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मैं लोगों का जीवन बदलने के लिए राजनीति में हूं-आर्य

दलितों के पूजनीय डॉ. भीमराव आंबेडकर का संघर्षपूर्ण जीवन, आर्य के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहा। डॉ. आंबेडकर का आर्य के जीवन और व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव है। आर्य कहते हैं, 'बाबासाहेब को दलित समुदाय का होने के कारण स्कूल से बहिष्कृत कर दिया गया था। वे अपने स्कूल के प्रांगण में एक पेड़ के नीचे, अपने अन्य सहपाठियों से दूर बैठा करते थे'

आगरा के महापौर इंदरजीत आर्य साहस, त्याग और समर्पण के जीते-जागते उदाहरण हैं। एक ऐसे समाज में, जो आज भी मध्यकालीन जाति-आधारित परंपराओं, भेदभाव और मानसिकता से ग्रस्त है, दलित वाल्मीकि समाज के आर्य की आगरा के महापौर के पद तक पहुंचने की यात्रा अत्यंत कंटकाकीर्ण थी। प्रस्तुत है फारवर्ड प्रेस के संवाददाता राजीव आजाद की महापौर से बातचीत के चुनिंदा अंश।

पारिवारिक पृष्ठभूमि

आर्य के पिता चतुर्थ श्रेणी के शासकीय कर्मी थे। जीवन की आवश्यक सुविधाएं जुटाना उनके परिवार के लिए एक कठिन संघर्ष था। आर्य को अपनी पढ़ाई के दौरान कई मुश्किलों से जूझना पड़ा परंतु वे जीवन में आगे बढऩे और अपने परिवार व अपने उस वाल्मीकि समुदाय, जिसके सदस्यों को या तो नजरंदाज किया जाता है और या जिनका दमन होता है, का नाम रोशन करने के लिए प्रतिबद्ध थे।

आसान नहीं था जीवन

आर्य का जीवन आसान नहीं था। अपना पेट पालने के लिए उन्होंने कई काम किए। वे सेल्समेन थे और दुकानों में माल पहुंचाने का काम भी करते थे। उन्होंने पीएसी में कुछ दिनों तक पुलिस कांस्टेबल के रूप में भी काम किया। वे एक स्कूल में पीटी इंस्ट्रक्टर के पद पर भी कार्यरत थे (वे अपने छात्र जीवन के दौरान पहलवानी किया करते थे और क्षेत्रीय स्तर की कई प्रतियोगिताओं में उन्होंने विजय भी हासिल की)।

डॉ. भीमराव आंबेडकर थे प्रेरणास्रोत

दलितों के पूजनीय डॉ. भीमराव आंबेडकर का संघर्षपूर्ण जीवन, आर्य के लिए हमेशा प्रेरणास्रोत रहा। डॉ. आंबेडकर का आर्य के जीवन और व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव है। आर्य कहते हैं, ‘बाबासाहेब को दलित समुदाय का होने के कारण स्कूल से बहिष्कृत कर दिया गया था। वे अपने स्कूल के प्रांगण में एक पेड़ के नीचे, अपने अन्य सहपाठियों से दूर बैठा करते थे।’

राजनीतिक यात्रा

अपने स्कूली दिनों में ही आर्य ने भाजपा की सदस्यता ले ली थी और महापौर बनने के पूर्व उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। इनमें शामिल थे वार्ड अध्यक्ष, अनुसूचित जाति सेल के अध्यक्ष व प्रदेश मंत्री। उन्होंने भारतीय मजदूर संघ और सेवा भारती में भी काम किया। वे राजनीति में क्यों आए ? आर्य कहते हैं, ‘मेरे लिए राजनीति एक ऐसा मंच है, जिसके जरिए मैं लोगों की जिंदगियां बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता हूं, विशेषकर दलितों सहित, आर्थिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लोगों की।’

जाति-आधारित भेदभाव पर विजय

जातिप्रथा हमारे सामाजिक ढांचे में गहरे तक जड़ें जमाए हुए है। इस समस्या को मिटाने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। जागृति इस कार्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण है। ऊंची जातियों के लोगों की मानसिकता में बदलाव भी आवश्यक है। जब तक वे यह नहीं मानने लगेंगे कि दलित भी समाज का अविभाज्य भाग हैं और उनकी तरह मनुष्य हैं, तब तक जाति व्यवस्था व जाति-आधारित भेदभाव खत्म नहीं हो सकता। आर्य कहते हैं, ‘मैंने स्वयं भी अपने राजनीतिक और सामाजिक जीवन में जाति-आधारित भेदभाव का अनुभव किया है। जाति व्यवस्था ने हमारे समाज को बांट दिया है। हमें इस शर्मनाक बुराई पर विजय प्राप्त करनी है और एक दूसरे के साथ सद्भाववपूर्ण जीवन बिताना सीखना है।’

युवाओं व दलितों के लिए संदेश

अगर आप दृढ़ संकल्पित व परिश्रमी हैं और आपकी सोच ऊंची है तो आप अपने सपने अवश्य पूरे कर सकेंगे।

 

(फारवर्ड प्रेस के अगस्त 2014 अंक में प्रकाशित)


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राजीव आजाद

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