h n

आंबेडकर जयंती पर भूख हड़ताल करेंगे दलित, आदिवासी और ओबीसी शिक्षक

इलाहाबाद कोर्ट के फैसले को आधार बनाकर यूजीसी द्वारा विश्वविद्यालयों में शिक्षक नियोजन के मामले में आरक्षण को साजिश के तहत खत्म करने व एससी/एसटी एक्ट को कमजोर बनाने आदि के विरोध में देश भर के बहुजन वर्गों के शिक्षक आक्रोशित हैं। कल दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में आंदोलन को और तेज करने का निर्णय लिया गया। फारवर्ड प्रेस की रिपोर्ट :

देश भर के दलित, आदिवासी और ओबीसी वर्ग के शिक्षक केंद्र सरकार के हालिया फैसलों को लेकर आंदोलित हैं। बीते शनिवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के अतिथि गृह सभागार में ‘डायलॉग फॉर एकेडमिक जस्टिस’ के बैनर तले कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के दौरान देश भर से आये शिक्षकाें ने माना कि वर्तमान केंद्र सरकार संविधान प्रदत्त आरक्षण को खत्म करने की साजिश रच रही है। वहीं एससी/एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भी शिक्षकों ने गहरा रोष प्रकट किया।

दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते डॉ. भालचंद्र मुणगेकर

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम के दौरान राज्यसभा व योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉ. भालचंद्र मुणगेकर ने जोर देते हुए कहा कि मामला केवल आरक्षण खत्म करने तक सीमित नहीं है। वर्तमान केंद्र सरकार बहुजनों को समानता का अधिकार देने वाले संविधान को बदल देना चाहती है। वह बाबा साहब के द्वारा बनाये गये संविधान के बदले मनुस्मृति के आधार पर देश में शासन करना चाहती है, जिसके मूल में ही चतुवर्णी व्यवस्था है। डॉ. मुणगेकर ने कहा कि यूजीसी द्वारा 5 मार्च 2018 को जो अधिसूचना जारी की गयी, वह पूर्णरूपेण अनुचित है। इसका विरोध किया जाना चाहिए और देश भर के बहुजन शिक्षकों को आंदोलन करना चाहिए ताकि केंद्र सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को बाध्य हो।

उन्होंने विस्तार से बताते हुए कहा कि यूजीसी की अधिसूचना को यदि देश भर में लागू कर दिया गया, जैसा कि संकेत मिलते दिख रहे हैं, बहुजनों पर इसका विपरीत असर पड़ेगा। एक तरफ वे उच्च शिक्षा से वंचित किये जा रहे हैं तो दूसरी ओर उन्हें उच्च शिक्षा के क्षेत्र में प्रोफेसर, लेक्चरर और असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी भी नहीं मिलें, रोज-रोज नये मनमाफिक नियम बनाये जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि केंद्र सरकार संविधान को किनारे रखकर फैसले ले रही है। उन्होंने कहा कि देश के सभी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में 17.4 लाख शिक्षक हैं। इनमें से अनुसूचित जाति के केवल 102 लाख शिक्षक हैं। आवश्यकता है कि आरक्षण के हिसाब से दलितों की उच्च शिक्षा के क्षेत्र में हिस्सेदारी बढाई जाय। लेकिन बजाय इसके इसे खत्म किया जा रहा है। सरकार के फैसले बहुजनों के सामाजिक और आर्थिक विकास के पहिये को रोक देंगे।

कार्यक्रम के दौरान देश भर से आये दलित, आदिवासी और ओबीसी शिक्षक

इससे पहले अपने संबोधन में प्रो. सुरेंद्र कुमार ने कहा कि आज सभी बहुजनों के समक्ष सवाल है कि उनके बच्चे पढ़ लिखकर क्या करेंगे। जिस तरीके से केंद्र सरकार एक तरफ उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कम से कम बहुजन युवा आयें, इसके प्रयास कर रही है तो दूसरी ओर उनके नामांकन पर भी पहरा लगा दिया गया है। आज देश के तमाम संस्थानों का यही हाल है। आरक्षित वर्गों के छात्र-छात्राओं को फेलोशिप का लाभ नहीं मिल सके, इसके लिए पहले से ही यह तय मान लिया जाता है कि कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिला। नतीजा बैकलॉग रह जाता है।

कार्यक्रम को जेएनयू की प्रो. सोनाझरिया मिंज, प्रो. डी. के. लुबियाल, दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रो. शोभा राय, डॉ रजनीश, डॉ. विष्णु नाग व शोधाथी आशीष रंजन सिंह के अलावा 15 राज्यों यथा मिजोरम से प्रो. एस. एल. जंगू, अासाम से प्रो. रवि राजवंशी, पश्चिम बंगाल से प्रो. प्रेम बहादुर मांझी, मध्यप्रदेश से प्रो. राकेश कुमार परमार, आंध्रप्रदेश से प्रो. श्रीपतिरामुदू, उत्तरप्रदेश से प्रो. विक्रम हरिजन, प्रो. आलोक प्रसाद व प्रो. गौरव आंबेडकर, हरियाणा से डॉ. राजकुमार व शोधार्थी रेखा, उत्तराखंड से प्रो उदय, बिहार से डॉ. विनोद, जम्मू व कश्मीर से प्रो गोविंद, पांडिचेरी से प्रो प्रवीण व जेरोम समराज व एन. रवि सहित कुल 26 शिक्षक प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम के दौरान सर्वसम्मति से केंद्र सरकार के फैसलों के विरोध में चार प्रस्ताव पारित किये गये। इनमें आगमी 5 अप्रैल को देश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति कार्यालय के समक्ष धरना, अपने-अपने कैम्पसों में यूजीसी की अधिसूचना के बारे में जागरूकता अभियान चलाने, विरोध में ज्ञापन सौंपने और आगामी 14 अप्रैल यानी बाबा साहब की जयंती के मौके पर देश के सभी विश्वविद्यालयों में भूख हड़ताल करने का निर्णय शामिल है। कार्यक्रम का संचालन दिल्ली विश्वविद्यालय की विद्वत परिषद की सदस्य डॉ. लता ने किया। कार्यक्रम के आयोजन में जेएनयू के प्रो. राजेश पासवान की भूमिका महत्वपूर्ण रही।


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

एफपी डेस्‍क

संबंधित आलेख

यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...
साक्षात्कार : ‘हम विमुक्त, घुमंतू व अर्द्ध घुमंतू जनजातियों को मिले एसटी का दर्जा या दस फीसदी आरक्षण’
“मैंने उन्हें रेनके कमीशन की रिपोर्ट दी और कहा कि देखिए यह रिपोर्ट क्या कहती है। आप उन जातियों के लिए काम कर रहे...
कैसे और क्यों दलित बिठाने लगे हैं गणेश की प्रतिमा?
जाटव समाज में भी कुछ लोग मानसिक रूप से परिपक्व नहीं हैं, कैडराइज नहीं हैं। उनको आरएसएस के वॉलंटियर्स बहुत आसानी से अपनी गिरफ़्त...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...