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ओबीसी-दलित-आदिवासी एका से झुका केंद्र, विश्वविद्यालयों में चलेगा पुराना रोस्टर

बीते 2 अप्रैल को ओबीसी, दलित और आदिवासियों का भारत बंद रंग लाया। बैकफुट पर आते हुए केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में इन वर्गों के साथ हकमारी को सही साबित करने वाले सुप्रीम कोर्ट के फैसले के संबंध में पुनर्विचार याचिका दायर की। साथ ही यूजीसी को पत्र लिखकर पुराने राेस्टर प्रक्रिया के आधार पर नियुक्तियां करने का निर्देश दिया गया है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्णय के आधार पर यूजीसी ने बीते 5 मार्च 2018 को अधिसूचना जारी कर देश भर में हड़कंप मचा दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया था। इस अधिसूचना के बाद दलित, ओबीसी और आदिवासी समुदाय के युवाओं के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में प्रोफेसर बनने पर सवाल खड़ा हो गया था। राष्ट्रीय स्तर पर इसके विरोध को देखते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार झुक गयी है। अब सरकार ने यूजीसी को उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की भर्ती में पुराने नियम अपनाने का निर्देश दिया है। साथ ही सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध करने हेतु याचिका दायर की।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय से आश्वासन मिलने के बाद अनशन तोड़ते एससी, एसटी, ओबीसी शिक्षक महासंघ, दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यक्ष प्रो. सुरेंद्र कुमार

इसके अलावा केंद्र सरकार ने यूजीसी को लिखे पत्र में कहा है कि सप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गयी है, इसलिए शिक्षक भर्ती में डिपार्टमेंट की बजाय पूरे संस्थान (विश्वविद्यालय, कॉलेज) को इकाई  मानकर भर्ती रोस्टर अपनाएं। सरकार ने पुनर्विचार याचिका का हवाला देकर यूजीसी को कहा है कि वह स्पष्ट कर दे कि शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया के दौरान उच्च शिक्षा संस्थान इसका ध्यान रखें। अब यूजीसी सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को पत्र लिखकर शिक्षकों की भर्ती में नए नियम की बजाय पुराने नियम अपनाने को कहेगा।

गौरतलब है कि यूजीसी की अधिसूचना जब  देश भर के ओबीसी, दलितों और पिछड़ों के लिए चिन्ता का विषय बनी हुई थी, तब योजना आयोग व राज्यसभा के पूर्व सदस्य भालचंद्र मुणगेकर ने इस मामले को लेकर इन्डियन एक्सप्रेस के एक लेख लिखा। यह लेख 12 मार्च 2018 के अंक में प्रकाशित हुआ था। 

प्रो. भालचंद्र मुणगेकर

अब जबकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर कर दिया है तब प्रो. मुणगेकर ने इसे दलित, ओबीसी और आदिवासियों की एकता की जीत की संज्ञा दी है। फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि वे केंद्र सरकार के प्रति आभार प्रकट करते हैं कि उसने देर से ही सही, देश के आरक्षित वर्गों के पक्ष में अनिवार्य हस्तक्षेप किया है। यदि अधिसूचना लागू हो गयी होती तो उच्च शिक्षा में दलित, ओबीसी और आदिवासी युवाओं का प्रवेश खत्म हो जाता। यह एक बड़ी जीत है। आने वाले समय में आरक्षित वर्गों की एकता और सुदृढ होगी और कोई भी इनके अधिकारों की हकमारी नहीं कर सकेगा।

यह भी पढ़ें : यूजीसी के विरोध में सड़क पर उतरें, अदालतों में जायें बहुजन : मुणगेकर

उधर दिल्ली विश्वविद्यालय एससी, एसटी और ओबीसी शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष प्रो सुरेंद्र कुमार ने बताया कि यूजीसी द्वारा जारी अधिसूचना के खिलाफ देश भर में आंदोलन चलाये गये थे। दिल्ली विश्वविद्यालय सहित देश भर के कई विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के शिक्षकों ने आंदोलन चलाया। इस क्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय में 14 दिनों तक उन्होंने अनशन किया। बीते 18 अप्रैल को मंत्रालय के उच्च पदाधिकारियों से आश्वासन मिलने के बाद उन्होंने अनशन तोड़ दिया।

उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल किये जाने के बाद यह तस्वीर तो साफ हुई है कि यूजीसी की मनमानी नहीं चलेगी। यदि कोर्ट सुनवाई के दौरान आरक्षित वर्गों के विरूद्ध फैसला सुनाएगी तब आंदोलन फिर से शुरू किया जाएगा। लेकिन किसी भी हालत में आरक्षित वर्गों के हितों की हकमारी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


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