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आदिवासी युवतियों ने दी छत्तीसगढ़ में पुलिसिया जुल्म को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा आदिवासियों पर जुल्म के आरोप लगते रहे हैं। यह पहला उदाहरण है जब वहां की पीड़ित आदिवासी महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ पुलिस को चुनौती दी है। याचिकताकर्ता आदिवासी महिलाओं से विशेष बातचीत के आधार पर अबतक की उनकी संघर्ष यात्रा और चुनौतियों के बारे में बता रहे हैं नवल किशोर कुमार :

सुनीता पोट्टाम (उम्र 19 वर्ष) और मुन्नी पोट्टाम (उम्र करीब 18 वर्ष) छत्तीसगढ़ के बीजापुर के कोरचोली गांच की रहने वाली हैं। इन दोनों युवतियों ने अपने गांव में पुलिस द्वारा नक्सली कह फर्जी एनकाउंटर किये जाने के मामले में जनहित याचिका दायर कर सरकार और कानून व्यवस्था दोनों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। अपनी लड़ाई लड़ते हुए ये दोनों युवतियां अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच चुकी हैं। दिल्ली पहुंचने पर दोनों युवतियों ने फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत की और अपने संघर्ष के बारे में बताया। इन लोगाें ने यह भी बताया कि पुलिस आदिवासी महिलाओं के साथ बलात्कार करती हैं और थानों में उनके खिलाफ कोई मुकदमा दर्ज नहीं होता।

छत्तीसगढ़ पुलिस के खिलाफ जनहित याचिका दायर करने वाली आदिवासी युवतियां सुनीता पोट्टाम और मुन्नी पोट्टाम

हाईकोर्ट की अनुशंसा पर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में सुनीता पोट्टाम ने बताया कि पिछले वर्ष उनके जिला बीजापुर के कादेनार, पलनार, कोरचोली और अंदड़ी गावों में पुलिस ने नक्सली कहकर छह लोगों को मार डाला था। इस घटना के विरोध में उसने गांव वालों के साथ मिलकर बीजापुर की निचली अदालत में एक जनहित याचिका दायर की। निचली अदालत द्वारा याचिका को खारिज किये जाने के बाद सुनीता और उसकी साथी मुन्नी पोट्टम ने छत्तीसगढ़ के बिलासपुर हाईकोर्ट से गुहार लगाया। हाईकोर्ट ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट में इसी तरह का एक मामला (नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ सरकार) विचाराधीन है।

मुकदमा करने से पहले गांववालों को समझाया

सुनीता पोट्टाम बताती हैं कि उन्होंने मात्र तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की है। वर्ष 2005  में सलवा जुडूम के दौरान पुलिस का हमला होने के बाद उनकी पढ़ाई बंद हो गई। वहीं मुन्नी पोट्टाम निरक्षर हैं। यह पूछे जाने पर कि पुलिस के खिलाफ मुकदमा करने की प्रेरणा उन्हें कैसे मिली और प्रारंभ में किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, सुनीता ने बताया कि सबसे पहले उन लोगों ने गांववालों से बातचीत की। इसके बाद उन्हें मुकदमा के लिए राजी किया। प्रारंभ में गांव के लोग पुलिस से डरते थे, लेकिन जब हमसब मिलकर आगे बढ़े तब डर जाता रहा। हालांकि पुलिस के द्वारा कई प्रकार की धमकियां दी गयीं और यह भी कहा गया कि बाहरी लोग हम लोगों को बहका रहे हैं।

गोली लगने के बाद भी वह जिंदा था, लेकिन पुलिस ने पेड़ पर पटककर ले ली जान

वहीं मुन्नी पोट्टाम के अनुसार उनके गांवों में पुलिस वाले महिलाओं पर जुल्म करते हैं। एक घटना का जिक्र करते हुए सुनीता पोट्टाम ने बताया कि अभी हाल ही में बीते 21 दिसंबर 2017 को दिन में दस बजे गांव के बाहर फायरिंग की आवाज हुई। गांव की महिलायें पहुंचीं, जो पास में ही नदी में पानी लेने गयी थीं। महिलाओं ने देखा कि पुलिस वालों ने जिस व्यक्ति को गोली मारी थी, वह जिंदा था और बचाओ-बचाओ चिल्ला रहा था। पुलिस वालों ने उसे पेड़ पर पटक दिया और उसकी मौत हो गयी। मारा गया युवक कौन था, जब गांव की महिलाओं ने पुलिस वालों से सवाल पूछा तो उनलोगों ने उन्हें नंगा कर पीटा और  पिस्तौल  दिखाकर उनके साथ अभद्र व्यवहार किया।

पुलिस नहीं दर्ज करती अपने खिलाफ कोई मामला

सुनीता बताती हैं कि उनके इलाके में पुलिस द्वारा इस तरह की घटनाएं आम हैं। पुलिस थानों में इस तरह की घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज नही की जाती है।

महिला संगठन ने बढ़ाया अपना हाथ

इस मामले में महिलाओं का संगठन डब्ल्यूएसएस (वीमेन अगेंस्ट सेक्सुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन) ने सुनीता और मुन्नी की मदद की। संगठन की संयोजिका रिनचिन के मुताबिक संगठन के द्वारा छत्तीसगढ़ के इलाकों में आदिवासी महिलाओं के उपर पुलिस के अत्याचार के संबंध में एक शोध के दौरान सुनीता और मुन्नी सामने आयीं, जो कि पहले ही निचली अदालत में पुलिस के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ रही थीं। उनकी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए संस्था स्वयं आगे आयी और वह भी याचिकाकर्ता बनी।

बहरहाल यह पूरा मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है। देखना दिलचस्प होगा कि इन दो युवतियों की लड़ाई का अंजाम क्या होगा।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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