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महिषासुर विवाद : कांवड यात्रा का विरोध करने पर सुशीला धुर्वे से भिड़े मीडियाकर्मी

मध्यप्रदेश के हरदा में आयोजित एक कार्यक्रम में आदिवासी कार्यकर्ता व लेखिका ने कहा कि हमें दुर्गा नहीं, बल्कि महिषाासुर का सम्मान करना चाहिए। उनके इस बयान पर स्थानीय पत्रकार व हिंदूवादी संगठन भडक गए और उनके खिलाफ अभियान छेड दिया

आदिवासी महिला प्रकोष्ठ की प्रदेशाध्यक्ष एवं लेखिक सुशीला धुर्वे

हरदा (मध्य प्रदेश)। हमें राम नहीं, महिषासुर और रावण की प्रशंसा करनी चाहिए। यह बात ‘आदिवासी महिला प्रकोष्ठ’ की प्रदेशाध्यक्ष एवं लेखिका सुशीला धुर्वे ने कही। वे 9 अगस्त को सभी आदिवासी समाज संगठन, छात्र संगठन एवं अजाक्स जिला हरदा द्वारा संयुक्त रूप से मंडी प्रागंण हरदा में मनाए जा रहे विश्व आदिवासी दिवस के कार्यक्रम में बोल रही थीं। इस दौरान उन्होंने हिंदूवादी व्यवस्था एवं कट्टरपंथी अतिवाद पर जमकर निशाना भी साधा। सुश्री धुर्वे ने कहा कि राम आर्यों के वशंज थे, आर्य बाहर से आए थे। आर्यों ने हमारी जमीन हड़पी, जबकि रावण  हमारे रक्षक थे। उन्होंने कहा कि दुर्गा ने हमारे जननायक महिषासुर को धोखे से मारा, इसलिए हमें दुर्गा की नहीं महिषासुर की प्रशंसा और सम्मान करना चाहिए और अगर पूजा ही करनी है तो इनकी पूजा की जानी चाहिए। कार्यक्रम के दौरान धुर्वे ने आदिवासी समाज की रीति-नीति व धर्म की विस्तार से जानकारी दी तथा इसे आमजन तक ले जाने का आह्वान किया। कार्यक्रम में दूर-दराज से आदिवासी समुदाय के हजारों स्त्री-पुरूष जुटे थे।

धुर्वे ने आरोप लगाया कि आरएसएस और भाजपा के लोग भोले-भाले आदिवासियों का हिंदूकरण कर रहे हैं। यह सब छल-बल और पैसे का लोभ देकर किया जा रहा है। इसका विरोध करने पर नक्सली समर्थक कहा जा रहा है। ऐसे कुकृत्यों का आदिवासी समाज मजबूती के साथ विरोध करे।

सुशीला धुर्वे की फेसबुक पोस्ट

 

धुर्वे ने कहा कि पूरे गोंडवाना बेल्ट में घर-घर महिषासुर, रावण और मेघनाद की पूजा होती है। हमारे धरती पर जब अार्य नहीं आए थे, उससे पहले से हम लोग और हमारे पुरखे महिषासुर और रावण को पूजते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज रावण और असुर पूजक है। होली के पंद्रह दिन बाद से सभी क्षेत्रों में  मेघनाद की पूजा होती। यह आदिवासियों की रूढि़ व्यवस्था है और इसी आधार पर हमें संविधान में जनजाति का दर्जा दिया गया है। संविधान का अनुच्छेद 13(3) के अनुसार  जो आदिवासी रूढियों का पालन करते हैं, उन्हें ही ‘अनुसूचित जनजाति’ का दर्जा मिलता है। जो लोग रूढि़ व्यवस्था का पालन नहीं कर रहे हैं, सरकार उन्हें इसी आधार पर अनुसूचित जाति की कैटेगेरी से बाहर कर रही है। उन्होंने सवाल उठाया कि संविधान हमें हमारी रूढियों का पालन करने को कहता तो फिर ये कौन लोग हैं, जो हमारी रूढियों को, हमारे पूर्वजों, हमारे नायकों को अपमानित करते हैं?

कार्यक्रम में जुटे लोगों ने सुश्री धुर्वे के भाषण का करतल ध्वनि से स्वागत किया। कार्यक्रम के बाद मंच से उतरते आते वक्त उन्हें स्थानीय पत्रकारों ने सुश्री धुर्वे को घेर लिया और उनसे भिड गए। पत्रकारों का कहना था कि उन्होंने अपने वक्तव्य से हिंदू समुदाय की एक जाति विशेष का अपमान किया है। पत्रकारों के रवैये से कुछ देर के लिए धुर्वे असहज हो गईं, लेकिन वे अपने वक्तव्य पर अडी रहीं तथा उन्होंने कहा कि सच्चाई व्यक्त करने से किसी की भावना आहत नहीं होती बल्कि इससे समुदायों के बीच सामाजिक और सांस्कृतिक समता की सोच विकसित होती है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या यह उचित है कि विभिन्न त्योहारों के माध्यम से एक समुदाय अन्य वंचित समुदायों का निरंतर अपमान करता रहे? पत्रकारों ने उनसे सवाल किया कि यहां के टिमरनी विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक संजय शाह मकड़ई ऊर्फ राजा साहब ने आदिवासियों से कांवड़ यात्रा करा रहे हैं, क्या आप इसे भी गलत मानती हैं? इसपर धुर्वे ने कहा कि कांवड़ आदिवासियों की संस्कृति नहीं है। आदिवासी प्रकृति पूजक रहे हैं, हमारे पूर्वज कभी भी कांवड यात्रा पर नहीं गए। इस तरह के कार्यक्रम हमारी संस्कृति को नष्ट करके एक वर्चस्वशाली विचारधारा हम पर थोपने के लिए किए जा रहे हैं।  उनके इस उत्तर से पत्रकार और भडक गए। उन्होंने धुर्वे पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगाया। धुर्वे ने सवाल किया कि मेरे जय रावण जय भैंसासुर कहने से तुम्हारी भावनाएं आहत होती हैं तो क्या रावण-दहन, भैसासुर वध से मेरी भावनाएं आहत नहीं होती? उन्होंने कहा कि कट्टरवादी लोग रावण-दहन, भैंसासुर-दहन करके लगातार आदिवासियों की भावनाओं को आहत करते रहे हैं। ऐसा जहां भी मामला हो, जागरूक आदिवासियों को उन लोगों के खिलाफ बने एट्रोसिटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराना चाहिए।

कार्यक्रम में दूर-दराज के गांवों के हजारों लोगों ने हिस्सा लिया

इस आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में रामू तेकाम प्रदेश अध्यक्ष आदिवासी छात्र संगठन भोपाल मौजूद रहे। उन्होने एकजुट होकर समाज का कार्य करने की बात कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्यारेलाल धुर्वे द्वारा की गई। कार्यक्रम में जिले के विभिन्न क्षेत्रों से आदिवासी सांस्कृतिक मंडलियों द्वारा प्रस्तुति दी गई। कार्यक्रम के बाद विशाल रैली निकाली गई। रैली कार्यक्रम स्थल कृषि उपज मंडी प्रागंण से कलेक्टर कार्यालय के सामने से होते हुए बायपास बजरंग मंदिर चौक, प्रताप टॉकिज, चांडक चौराहा, नारायण टाकीज चौक होते हुए डॉ. बाबा भीमराव अंबेडकर चौक पहुंची।

अखबारों के स्थानीय संस्करणों ने  धुर्वे का पुतला जलाए जाने  की खबर काे भी प्रमुखता से छापा

उधर, कार्यक्रम के बाद हरदा भाजपा अजजा जिलाध्यक्ष विष्णु ठाकुर ने स्थानीय प्रेस को एक बयान जारी कर सुशीला धुर्वे के भाषण की निंदा की उन्होंने कहा  कि आदिवासियों को रावण का वंशज और ब्राह्मण से पूजा नहीं कराने जैसी बातें करना  उनके मानसिक दिवालियेपन को दिखाता है। उन्होंने कहा ऐसे बयानों के माध्यम से धुर्वे नक्सलवाद का समर्थन कर रही हैं।

कार्यक्रम के अगले दिन 10 अगस्त को  “हिंदू सामाजिक समिति” नाम संगठन ने हरदा के परशुराम चौक पर सुशीला धुर्वे का पूतला भी फूंक कर उसकी तस्वीरें अखबारों को जारी कीं। तस्वीर में पुतला फूंकने वालों की संख्या महज 8-9 थी। विभिन्न हिंदी समाचार पत्रों के स्थानीय संस्करणों ने पुतला फूंके जाने का समाचार को प्रमुखता से जगह दी है।

पूतला फुंकने की घटना पर सुशीला धुर्वे ने फेसबुक  पर लिखा है कि ये पूतला फूंकने वाले लोग घुसपैठिए हैं। संविधान की पांचवीं अनुसूची के अनुसार आदिवासी क्षेत्र में ऐसे लोगों का प्रवेश वर्जित है। ये लोग संविधान की धज्जियां उड़ाकर आदिवासियों का हिंदूकरण कर रहे हैं। आदिवासियों की जमीनों पर अवैध कब्जा कर रहे हैं। एक अन्य पोस्ट में उन्होंने लिखा कि “मेरे लाखों पुतले दहन कर दो, फिर भी मैं कहूंगी मूलवंशी हिंदू नहीं हैं क्योंकि संविधान और सुप्रीम कोर्ट भी यही मानता है”।


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लेखक के बारे में

राजन कुमार

राजन कुमार फारवर्ड प्रेस के उप-संपादक (हिंदी) हैं

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