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नेशनल दस्तक, फेसबुक और अभिव्यक्ति की आजादी का सवाल

फ़ेसबुक ने जिस प्रकार से नेशनल दस्तक के मामले में अपने कथित नियमों का हवाला दिया है वह संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी में अनाधिकारिक हस्तक्षेप है, जिसकी हम निंदा करते हैं तथा यह जानना चाहते हैं कि फेसबुक के भारतीय कार्यालय में फुले-आम्बेडकर-पेरियार की विचारधारा को मानने वाले कितने लोग कार्यरत हैं?

दलित-बहुजनों के विषयों पर समाचार प्रकाशित करने वाले वेबपोर्टल नेशनल दस्तक को फ़ेसबुक द्वारा  लिंक साझा करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है। फ़ारवर्ड प्रेस भारत के वंचित तबकों की लोकतांत्रिक आवाजों के प्रति अपनी पक्षधरता जाहिर करते हुए इस मामले में नेशनल दस्तक के साथ खडा है।

 

पिछले दो दिनों में फ़ारवर्ड प्रेस ने इस संबंध में फ़ेसबुक के विभिन्न उच्चाधिकारियों से संपर्क किया तथा उन्हें भारत की सामाजिक स्थिति तथा साइबर दुनिया पर सक्रिय वर्चस्वशाली सामाजिक शक्तियों के संबंध में बताया।

फेसबुक के भारत  के कम्यूनिकेशन हेड कारसन डल्टन ने इस संबंध में फोन पर हमें आश्वस्त करते हुए कहा है कि उनकी टीम नेशनल दस्तक के मामले को गंभीरता से ले रही है तथा समस्या का उचित समाधान ढूढ रही है।

ध्यातव्य है कि फेसबुक ने नेशनल दस्तक को उनके फेसबुक पेज पर अपनी वेबसाइट/यूट्यूब चैनल का लिंक साझा करने से अस्थायी रूप से रोक दिया है। फेसबुक के मुताबिक उन पर यह प्रतिबंध गलत और अफ़वाह फ़ैलाने वाली खबरों/सामग्रियों के कारण लगाया गया है। फ़ेसबुक का कहना है यदि कोई बिना किसी पूर्वाग्रह के भी ऐसी सामग्रियां पोस्ट करता है जिससे लोग दिग्भ्रमित हों तो फ़ेसबुक प्रतिबंध लगा सकता है। कारसन ने बताया कि फ़ेसबुक ने कम्यूनिटी स्टैंडर्ड तय किया है और इसी के आधार पर यह कार्रवाई की गयी है। हालांकि कारसरन ने कहा कि वे स्वयं नेशनल दस्तक के पेज पर प्रकाशित उन सामग्रियों का विश्लेषण कर रहे हैं, जिनके बारे में कम्यूनिटी द्वारा आपत्तियां दर्ज की गयी हैं तथा शीघ्र ही रास्ता निकाल लिया जाएगा।

नेशनल दस्तक के फेसबुक पेज पर फ़ेसबुक द्वारा प्रतिबंध लगाये जाने के बाद विरोध और समर्थन में पोस्ट किये जा रहे हैं। अनेक लोगों ने प्रतिबंध के समर्थन में अपनी बातें कही हैं जबकि अनेक लोगों ने नेशनल दस्तक पर कुछ राजनेताओं के इशारे पर काम करने, अपने संपादक मंडल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भ्रामक सूचनाएं प्रकाशित करने, अन्य वेबसाइटों से चोरी कर खबरें छापने संबंधी आरोप भी लगाएं हैं।

लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और बाबासाहेब डा भीमराव आंबेडकर ने संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी का अधिकार दिया है तथा इस पर अंकुश लगाने का नियमसंगत तंत्र भी हमारे संविधान तथा हमारी कानूनी व्यवस्था में मौजूद है। अगर कहीं कोई चूक हुई है तो उसके लिए भारतीय न्यायालय का दरवाजा खटखटाया जा सकता है। फ़ेसबुक ने जिस प्रकार से नेशनल दस्तक के मामले में अपने कथित नियमों का हवाला दिया है वह  संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी में अनाधिकारिक हस्तक्षेप है, जिसकी हम निंदा करते हैं तथा यह जानना चाहते हैं कि फेसबुक के भारतीय कार्यालय में फुले-आम्बेडकर-पेरियार की विचारधारा को मानने वाले कितने लोग कार्यरत हैं?

फेसबुक का कहना है कि उसने कम्यूनिटी स्टैंडर्ड के हिसाब से कार्रवाई की है। इसका अर्थ है कि फेसबुक पर नेशनल दस्तक की शिकायत करने वालों की संख्या ज्यादा रही होगी। हम सभी जानते हैं कि भारत के वंचित समुदायों के लोकतांत्रिक हितों को कुचलने वाले अनेक सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक संगठनों ने अपने साइबर सेल स्थापित कर रखे हैं तथा फेसबुक, टिविटर समेत पर विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर आक्रामक ढंग से काम कर रहे हैं।

फ़ारवर्ड प्रेस मानता है कि भारत जैसे विविधता वाले देश में जहां समाज के विभिन्न वर्गों/जातियों के बीच सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक विषमता है, वहां इस प्रकार का कथित “कम्यूनिटी स्टैंडर्ड” निरपेक्ष नहीं हो सकती है। इसलिए फ़ारवर्ड प्रेस फ़ेसबुक से आग्रह करता है कि वह नेशनल दस्तक पर लगाये गये अस्थायी प्रतिबंध को तत्काल खत्म करे और भारत में अभिव्यक्ति की आजादी को प्रोत्साहित करते हुए अपने कथित कम्यूनिटी स्टैंडर्ड की निगरानी के लिए एक ऐसे सेल का निर्माण करे, जिसमें भारत की सामाजिक विविधता का समावेश हो। – संपादक, फारवर्ड प्रेस

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