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दलित उद्यमिता की नयी उड़ान रविदास एयरलाइंस

जिंदगी के सभी क्षेत्रों में उड़ान भरना आज दलितों का सपना बन गया है। ऐसे ही एक  बड़े  सपने को साकार रूप दिया है, उपेंद्र रविदास ने। उन्होंने रविदास ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की स्थापना कर सफलता का नया कीर्तिमान बनाया। हाल ही में रविदास एयरलाइंस की स्थापना करके उन्होंने सफलता की एक नई उंचाई छूई। यह सब कुछ उन्होंने कैसे किया, बता रहे हैं नवल किशोर कुमार :

बहुजन उद्यमी श्रृंखला

बहुजन समाज वह तबका है जिसके लिए केवल रोटी, कपड़ा और मकान ही चुनौतियां रही हैं। लेकिन अब यह स्थिति बदल रही है। इस तबके के कुछ लोग  इन चुनौतियों से आगे बढ़कर उद्यमिता के क्षेत्र में  प्रवेश कर रहे हैं, अपनी पहचान कायम कर रहे हैं। इस श्रृंखला  के तहत हम देश भर के ऐसे ही सफल  बहुजन उद्यमियों की दास्तान आपके सामने रखेंगे, जिन्होंने अपने बूते शून्य से प्रारंभ कर अपने लिए एक मुकाम बनाया है- संपादक

 

उद्योग-धंधों के क्षेत्र में दलितों की उपस्थिति नगण्य है। इसकी कई वजहें हैं और चुनौतियों की लंबी सूची है। लेकिन उपेंद्र रविदास उन गिने-चुने उद्यमियों में हैं जिन्होंने इन चुनौतियों को अपना हथियार बनाया है। यही वजह है कि मात्र 37 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने रविदास ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज की स्थापना कर सफलता का नया कीर्तिमान बनाया है। इनकी सबसे महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में से एक रविदास एयरलाइंस है।

युवा उद्यमी उपेंद्र रविदास

उपेंद्र के मुताबिक उनकी यह परियोजना अब साकार होने वाली है। भारत सरकार के तय प्रावधानों के मुताबिक एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट समर्पित की जा चुकी है और इसके लिए आवश्यक वित्तीय प्रबंध भी कर लिया गया है। उपेंद्र बताते हैं कि आने वाले समय में एयरलाइंस सेक्टर में तेजी से वृद्धि होगी। खासकर घरेलू उड़ानों के मामले में संभावनायें अधिक हैं। इसलिए उन्होंने एयरलाइंस के क्षेत्र में उतरने का निर्णय लिया है।

उपेंद्र रविदास बताते हैं कि वे मूलत: बिहार के जमुई जिले के रहने वाले हैं। मुंबई, दिल्ली, बैंगलोर, चेन्नई आदि शहरों से पटना के लिए उड़ानों की संख्या बहुत कम है। इस कारण लोगों को परेशानी होती है। प्रारंभ में उपेंद्र मुंबई-पटना-दिल्ली के लिए बोइंग विमानों की सेवा शुरू करना चाहते हैं।

होश संभालते ही शुरू हो गई उपेंद्र की उद्यमिता

वर्ष 1980 में बिहार के जमुई जिले के बराजोर पंचायत के धोवियाकुरा गांव में जन्मे उपेंद्र बताते हैं कि उनके पिता लट्टु दास कलकत्ता में जूता बनाने का काम करते थे। तब उनके पास एक छोटी दुकान थी। उनके पिता अपने मजदूर साथियों के साथ मिलकर जूता बनाते थे। उपेंद्र भी उद्यमिता करना चाहते थे। इसलिए जब वे छठी कक्षा के छात्र थे तभी उन्होंने अपने पिता के काम में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला करीब दस वर्ष तक चला। इस बीच उपेंद्र ने अपने पिता की छोटी दुकान को वर्कशॉप में बदला और दास शूज मैन्यूफैक्चरिंग प्राईवेट लिमिटेड की नींव डाली।

रविदास इंडस्ट्रीज के संस्थापक व उपेंद्र रविदास के पिता लट्टु रविदास

कलकत्ता में अपनी कंपनी को स्थापित करने के बाद उपेंद्र 1997 में देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई चले आये। इसके पीछे मकसद अपनी उद्यमिता का विस्तार करना था। लेकिन उपेंद्र ने मुंबई में अपना कारोबार शून्य से शुरू किया। प्रारंभ में उपेंद्र ने बांद्रा के इलाके में चाय की दुकान शुरू की। कुछ दिनों के बाद जूता बनाने की छोटी सी दुकान। इन छोटे-छोटे प्रयासों के बीच ही उपेंद्र ने रियल एस्टेट के क्षेत्र में भी हाथ आजमाया। वर्ष 2000-01 में उन्होंने अपनी पहली मल्टीस्टोरी इमारत खड़ी की।

उपेंद्र बताते हैं कि सफल उद्यमी बनने के लिए आवश्यक है कि आप अपने निश्चय के प्रति दृढ रहें। छोटी-छोटी चुनौतियों को लक्ष्य के रूप में लें और उन्हें पूरा करें। ऐसा करके ही आप एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं। उपेंद्र के अनुसार उन्होंने यही किया। उनके सपने बड़े थे लेकिन इस सपने को पूरा करने के लिए पूरे धैर्य के साथ कार्य किया।

प्रारंभिक चुनौतियां

वर्तमान में उपेंद्र रविदास एक साथ सात कंपनियों के मालिक हैं। इनमें रविदास इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड, रविदास इंडस्ट्रीज लिमिटेड, रविदास मेटल प्राइवेट लिमिटेड, रविदास इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, रविदास बिल्डर्स एंड डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड, रविदास मिनरल रिर्सोसेज प्राइवेट लिमिटेड और रविदास एयरलाइंस लिमिटेड शामिल है। अपने प्रारंभिक चुनौतियों के बारे में उपेंद्र बताते हैं कि वित्तीय चुनौती सबसे बड़ी चुनौती थी। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती प्लानिंग की होती है। जब आप दलित वर्ग से आते हैं तो कोई मार्गदर्शक नहीं होता है। किस काम के लिए किससे संपर्क किया जाय और कहां जाया जाय, कोई बताने वाला नहीं होता। लेकिन यदि अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर एक-एक कर इन चुनौतियों का सामना किया जाय तो निश्चित तौर पर सफलता मिलती है।

कम पढ़ा-लिखा होना भी नहीं बना रोड़ा, सहयोगियों ने की मदद

यह पूछने पर कि आपने केवल मैट्रिक तक की पढ़ाई की और उद्यमिता के क्षेत्र में आगे बढ़े, इससे कोई परेशानी नहीं हुई, उपेंद्र ने बताया कि परेशानी तो अवश्य हुई लेकिन कर्मठ व ईमानदार सहयोगियों ने बड़ी मदद की। पहले अंग्रेजी में लिखे दस्तावेज समझने में परेशानी होती थी, परंतु चार्टड एकाउंटेंट और वकीलों ने काम आसान कर दिया। अब कोई परेशानी नहीं होती है।

काम आयी आंबेडकर की प्रेरणा

उपेंद्र बताते हैं कि बाबा साहब आंबेडकर ने दलित उद्यमिता को सबसे महत्वपूर्ण माना है। वे चाहते थे कि दलित शिक्षित होकर संगठित बनें और अपने सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक अधिकारों के लिए संघर्ष करें। उपेंद्र के अनुसार आंबेडकर की यही पंक्ति उन्हें हमेशा प्रेरित करती रही है। वे कहते हैं कि दलित वर्ग के लोग अधिक से अधिक शिक्षित हों। आबादी के अनुपात में सरकारी नौकरियों में अवसर बहुत कम हैं। इसलिए दलितों को उद्यमिता के क्षेत्र में भी आगे आना चाहिए।

सरकारी योजनाओं को जानें और इस्तेमाल करें

उपेंद्र बताते हैं कि हाल के वर्षों में भारत सरकार द्वारा दलितों को उद्यमिता के क्षेत्र में प्रोत्साहित करने के लिए कई योजनायें चलाई जा रही हैं। यहां तक कि बड़ी परियोजनाओं के लिए भी सरकार द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी जा रही है। इसके अलावा ठेका प्रणाली में भी आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है। ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि दलित वर्ग के युवा इन योजनाओं और नीतियों को जानें और अमल में लायें। सफलता मिलेगी ही।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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