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मैसूर के महिषा दसरा में गौरी लंकेश को शिद्दत से याद किया गया

मैसूर की चामुंड़ी हिल्स पर महिषा दसरा धूम-धाम से मनाया गया। जिसमें कर्नाटक के प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों के साथ भारी संख्या में आम जनता ने भी हिस्सेदारी की। इस पूरे आयोजन में क्या-क्या हुआ, वक्ताओं ने क्या कहा, क्या संकल्प लिए गए, क्या मांगे प्रस्तुत की गई, इस बारे में बता रहे हैं, दिलीप नरसैया एम :

मैसूरु दसरा के मौके पर सांस्कृतिक झांकी में प्रोफेसर शाबिर मुस्तफा और स्वामी ज्ञान प्रकाश सहित अनेक बुद्धिजीवी

18 सितंबर 2017 को मैसूर के स्थानीय लोंगों ने  चामुंड़ी हिल्स (पहाड़ियों) पर महिषा दसरा का उत्सव मनाया। इस उत्सव के आयोजकों  में दलित वेलफेयर ट्रस्ट, अशोकापुरम अभिमानिगाला बागला, मैसूर यूनिवर्सिटी स्टुडेंट फेडरेशन,रिसर्च स्कालर्स एसोसिएशन, दलित स्टुडेंट फेडरेशन जैसे कुछ प्रगतिशील संगठन शामिल थे।  आयोजन में कुछ अल्पसंख्यक समुदायों की संस्थाएं भी शामिल थीं। सांस्कृतिक  जुलूस और महिषासुर को श्रद्धांजलि देने के लिए होने वाले इस आयोजन में हजारों लोगों ने शिरकत की। महिषासुर इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार और दबे-कुचले समुदायों को एक अच्छी शासन व्यवस्था देने के लिए आए थे। यह ऐतिहासिक मैसूर शहर पहले ‘महिषापुरी’, ‘महिषासुरू’ ‘महिषामंडल’ नाम से जाना जाता था। इस विशाल आयोजन में प्रगितशील चिन्तकों, सांस्कृतिक व्यक्तित्वों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शोध-छात्रों, विद्यार्थियों और आम जनता ने सक्रिय हिस्सेदारी करके मैसूरू के इतिहास को एक नया आयाम दिया।

मैसूरु दसरा के मौके पर उपस्थित गणमान्यजनों के साथ प्रोफ़ेसर के.एस. भगवान और प्रोफेसर बी. पी. महेश चंद्र गुरु

साहित्यकार और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर शाबिर मुस्तफ़ा और उरीलिंगी पेड्डी मठ के स्वामी जनानप्रकाश ने डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा पर माल्यार्पण करने बाद मोटरसाइकिल रैली को झंडा दिखाकर रवाना किया। यह दलित और अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा सामूहिक तौर पर महिषासुर की सांस्कृतिक विरासत को याद करने और कर्नाटक राज्य के सामाजिक न्याय की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लेने का मौका था। इस यादगार शोभा-यात्रा के दौरान लोक कलाकारों के कई समूहों ने अपनी कला प्रस्तुत की। लोक कलाकारों की ये प्रस्तुतियां इस बात को सामने ला रही थीं कि कैसे कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ में यह मिथक गढ़ा की चामुंड़ी ने एक दैत्य की हत्या की, जिसका नाम महिषा था। इस समारोह में उपस्थित स्थानीय लोगों ने यह घोषणा की कि महिषा उनके मुक्तिदाता और महान राजा थे। यह महान राजा, बुद्ध की ऐतिहासिक विरासत का प्रतिनिधित्व करता था।

चामुंड़ी पहाड़ी की जिस चोटी पर यह, जन कार्यक्रम हुआ, उसे शुरू में ‘महाबाला’ नाम से जाना जाता था। जिसका अर्थ होता है, “शक्तिशाली महिषा’  शासन का क्षेत्र”। वरिष्ठ नेता ए.के. सुब्बायाह ने कार्यक्रम का आरम्भ किया और कहा कि निहित स्वार्थी लोगों ने  महिषा के इतिहास को विकृत किया और महिषा के स्थानीय लोगों के इतिहास की विरासत को नीचा दिखाने के लिए चामुंड़ी की प्रति स्थापना की उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वह महिषा दसरा को इस महान बौद्ध राजा के सम्मान देने के रूप में मनाएं। उन्होंने यह भी कहा कि गांधी, गौरी लंकेश और अन्य प्रगतिशील नेताओं की हत्या करने वाले लोग निर्लज्जतापूर्वक चामुंड़ी त्यौहार मनाते हैं। उन्होंने पिछड़े वर्गों से आग्रह किया कि वे धर्मनिरपेक्षता के बैनर तले एकजुट होकर फासीवादियों को हराएं और देश को फिर अहिंसात्मक और लोकतांत्रिक तरीके के शासन की ओर ले जाएं।

गौरी लंकेश मंच
मैसूरू महिषा दसरा 2017 के आयोजन के संबंध में स्थानीय अखबार द्वारा प्रमुखता के साथ छापी गई खबर

तर्कशील (बुद्धिवादी) और आंबेडकरवादी  प्रोफेसर वी.पी. महेश चन्द्र गुरू ने टिप्पणी की कि चामुंडी न तो एक देवी है, न तो रक्षिका हैं। उन्होने कहा कि “इस बात का कोई प्रमाणित करने वाला कोई सबूत नहीं है कि महिषा चामुंडेश्वरी के हाथों मारे गए थे, जैसा कि हिंदू पौराणिक कथा बताती है। यह कथा किसी भी तर्क और प्रमाण पर खरी नही उतरती है”। उन्होने  कहा, “हमें मानवता के लिए खड़े होने वाले महान शासक की विरासत को संजोने के लिए महिषा हब्बा का उत्सव भी मनाना चाहिए”। निहित स्वार्थियों ने एक पौराणिक कथा गढ़ी और तथ्यों और ऐतिहासिकता पर बिना कोई ध्यान दिए, महिषासुर को एक दैत्य के रूप में प्रस्तुत कर दिया। उन्होंन सामाजिक न्याय चाहने वालों और धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखने वालोें का आह्वान किया कि वे साम्राज्यवादी और सांप्रदायिक ताक़तों से संघर्ष करें, जो आज लोकतंत्र के नाम पर शासन कर रही हैं। उन्होंने वहां उपस्थित स्थानीय लोगों को सामाजिक समता के अगुवा  आंबेडकर, लोहिया, पेरियार, नारायण गुरू और अन्य लोगों की उन कुर्बानियों को याद दिलाया, जो उन्होंने सामाजिक समता के लिए दीं। उन्होंने सामाजिक समता के उनके विचारों को आगे बढ़ाने और लोकतंत्र की रक्षा करने का आह्वान किया। उन्होंने मांग की कि महिषासुर की प्रतिमा को शहर के  किसी मुख्य स्थल पर लगाया जाए और मैसूर विश्वविद्यालय का नाम महिषा विश्वविद्यालय करने का आग्रह किया।

मैसूर के चामुंडी पहाड़ी पर आयोजित महिष दसरा समारोह को संबोधित करते प्रोफेसर बी. पी. महेशचंद्र गुरु
मैसूर के महिषा दसरा समारोह में बड़ी संख्या में शामिल हुए लोगों को संबोधित करते प्रोफेसर के. एस. भगवान

प्रोफेसर के.एस.भागवान ने अपनी राय प्रकट करते हुए कहा कि सांप्रदायिक ताकतें भारत पर शासन कर रही हैं और देश का विनाश कर रही हैं। उन्होंने इस बात को पुरजोर तरीके से रेखांकित किया कि भारतीय लोकतंत्र और भारतीय समाज के उत्पीड़ित तबकों के सामने गंभीर संकट पैदा हो गया है। उन्होंने कर्नाटक के लोगों से अनुरोध किया कि वे फासीवादियों के कुशासन को रोकें और तर्कशीलता और मानवतावाद के बैनर तले एक सुशासन को बढ़ावा दें।

महिषा के साथ बुद्धिजीवियों की तस्वीर

मैसूर के लॉ  यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर सी. बासव राजू ने कहा, “आर्यों द्वारा लिखे गए इतिहास में, असुरों को दैत्य के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि वास्तविकता यह है कि असुर भारतीय संस्कृति और सभ्यता के जनक, महान पुरखे थे। असुर लोग भारत के मूलवासी थे, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। इन लोगों ने विशुद्ध देशभक्ति और कड़े परिश्रम से राष्ट्रीय संपदा का सृजन किया”।

मैसूरू महिषा दसरा 2017 के आयोजन के संबंध में स्थानीय अखबार द्वारा प्रमुखता के साथ छापी गई खबर

सेक्सुअल सेक्रेट्स ऑफ गॉडस एण्ड गॉसेस, दलित आक्रेस्ट्रा : सिद्धार्थ, और  हिंदू बीफ खाते थे,( डॉ.आंबेडकर)  नामक इन तीन किताबों का इस अवसर पर विमोचन किया गया। पहली दो किताबों के लेखक तर्कशील सिद्दास्वामी हैं और तीसरी किताब का अनुवाद प्रोफेसर महेश चन्द्र गुरू ने किया है। इन तीनों किताबों का विमोचन चिन्तक के.एस. भगवान, स्वामी सिद्दारामा शिवयोगी, बासव लिंगामुर्थी,हाजी मुलिस्था चिश्ती और अन्य लोगों ने किया।

जुलूस को दौरान लोक सांस्कृतिक टोली कार्यक्रम प्रस्तुत करती हुई

आयोजन स्थल का नामकरण गौरी लंकेश के नाम पर किया गया था। इस नामकरण के बहाने तर्कशीलता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पददलित समुदायों के सशक्तीकरण के लिए उनके द्वारा दी गई जीवन की कुर्बानी को याद किया गया। इस अवसर पर उनके प्रति अत्यन्त आदर और सम्मान प्रकट करते हुए श्रद्धांजलि प्रकट की गई।  आयोजन में भागीदार लोगों ने इस अवसर पर सांप्रदायिक ताकतों  और कट्टरपंथियों  को लोकतांत्रिक तरीके से पराजित करने का संकल्प लिया गया।

के.एस. भागवान, स्वामी सिद्दारामा शिवयोगी, बासव लिंगामुर्थी, हाजी मुस्तफा चिश्ती और अन्य लोग, आयोजन में तीन किताबों का विमोजन करते हुए

इस अवसर पर  दलित वेलफेयर ट्रस्ट के मानद अध्यक्ष शान्ताराजु, दलित वेलफेयर ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रोफेसर टी.एम.महेश, मैसुरू शहर के भूतपूर्व मेयर पुरूषोत्तम, डॉ. मंगलामुर्थी,महादेवमुर्थी, एसडीपीआई के नेता पुत्तानन्याह, गोवथम देवानूर, हारोहाली रविन्द्रा, मैसूर यूनिवर्सिटी दलित स्टुडेंटस फेडरेशन के  संयोजक  गुरूमुर्थी, मैसूर यूनिवर्सिटी  दलित स्टुडेंटस  फेडरेशन के मानद संयोजक महेश सोसाले, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के नेता खलिल, बहुजन समाज पार्टी के नेता कृष्णमूर्थी और सोसाले सिद्दाराजु, बुद्ध और आंबेडकर संगठन के प्रजवाल शशि, दलित-अल्पसंख्यक संघ के ए.जे. खान के साथ गुलवर्ग और इस रिपोर्ट के लेखक मौजूद थे।

(अनुवाद- सिद्धार्थ)


महिषासुर से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए  ‘महिषासुर: एक जननायक’ शीर्षक किताब देखें। ‘द मार्जिनलाइज्ड प्रकाशनवर्धा/दिल्‍ली। मोबाइल  : 9968527911. ऑनलाइन आर्डर करने के लिए यहाँ जाएँ: अमेजनऔर फ्लिपकार्ट इस किताब के अंग्रेजी संस्करण भी  Amazon,और  Flipkart पर उपलब्ध हैं

लेखक के बारे में

दिलीप नरसैया एम

दिलीप नरसैया अकादमिशियन, मिडिया रिसर्चर, फ्रीलांस लेखक, और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। उन्होंने मैसूर विश्विद्यालय से पीएचडी की है। उनके शोेध का विषय‘ कम्युनिकेशन स्ट्रेडजी फॉर कार्पोरेट रिपुटेशन मैनेजमेंट’ हैं। इन्होंने तीन किताबें, दलित इन मीडिया (अंग्रेजी), कारूनड्डा माडियामा जानगामा : पी, लंकेश (कन्नड़) और ग्लोबलाईजेशन एण्ड मीडिया : इंडियन इम्पीरिकल इविडेंस (कन्नड़) लिखी हैं

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