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दलित पैंथर्स और महिषासुर पर केंद्रित फारवर्ड प्रेस की किताबें

फारवर्ड प्रेस की दलित पैंथर और महिषासुर विमर्श पर आधारित दो किताबें चर्चा में हैं। अंग्रेजी में ‘दलित पैंथर्स : एन ऑथरिटेटिव हिस्ट्री’ जहां दलित पैंथर के संस्थापकों में से एक जे वी पवार की आत्मकथात्मक अभिव्यक्ति है तो ‘महिषासुर मिथक एवं परंपराएं’ बहुजनों की संस्कृति से साक्षात्कार कराती है

हाल ही में फारवर्ड प्रेस बुक्स द्वारा ‘दलित पैंथर्स : एन ऑथरिटेटिव हिस्ट्री’ और ‘महिषासुर मिथक व परंरपराएं’ दो किताबों का प्रकाशन हुआ है। प्रस्तुत है क्रमश: दैनिक हिंदुस्तान व प्रभात खबर में प्रकाशित इनकी समीक्षाएं :

दलित संघर्ष का एक अध्याय

  • धर्मेंद्र सुशांत

दलित पैंथर भारत में आजादी के बाद की एक महत्वपूर्ण परिघटना है। इस संगठन और आंदोलन की स्थापना 29 मई 1972 को मुंबई में हुई थी। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के ‘पढ़ो, संगठित हो और संघर्ष करो’ के संदेश से प्रेरित इस आंदोलन के पीछे ज. वि. पवार, नामदेव ढसाल, राजा ढाले, अरूण कांबले, उमाकांत रणधीर, रामदास आठवले, के. बी. गमरे, अविनाश महातेकर, गंगाधर गाडे, दयानंद म्हस्के जैसे अनेक युवा थे।

दलितों-उत्पीड़ितों के अधिकार और अस्मिता के संघर्ष को इस आंदोलन ने काफी जुझारू तरीके से आगे बढ़ाया। यह दलितों की केवल आर्थिक उन्नति के लिए शुरू किया गया आंदोलन नहीं था, बल्कि उनके संवैधानिक अधिकारों को वास्तविकता में लागू कराने और उनकी स्वाधीनता, समानता और बंधुत्व को सुनिश्चित कराने का आंदोलन था। यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि दलित पैंथर आंदोलन ने तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में तूफान की तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, जिससे जातिगत श्रेष्ठता की थोथी दलील के जरिये दलितों के प्रति अन्याय और उत्पीड़न करने वाली शक्तियों को जबरदस्त चुनौती मिली। इसने सरकार को भी दलितों-वंचितों की समस्याओं के प्रति ध्यान देने को विवश किया। वास्तव में मुकम्मल लोकतंत्र को साकार करने का संघर्ष था, जो तमाम प्रगति के बावजूद दुर्भाग्य से आकाश कुसुम बना हुआ है।

दलित पैंथर अपनी स्थापना के लगभग पांच साल बाद भंग कर दिया गया। इसने व्यापक संभावनाओं को जन्म दिया था, इसलिए इतनी जल्दी खत्म हो जाना हतप्रभ करने वाला था। इसकी मुख्य वजह इस संगठन और आंदोलन से जुड़े कई लोगों में उत्पन्न विचलन थी।

यह पुस्तक इस आंदोलन का प्रामाणिक ब्योरा पेश करती है। इसके लेखक ज. वि. पवार इस आंदोलन के सह -संस्थापक रहे हैं।

(दैनिक हिन्दुस्तान ,11 फरवरी 2018)

http://epaper.livehindustan.com/story.aspx?id=2544136&boxid=102933262&ed_date=2018-2-11&ed_code=1&ed_page=13

किताब :  DALIT PANTHERS: An Authoritative History

लेखक : J. V. Pawar

मूल्य : 250 रूपए (पेपर बैक), 500 (हार्डबाऊंड)

पुस्तक सीरिज : फारवर्ड प्रेस बुक्स, नई दिल्ली

प्रकाशक व डिस्ट्रीब्यूटर : द मार्जिनलाइज्ड, वर्धा/दिल्ली, मो : +919968527911 (वीपीपी की सुविधा उपलब्ध)

ऑनलाइन यहां से खरीदें

https://www.amazon.in/gp/product/B079HZ51SN (paperback)

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नयी किताब बहुजन-श्रमण परंपरा

  • डॉ कर्मानंद आर्य

समाज, संस्कृति और इतिहास में रुचि रखनेवालों के लिए प्रमोद रंजन के संपादन में आयी पुस्तक ‘महिषासुर: मिथक और परंपराएं’  एक बेहद जरूरी पुस्तक है.

महिषासुर आंदोलन से संबंधित अनेक प्रश्नों और पाठकों की उत्सुकताओं को केंद्र में रखनेवाली किताब ‘महिषासुर: मिथक और परंपराएं’ हाल ही में फाॅरवर्ड बुक्स एवं दि मार्जिनलाइज्ड पब्लिकेशन, दिल्ली से प्रकाशित हुई है. प्रमोद रंजन के संपादन में आयी यह किताब पुराणों के वाग्जाल में फंसी हुई असुरों की महान परंपरा और प्रतिरोध का जीवंत दस्तावेज है, जो इस सत्य को प्रमाणिक तरीके से प्रस्तुत करती है कि असुर, नाग, यक्ष, द्रविड़, आर्य आदि अनेक प्रजातियों वाले इस देश में कोई एक सांस्कृतिक परंपरा नहीं रही है.

समय के साथ आर्य-द्विज संस्कृति ने अपने को एक श्रेष्ठ सर्वमान्य वर्चस्वशाली संस्कृति के रूप में प्रस्तुत किया और अन्य संस्कृतियों को हेय ठहराने की कोशिश की. इस किताब के विभिन्न लेख वर्चस्वशाली संस्कृति के श्रेष्ठता के दावे का पर्दाफाश करते हैं.

यह पुस्तक छह खंडों में है. पहले खंड ‘यात्रा वृतांत’ में प्रमोद रंजन और अन्य लेखक ‘महोबा में महिषासुर’, ‘छोटानागपुर में असुर’ और ‘राजस्थान से कर्नाटक वाया महाराष्ट्र-तलाश महिषासुर की’ शीर्षक यात्रा वृत्तांतों में महिषासुर के पुरातात्विक साक्ष्यों और जन परंपरा में उनकी उपस्थिति की खोज करते हैं.

दूसरा ‘मिथक एवं परंपराएं’ में ‘गोंडी पुनेम दर्शन और महिषासुर’, ‘हमारा महिषासुर दिवस’, ‘दुर्गा सप्तशती का असुरपाठ’, ‘महिषासुर: एक पुनर्खोज’, ‘कर्नाटक की बौद्ध परंपरा और महिष’, ‘आदिवासी देवी चामुंडा और महिषासुर’, ‘बिहार में असुर परंपराएं’, ‘छक कर शराब पीते थे देवी-देवता’, ‘डॉ आंबेडकर और असुर’ शीर्षक से लेख हैं.

खंड चार में ‘असुर: संस्कृति व समकाल में असुरों का जीवनोत्सव’, ‘शापित असुर: शोषण का राजनीतिक अर्थशास्त्र’ व ‘कौन हैं वेदों के असुर?’ शीर्षक से रचनाएं हैं. पांचवां साहित्य पर केंद्रित है, इसमें जोतिराव फुले की प्रार्थना, संभाजी भगत का गीत, छज्जूलाल सिलाणा की रागिणी, कंवल भारती की कविताएं, रमणिका गुप्ता की कविताएं, विनोद कुमार की कविता और संजीव चंदन का नाटक ‘असुरप्रिया’ शामिल है.

परिशिष्ट में महिषासुर आंदोलन की झलकियों को जीवंतता के साथ प्रस्तुत किया गया है. समाज, संस्कृति और इतिहास में रुचि रखनेवालों के लिए यह एक बेहद जरूरी पुस्तक है.

(प्रभात खबर, 11 फरवरी 2018)

https://www.prabhatkhabar.com/news/रव-र-ग/story/1121936.html

किताब :  महिषासुर : मिथक और परंपराएं

संपादक : प्रमोद रंजन

मूल्य : 350 रूपए (पेपर बैक), 850 (हार्डबाऊंड)

पुस्तक सीरिज : फारवर्ड प्रेस बुक्स, नई दिल्ली

प्रकाशक व डिस्ट्रीब्यूटर : द मार्जिनलाइज्ड, वर्धा/दिल्ली, मो : +919968527911 (वीपीपी की सुविधा उपलब्ध)

ऑनलाइन यहां से खरीदें : https://www.amazon.in/dp/B077XZ863F


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बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

महिषासुर: एक जन नायक

महिषासुर : मिथक और परंपराएं

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार 

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

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