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दलित पूछ रहे सवाल,कहां गये हमारे 2 लाख करोड़ रुपए?

सरकार दलित और आदिवासियों के लिए निर्धारित बजट में कटौती कर रही है। सिर्फ पिछले दो वर्ष की  बजट-कटौतियों को जोड़ दिया जाए तो यह धनराशि 2 लाख 30 हजार करोड़ होती है। यदि इस धनराशि को अनुसूचित जातियों और जनजातियों में बांटा जाए तो प्रत्येक  के हिस्से में कम से कम 10 हजार रुपए आएंगे

जहां एक ओर नरेंद्र मोदी और संघ के लोग दलितों के यहां भोजन कर दलितों का हितैषी साबित करने का प्रयास कर रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हें दलितों और आदिवासियों का विकास अखर रहा है। इसका प्रणाम अनुसूचित जनजाति उपयोजना और अनुसूचित जाति उपयोजना में लगातार की जा रही कटौती है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इन दोनों उपयोजनाओं की शुरूआत बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर के उस सिद्धांत पर आधारित हैं जिसके बारे में उन्होंने कहा था कि सामाजिक और आर्थिक पुनर्निमाण के आमूल परिवर्तनकामी कार्यक्रम के बिना अस्पृश्य कभी भी अपनी दशा में सुधार नहीं कर सकते हैं

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत आगमन पर दस लाख का सूट पहन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी आगवानी। बाद में उनका यह सूट 4 करोड़ 31 लाख में नीलाम हुआ था।

भारतीय संविधान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के आर्थिक हालात में सुधार के लिए विशेष प्रावधान करने का निर्देश देता है। इन निर्देश के तहत विभिन्न कालखंडों में अलग-अलग नीतियां बनाई गईं। इसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रावधान 1974 और 1979 में बनाई गई आर्थिक योजना, अनुसूचित जनजाति उपयोजना और अनुसूचित जाति उपयोजना थी। इस इसके तहत यह प्रावधान किया गया था कि केंद्रीय बजट का विशेष हिस्सा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए अलग से आवंटित किया जायेगा। यह हिस्सा कुल जनसंख्या में उनके अनुपात के हिसाब से होगा। यानि यदि 2011 की जनगणना के अनुसार अनुसूचित जातियों की कुल जनसंख्या में अनुपात 16.6 और अनुसूचित जनजातियों का 8.6 प्रतिशत है। इसका निहितार्थ यह है कि भारत के केंद्रीय बजट का 25.2 प्रतिशत अलग से अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटित किया जायेगा। यही तरीका राज्यों के बजट में भी अपनाया जायेगा। इस संदर्भ में यह भी ध्यान में रखा जाना जरूरी है कि इस विशेष आवंटन के इतर सामान्य योजनाओं में अनुसूचित जातियों और जनजातियों की समान हिस्सेदारी होगी।1 

दलितों के साथ हकमारी

सारे जोड़-घटाव लगाकर भी यदि किसी भी मानदंड पर निकाला जाए तो इस वर्ष के बजट (2017-18) में कम से कम अनुसूचित जातियों जनसंख्या 16.6 प्रतिशत) के लिए 1 लाख 56 हजार 883 करोड़ रुपया आवंटित होना चाहिए था। जबकि कुल आवंटन 52 हजार 392. 55 करोड़ हुआ। इस प्रकार अनुसूचित जातियों के हिस्से की धनराशि में 1 लाख 04 हजार 490.45 करोड़ रुपये की कटौती कर दी गई। ध्यातव्य है कि इस बार का कुल बजट आकार 21 लाख 46 हजार 734. 78 करोड़ का है। यदि कुल 1 लाख 56 हजार 883 करोड़ रूपया अनुसूचित जातियों के लिए आंवटित भी किया जाता, तो भी यह धनराशि कुल बजट का सिर्फ 4.62 प्रतिशत ही होता, क्योंकि एक हिस्सा गैर-योजनागत खर्चों का होता है।

यानी अनुसूचित जनजातियों के हिस्से से 49 हजार 357 करोड़ की कटौती की गयी है।

पिछले तीन वर्षों में केंद्र सरकार ने की है दलितों व आदिवासियों के लिए निर्धारित उपयोजनाओं के मद में 2 लाख 30 हजार करोड़ रुपए की कटौती

छले गये आदिवासी भी

इसी प्रकार अनुसूचित जनजातियों (जनसंख्या 8.6 प्रतिशत) के लिए कम से कम 81 हजार 277 करोड़ रुपये आवंटित होना चाहिए था, जबकि सिर्फ 31 हजार 919.51 करोड़ रुपया ही आवंटित हुआ, यानी उनके कल्याण के लिए आवंटित धनराशि में भी 49 हजार 357.49 की कटौती की गई। यदि उनके हिस्से की पूरी धनराशि  81 हजार 277 करोड़ रुपया आवंटित किया जाता तो भी यह धनराशि कुल बजट का केवल 2.39 प्रतिशत होती।

हकमारी और सीनाजोरी

महत्वपूर्ण यह है कि सिर्फ इस बार के बजट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के बजट में कुल कटौती क्रमशः 1 लाख 04 हजार 490.45 रुपए और 49 हजार 357.49 करोड़ रुपये को जोड़ दिया जाए तो दोनों समुदायों के हिस्से की इस वर्ष की कुल कटौती 1 लाख 53 हजार 847.94 करोड़ रुपए की होती है। इस प्रकार केंद्र सरकार ने केवल इस बार के बजट (2017-18) में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के समुदायों के कल्याण के लिए आवंटित होने वाली धनराशि में से 1 लाख 53 हजार 847.94 करोड़ रुपए की कटौती कर दी और उस पर भी 35 प्रतिशत वृद्धि का दावा कर रही है।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए आवंटित धनराशि में केवल इसी वर्ष ही इतने बड़े पैमाने पर कटौती नहीं की गई, पिछले वर्ष भी इस सरकार ने बड़े पैमाने पर कटौतियाँ की थीं। पिछले वित्तीय वर्ष ( 2016-17 ) के बजट में नियमतः आंवटित होने वाली धनराशि में 52 हजार 479.03 करोड़ रुपये की अनुसूचित जातियों के मद में कटौती की गई थी। पिछले वर्ष का कुल बजट 19 लाख 78 हजार 060 करोड़ का था, जिसमें योजनागत व्यय 5 लाख 50 हजार 010.10 करोड़ का था। अनुसूचित जाति उपयोजना की स्वीकृति नीति के हिसाब से, इस योजनागत व्यय का अनुसूचित जातियों की जनसंख्या के अनुपात में 16.6 प्रतिशत आवंटित होना चाहिए था, जो कुल बजट का 4.62 प्रतिशत होता। यदि योजनागत बजट का 16.6 प्रतिशत आवंटित होता, तो यह धनराशि 91 हजार 301. 66 करोड़ होती। इस धनराशि, जिस पर अनुसूचित जातियों का हक था, में भारी कटौती करके सिर्फ 38 हजार 832.63 करोड़ आवंटित किया गया अर्थात् 52 हजार 479.03 करोड़ की कटौती कर दी गई।

इसी प्रकार अनुसूचित जनजातियों के लिए स्वीकृत अनुसूचित जनजाति उपयोजना के तहत कम से कम 47 हजार 300 करोड़ रुपए का आवंटन होना चाहिए था, जबकि सिर्फ 24 हजार 5 करोड़ रुपए का आवंटन हुआ। यानि अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के मद में 2016-17 के बजट में भी 23 हजार 295. 86 करोड़ रुपये की कटौती की गई थी।

मानव विकास सूचकांक के अनुसार सबसे अधिक कूपोषित बच्चे भारत में

इस प्रकार यदि 2016-17 के बजट में से दोनों समुदायों के कल्याण के मद में की गई कुल कटौती को जोड़ दिया जाए तो यह (52579.00 + 23295.86 ) कटौती 75 हजार 774.86 करोड़ रुपए की होती है। जबकि इस वर्ष ( 2017-18 ) और 2016-17 के बजट कटौतियों को जोड़ दिया जाए तो यह धनराशि 2 लाख 29 हजार 622.86 करोड़ होती है। यदि इस धनराशि को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के सभी सदस्यों में बांटी जाए तो प्रत्येक सदस्य के हिस्से कम से कम 10 हजार रुपया आयेगा।

आंकड़ों में विकास के अर्थशास्त्र के हिसाब से यदि केवल 2016-17 और 2017-18 के बजट में अनुसूचित जातियों और जनजातियों के वाजिब हक में की गई कुल कटौती को जोड़ दिया जाए तो यह (153847.94 + 75774.86) 2 लाख 29 हजार 622.86 करोड़ रुपए होते हैँ। यह इतनी धनराशि है कि यदि इसे अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रत्येक बालिग-नाबालिग सदस्यों के बीच बांटा जाए तो प्रत्येक को कम से कम लगभग 10 हजार रुपये मिलेंगे।

यही इस बात के रहस्य को भी समझ लिया जाए कि इतने बड़े पैमाने पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के कल्याण के लिए धनराशि के आवंटन में कटौती के बावजूद भी आंकडों की वह कौन सी बाजीगरी थी कि वित्त मंत्री अरूण जेटली ने यह घोषणा की कि इस वर्ष के बजट में अनुसूचित जातियों के कल्याण के मद में 35 प्रतिशत की वृद्धि की गई है, और सारी मीडिया इसका गुणनान करने लगी। सच्चाई यह है कि सरकार ने 2014-15 के बजट में अनुसूचित जातियों के लिए 50 हजार 548 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था, जिसे घटाकर 2016-17 के बजट में 38 हजार 832.63 करोड़ रुपया कर दिया। जिसे 2017-18 के बजट में 52 हजार 392.55 करोड़ कर दिया गया। खुद इसी सरकार द्वारा पिछले बजट मंदों की गई कटौती को सुधारने को ही वृद्धि करार दे दिया गया। लेकिन कुल बजट के प्रतिशत में देखें तो 2014-15 की तुलना में 0.31 प्रतिशत कम ही है, क्योंकि 2014-15 में कुल बजट केवल 17 लाख 94 हजार 891.96 करोड़ रुपये का ही था, जबकि इस वर्ष का कुल बजट 21 लाख 46 हजार 734.78 करोड़ रुपए है।

आंकड़ों की बाजीगरी से विकास का भ्रम!

मोदी सरकरा अपने पिछले बजट(2016-17) में अनुसूचित जातियों के लिए आंवटित धनराशि ( 38,833 करोड़ रूपये ) इस बार के बजट( 2017-18 ) में वृद्धि ( 52,393 करोड़ रूपए ) का जो दावा कर रही है, वह केवल आंकड़ों की बाजीगरी है। यह एक स्थापित सिद्धांत रहा है कि उन्हीं आंवटनों को अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए आवंटन माना जायेगा, जो विशेष तौर पर अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए लक्षित होगा, सामान्य योजनओं और गैर-लक्षित योजनाओं को इसमें शामिल नहीं किया जायेगा। मोदी चालकी इसी मद में विशेष तौर पर इन समुदायों के लिए लक्षित और सामान्य और गैर लक्षित योजनाओं को इसमें शामिल कर दिया। इसका परिणाम हुआ कि यह धनराशि बढ़ी हुई दिखी, जबकि वास्तविकता यह है कि अनुसूचित जातियों के लिए विशेष तौर पर केवल 25,708 करोड़ रूपया ही अनुसूचित जातियों के लिए और 15, 643 करोड़ रूपया जनजातियों के लिए आवंटित किया गया, जबकि अनुसूचित जनजातियों के मद में 31,920 करोड़ रूपया दिखाय गया था।

भूखमरी के मामले में विश्व स्तर पर 97वें स्थान पर है भारत

हकमारी का पड़ रहा विपरीत असर

अनुसूचित जातियों-जनजातियों के कल्याण के विभिन्न मदों में कटौती के कारण इन समुदायों के लिए चलाए जा रहे योजनाओं पर विपरीत असर पड़ रहा है। मसलन अनुसूचित जातियों के छात्रों की प्री-मैट्रिक (हाईस्कूल से पहले) छात्रवृत्ति के लिए आवंटित धनराशि को 510 करोड़ रुपये से घटाकर सिर्फ 50 करोड़ कर दी गई है। वर्तमान केंद्र सरकार ने हर वर्ष लगातार इसमें कटौती किया है। 2013-14 के बजट में यह धनराशि 882 करोड़ रुपया थी जो 2017-18 के बजट में 50 करोड़ कर दी गई।

आंकड़े बताते हैं कि केंद्र सरकार को दलित-आदिवासी समुदाय के छात्र व छात्राओं के भविष्य को लेकर कोई संवदेनशीलता नहीं है। इसका अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि 2015-16 की 70 प्रतिशत छात्रवृत्ति और 2016-17 की 100 प्रतिशत छात्रवृत्ति अनुसूचित जातियों के छात्रों का बकाया है, जिसे केंद्र सरकार ने जारी ही नहीं किया। यह राशि लगभग 11 हजार करोड़ रुपये है। इसके अलावा मल-मूत्र की सफाई करने वालों की मुक्ति और पुनर्वास के लिए चलाई जाने वाली स्वरोजगार की योजनाओं के व्यय में 552 करोड़ रुपये की भारी कटौती की गयी है।

साथ ही अनुसूचित जाति बहुल गांवों के संरचनागत विकास के लिए आवंटित होने वाली धनराशि में 60 करोड़ की कटौती 2013-14 में इस मद में 100 करोड़ का आवंटन हुआ था, जिसे 2016-17 में 50 करोड़ और 2017-18 में 40 करोड़ कर दिया गया। इतना ही नहीं नेशनल शिडियूल्स कास्ट फाइनेंस डेवलपमेंट काॅर्पोरेशन के लिए आंवटित धनराशि में 10 करोड़ की कटौती की गयी है। इस कार्पोरेशन की स्थापना का उद्देश्य दलित उद्यमिता को बढ़ावा देना था, जिस पर इस सरकार का सर्वाधिक जोर है। इस मद में पिछली बार जितना (138 करोड़) का आवंटन हुआ था, उसका पूरा का पूरा खर्च हुआ था। फिर भी इस वर्ष बजट बढ़ाने के बजाय रु.10 करोड़ कम कर दिया गया। अर्थात् रुपये 128 करोड़ आवंटित किया गया है। दिलचस्प यह कि डाॅ. भीमराव आंबेडकर अन्तरराष्ट्रीय केन्द्र के लिए आवंटन में 60 करोड़ की कटौती-  पिछले तीन वर्षों की तुलना में इस बार सबसे कम आवंटन किया गया है, और इस कटौती का कोई कारण नहीं बताया गया। अन्य महत्वपूर्ण कटौतियों में राज्यों के लिए अनुसूचित जाति स्पेशल कंपोनेन्ट प्लान के तहत आवंटित होने वाली राशि में 230 करोड़ की कटौती, बाबा साहब डाॅ. भीमराव आंबेडकर फाउंडेशन के आवंटन में 62.75 करोड़ की कटौती, वन बंधु कल्याण-योजना में लगभग 200 करोड़ रुपये की कटौती आदि शामिल हैं। वहीं अनुसूचित जातियों को वेंचर कैपिटल फण्ड और ऋण गारंटी के मद में क्रमशः 160 करोड़ और 199.9 करोड़ की कमी की गयी है।

केंद्र सरकार की संवेदनहीनता का ही परिणाम है कि महिलाओं के लिए आवंटित कुल बजट में से केवल 0.99 प्रतिशत दलित-आदिवासी महिलाओं के लिए आवंटित किया गया है। इसका परिणाम यह हुआ है कि दलितों के लिए चल रही 294 योजनाओं में से 38 योजनाओं को खत्म कर दिया गया है। साथ ही आदिवासियों के लिए चल रही 307 योजनाओं में 46 योजनाओं को खत्म कर दिया गया है।

बहरहाल अनुसूचति जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हक में सिर्फ इस वर्ष 1 लाख 53 हजार 547.94 करोड़ की कटौती और दो वर्षों में 2 लाख 29 हजार 622.86 करोड़ की कटौती इन समुदायों की आर्थिक रीढ़ तोड़ने वाली है। यह प्रक्रिया साल दर साल चल रही है। अनुसूचित जातियों और जनजातियों के साथ किए जाने वाले इतने बड़े अन्याय पर चारों तरफ चुप्पी गम्भीर चिन्ता और विश्लेषण का विषय है। वैसे इस मामले में जवाहरलाल नेहरू विश्विवद्यालय के प्रोफेसर विवेक कुमार बताते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा लगातार की जा रही कटौती दुर्भाग्यपूर्ण है और इसके कारण दलितों और आदिवासियों के विकास को बाधित करेगा। वे यह भी कहते हैं कि एक तरफ उपयोजनाओं में कटौती और दूसरी तरफ दलितों के घर भोजन करना व उसे खबरों के रूप में दिखाना दलितों के साथ हकमारी और अपमानजनक दोनों है।(इस आलेख में प्रयुक्त आंकड़े पी.एस. कृष्णन द्वारा लिखित विस्तृत आलेख ‘लाइक बिफोर, एक्सपेक्टेशन रिगार्डिंग कमिटमेंट टू एसी-एसटी इज नॉट रिफलेक्टेड इन 2017-18 बजट’ से उद्धृत हैं) https://counterview.org/2017/03/07/like-before-expectation-regarding-commitment-to-sc-sts-is-not-reflected-in-2017-18-budget/

संदर्भ :

1-      डॉ. भीमराव अंबेडकर ( संपूर्ण वाड्गमय खण्ड-12 पृ.298 )


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

लेखक के बारे में

सिद्धार्थ

डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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