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लालू-तेजस्वी पर मुकदमे पर सीबीआई दो-फाड, सांसत में फंसी नीतीश कुमार की अंतरात्मा!

चारा घोटाले के मामले में जेल में बंद लालू प्रसाद और पहले उपमुख्यमंत्री के बाद अब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के लिए राहत की खबर है। इंडियन एक्सप्रेस की खबर सीबीआई की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है। साथ ही बिहार में राजनीतिक घमासान का सबब भी बन सकती है। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट :   

दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी दैनिक समाचार पत्र द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार रेलवे होटल घोटाला और बेनामी संपत्ति के मामले में लालू प्रसाद व उनके पुत्र तेजस्वी प्रसाद के खिलाफ मुकदमे को लेकर सीबीआई दो फाड़ में बंटा था। सीबीआई के विधिक इकाई ने अपनी रिपोर्ट में लालू प्रसाद व उनके परिजनों के खिलाफ ठोस प्रमाण नहीं होने की बात कही थी।  इस खबर के आने के बाद बिहार की राजनीति में भूचाल आ गया है। स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अंतरात्मा के सांसत में फंसने की पुरजोर संभावना है। वही अंतरात्मा जिसके कारण उन्होंने राजद महागठबंधन को किनारे कर भाजपा के साथ मिलकर रातोंरात नयी सरकार बनायी थी।

जनवरी 2017 में पटना में एक कार्यक्रम के दौरान लालू और नीतीश

बताते चलें कि इसी मामले में अभियुक्त बनाये जाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महागठबंधन से स्वयं को अलग किया था और सूबे में एनडीए सरकार अस्तित्व में आयी। कहा यह जा रहा है कि नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अपनी राह से हटाने के लिए साजिश रची। राज्यसभा के लिए नामित डॉ. मनोज झा ने नीतीश कुमार पर पलटवार किया है। दूरभाष पर बातचीत में उन्होंने कहा कि अब यह साफ हो गया है कि होटल घोटाला या बेनामी संपत्ति जैसा कोई मामला था ही नहीं। यह एक पर्दा था जिसकी आड़ में नीतीश कुमार ने अपने भ्रष्टाचार को छिपाने की कोशिश की। लुटियंस जोन में यह चर्चा का विषय है कि नीतीश कुमार की एक महत्वपूर्ण फाइल भाजपा के लोगों के पास है। इससे बचने के लिए उन्होंने यह षडयंत्र रचा बिहार की जनता के जनादेश के खिलाफ भाजपा को सत्ता में साझेदार बनाया।

वहीं इस मामले में जदयू की ओर से कोई बोलने को तैयार नहीं दिख रहे। इस क्रम में जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने सवाल सुनने के बाद बिना जवाब दिये फोन डिसकनेक्ट कर दिया। वहीं जदयू के अन्य नेताओं यथा राज्यसभा में जदयू के नेता आरसीपी सिंह, जदयू के विधायक श्याम रजक आदि से उनकी टिप्पणी जानने का प्रयास विफल रहा।

खैर बताते चलें कि सीबीआई दो तरह से कोई मामला अपने संज्ञान में लेती है। अधिकांश मामले सरकारों की अनुशंसा के आधार पर लिए जाते हैं, जिनमें प्राथमिकी पूर्व से ही दर्ज होते हैं। वहीं आर्थिक अपराध के मामलों में सीबीआई अपने पास जानकारी होने के बाद खुद भी पहल करती है। इस मामले में उसकी आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई और विधिक इकाई की प्राथमिक रिपोर्ट महत्वपूर्ण होती है।

गौर तलब है कि जून 2017 में सीबीआई की आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई ने लालू प्रसाद पर मुकदमा दर्ज करने का दबाव बनाया था। तब यह आरोप लगाया गया था कि रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने 2006 में  एक निजी कंपनी से रेलवे के होटल का लीज पर देने के लिए पटना में एक पॉश इलाके में करीब दो एकड़ जमीन लिया था। लेकिन तब सीबीआई की विधिक इकाई ने ऐसा करने से सीबीआई को रोका था।

लेकिन इसके बावजूद सीबीआई की आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई के दबाव पर आईआरसीटीसी के एक पदाधिकारी द्वारा एक मुकदमा दर्ज कराया गया जिसमें लालू प्रसाद पर सुजाता होटल प्राइवेट लिमिटेड के मालिक विजय कोचर और विनय कोचर व पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रेमचंद गुप्ता के साथ मिलकर षडयंत्र रचने का आरोप लगाया गया था।

महागठबंधन छोड़ भाजपा के साथ सरकार बनाने के पहले भाजपा नेताओं के साथ मुख्यमंत्री नीतीश

लालू प्रसाद पर यह आरोप लगाया गया था कि कोचर बंधुओं ने पटना में अपनी एक जमीन (इसी जमीन पर एक बिल्डर द्वारा शापिंग कॉम्पलेक्स बनाया जा रहा है) बाजार कीमत से भी कम कीमत पर मेसर्स डेलायट मार्केटिंग कंपनी को बेची, जिसके मालिक प्रेमचंद गुप्ता थे। बाद में इस कंपनी के सारे शेयर लालू प्रसाद के परिजनों के नाम कर दी गयी।

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक सीबीआई के विधिक इकाई ने सीबीआई को इस मामले में प्राथमिक स्तर पर जांच की अनुशंसा की थी। तब कहा गया था कि लालू प्रसाद के खिलाफ ठोस सबूत नहीं हैं। बीते वर्ष 21 जून को सीबीआई के विधिक सलाहकार ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस मामले में कोई ठोस वजह नहीं है। जमीन का लेन-देन भी सरकारी नियमों के तहत किया गया है और इसका रेलवे से कोई संबंध स्थापित नहीं होता है। यह भी स्थापित नहीं होता है कि आईआरसीटीसी द्वारा सुजाता होटल का लीज देने में तत्कालीन रेल मंत्री लालू प्रसाद की कोई भूमिका थी। विधिक सलाहकार ने यह भी कहा था कि कोचर बंधुओं ने अपनी जमीन मेसर्स डेलायट प्राइवेट लिमिटेड को फरवरी 2005 में बेची थी जबकि होटल का लीज उन्हें आईआरसीटीसी द्वारा करीब डेढ़ साल के बाद दिसंबर 2006 में दिया गया। वहीं इस कंपनी के शेयर 2011-2014 के दौरान लालू प्रसाद के परिजनों द्वारा सेबी द्वारा निर्धारित नियमों के तहत खरीदे गये।

सीबीआई के आर्थिक अपराध अनुसंधान इकाई द्वारा तैयार प्राथमिक रिपोर्ट के मुताबिक लालू प्रसाद आईआरसीटीसी के मामले में दखलंदाजी कर रहे थे और उसके पास रेलवे बोर्ड और आईआरसीटीसी के बीच हुए विभिन्न प्रकार के सूचनाओं के अदान-प्रदान से यह बात साबित होती है कि षडयंत्र के तहत 2004-05 के बीच कुछ निर्णय लिए गये। रिपोर्ट में कहा गया कि मंत्री को इस बात की जानकारी थी कि रेल की परिसंपत्तियों काे निजी कंपनी को दिये जाने की योजना है और वे आईअारसीटीसी द्वारा निविदा जारी किये जाने से लेकर उसके अनुपालन पर निगाह रख रहे थे। इसके अलावा सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि रेल मंत्री के तौर पर या बड‍़े पदों पर आसीन लोगों की प्रत्यक्ष भूमिका सामने नहीं आती है क्योंकि वे अपने लिए एक मुखौटा रखते हैं। इसके लिए सीबीआई की अनुसंधान इकाई ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इस पूरे मामले में मौखिक, दस्तोवज और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की जांच होनी चाहिए। इसी क्रम में सीबीआई के पहले आयकर विभाग ने लालू प्रसाद की पत्नी और पुत्र के नाम से ट्रांसफर की गयी जमीन को बेनामी जमीन कहा था और उन्हें पेशी के लिए बुलाया था।

बहरहाल सीबीआई के विधिक सलाहकार की टिप्पणी के बावजूद 5 जुलाई 2017 को सीबीआई ने लालू प्रसाद, उनके पुत्र तेजस्वी यादव, पत्नी राबड़ी देवी, प्रेमचंद गुप्ता की पत्नी सरला गुप्ता, विजय कोचर, विनय कोचर और आईआरसीटीसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक पी के गोयल के खिलाफ मुकदमा मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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