा लिया।

तुम इस्लाम की अप्रितम योद्धा हो

लड़कियों की शिक्षा को लेकर संघर्ष करने के लिए मलाला को नोबेल पुरस्कार से किया गया है सम्मानित

तुम नहीं मर सकतीं मलाला

तुम पाक के मुस्लिम इतिहास में हमेशा जीवित रहोगी

जैसे भारत के हिन्दू इतिहास में शम्बूक जीवित है।

तुमने तालिबान की वर्ण व्यवस्था को ललकारा है,

जो ख्वातीन की शिक्षा पर पाबन्दी लगाती है, ठीक उसी तरह

जैसे शम्बूक ने ललकारा था रामराज्य की वर्ण व्यवस्था को,

जिसमें शूद्रों की शिक्षा पर पाबन्दी थी।

तालिबान भयभीत था कि अगर लड़कियां पढ़ गयीं,

जिसे वह चाहता था अँधेरे में रखना।

ठीक ऐसे ही रामराज्य का ब्राह्मण भयभीत था कि अगर शूद्र पढ़ गये,

तो उसमें ज्ञानोदय हो जायेगा और वह गुलामी छोड़ देगा।

तुम जानती हो मलाला,

जो तुमने किया वही शम्बूक ने किया था।

तुमने नहीं माना तालिबान के फरमान को,

और स्कूल जा कर उलट दी  उसकी व्यवस्था

ऐसे ही शम्बूक ने उलट दी थी

स्थापित कर देह की भौतिक व्यवस्था।

तिलमिलाया था ब्राह्मण,

जैसे तालिबान तिलमिलाया तुम से।

शम्बूक ने की थी रामराज्य में बगावत

जैसे तुमने की तालिबान के राज से बगावत।

तुम खतरा बन गयीं थीं तालिबान की सत्ता  के लिए,

ऐसे ही शम्बूक बन गया था ब्राह्मण की सत्ता के लिए खतरा।

ब्राह्मण की सत्ता बचाने के लिए

राम को मारना पड़ा था शम्बूक को,

जैसे तालिबान को तुम्हे मारना पड़ा

अपनी सत्ता बचाने के लिए।

लेकिन तुम मरोगी नहीं मलाला,

मरेगा तालिबान।

तुमने झकझोर दिया है कोमा में पड़े पाकिस्तान को

जगा दिया औरतों को,

जागृत हो तुम अब हर मुसलमान लड़की में।

जैसे शम्बूक अब हर शूद्र में जागृत है

अस्मिता और स्वाभिमान के रूप में।

तुम भी मलाला हमेशा जीवित रहोगी

मुस्लिम लड़कियों में अस्मिता और स्वाभिमान की

मशाल बन कर।

प्रगतिशील आंबेडकरवादी चिंतक कंवल भारती सर्वाधिक चर्चित व हमेशा सक्रिय लेखक हैं। ‘दलित साहित्य की अवधारणा’ व ‘स्वामी अछूतानंद हरिहर संचयिता’ आदि पुस्तकों के रचयिता कंवल कविताओं के जरिए भी बेबाक तरीके से अपनी बात रखने में सफल रहे हैं। प्रमाण है इनकी यह कविता जिसे  शोलापुर विश्विवद्यालय ने स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया है। उन्होंने इस कविता का सृजन तब किया था जब लड़कियों की शिक्षा को लेकर सवाल उठाने वाली सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता मलाला युसुफजई पर तालिबानियों ने हमला किया था। अपनी इस कविता में उन्होंने मलाला को शंबूक के समतुल्य माना है जिसे राम ने छलपूर्वक मार डाला था।

 


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

व्याख्यान  : समतावाद है दलित साहित्य का सामाजिक-सांस्कृतिक आधार 
जो भी दलित साहित्य का विद्यार्थी या अध्येता है, वह इस निष्कर्ष पर पहुंचे बगैर नहीं रहेगा कि ये तीनों चीजें श्रम, स्वप्न और...
‘चपिया’ : मगही में स्त्री-विमर्श का बहुजन आख्यान (पहला भाग)
कवि गोपाल प्रसाद मतिया के हवाले से कहते हैं कि इंद्र और तमाम हिंदू देवी-देवता सामंतों के तलवार हैं, जिनसे ऊंची जातियों के लोग...
दुनिया नष्ट नहीं होगी, अपनी रचनाओं से साबित करते रहे नचिकेता
बीते 19 दिसंबर, 2023 को बिहार के प्रसिद्ध जन-गीतकार नचिकेता का निधन हो गया। उनकी स्मृति में एक शोकसभा का आयोजन किया गया, जिसे...
आंबेडकर के बाद अब निशाने पर कबीर
निर्गुण सगुण से परे क्या है? इसका जिक्र कर्मेंदु शिशिर ने नहीं किया। कबीर जो आंखिन-देखी कहते हैं, वह निर्गुण में ही संभव है,...
कृषक और मजदूर समाज के साहित्यिक प्रतिनिधि नचिकेता नहीं रहे
नचिकेता की कविताओं और गीतों में किसानों के साथ खेतिहर मजदूरों का सवाल भी मुखर होकर सामने आता है, जिनकी वाजिब मजदूरी के लिए...