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चारा घोटाला : मुद्दई को सजा

चारा घोटाला के एक और मामले में सजायाफ्ता होने के बाद लालू की मुसीबतें बढ़ गयी हैं। हालांकि उन्होंने एक बार फिर कहा है कि वह मर जाना पसंद करेंगे लेकिन भाजपा के सामने घुटने नहीं टेकेंगे। उन्होंने चारा घोटाले को अपने खिलाफ षडयंत्र कहा है। क्या लालू सच बोल रहे हैं? जज शिवपाल सिंह ने सीबीआई के द्वारा उनके खिलाफ लगाये आरोपों पर मुहर लगाया है, उसके तथ्य क्या हैं, बता रहे हैं नवल किशोर कुमार :

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री व राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के सितारे इन दिनों गर्दिश में हैं। देवघर कोषागार निकासी मामले में लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल की सजा और दस लाख रुपए का आर्थिक दंड सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा बीते दिनों 3 जनवरी को सुनाई गई। लेकिन इस मामले में 23 दिसंबर 2017 को अपने न्यायादेश जिसमें उन्हें दोषी करार दिया गया, में जज शिवपाल सिंह ने उन तथ्यों की चर्चा की है जिससे यह बात साबित होती है कि वे लालू प्रसाद ही थे जिन्होंने चारा घोटाले की जांच के आदेश दिया था।

पटना के गांधी मैदान में एक जनसभा के दौरान लालू प्रसाद, 1999 (फोटो : स्व. कृष्ण मुरारी शर्मा)

सीबीआई ने लालू पर दर्ज किये छह मामलों में शिकायत

राजद प्रमुख लालू प्रसाद की बात करें तो उनके खिलाफ़ चारा घोटाले के कुल छह मामले हैं। इन सभी मामलों में उनके उपर एक ही तरह के आरोप और एक समान धारायें लगाई गई हैं। इनमें से एक पटना सीबीआई कोर्ट, 4 रांची के सीबीआई कोर्ट में लंबित हैं। वहीं एक मामले में 3 अक्टूबर 2013 को सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें पांच वर्षों की सजा का आदेश दिया था। श्री प्रसाद के खिलाफ़ मामलों में आरसी38ए/96 दुमकाकोषागार से 3 करोड़ 90 लाख की निकासी का मामला, आरसी47ए/96 डोरंडा कोषागार से 184 करोड़ रुपए की अवैध निकासी का मामला शामिल है। बीते 23 दिसंबर को सीबीअाई की विशेष अदालत ने आरसी64ए/96 देवघर कोषागार से करीब 97 लाख रुपए की निकासी के मामले में सजा सुनाया है। इस  मामले में दर्ज एफआईआर में लालू प्रसाद दसवें अभियुक्त हैं। उनके साथ इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र, विधानसभा में लोक लेखा समिति के पूर्व अध्यक्ष जगदीश शर्मा, आर. के. राणा सहित 22 लोग अभियुक्त थे।

लालू प्रसाद के खिलाफ धारायें

सीबीआई ने लालू प्रसाद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की 420,467,468,471 और 471ए के तहत मुकदमा दर्ज किया था। इसमें धारा 420 धोखाधड़ी करने, 467 मूल्यवान प्रतिभूति, विल, इत्यादि हेतु दस्तावेजी षडयंत्र करने, 468 छल करने, 471 और 471ए षडयंत्र रचकर फर्जीवाड़ा करने के आरोप से संबंधित हैं। सीबीआई ने अपने आरोपपत्र में लालू प्रसाद पर आरोप लगाया कि उन्होंने जानकारी रहने के बावजूद देवघर कोषागार से हो रही अवैध निकासी को रोकने की कोई कोशिश नहीं की जबकि वे मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री दोनों थे। सीबीआई के अनुसार लालू प्रसाद ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर षडयंत्र रचकर घोटाले को अंजाम दिया।

4 जून 1993 को चारा घोटाला के संदर्भ में तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा कार्रवाई किये जाने के संबंध में दैनिक समाचार पत्र हिन्दुस्तान में प्रकाशित खबर

लालू के खिलाफ सीबीआई के गवाह और उनकी जाति

राजद प्रमुख को सजा सुनाने वाले जज शिवपाल सिंह पर जातिगत व्यवहार करने का भी आरोप लगाया गया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने लालू प्रसाद को सजा सुनाए जाने के बाद कोर्ट परिसर में कहा कि -’यादव को जेल, ब्राह्म्ण को बेल, देखो भाजपाइयों का खेल’। उनकी इस टिप्पणी पर कोर्ट ने उन्हें सम्मन भी भेजा है। बहरहाल, इस विवाद से परे  निम्नांकित सारणी उन गवाहों की है जिन्होंने सीबीआई कोर्ट में लालू प्रसाद के खिलाफ गवाही दी। उनकी जाति का उल्लेख करना मौजूं दौर में प्रासंगिक है।

गवाह संख्यागवाह का नाम जातिगवाही
23राघवेंद्र किशोर दासकायस्थसीबीआई के 23वें गवाह और चारा घोटाला के एक मामले में आभियुक्त राघवेंद्र किशोर दास ने कोर्ट को बताया कि 80 और 20 के अनुपात में राशि की बंदरबांट हुई। इसी ने कहा कि जगन्नाथ मिश्र की अनुशंसा पर श्याम बिहारी सिन्हा को सेवानिव‍ृत्ति के उपरांत एक वर्ष का विस्तार दिया।
25डा. शशि कुमार सिंहराजपूतडॉ शशि कुमार सिंह ने आरोप लगाया कि श्याम बिहारी सिन्हा को डॉ जगन्नाथ मिश्रा, लालू प्रसाद, आर के राणा, जगदीश शर्मा, राम राजा राम, विद्या सागर निषाद, भोलाराम तुफानी व बेक जुलियस ने घोटालेबाजों का संरक्षण दिया।
29मिस एन जैकबगैर-हिन्दूइन्होंने कहा कि लालू प्रसाद की दो बेटियों हेमा और धनु के एडमिशन फार्म पर एन के सिन्हा स्थानीय अभिभावक थे।  वहीं डॉ शुक्ला मोहंती, डॉ आर के राणा और संजय कुमार उनसे मिलने हॉस्टल जाते थे। चंदा और रागिनी के लोकल गार्जियन के रूप में श्याम बिहारी सिन्हा था और विजिटर आर के राणा थे।
31बसंत अल्फ्रेड नागगैर-हिन्दूबिशप स्कॉट स्कूल, रांची में लालू प्रसाद की बेटियों की शिक्षा के लिए दी गयी शुल्क रसीद।
36सूर्यकांत प्रसादभूमिहारसूर्यकांत प्रसाद ने कोर्ट को बताया कि उसने मो सईद चारा घोटाले का एक आरोपी के कहने पर लालू प्रसाद की बेटियों का फार्म भरा था।
37प्रेमचंद ठाकुरअति पिछड़ा प्रेम चंद ठाकुर ने कहा कि शेषमुनि राम आर के राणा, लालू प्रसाद और सरकार के अन्य अधिकारियों के बहुत करीब थे।
74बीीरेंद्र कुमार अम्ब्ष्ठकायस्थअम्बष्ठ ने ही लालू प्रसाद, जगदीश शर्मा व अन्य के खिलाफ शेषमुनि राम को निदेशालय पशुपालन विभाग, पटना में बनाये रखने के लिए जांच की मांग की।
76तिलक राज गौरीब्राह्म्णहाल ही में वित्त विभाग में वरीय पदाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त तिलक राज गौरी ने कोर्ट को बताया कि वर्ष 1985-86 में पशुपालन विभाग का वास्तविक खर्च 22 करो 48 लाख, 1986-87 में 25 करोड़ 16 लाख, 1987-88 में 28 करोड़ 10 लाख, 1988-89 में 32 करोड़ चार लाख, 1989-90 में 44 करोड़ एक लाख, 1991-92 में 117 करोड़ 60 लाख, 1992-93 में 141 करोड़ 54 लाख, 1993-94 में 188 करोड़ एक लाख और 1994-95 में 237 करोड़ 85 लाख रुपए था। हालांकि सीबीआई कोर्ट ने राज्य के योजनाकार में हुए वृद्धि को इग्नोर किया। जैसे 1985-86 में 851 करोड़, 1986-87 में  1150 करोड़, 1987-88 में 1500 करोड़ रुपए, 1988-89 में 1600 करोड़ रुपए और 1989-90 में 1800 करोड़ रुपए, 1990-91 में 1805 करोड़, 1991-92 में 2251 करोड़, 1992-93 में 2202 करोड़ 73 लाख, 1993-94 में 2300 करोड़, वर्ष 1994-95 में 2400 करोड़ रुपए था। (श्रोत : बिहार सरकार द्वारा 2005 में जारी श्वेत पत्र, पृष्ठ संख्या 16)
81चंद्रावती नटराजनदक्षिण भारतीय ब्राह्म्णसीबीआई के 81वें नंबर की गवाह चंद्रावती नटराजन ने कोर्ट को बिशप स्कॉट स्कूल रांची में लालू प्रसाद की बेटियों का नामांकन पत्र के बारे में बताया
84राम जतन सिंहभूमिहारराम जतन सिंह ने कोर्ट को बताया कि लालू प्रसाद ने 1993 में डॉ बी एन शर्मा के चाईबासा से हजारीबाग स्थानांतरण संबंधी संचिका पर रोक लगाया तथा एस बी सिन्हा को सेवा विस्तार दिया।
85महादेव सेनज्ञात नहींमहादेव सेन ने कोर्ट को एक तस्वीर दी जिसमें मो सईद, दयानंद कश्यप, के एम प्रसाद व अन्य के साथ लालू भी हैं। यह एक समूह तस्वीर है। गवाह संख्या 94 बीरेंद्र कांत ठाकुर ने कहा कि लालू प्रसाद ने अभियुक्त दयानंद कश्यप को बीस सूत्री का उपाध्यक्ष मनोनीत किया।
102धर्मराज पांडेयब्राह्म्णसीबीआई कोर्ट को बताया कि जगन्नाथ मिश्र की अनुशंसा पर लालू प्रसाद ने एस बी सिन्हा को एक वर्ष का विस्तार दिया।
104कृष्ण मोहन शर्माभूमिहारकृष्ण मोहन शर्मा ने लालू प्रसाद, आर के राणा और उनके परिजनों की तस्वीर कोर्ट को सौंपा।
149शैलेश प्रसाद सिंहराजपूतशैलेश प्रसाद सिंह ने कोर्ट में कहा कि फर्जी आपूर्ति के लिए शेषमुनि राम को 80 फीसदी राशि दी गयी। साथ ही चाईबासा कोषागार से फर्जी तरीके से 50 लाख रुपए की अवैध निकासी के आरोपी बी एन शर्मा के स्थानांतरण पर रोक लालू प्रसाद ने बीस लाख रुपए लेकर लगाया। यह पैसा सह अभियुक्त राजू सिंह के कहने पर दिया गया।
146दिनेश नंदन सहायकायस्थदिनेश नंदन सहाय ने कोर्ट को बताया कि 13 जून 1994 को लालू प्रसाद ने उन्हें फर्जी दस्तावेज जांच के वास्ते सौंपे जिनके आधार पर फर्जी निकासी की गयी थी। जांच के दौरान यह बात सामने आयी थी कि विधानसभा की लोक लेखा समिति ने दस्तावेजों की जांच पूरी नहीं की। उस समय जगदीश शर्मा लोक लेखा समिति के अध्यक्ष थे।
154बिंदू भूषण द्विवेदीब्राह्म्णबिंदू भूषण द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि 1992 में उसने निगरानी विभाग को फर्जी निकासी के बारे में सूचित किया था जिसमें लालू प्रसाद की संलिप्तता थी।

सीबीआई की दलील

सीबीआई के वकील राकेश कुमार ने कोर्ट में दलील दी कि 2 जून 1994 को एक पत्र अराजपत्रित कर्मचारी संघ द्वारा मुख्यमंत्री लालू प्रसाद और मुख्य सचिव विजय शंकर दूबे को भेजा गया जिसका पत्रांक 52/92 था। इसमें पचास लाख रुपए की अवैध निकासी की बात कही गयी। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी। जबकि अपनी ही दलील में सीबीआई के वकील ने यह भी कहा कि 13 जून 1994 को लालू प्रसाद बच्चू प्रसाद और डॉ एस बी चौधरी को बुलाकर पूरे मामले की जांच करने को कहा। दोनों ने बाद में लालू प्रसाद से कहा कि वे जांच शुरू नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि डा राम राज राम उनके बार-बार कहने पर आवंटन एवं व्यय की जानकारी नहीं दे रहे हैं। सीबीआई के वकील ने यह भी कहा कि दोनों अधिकारी 20 जून 1994 को जांच करने देवघर पहुंचे। वहां से लौटकर दोनों अधिकारियों ने अपनी रिपोर्ट 29 जून 1994 को सौंप दिया जिसमें लगाये गये आरोपों को सत्य पाया गया।

बतौर मुख्यमंत्री पटना एयरपोर्ट पर बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक मान्यवर कांशीराम की आगवानी करते लालू प्रसाद (फोटो : स्व. कृष्ण मुरारी शर्मा)

इसके बाद मुख्यमंत्री की पहल पर मामले को निगरानी विभाग को सौंप दिया गया(निगरानी कांड संख्या – बीएस 23/94)। इस मामले में निगरानी के तत्कालीन निदेशक डी एन सहाय ने मामले की जांच की और रिपोर्ट मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को भेज दी। इस बीच लोक लेखा समिति के अध्यक्ष जगदीश शर्मा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर निगरानी की जांच को रोकने का अनुरोध किया।  डी एन सहाय के मुताबिक यह मामला 4 जुलाई 1994 को मुख्यमंत्री के समक्ष तत्कालीन मुख्य सचिव ए के बसाक द्वारा रखा गया। सीबीआई का कहना है कि इस संचिका को 8 महीने के बाद 29 मार्च 1995 को बिना किसी टिप्पणी के वापस भेज दिया गया।

वहीं पारा 23 में कहा गया है कि 17 जून 1994 को सदन पटल पर रखी गयी सीएजी रिपोर्ट रखी गयी। इस संबंध में निगरानी और लोक लेखा समिति द्वारा दो समानांतर जांच के संबंध में लालू प्रसाद द्वारा 29 अगस्त 1991 को ही आदेश दे दिया गया था। 30 सितंबर 1991 को बिहार के राज्यपाल की अध्यक्षता में हुई बैठक में मुख्यमंत्री लालू प्रसाद स्वयं भी मौजूद थे। इसी बैठक में पूरे मामले की गहराई से जांच के संबंध में निर्णय लिया गया।  सीबीआई का कहना है कि इस मामले में लालू प्रसाद ने दोहरी नीति अपनायी। एक तरफ निगरानी को जांच का आदेश दिया तो दूसरी ओर संरक्षण प्रदान करते रहे।

जज ने उठाया वित्तीय अनुशासन पर सवाल

जज शिवपाल सिंह ने लालू प्रसाद पर टिप्पणी अपने जजमेंट के पृष्ठ संख्या 60 पर की है। इसके मुताबिक सीबीआई के इस तथ्य की पुष्टि होती है कि 1990 से लेकर 1996 तक मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में लालू प्रसाद राज्य के वित्तीय अनुशासन को बरकरार रखने में नाकाम रहे। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि लालू प्रसाद ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर षडयंत्र रचा और बड़े पैमाने पर धन की निकासी हुई। बजट और आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट दोनों में पिछले वर्ष के व्यय व आवंटन के अलावा स्वीकृत आवंटन से अधिक की निकासी की जानकारी थी। वित्त आयुक्त फूलचंद सिंह व अन्य के द्वारा बजट तैयार करते समय भी अवैध निकासी की बात सामने आयी लेकिन न तो मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने और न ही फूलचंद सिंह ने इसके अालोक में कोई कार्रवाई की। इस संबंध में सीएजी द्वारा वर्ष 1985-86 से लेकर 1994-95 तक पशुपालन विभाग द्वारा किया गया अतिरित्क्त व्यय संबंधी जानकारी को देखा जा सकता है।

लालू प्रसाद को सजा सुनाने वाले सीबीआई के जज शिवपाल सिंह

हालांकि पृष्ठ संख्या 40 पर जज शिवपाल सिंह ने संविधान की धारा 266 का उद्धरण देते हुए कहा कि यह धारा राज्य को समेकित रूप से फंड बनाने का अधिकार देता है। राज्य सरकार अपने विवेक से जनता के हितार्थ व्यय कर सकती है और बजट में किये गये प्रावधान से अधिक राशि खर्च कर सकती है। इसके लिए कंटीजेंसी फंड का प्रावधान भी है जिसका इस्तेमाल अस्थायी खर्चे का भुगतान करने के लिए किया जा सकता है।

जांच का आदेश सबसे पहले लालू ने ही दिया था

पारा संख्या 103 में कहा गया है कि पी एस अय्यर, तत्कालीन डीएजी ने दिनांक 5 अप्रैल 1990(मेमो संख्या ईसीपीए-1-12) के जरिए एम सी सुबर्णो, तत्कालीन रिजनल डेवलपमेंट कमिशनर, रांची को वर्ष 1985-86 से लेकर 1988-89 तक व्यापक स्तर पर हुए वित्तीय अनियमितता को लेकर सूचित किया। मेमो की एक प्रतिलिपि सचिव, पशुपालन विभाग, पटना को भी भेजी गयी। इस पत्र में खुलासा किया गया था कि कैसे कार, स्कूटर, जीप और तेल की टंकियों वाली पंजीकृत गाड़ियों से पशुओं के चारे की ढुलाई की गई। इसके बाद तत्कालीन पशुपालन मंत्री रामजीवन सिंह ने 18 अगस्त 1990 को एक पत्र मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को भेजा जिसमें पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराने का अनुरोध किया गया। इस पर संज्ञान लेते हुए 13 नवंबर 1990 को लालू प्रसाद ने मामले को निगरानी विभाग से जांच हेतु आदेश दिया।

निगरानी से नहीं विभागीय जांच कराने की मांग की थी जगन्नाथ मिश्रा ने

इस बीच जगन्नाथ मिश्र ने लालू प्रसाद को पत्र लिखा कि इस मामले की जांच रीजनल डेवलपमेंट कमिश्नर, रांची से करवाने का अनुरोध किया। उनका तर्क था कि पुलिस जांच के नाम पर अधिकारियों को परेशान करेगी। सीबीआई का कहना है कि इस पत्र को लालू प्रसाद ने मुख्य सचिव को आवश्यक कार्रवाई हेतु अग्रसारित लिखकर भेज दिया। इसके बाद इस मामले में पुलिस जांच नहीं की गई।

मुख्यमंत्री के साथ वित्त सचिव भी दोषी

सीबीआई के मुताबिक तत्कालीन वित्त सचिव फूल सिंह (जनवरी 1992 से लेकर फरवरी 1994) वित्त विभाग की अपनी जिम्मेवारियों के निर्वहन में नाकाम रहे। सीबीआई ने उनके उपर आरोप लगाया कि इतने महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए उन्होंने बजट और आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट आदि के जरिए अवैध निकासी के मामलों को देखा लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया। सीबीआई ने उन्हें भी अभियुक्त के तौर पर पेश किया।

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इन कारणों से बरी हुए जगन्नाथ मिश्रा

जजमेंट के 148वें पारा में जगन्नाथ मिश्र को बेकसूर बताया गया है। इसके मुताबिक अभियोजक सीबीआई द्वारा कोर्ट को बताया कि जगन्नाथ मिश्र ने 23 अगस्त 1990, 15 नवंबर 1990 और 5 दिसंबर 1993 को तीन पत्र लिखा। इसके मुताबिक उन्हें जारी अवैध निकासी की जानकारी थी। सीबीआई ने उनके उपर आरोपियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया।

इसे साबित करने के लिए सीबीआई की तरफ से गवाह संख्या 23 आर के दास ने कहा कि 23 अगस्त 1990 को जगन्नाथ मिश्र ने पत्र लिखा। लेकिन सीबीआई ने यह पत्र कोर्ट को प्रस्तुत नहीं किया। कोर्ट के मुताबिक निगरानी विभाग के केस संख्या 34/1990 के तहत दिये गये बयान के संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत् नहीं किया गया। इसलिए एक अनुमोदक(अप्रुवर) द्वारा दिये गये बयान को कोर्ट में साक्ष्य नहीं माना जा सकता। बचाव पक्ष के वकील ने इसके लिए एआईआर-1975, एससी 856 और एआईआर 1979 का हवाला दिया। साथ ही पांडे दयानंद शर्मा ने कोर्ट को कहा कि उसने जगन्नाथ मिश्रा को पत्र लिखने का अनुरोध किया था।

कोर्ट में लालू की दलील

जजमेंट के 157वें पारा में लालू प्रसाद ने अपना पक्ष् रखा। उन्होंने कहा कि वर्ष 1990 से लेकर 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री रहे। साथ ही 1989 से हो रहे पशुपालन घोटाले की जानकारी नहीं होने की बात कही। उन्होंने आगे बताया कि वर्ष 1988-89 से लेकर 1994-95 के बीच सीएजी द्वारा जारी रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किया और उसे सदन की लोक लेखा समिति के पास सीएजी द्वारा उठाये गये बिंदूओं पर जांच हेतु भेज दिया। उन्होंने अन्य अभियुक्तों के साथ मिलकर आपराधिक षडयंत्र रचे जाने के आरोप को खारिज किया। उन्होंने इस आरोप को भी खारिज किया कि तत्कालीन पशुपालन मंत्री राम जीवन सिंह द्वारा आवंटन से अधिक निकासी के संबंध में सीबीआई जांच की मांग को संज्ञान में नहीं लिया। इसके अलावा वर्ष 1993 में सुशील कुमार मोदी द्वारा विधानसभा में पूछे गये सवाल को लेकर कहा कि विधानसभा में सरकार की ओर से जवाब देने की एक प्रक्रिया होती है। मामला सामने आने पर उन्होंने जांच के लिए कार्रवाई का आदेश दिया। सुशील मोदी ने 1200 करोड़ रुपए के घोटाले की बात कही थी।

लालू प्रसाद ने कहा कि देवघर कोषागार से फर्जी निकासी का मामला उनके संज्ञान में 22 जनवरी 1996 को आया और तभी उन्होंने जांच के लिए एक टीम के गठन का आदेश दिया तथा सभी दस्तावेज जब्त करने व दोषियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का भी आदेश दिया। दयानंद कश्यप को बीस सूत्री का उपाध्यक्ष बनाये जाने के आरोप पर लालू प्रसाद ने कहा कि कश्यप का नाम पहले से ही फाइल में था। जैसे ही उनके घोटाले में अभियुक्त होने की जानकारी मिली, उन्हें उपाध्यक्ष पद से हटा दिया गया।

दूरभाष संख्या 205907, 222079, 224129 और 501500 पर श्याम बिहारी सिन्हा और दयानंद कश्यप से बातचीत संबंधी सीबीआई के आरोप के जवाब में कहा कि उन्होंने श्याम बिहारी सिन्हा और कश्यप से कभी भी कोई बात नहीं की। श्याम बिहारी सिन्हा को एक वर्ष का सेवा विस्तार दिये जाने आरोप पर लालू प्रसाद ने कहा कि जगन्नाथ मिश्र ने दो वर्ष के विस्तार के लिए पत्र लिखा था लेकिन विभागीय सूचनाओं को देखने के बाद केवल एक वर्ष के लिए सेवा विस्तार दिया गया।

अराजपत्रित कर्मचारी संघ द्वारा देवघर कोषागार से अवैध निकासी संबंधी ज्ञापन दिये जाने के संबंध में लालू प्रसाद ने कहा कि इस तरह की कोई सूचना उनके संज्ञाान में नहीं लायी गयी। उन्होंने कहा कि शेषमुनि राम द्वारा डी एन सहाय को जारी फर्जी निकासी पत्र की छायाप्रतियां मिलने के बाद उन्होंने निगरानी को इसकी जांच के लिए भेजा और जांच की प्रक्रिया को बाधित नहीं किया।  साथ ही लालू प्रसाद ने कहा कि आर के राणा और श्याम बिहारी सिन्हा सहित अन्य आरोपियों से कोई रकम नहीं लिया और न ही उनकी ओर से कोई सेवा ली। लालू प्रसाद ने कहा कि वे डॉ शेष मुनि राम को नहीं जानते हैं और कहा कि उन्हें इसी तरह के छह मामलों में फंसाकर जेल में बंद किया गया। उन्होंने सीबीआई पर झूठे आरोप गढ़कर फंसाने का आरोप लगाया।

सीबीआई की नजर में लालू का झूठ और लालू का सच

सीबीआई के मुताबिक लालू प्रसाद ने यह झूठ कहा कि उन्हें मामले की जानकारी जनवरी 1996 में हुई जबकि दिसंबर 1993 में उन्होंने सीएजी रिपोर्ट पर हस्ताक्षर किया था जिसमें अवैध निकासी की बात कही गयी थी। इस संबंध में लालू के पक्षकार वकील ने कोर्ट में एक अहम गवाह के रूप में गवाह संख्या नागेंद्र प्रसाद के बयान को रखा। जिसमें उन्होंने कहा – “जब पशुपालन घोटाले का पूरी तरह भंडाफोड़ हो गया था तो वित्त विभाग से अपर वित्त आयुक्त ने एक नोट बढ़ाया जिसमें उन्होंने लिखा कि पशुपालन विभाग के अधिकारी व्यय बजट आंवटन से बहुत ज्यादा है, से गंभीर अपराध बनता है, क्योंकि इसमें चीटिंग, फर्जीवाड़ा, झूठे अभिलेख इत्यादि अपराध भी हुआ है, यह विस्तृत टिप्पणी जब श्री विजय शंकर दूबे, तत्कालीन वित्त आयुक्त बिहार सरकार को प्रस्तुत किया गया तो उन्होंने स्पष्ट रूप से पशुपालन विभाग के अधिकारियों के खिलाफ अापराधिक मामला दर्ज की अनुशंसा किया, इसके बाद श्री लालू प्रसाद ने शुरू में आपराधिक मामला दर्ज करने का आदेश नहीं दिया तथा दिनांक 31 जनवरी 1996 को अपने लिखित आदेश में कहा कि आगे की कार्रवाई करने के लिए पहले सभी तथ्यों को एकत्रित किया जाय। बाद में मुख्यमंत्री श्री लालू प्रसाद ने वित्त आयुक्त के उपरोक्त सुझााव को मानते हुए आपराधिक मामला दर्ज करने का आदेश दिया।

कार्रवाई के बाद भी अभियुक्त बने लालू

कई जिलों के उपायुक्तों के द्वारा पशुपालन विभाग में अवैध तरीके से अधिक निकासी बात सामये आयी। इस बात को तब वित्त आयुक्त रहे विजय शंकर दूबे के समक्ष रखा गया। दो दिनों के बाद दूबे ने अपने बास यानी तब के मुख्य सचिव ए के बसाक को लिखा। 25 जनवरी को बसाक ने दूबे को वापस लिखा कि उसने इस मसले पर सीएम के साथ चर्चा किया है और उन्होंने(सीएम ने) एक टीम का गठन कर केवल चाईबासा ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में किये गये अधिक निकासी का जांच करने को कहा है।

सीबीआई की नजर में लालू राज में बिहार के मुख्य सचिव विजय शंकर दूबे पाक साफ

उसी दिन मुख्य सचिव ने विजय शंकर दूबे की अध्यक्षता में एक टीम का गठन किया जिसमें अतिरिक्त वित्त आयुक्त शंकर प्रसाद और तब विकास आयुक्त रहे फ़ूलचंद सिंह शामिल थे। इस टीम ने तीन दिनों तक मामले की प्राथमिक जांच की और बड़े घोटाले का पता लगाया। 31 जनवरी को इस टीम द्वारा अनुसंधानित प्राथमिक जानकारियों को लालू के समक्ष लाया गया, जिन्होंने एक सप्ताह के अंदर जांच करने का आदेश दिया था। जब दूबे उस दिन दोपहर में सीएम आफ़िस पहूंचे तब उन्होंने कहा कि यह एक्शन लेने का समय है, लालू ने उनकी सलाह मानते हुए फ़ाइल पर ही दोषियों के खिलाफ़ एफ़आईआर करने और गिरफ़्तार करने का आदेश जारी किया। अपनी स्वीकारोक्ति में दूबे ने स्वीकार किया है कि लालू ने तीन दिनों के अंदर जल्दी कार्रवाई करने और फ़ीडबैक देने का दबाव बनाया।

नौकरशाहों के भरोसे रहे लालू

चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी मामले में 23 अक्टूबर 2013 को अपने फैसले में जज प्रवास कुमार सिंह ने अपने फ़ैसले में लिखा है कि सीबीआई ने अदालत में ऐसा कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया जिससे चारा घोटाला में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के प्रत्यक्ष तौर पर शामिल होने का प्रमाण मिले। वह लालू के बचाव

पक्ष के वकील थे जिन्होंने ऐसे सबूत और दस्तावेज प्रस्तुत किये जिनसे उनकी जानकारी में यह बात आयी कि लालू घोटालेबाजों के खिलाफ़ नरमी के साथ कार्रवाई की और एक तरह से उनका बचाव किया।

उन्होंने (लालू प्रसाद यादव) 30 जनवरी 1996 को एक टिप्प्णी वित्त आयुक्त दूबे को भेजी तब अतिरिक्त वित्त सचिव विजयराघवन ने सभी जिला आयुक्तों को निर्देश जारी किया “यह स्पष्ट रुप से उल्लेखनीय है कि मुख्य्मंत्री

के द्वारा दिये गये निर्देशों के आलोक में आवंटन पत्रों के मामलों में कैसे डील करना है, इसके निर्देश भेजे जा रहे हैं और उन्होंने ही इस तरह के भुगतान पर रोक लगाने का निर्देश दिया है। (घोटाले के संबंध में सारे अलर्ट जारी किये जाने के बाद तत्कालीन विकास आयुक्त फ़ूल चंद सिंह भी बाद में चारा घोटाले में दोषी पाये गये और उन्हें जेल भेजा गया।) दोषियों के खिलाफ़ कार्रवाई करने और गिरफ़्तार करने का आदेश देने की भूमिका 1 फ़रवरी 1996 को अतिरिक्त वित्त आयुक्त द्वारा लिखे गये एक दूसरे पत्र में और अधिक स्पष्ट होती है जिसमें उन्होंने लिखा : “रांची, चाईबासा, जमशेदपुर, गुमला, देवघर, दुमका और लोहरदग्गा में अधिक निकासी की गयी है। इसके आलोक में निम्नांकित को मुख्य सचिव के द्वारा सीएम के सामने रखा गया कि सभी संबंधित जिलों में पदस्थापित ट्रेजरी के सभि अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से स्थानांतरित किया जाय क्योंकि बिना उनकी सहायता के इतने बड़े घोटाले को अंजाम नहीं दिया जा सकता। और जबतक इस मामले की जांच पूरी नहीं हो जाती है कि राज्य कोष से से और कितनी राशि की निकासी की गयी है तबतक ट्रेजरी के अधिकारियों को निलंबित रखे जायेंगे।

“इस प्रस्ताव को मुख्यमंत्री का आदेश प्राप्त है।“ और लालू ने क्या किया? यथासंभव जल्द से जल्द जांच पूरी कर दोषियों को जेल में बंद किया जाय। यह पत्र प्रसाद ने वित्त आयुक्त दूबे से मिलने के केवल एक दिन बाद किया।

उसी दिन प्रसाद ने पशुपालन विभाग के अतिरिक्त सचिव इन्द्र भूषण पाठक को सभी संबंधित जिलों के पशुपालन अधिकारियों को निलंबित करने का आदेश दिया। इस पत्र पर यह भी लिखा कि इसे आज ही किया जाय। “मुख्यमंत्री के आदेश के अनुसार”। कुल 28 पशुपालन अधिकारियों को अगले दो दिनों में निलंबित किया गया। 24 फ़रवरी के पहले छह पन्ने के अपने नोट में वित्त आयुक्त दूबे ने उल्लेखित किया कि वर्ष 1995 के नवंबर-दिसंबर और वर्ष 1996 के जनवरी यानी केवल तीन महीने के दौरान रांची ट्रेजरी से पशुओं के लिए दवाओं और चारा के नाम पर 30 करोड़ रुपए की निकासी हुई जबकि उस समय पूरे बिहार के लिए बजट का प्रावधान केवल 3 करोड़ रुपए था। उसी नोट में जिसे उन्होंने तब के मुख्य सचिव ए के बसाक को भेजा था दूबे ने खासकर बसाक से कहा था कि वे मुख्यमंत्री को पूरी कहानी बतायें और जांच का आदेश जारी करने को कहें।

27 जनवरी को बसाक ने लिखा कि मुख्यमंत्री के साथ चर्चा हुई। वह जानना चाहते थे कि विकास आयुक्त और वित्त सचिव के द्वारा इस पूरे मामले की जांच करवायी जा सकती है या नहीं। उन्होंने निर्णय लिया है कि यह जांच कमिटी को सारे तथ्य उपलब्ध कराये जायें और सभी विभागों को सूचित किया जाय कि वे इस कमिटी को सहयोग करें। उन्होंने यह भी कहा कि इस कमिटी की अनुशंसायें जल्द से जल्द समर्पित किया जाय ताकि आवश्यक कदम उठाये जा सकें।

“वित्त सचिव के अनुशंसाओं को स्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री ने सभी विभागों में हुए अधिक निकासी के जांच के आदेश दिया। तब मुख्यमंत्री ने यह भी कहा था कि उन्हें इस बात की जानकारी अवश्य दी जाय कि वित्त विभाग अधिक निकासी को लेकर क्या कर रहा है।“

“तब मुख्यमंत्री ने यह आदेश भी जारी किया था कि सभी ट्रेजरी को निर्देश दिया जाय कि वे समय पर एजी कार्यालय को अपना पूरा विवरण दें। वित्त सचिव खुद प्रत्येक खर्च की जांच करें और मुख्य सचिव के जरिये मुझे हर जानकारी से अवगत कराया जाय।“

“मुख्यमंत्री ने याद किया कि मार्च 1993 में अधिक निकासी के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। तब इस मुद्दे पर विधानसभा में यह चर्चा हुई थी। इसके आलोक में जिला और ट्रेजरी अधिकारियों के खिलाफ़ जांच कराया गया था। उन्होंने यह भी जानना चाहा कि बाद में उस मामले क्या कार्रवाईयां की गयीं। उन्होंने यह भी कहा कि मार्च 1995 में उन्होंने अंतिम समय में होने वाले निकासियों की जांच करने का आदेश दिया था। वित्त विभाग ने संभवतः कुछ तथ्य संग्रहित किया था। वह जानना चाहते थे कि उनके द्वारा दिये गये आदेशों का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं और इस संबंध में क्या-क्या कार्रवाईयां की गयीं।“

सच जानने और पूरे सिस्टम को सुधारने की इच्छा रखने वाले को अपराधी बना दिया गया वह भी तब जब वह जांच के आदेश दे रहा था।

 


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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