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पांचवीं अनुसूची के बहाने देश के आदिवासियों को एकजुट करने की पहल

देशभर के आदिवासी पांचवीं अनुसूची के मुद्दे पर एकजुट हो रहे हैं। आदिवासियों ने आरोप लगाया कि सरकार आदिवासियों की घोर उपेक्षा कर रही है। पांचवीं अनुसूची का सख्ती से अनुपालन नहीं हो रहा है। आदिवासियों के मुद्दे पर राष्ट्रपति और राज्यपाल खामोश हैं और आदिवासी अपने अस्तित्व के लिए जूझ रहे हैं

नई दिल्ली। संविधान की पांचवीं अनुसूचि को सख्ती से लागू कराने हेतु सरकार पर दबाव बनाने के लिए 30 जुलाई 2017 को नागालैंड, असम, सिक्किम, पश्चिम बंगाल और पांचवीं अनुसूची द्वारा अधिसूचित कुल दस राज्यों समेत 20 राज्यों के सैकड़ों

जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) के बैनर तले दिल्ली में जुटें देशभर के आदिवासी प्रतिनिधि

आदिवासी प्रतिनिधि दिल्ली के लोधी कॉलोनी स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में जुटे। मुद्दा था पांचवीं अनुसूची पर परिचर्चा एवं ज्वलंत आदिवासी मुद्दों पर राष्ट्रीय बहस। कार्यक्रम में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय के समक्ष आदिवासियों से संबंधित तमाम मुद्दों पर तीखी बहस हुई और समस्याओं के समाधान के लिए श्री साय से अपील भी की गई।

सवाल किया गया कि आखिर क्या वजह है कि आजादी के सत्तर वर्षों बाद भी जब देश के तमाम समुदाय, जातियां फल-फूल रही हैं, तब आदिवासी अपने ही देश में अस्तित्व के लिए एक प्रकार का युद्ध लड़ रहे हैं? आखिर सरकार आदिवासियों की घोर उपेक्षा क्यों कर रही है? आखिर संविधान की पांचवीं अनुसूची का सख्ती से अनुपालन क्यों नहीं हो रहा है? आदिवासियों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों को संविधान में विशेष अधिकार दिया गया है, लेकिन क्यों इन्होंने कभी भी आदिवासियों के सुरक्षा के लिए अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल नहीं किया?

जयस के राष्ट्रीय संरक्षक डॉ. हिरालाल अलावा ने सभी प्रतिनिधियों से आह्वान किया कि पांचवीं अनुसूची को राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा बनाकर देश के सभी आदिवासियों को एकजुट होना चाहिए, क्योंकि आज आदिवासियत खतरे में है। आज आदिवासियों को तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है। नक्सलवाद के नाम पर निर्दोष आदिवासियों का कत्ल किया जा रहा है। छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, झारखण्ड में हजारों आदिवासियों को नक्सलवाद के नाम पर जेलों में ठूंसा गया है। आजादी के बाद से तीन करोड़ आदिवासियों को अपनी जमीन से बेदखल कर दिया गया। आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के साथ सरेआम छेड़छाड़ की जा रही है।  इसलिए देश के सभी आदिवासियों और सभी आदिवासी संगठनों को एक साथ, एक मुद्दे पर मिलकर लड़ने की जरूरत है। उन्होंने “मिशन 2018” के मुद्दे पर कहा कि यह आदिवासियों के अधिकार की लड़ाई का आगाज है, सन् 2018 में देश के चार आदिवासी बहुल राज्यों गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चुनाव है। हमारा उद्देश्य है कि इन चारों राज्यों में आदिवासी मुद्दे को फोकस करके चुनाव लड़ा जाए।

झारखण्ड जयस प्रभारी एवं ट्राइबल ड्रीम के अध्यक्ष संजय पहान ने कहा कि यहां देश भर के लगभग सभी आदिवासी समुदाय इकट्ठा हुए हैं, यह ऐतिहासिक पल है। अगर ऐसे ही हम अपनी एकजुटता का आगे परिचय दें तो निश्चित ही हम अपना “अबुआ दिशुम अबुआ राज” लेकर रहेंगे। सभी सरकारें हमारे आगे जरूर झुकेंगी।

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने आश्वासन दिया कि मैं इस संवैधानिक पद पर रहते हुए आदिवासियों के लिए, आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए, जल, जंगल, जमीन के लिए जितना कुछ कर सकता हूं, करुंगा। उन्होंने बताया कि संविधान में आदिवासियों के लिए बहुत से प्रावधान हैं, लेकिन उसको सख्ती से लागू कराने के लिए लोगों को एकजुट होकर सरकार पर दबाव बनाना पड़ेगा, ऐसे ही अनेक आंदोलन और कार्यक्रम करने होंगे। श्री साय ने आदिवासियों को अपने पूर्वजों से, अपने इतिहास से सीख लेने का आह्वान किया। उन्होंने जल, जंगल, जमीन और आदिवासी अस्मिता की रक्षा के लिए आखिरी सांस तक कार्य करने का भरोसा दिलाया। श्री साय ने जयस के “मिशन 2018” आंदोलन की प्रशंसा की और शुभकामनाएं दी।

गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के संस्थापक गोंण्डवाना रत्न हिरासिंह मरकाम ने कहा कि जब तक आदिवासियों के हाथ में सत्ता नहीं आएगी, तब तक आदिवासियों को सब लोग लूटते रहेंगे। भाजपा और आरएसएस आदिवासियों के लिए कसाई की तरह काम कर रहे हैं। जब तक आदिवासी राजनीतिक रूप से जागरूक नहीं होंगे, उनकी हालत ठीक नहीं होगी। “मिशन 2018” आदिवासियों के लिए निर्णायक साबित होगा।

भीलीस्तान टाइगर सेना, गुजरात के प्रफुल्ल वसावा ने कहा कि गुजरात के विकास मॉडल के नाम पर पूरे देश को बेवकूफ बनाया जा रहा है। गुजरात में आदिवासियों की हालत बहुत खराब है। गुजरात के बहुत से क्षेत्रों के आदिवासी भयानक गरीबी में जी रहे हैं। गुजरात सरकार जबरन आदिवासियों की जमीन छीनकर उद्योगपतियों को दे रही है। संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। हम आदिवासियों को “मिशन 2018” के माध्यम से एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि सरकार पांचवीं अनुसूचि का सख्ती से पालन करे।

तमिलनाडु से आए विक्टर माल्टो ने पांचवीं अनुसूची, पेसा एक्ट, सीएनटी-एसपीटी एक्ट, ग्राम सभा और समता जजमेंट समेत तमाम संवैधानिक अधिकारों के बारे में विस्तार से बताया।

ओडिशा से डेमने माझी, मुकेश बिरुआ, तेलंगाना से नरसिम्हा कत्राम, महाराष्ट्र से अमित तड़वी, छत्तीसगढ़ से नारायण मरकाम, बिहार से राजेश गोंड, उत्तर प्रदेश से कवलेश्वर प्रसाद गोंड, राजस्थान से भंवरलाल परमार, मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से विधायक मनमोहन शाह वट्टी, झारखण्ड के पूर्व विधायक चमरा लिंडा, विश्वनाथ तिर्की, गोंगपा के महासचिव श्याम सिंह मरकाम, प्रो. जामवंत कुमरे, दिल्ली जयस के मिथिलेश हेम्ब्रोम, आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के प्रेमचंद मुर्मू, आदिवासी सत्ता पत्रिका के ब्यूरोचीफ ओमप्रकाश समेत कई राज्यों के प्रतिनिधियों ने सभा को संबोधित किया।

कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए ‘दलित आदिवासी दुनिया’ समाचार पत्र के प्रधान संपादक मुक्ति तिर्की ने कहा कि 70 साल बीत चुके हैं और अभी तक आदिवासी समाज अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरुक भी नहीं  हुआ है, 70 साल से सो रहा है। लेकिन अब जागना होगा। यह बहुत हर्ष की बात है कि हमारे आदिवासी युवाओं ने हमें जगाने का काम किया है। श्री तिर्की ने कहा कि यह ऐतिहासिक पल है, जब पूरे देश के आदिवासी प्रतिनिधि एक मंच पर, एक मुद्दे पर एक साथ बैठे हैं।

कार्यक्रम का आयोजन जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस) द्वारा किया गया था, जिसमें दिल्ली के जयस कार्यकर्ता राजन कुमार, जितेन्द्र कुमार, इलिन लकड़ा, डेनियल मुर्मू, सी. आनंद तिर्की, बलभद्र बिरुआ, गंगाराम गागराई, मंगल हांसदा, हरीश माझी, एमलॉन तिर्की, संजय तियु, मिलिता डुंगडुंग, रजनी किरन बा, साहेब सिंह कलम, राजेश बैठेकर, भजनलाल मीणा, अश्विनी कामते, कवलेश्वर प्रसाद गोंड, निर्मला टोप्पो, प्रकाश भलावी, अरविंद गोंड, मुन्नाराम गोंड, कृष्णा ग्वाला, अरुण उरांव का विशेष योगदान रहा। मंच संचालन राजू मुर्मू ने किया।

कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न प्रदेशों के प्रतिनिधि

अन्य प्रदेशों से आए प्रतिनिधियों में मुख्य रुप से चंद्रविजय सिंह आर्मो, प्रधान पूर्ति, नयन गामेती, ओमप्रकाश धुर्वे, चंद्रिका प्रसाद आयाम, धर्मसिंह मीणा, निर्मल कुजूर, आरके विश्नोई, मदन प्रसाद गोंड, विक्रमशाह गोंड, कमलेश गोंड, सुरसिंह डामोर, प्रकाश ठाकुर, रविराज बघेल, ओंकार सिंह, धनराज कोर्चे, अमरसिंह उइके, आरएन ठाकुर, ओमप्रकाश सिंह कुसरो, आशा कुमारी बोबोंगा, दिनेश कनेल, वकील डिंडोर, सोनू कटारा, मेघराज सिंह, शिवराम कच्छप, रमनलाल आहरी, राज वसावा, भीमा खोखर, बाबूभाई डामोर, लक्ष्मण कटारा, ध्रुव चौहान, सुनील सिंगाड़ा, निर्मल मिंज, ऋतु पेंड्रो, मनोज चौहान, दिलीप गामित, पारस रावत, नाबोर एक्का समेत सैकड़ों लोग कार्यक्रम के साक्षी बने।

लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

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