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धर्म और सांप्रदायिकता

सांप्रदायिक घृणा आधारित राजनीति जोरो पर है। धर्म के नाम पर लोगों के दिलों में नफरत का जहर बोया जा रहा है। जो लोग धर्म के नाम पर मुसलमानों से घृणा करते हैं क्यों वही लोग अक्सर दलितों से भी उतनी ही घृणा करते हैं, एक अत्यन्त मार्मिक संवाद शैली में इसका विश्लेषण कर रहे हैं, ईश मिश्र :

प्रिय शिव,

तुम्हारा सवाल कि मुसलमान अपने धर्म के बारे में आलोचना नहीं करता और हिंदू धर्म की बुराई से मुल्क के बाहर मुल्क की बदनामी होगी। पहली बात तुम्हारी दुनिया बहुत छोटी है, कितने मुसलमानों को जानते हो? इतिहासकार प्रो. इरफान हबीब के घर पर अनेकों बार कठमुल्ले पत्थरबाजी कर चुके हैं, वे मेरी तरह नास्तिक हैं। तुमने पढ़ा होगा पाकिस्तान में मशाल खान नामक तर्कवादी शोधछात्र की हॉस्टल में इस्लामी तालिबानों ने मॉबलिंचिंग कर हत्या कर दिया था। हिंदुत्व तालिबान (आरएसएस) और इस्लामी तालिबान का धर्म या धार्मिकता से कुछ नहीं लेना-देना है, इनका काम धर्मिक उन्माद फैलाकर धर्म के नाम पर राजनैतिक लामबंदी है। उत्तर भारत में गोरक्षा के नाम पर हिंदू वाहिनी के लंपट हत्याएं कर रहे हैं और मेघालय का भाजपाई मुख्यमंत्री प्रेस कांफ्रेंस करके लोगों को आश्वस्त करता है कि वह गोमांस रियायती दरों पर उपलब्ध कराएगा। मणिपुर का एक भाजपाई एमएलए चुनाव प्रचार में गोहत्या करते हुए अपनी तस्वीर के साथ पोस्टर चिपकवाया था। गोवा के भाजपाई मुख्यनमंत्री पार्रिकर ने भी लोगों को आश्वस्त किया कि राज्य में गोमांस की कमी नहीं होने दी जाएगी। इसलिए हिंदुत्व या तालिबान की आलोचना हिंदू धर्म या इस्लाम की आलोचना नहीं, धर्म के फासीवादी, राजनैतिक इस्तेमाल की आलोचना है। तुम इस खबर से वाकिफ ही हो कि गोंडा जिले में योगी की युवावाहिनी के दीक्षित जी गोहत्या करते पकड़े गए थे, न पकड़े जाते तो क्या होता? आसपास के कितने मुसलमान गांव जलते कितनी हत्याएं होतीं? दीक्षितजी पर गोरक्षकों का खून क्यों नहीं खौला? हैदराबाद में हिंदुत्व के सिपाही गोल टोपी पहनकर पाकिस्तानी झंडा फहराते पकड़े गए थे, हिंदुत्व राष्ट्रवादियों का खून तब भी नहीं खौला? उनका खून मुसलमानों और दलितों (ऊना, सहारनपुर) पर ही क्यों खौलता है?

सांप्रदायिकता के जहर से फैली हिंसा

तुम जानते ही हो कि जब भी घर जाता हूं, तुम्हारे घर मौका निकालकर कम-से-कम एक बार जरूर जाता हूं, लालू (तुम्हारे पिताजी) छात्रजीवन से ही मेरे मित्र हैं उनके तंत्र-मंत्र से मतभेदों के बावजूद। तुमसे कभी मुक्तसर बात नहीं हुई। तुम्हारे अग्रज, मुन्नू (आचार्य हर्षवर्धन) से बात होती थी, इसबार (जून, 2017) मैंने एक रात बाग की तुम्हारी गोशाला वाली कुटी पर बिताया, तुम्हारे अग्रज रामानंद ने मेरे मना करने पर भी अपनी मच्छरदानी मेरे विस्तर पर लगा दिया। पहली बार रामानंद से लंबी बात-चीत हुई। फिर वह समकालीन दुनिया में छपा शिक्षा और ज्ञान पर मेरा लंबा लेख पढ़ने लगा, मैं एक पुस्तक। उपरोक्त पोस्ट एक कमेंट कि हिंदू राष्ट्र को भारतीय राष्ट्र मान लेना चाहिए, पर कमेंट है। हिंदू राष्ट्र का नारे संविधान के प्राक्कथन का उल्लंघन है और संवैधानिक जनतंत्र में संविधान में निष्ठा ही राष्ट्रवाद है इसलिए हिंदू-राष्ट्रवाद राष्ट्र-द्रोह। वैसे हिंदू तो कोई पैदा नहीं होता कोई बाभन पैदा होता है कोई चमार। दोनों एक-दूसरे से रोटी-बेटी का रिश्ता नहीं रखते। अपनी बात 2004 में गांव के एक अनुभव से खत्म करता हूं। गांव से हम और लालू चौराहे पर चाय पीने निकले, योजना सुम्हाडीह या पवई जाने का था, लालू को कुछ खरीदना था। गांव से निकलते ही 2 लोग और साथ हो लिए, 13 साल हो गए, भूल गया कौन? यह इस कहानी में महत्वपूर्ण भी नहीं है।

सांप्रदायिकता दंगों की शिकार महिलाएं

गांव (सुलेमापुर) के चौराहे से पहलें राममिलन सिंह के घर के सामने ये लोग चमरौटी के सुआरथ (तत्कालीन प्रधानपति) से गांव की किसी ‘राजनीति’ पर बातचीत करने लगे। मैं आगे निकल गया और चौराहे पर पहली चाय की दुकान पर 4 चाय का ऑर्डर दे दिया। मुझे पता नहीं था कि दुकान सुआरथ की थी, पता होता तब भी मैं वहीं चाय पीता। लालू ने संध्या-वंदना और एक ने मुंह में गुटका होने के बहाने और एक ने किसी और बहाने वहां चाय पीने से इंकार कर दिया। सुम्हाडीह पहुंच कर हमने तीन-तीन चाय पी। अगले दिन गांव में यह खबर थी। अगली शाम मैं नरवा पे मधुसूदन भाई से मिलने जा रहा था। रास्ते में रामराज भाई के घर कोई कार्यक्रम था, बाहर भट्ठे पर भोजन पक रहा था। उन्होने मुझे रोक कर कहा कि यह सब दिल्ली में चलेगा, यहां नहीं। मैंने कहा क्यों? मै नियमित रहता नहीं लेकिन गांव जितना उनका है, उतना ही मेरा भी। रामराज जी ब्राह्मण होने के बावजूद कितने सच्चरित्र हैं जानते हो? संपत्ति के लिए उनकी विधवा भाभी को किसी मुसलमान ने नहीं, उन्होंने अपने भांजे के साथ मिलकर मार डाला था। सारा गांव जानता है। कुछ दिन उनके यहां लोगों ने खान-पान बंद कर दिया था, बाद में सब पाप मॉफ। बताओ कौन हिंदू है, सुआरथ या उसकी दुकान पर चाय पीने से अपवित्र हो जाने वाले पंडित महेंद्रनाथ मिश्र? अगर दोनों हिंदू हैं तो यह भेदभाव क्यों? दलित महज वोट के लिए और दंगे करवाने के लिए हिंदू बन जाता है, वरना अछूत ही रहता है। तो बेटा हिंदू- मुसलमान से ऊपर उठकर चिंतनशील इंसान बनो। तालिबान और हिंदुत्व का धर्म से कुछ लाना-देना नहीं है, धर्म उनके लिए धर्मोंमादी राजनैतिक लामबंदी का साधन है। यह लोगों को हिंदू-मुसलमान; मंदिर-मस्जिद के विवाद में फंसाकर समाज के मुख्य संकट रोज-रोटी की समस्या से लोगों का ध्यान बंटाना है। मंदिर बनने से या दलितों और मुसलमानों को प्रताड़ित करने से रोजी-रोटी; गैर-बराबरी; गरीबी; नौकरियों की कटौती; ठेकेदारी आदि समस्याएं हल हो जाएंगी? देश के 1% लोगों का 99% संपत्ति पर कब्जा है। अडानी-अंबानी का विकास देश का विकास नहीं, विनाश है। लड़ाई गरीबी-अमीरी के बीच है, इसकी धार कुंद करने के लिए मंदिर-मस्जिद का मुद्दा इतना उछाला जाता है कि लोग धर्म की अफीम खाकर मगन रहें, हुक्मरान बेधड़क मुल्क-लूटते बेंचते रहें। बेटा, पढ़ो-लिखो, चिंतनशील इंसान बनो, धर्म को निजी पूजा-पाठ तक रखो, इसका राजनैतिक उपयोग मुल्क/मुल्कों को तबाह कर रहा है। इतिहास गवाह है, जब भी, जहां भी धर्म को राजनैतिक हथियार बनाया गया, वहां तबाही मची।


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लेखक के बारे में

ईश मिश्रा

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में राजनीति विज्ञान विभाग में पूर्व असोसिएट प्रोफ़ेसर ईश मिश्रा सामाजिक आंदोलनों में सक्रिय रहते हैं

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