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बीजेपी के साथ हम कभी नहीं जाएंगे : बाप

बहुजन आजाद पार्टी (बाप) बनाने वालों पर आरएसएस द्वारा वित्त संपोषित होने का आरोप लगाया जा रहा है। पार्टी के संस्थापक नवीन कहते हैं कि इस प्रकार का अनर्गल आरोप लगाने वाले न सिर्फ अपनी विश्वसनीयता खो रहे हैं, बल्कि बहुजन समुदाय का भारी नुकसान भी कर रहे हैं।  

बहुजन आजाद पार्टी के संस्थापक और आईआईटी ग्रेजुएट नवीन कहते हैं कि वे सभी पार्टियां जो सामाजिक न्याय की राजनीति करती हैं, यदि वे अपनी कथनी और करनी में फर्क को खत्म करें तो वे लोग उनके साथ खड़े हो सकते हैं। लेकिन भाजपा के साथ किसी भी सूरत में नहीं जाने की बात कहने वाले नवीन से हमारे संपादक (हिंदी) नवल किशोर कुमार ने बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश:

आपके मन में यह ख़याल कहां से आया कि हमें एक पार्टी बनानी है?

पार्टी बनाने का ख्याल वास्तव में एक या दो लोगों का नहीं था। 10-15 लोगों का एक समूह था। हम आपस में विचार विमर्श करते थे। जब हमलोग आईआईटी में थे जब बहुत सारे मित्र सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रहते थे। घटनाओं को देखते रहते थे। समाज में होने वाले सामाजिक अन्याय हमें भी प्रभावित करती थी। और फिर लगता था कि एक भागीदारी हमें निभानी चाहिए। उस समय बाबा साहब की बातें याद रहती थीं- ‘पॉलिटिकल इज द मास्टर की’। हम लोगों को लगता था कि जिस तरह की शिक्षा समाज के वंचितों को चाहिए, वह नहीं दी जा रही है। हम सभी गांवों से आते हैं और शिक्षा भी गवर्नमेंट स्कूल में ही हुई है। फिर वहां से आईआईटी तक की हमारी यात्रा। हम तुलना करते थे और सोचते थे कि शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार ठीक किया जाय।

बहुजन आजाद पार्टी के संस्थापक टीम के सदस्य नवीन आईआईटी, दिल्ली के छात्र रहे हैं

 

क्या आपको भी जातिगत भेदभाव का शिकार होना पड़ा?

इस तरह का तो कुछ ऐसा नहीं था कि मुझे कास्ट के नाम पर कभी डिस्क्रिमिनेशन झेलना पड़ा हो। लेकिन हाँ, बचपन में यह सब चीजें होती रहती थीं। ‘यू आर नॉट सपोज्ड टू गो टू दैट होम’! उस घर में आपको नहीं जाना है। अगर जाना भी है, तो एक सर्टेन एरिया है। डिफाइन्ड है, वहीं तक रहना है आपको। उसके आगे आप नहीं जा सकते! तो इस तरह की चीज थी। लेकिन जिस तरह का भेदभाव हमलोगों ने देश के कई हिस्सों में देखा है। चाहे वह गुजरात हो, मध्य प्रदेश  या फिर राजस्थान। इसके अलावा यूपी में अभी जो करेन्ट स्थिति चल रही है, उस टाइप से मैंने अपने गाँव में नहीं देखा!

हायर एजुकेशन में रिजर्वेशन पाने वाले छात्रों के खिलाफ एक माहौल बनाया जा रहा है। क्या इस तरह के माहौल से आप लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं?

हाँ, जरूर हुईं। मतलब जब मैं कॉलेज में ही था, तो कॉलेज के एक दोस्त के गेट पर ही लिखा पाया। हम सब सोकर उठे तो देखा – ‘एससी/एसटी आर नॉट अलाउड टू दिस कॉलेज’। मतलब गेट पर लिख दिया गया था कि आप लोग कॉलेज में आओ ही नहीं। यह आईआईटी दिल्ली का इंसिडेंट है। फिर इस बात को हम लोग डीन तक भी लेकर गए थे। हम (मैं) नहीं ले कर गए थे, मैं उस हॉस्पिटल में था। लेकिन मुझे इस बात की जानकारी बहुत बाद में मिली कि ऐसा अपने हॉस्टल में हुआ है।

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मतलब आप यह कह रहे हैं कि आईआईटी,दिल्ली के कैंपस में भी भेदभाव होता है।

नहीं! यह कहना गलत होगा। लेकिन हाँ, एक-दो इंसिडेंट इस प्रकार के हुए। और माइंडसेट जो है, ऐसा थोड़े ही है कि जो कैंपस से बाहर अलग रहेगा और फिर कैंपस के अंदर आते ही बदल जाएगा। कैंपस में आकर वह बदलता नहीं है। हाँ, लेकिन कहीं न कहीं वह कम है। वह अगर एम्स में देखें या फिर अन्य विश्वविद्यालयों में देखें तो आप पायेंगे कि आईआईटी में भेदभाव कम होता है। लेकिन हाँ, हमें यह डिस्क्रिमिनेशन से ज्यादा कम रिप्रेजेंटेशन जरूर खटकता है कि एससी/एसटी और ओबीसी वर्ग के प्रोफेसर नहीं मिलते। कोई इक्का-दुक्का असिस्टेंट लेवल पर मिल जाता है। तो मैं सोचता हूँ कि ऐसा क्यों होता है।

आप एक पार्टी बनाना चाहते हैं। आजकल गठबंधन की राजनीति का दौर है। आपने जो खाका खींचा है अपनी पार्टी का और भविष्य की राजनीति आपने बिल्कुल तय की होगी, उसमें क्या आपने सोचा है कि किस तरह की पार्टियों के साथ किस तरह के लोगों के साथ आप जाना चाहेंगे या फिर उनके साथ खड़े होना चाहेंगे?

जो मेन स्टीम की दोनों पॉलिटिकल पार्टियां हैं, उनके अलावा अगर कोई हो जो हमारे सामाजिक न्याय और बराबरी के विचारधारा की बात करे। ऐसे तो किसी के साथ गठबंधन काे लेकर हमलोगों  ने नहीं सोचा है।

 

मैं यह बात इसलिए पूछना चाह रहा हूं कि आज देश में दो दलों के आधार पर पूरे देश को चलाने की कोशिश की जा रही है।

(बीच में ही नवीन – हाँ.. हाँ… हाँ)

एक तरफ बीजेपी है और एक तरफ कांग्रेस है। लेकिन इसके अलावा जो दलित-ओबीसी की हिस्सेदारी है, सबसे बड़ी है। और सभी की निगहों इस पूरे वोट बैंक है। लेकिन इसके अलावा जो विचारधारा का सवाल भी है। आप अपने आप को किस विचारधारा के साथ खड़ा पाते हैं?

हाँ, मतलब वही बात है। हम फुले-आंबेडकर को मानते हैं। यही हमारा विजन है। लेकिन आप बात करें कि वर्तमान की राजनीतिक पार्टियों की तो हम लोगों के बारे में बहुत सी बातें हो रही हैं। हम लोगों का मानना यह है कि जो एजुकेशन सिस्टम को ठीक करने के लिए पूरी तरह से कमिटेड हो, जो मुफ्त और गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करता हो। जो कृषि सुधार की बात करता हो। जब मैं कृषि सुधार कहता हूं तो पूछना चाहता हूं कि आज अपने फार्मर सुसाइड क्यों कर रहे हैं? अगर वह इस बात को रखें कि देश में भूसंपदा का समान वितरण हो। आज की हालत क्या है। दलित और ओबीसी के पास कितनी जमीनें हैं। आंकड़ा निकालकर देखें। यह सच्चाई है अपने देश की। या जिसके पास जितना है उसका यूटिलाइजेशन कितने अच्छे से हो सके। इसके लिए हमें लगता है कि एजुकेटेड लोगों को आगे आना पड़ेगा।

अच्छा, क्या आपको लगता है कि यह जो दलित-ओबीसी-अादिवासियों की राजनीति करने वाले लोग हैं, कहीं न कहीं उनमें कुछ न कुछ कमी है? खासकर हम दलित राजनीति की बात करें। जैसे मायावती जी हैं। उनमें आप क्या खामियां पाते हैं?

देखिए, अभी किसी की खामियाें के बारे में कहना इमैच्यूरिटी होगी। मगर हाँ, हमें यह लगता है कि वह कमिटमेंट हमें नहीं दिखता है। समाज को बदलने के लिए, सोशल रिफार्म करने के लिए एक कमिटमेंट अंदर से होना चाहिए। जो युवाओं को लेकर, युवा शक्ति को लेकर एक बड़े बदलाव की जो बात करनी चाहिए, वह कहीं नहीं हो पा रही है। यह मुझे एक बड़ी कमी लगती है।

ऐसा क्यों लगता है आपको?

ऐसा इसलिए लगता है कि बातें… जैसे मैं खुद। फॉर एक्जाम्पल देता हूँ। हमलोगों ने बहुत बार एप्रोच किया क्योंकि जब हमलोग कॉलेज में आए तो हमें ऐसा लगता था कि लोग बहुत अपेक्षा और आशा भरी निगाह से देखते हैं। कोई जो भी बहुजनों की पार्टी है उनसे बहुत अपेक्षायें थीं। और कोई पार्टी जब इतनी अच्छी स्थिति में हो कि वह सरकार बनाये तब उससे अपेक्षा और अधिक हो जाती है। लेकिन जब आप खरे नहीं उतरते हैं तो कहीं न कहीं लोगों को ‘चीटेड’ फील होता है कि मेरे साथ धोखा हो गया है। और अब देखिए जैसे नॉमिनेशन भर देना। अब यही एक पार्टी है कि नॉमिनेशन भर दे और इस लड़ाई को लड़े नहीं। लड़ाई को लड़ने का मतलब है लोगों को जागरुक करना, उनके अधिकारों के बारे में बताना कि यह आपका अधिकार है। आपको यह इस तरह से मिल सकता है। आपका जो यह मताधिकार है इसको मतदान टाइप से मत कीजिए कि जैसे किसी को भी दान कर दिया। इस अधिकार का आप यूज़ कीजिए तो इस प्रतिबद्धता के साथ। यह मुझे कमी लगी। कहीं ना कहीं!

अभी पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष के साथ एक सांस्कृतिक संघर्ष भी चल रहा है। जैसे गाय का सवाल है, राम मंदिर का सवाल है, हिंदुत्व का सवाल है, लव जिहाद का मामला है। तमाम इस तरह के मुद्दों के संदर्भ में आप अपने को कहां देखते हैं?

मुझे बाबा साहब की कही हुई बात याद आती है। बाबा साहब ने कहा था कि जब अंग्रेज थे यहां पर, तब हम लोग सामाजिक और आर्थिक रूप से गुलाम थे। लेकिन अब जब इंडिपेंडेंट हैं तो जो बहुजन समाज है वह सामाजिक आर्थिक और उसके साथ-साथ सांस्कृतिक रूप से भी गुलाम हो गया है। मेरी अपील होगी कि पढ़ो मतलब जिस चीज को भी आप फॉलो करते हो, जिस भी रिलीजन को आप फॉलो करते हो। प्रश्न करो। अंधभक्त मत बनो।  

जैसे बीजेपी जो गाय की राजनीति करती है। इसको किस रूप में लेंगे आप?

बीजेपी राजनीति कर रही है, इसको मैं इस रूप में देखता हूँ कि वो नहीं चाहते कि लोग बात करें कि हमारे स्कूल में पढ़ाई क्यों नहीं हो रही है? शिक्षा व्यवस्था हमारी इस तरह बदहाल क्यों है? जो आपका यह मेडिकल सिस्टम है वह इंप्रूव क्यों नहीं कर रहा है? क्यों ऑक्सीजन की कमी के कारण हमारे बच्चे मर रहे हैं? क्यों सही इलाज नहीं हो पा रहा है? देश में शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर लगातार बढ़ता जा रहा है। उसको हम रोक नहीं पा रहे हैं। इंप्रूव नहीं कर पा रहे हैं। एग्रीकल्चर में सुधार क्यों नहीं हो रहा है? फिर रोजगार का सवाल है। पकौड़ा तलने के लिए बोल दिया जाता है। यह स्वीकार कीजिए कि यहां आप फेल हैं। इसको आप मान लीजिए। सोशल जस्टिस लागू नहीं कर पा रहे हैं, इसको आप मान लीजिए। पूरे देश में अत्याचार बहुत ही बढ़ती जा रही है। तो इन सब चीजों को भुलाने के लिए वे गाय और हिंदुत्व के मुद्दे उठाते हैं। और यही बताने के लिए हम लोगों को आना पड़ रहा है कि युवाओं को उनके राइट्स के बारे में, उनके अधिकार के बारे में बताएं। तब जाकर एक मजबूत राष्ट्र का निर्माण होगा।

अपने अन्य साथियों के साथ नवीन

 

दलित/ओबीसी/आदिवासी वर्ग के जो युवा हैं, उन युवाओं को अपने साथ कैसे जोड़ेंगे? क्या रणनीति है आपकी?

अपने युवाओं के लिए तो मैं इतना कहना चाहूंगा कि अगर मैं आप में वह आग है तो फिर आप अपने घरों की दीवारों पर लिखवा दीजिए कि हम इस देश के शासक हैं। और हमारे साथ मिल जाइए। और हम लोग मिलकर एक मजबूत राष्ट्र और एक विशाल राष्ट्र, एक विश्व गुरु का निर्माण करेंगे। हमारी यह शिकायत नहीं है कि यह पार्टी वह नहीं की, उस पार्टी ने यह नहीं किया। हम कहते हैं जो हो गया सो हो गया। अभी भी मेरा मानना है कि ओबीसी/एससी/एसटी अगर कमान अपने हाथ में ले ले और शिक्षा सुधार की बात करे, मेडिकल में सुधार की बात करे, उसे फ्री करने की बात करे,और क्वालिटी को मेंटेन रखते हुए एग्रीकल्चर में सुधार की बात करे तो बदलाव होकर रहेगा। अगर हम लोग सत्ता लेकर इन सब चीज पर काम करें। यह अपने लोग हैं। दर्द का रिश्ता है न!

आप इन मुद्दों को लेकर उनके बीच कैसे जाएँगे? क्या रणनीति है?

पहली बात यह है कि हम डायरेक्ट कनेक्ट होना चाहते हैं। हर जगह मैं युवकों को यही बोल रहा हूँ कि अगर आपको लगता है कि एक बहुत बड़े बदलाव किया जरूरत है, तो आप अपने यहां पर युवाओं को जोड़ें! फिर हमारे रिप्रेजेंटेटिव वहाँ जाएँगे, उन लोगों से बात करेंगे। उनको मोटिवेट करेंगे। फिर हम लोग साथ में काम करेंगे। तो हम लोगों की हर डिस्ट्रिक्ट में टीम तैयार हो रही है। हर डिस्ट्रिक्ट का मतलब केवल बिहार नहीं। देश के हर जिले में ऐसी टीम हम लोग तैयार कर रहे हैं, जहाँ पर एक रिप्रेजेंटेटिव होगा। वह युवाओं को जाकर गाइड करेगा। और मैं उन युवाओं से यह भी कहना चाहता हूँ कि जो यह कहते हैं कि मैं बहुजन आजाद पार्टी से जुड़ने के लिए क्या करूँ। मैं बोलता हूँ कि जाकर अपनी शिक्षा व्यवस्था पर बात करिए। वहाँ पर स्कूल में जाकर श्योर कीजिए कि आपके स्कूल में पढ़ाई हो रही है कि नहीं। आप जाकर हॉस्पिटल में यह श्योर कीजिए कि वहाँ पर इलाज अच्छे से हो रहा है कि नहीं। इलाज हो रहा है तो वहाँ पर दवाई है कि नहीं। यह चीजें जब आप वहाँ पर जाकर इंश्योर करेंगे। आप बहुजन आजाद पार्टी का हिस्सा बन जाएंगे। यह मेरा कहना है….!

आपने चुनाव लड़ने की बात कही है। तो यदि कोई बड़ी पार्टी आपके साथ आना चाहे तो आप क्या करेंगे?

अच्छा, प्लीज एक्सप्लेन कीजिए जब बड़ी पार्टी आप कहते हैं तो?

कोई भी बड़ी पार्टी? आप की पार्टी तो अभी छोटी है। कोई भी नेशनल पार्टी! चाहे वह लेफ्ट हो, चाहे बीजेपी हो, चाहे कांग्रेस हो! यदि आप बिहार में चुनाव लड़ेंगे। आपने कहा कि 2020 का चुनाव बिहार में लड़ेंगे। उस केस में कोई भी बड़ी पार्टी! चाहे जेडीयू हो, चाहे आरजेडी हो, चाहे बीजेपी है, तो किसके साथ जाना चाहेंगे?

मैं इस बात को ऐसे रखता हूं कि जो मुद्दे मैं उठा रहा हूँ, वह यह पार्टियां भी उठाती रही हैं। लेकिन कहीं न कहीं मुझे कमिटमेंट में वह प्रतिबद्धता नहीं दिखी इन लोगों में। इसलिए तो एक विकल्प लेकर हम लोगों को आना पड़ा। अगर नेशनल लेवल की जो पार्टियां हैं! जैसे- बीजेपी और कांग्रेस! बीजेपी के साथ तो कभी नहीं आना! मतलब बीजेपी के साथ तो कभी भी नहीं। वह तो फिर आइडियोलॉजी के साथ समझौता हो जाएगा। वह तो हम लोग कभी नहीं करेंगे। लेकिन बाकी यह पार्टियां हैं, मैं उन लोगों से यह कहना चाह रहा हूँ कि आप जिन मुद्दों को उठा रहे थे, उन्हीं मुद्दों को लेकर हम लोग भी आए हैं। हम लोगों का डायमेंशन अलग है। यह एक एजुकेटेड ग्रुप है। और मुझे कहीं न कहीं लगता है कि वहाँ पर उतने एजुकेटेड लोग नहीं हैं। तो उन लोगों का काम करने का तरीका अलग होगा। तो आप उस कमिटमेंट को लेकर बड़ी पार्टियों से समझौता न करके बहुजनों की आवाज को बुलंद करने के लिए अगर सड़कों पर आएँगे। तो हम लोग विचार करेंगे उस पर।

आपके ऊपर आरोप लगाया जा रहा है सोशल मीडिया पर, कि आप आरएसएस द्वारा फंडेड हैं। क्या कहना चाहेंगे ऐसे लोगों से?

ऐसे लोगों से मैं कहना चाहूँगा कि जो भी लिख रहे हैं। उन्हें विचार करना चाहिए। क्रेडिबिलिटी नाम की एक चीज होती है। लोग आपको उस नजर से देखते हैं। उन्हें लगता है कि आप जो लिख रहे हैं, वह सच्चाई होगी। तो अगर आप इस लेवल पर लिख रहे हैं तो एविडेंस के साथ लिखें। लोगों को गुमराह न करें। बहुजन समाज को गुमराह न करें।

क्यों गुमराह कर रहे हैं लोग?

मुझे इसकी इतनी जानकारी नहीं है कि क्यों गुमराह कर रहे हैं? लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि जो लोग यह कर रहे हैं, न वो कभी बहुजन समाज के हितैषी थे, न ही हो सकते हैं। वो दुश्मन हैं बहुजन समाज के!

(लिप्यांतर : पंडित प्रेम बरेलवी)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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