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सामाजिक समता और न्याय के लिए संघर्षरत व्यक्तित्व : पी.एस. कृष्णन (पूर्व सचिव, भारत सरकार)

पिछड़ों के लिए मंडल कमीशन बनाने से लेकर, उसके सुझावों को लागू कराने में पी.एस.कृष्णन की निर्णायक भूमिका रही है। अनुसूचित जातियों के लिए स्पेशल कंपोनेंट प्लान के भी आप वास्तुकार रहे हैं। पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के लिए अनेक निर्णायक कदम उठाने के लिए इन्होंने भारत सरकार को प्रेरित किया व वर्तमान समस्याओं और चुनौतियों को भी चिन्हित किया

जाति की चर्चा मत करो, जाति मत पूछो, जाति के बारे में मत सोचोकेरल के समाज सुधारक श्री नारायण गुरू का यह मूलमंत्र था। पी.एस. कृष्णन का भी यह मूलमंत्र है। वे जाति और जाति से पैदा हर प्रकार के अन्याय के खात्मे के लिए काम करते रहे हैं। 11 वर्ष की उम्र में ही आंबेडकर के इस कथन ने उन्हें बेचैन कर दिया किहर सात भारतीय में एक भारतीय छुआछूत का शिकार है। किशोर मन ने छूआछूत के खात्मे का संकल्प लिया। छूआछूत के कारणों की तलाश, उन्हें जाति के खात्मे के संकल्प तक ले गई। उन्हें इस बात का पक्का विश्वास हो गया कि जाति और जाति आधारित भेदभाव एंव अन्यायों के खात्मे के बिना भारत में न्याय और समता की स्थापना नहीं की जा सकती है।

पी.एस. कृष्णन

1956 में आईएएस चुने गए। तहसीलदार के रूप में अपनी पहली नियुक्ति के साथ ही उन्होंने एससी-एसटी और ओबीसी के लिए काम करना शुरू कर दिया। विभिन्न जिलों के जिलाधिकारी के रूप में उन्होंने दलितों, पिछडों और आदिवासियों के हितों के लिए अपने को समर्पित कर दिया। इन तबकों से सघन संपर्क कायम किया। उनकी बुनियादी समस्याओं को समझा। इस दौरान वे लगातार यह सोचते रहे कि ऐसा क्या किया जाय, ऐसी कौन सी योजनाएं बनाई जाएं, कौन-से कानूनी और संवैधानिक प्रावधान किए जाएं, जिससे दलित और ओबीसी कथित उच्च जातियों के बराबर आ सकें।

केंद सरकार में सचिव होने के बाद उन्होंने सबसे पहला कदम अनुसूचित जातियों के लिए स्पेशल कंपोनेन्ट प्लान (SCP) के रूप में उठाया। अनुसूचित जातियों के आर्थिक सशक्तीकरण की दिशा में उठाया गया, यह सबसे बड़ा कदम था। इसके तहत भारत सरकार के कुल योजनागत बजट का एक हिस्सा (अनूसूचित जातियों की जनसंख्या के अनुपात में) अलग से अनुसूचित जातियों के आर्थिक-सामाजिक कल्याण के लिए आवंटित करने का प्रावधान किया गया।

कृष्णन बताते हैं कि उनको शुरू से ही इस बात का गहरा एहसास था कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों को सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए तो संवैधानिक प्रावधान किए गए, आरक्षण प्रदान किया गया, लेकिन देश की बहुसंख्यक आबादी (कम-से- कम 52 प्रतिशत) को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। उनके साथ भारी अन्याय हुआ। उनके सामाजिक-शैक्षणिक उत्थान के लिए कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया, जबकि उनकी सामाजिक-शैक्षणिक स्थिति अत्यन्त बदतर थी। उनका बहुलांश आर्थिक तौर पर भी साधनहीन और संपत्तिहीन था। 1979 में  पिछड़े वर्ग की स्थिति की पड़ताल करने और सामाजिक-शैक्षणिक एवं आर्थिक स्थिति के उत्थान का उपाय सुझाने के लिए मंडल कमीशन बना। इस कमीशन के निर्माण में कृष्णनन की अहम भूमिका था। राजनीति और प्रशासन में उच्च-जातीय वर्चस्व के चलते मंडल कमीशन की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। 1990 में  इस कमीशन के सुझावों को लागू करने का निर्णय वी.पी. सिंह ने लिया। उनके इस निर्णय लेने और उसे कार्यरूप में जमीन पर उतारने में सबसे अहम भूमिका सचिव के रूप में पी.एस.कृष्णन ने ही निभाई। 2006 में मानव संसाधन मंत्री के रूप में अर्जुन सिंह ने उच्च शिक्षा संस्थाओं में पिछड़े वर्गों के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। यह कदम भी कृष्णन की सलाह और सहयोग से उठाया गया था। अर्जुन सिंह ने उन्हें अपना सलाहकार नियुक्त किया था।

पी.एस. कृष्णन और शांता कृष्णन

पिछ़डे वर्गों के लिए आरक्षण के लिए सतत प्रयास करते हुए, कृष्णन अनुसूचित जातियों और जनजातियों के हितों के लिए कार्य करते रहे। 1990 में अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग को 65वें संविधान संशोधन विधेयक द्वारा संवैधानिक दर्जा दिया गया। इसमें भी कृष्णन की निर्याणक भूमिका थी। इससे पहले जब 1989 में SCs/STs (अत्याचार निवारण अधिनियम) एक्ट 1989 बना, तो उसके भी कर्ताधर्ता कृष्णन थे। सफाई कर्मियों के लिए कानून के निर्माण में उनकी अहम भूमिका थी।

पी.एस. कृष्णन 1990 में सेवानिवृत्त होने के बाद भी निरंतर पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के लिए कार्य कर रहे हैं। दलितों, पिछड़ों और आदिवासियों के लिए कार्य करने वाले विभिन्न सरकारी और गैरसरकारी सरकारी संस्थाओं में उनकी सक्रिय हिस्सेदारी है।

केरल में जन्मे कृष्णन भारत की विविध भाषाओं में प्रवाहमय तरीके से बोल और लिख लेते हैं। भारत की प्रगतिशील परंपरा की गहरी समझ रखते हैं। विविध प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और अखबारों में निरंतर लिखते रहते हैं। अभी हाल में उनकी उनकी महत्वपूर्ण किताब  ‘ए क्रुसेड फॉर सोशल जस्टिस: पी.एस.कृष्णन, बेंडिग गर्वनेंस टूवार्डस दी डिप्राइव्डआई है। यह किताब सामाजिक न्याय के लिए उनके प्रयासों की कहानी के साथ ही उनकी जीवन-यात्रा को सामने लाती है, साथ ही पिछड़ों, दलितों और आदिवासिंयों की विशिष्ट समस्याओं को चिन्हित करती है और उन समस्याओं के समाधान के ठोस उपाय भी बताती है।


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लेखक के बारे में

सिद्धार्थ

डॉ. सिद्धार्थ लेखक, पत्रकार और अनुवादक हैं। “सामाजिक क्रांति की योद्धा सावित्रीबाई फुले : जीवन के विविध आयाम” एवं “बहुजन नवजागरण और प्रतिरोध के विविध स्वर : बहुजन नायक और नायिकाएं” इनकी प्रकाशित पुस्तकें है। इन्होंने बद्रीनारायण की किताब “कांशीराम : लीडर ऑफ दलित्स” का हिंदी अनुवाद 'बहुजन नायक कांशीराम' नाम से किया है, जो राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है। साथ ही इन्होंने डॉ. आंबेडकर की किताब “जाति का विनाश” (अनुवादक : राजकिशोर) का एनोटेटेड संस्करण तैयार किया है, जो फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित है।

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