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पहले किया एफआईआर दर्ज, अब शेर सिंह राणा की तस्वीर खोजने में लगी है बिहार पुलिस

बिहार पुलिस शेर सिंह राणा को नहीं पहचानती है। दिलचस्प यह कि वह उसका पता जानती है। लेकिन एफआईआर दर्ज होने के बाद भी हाथ डालने से बचना चाह रही है। नवल किशोर कुमार की रिपोर्ट

बीते 22 अप्रैल 2018 को मुजफ्फरपुर के पुलिस लाइन मैदान में शेर सिंह राणा ने जिला प्रशासन के प्रतिबंध के बावजूद कार्यक्रम को संबोधित किया। कार्यक्रम समाप्त होने के बाद डीएम और एसएसपी पुलिस लाइन पहुंचे और सार्वजनिक तौर पर बयान दिया कि शेर सिंह राणा की तस्वीर नहीं रहने के कारण उसे रोका नहीं जा सका। हद तो तब हो गयी जब स्थानीय लोगों के विरोध व हंगामे के कारण पुलिस ने एक मामला दर्ज किया। इसके तहत 27 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया गया। इनमें एक शेर सिंह राणा भी शामिल है। एफआईआर दर्ज होने के तीन दिन बाद भी मुजफ्फरपुर पुलिस का कहना है कि वे अभी शेर सिंह राणा की तस्वीर खोज रहे हैं।

मुजफ्फरपुर में रोक के बावजूद कार्यक्रम में भाग लेने के आरोप में दर्ज मुकदमे में अन्य अभियुक्तों के साथ शेर सिंह राणा

बता दें कि वीर कुंवर सिंह की 160वीं जयंती के मौके पर जहां एक ओर राजपूत जाति से आने वाले देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह बिहार की राजधानी पटना के मिलर हाईस्कूल मैदान में भाजपा के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाग ले रहे थे। वहीं दूसरी ओर शेर सिंह राणा जो भूतपूर्व सांसद फूलन देवी की हत्या के मामले में सजायाफ्ता है और ऊपरी अदालत से जमानत मिलने के कारण खुलेआम घूम रहा है, मुजफ्फरपुर में राजपूतों के कार्यक्रम में भाग ले रहा था। राणा को पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में दलितों का घर जलाये जाने व अत्याचार मामले में मास्टर माइंड बताया जाता है।

यह भी पढ़ें : फूलन देवी के हत्यारे व सहारनपुर हत्याकांड के मास्टर माईंड को नहीं पहचानती बिहार पुलिस!

शेर सिंह राणा के खिलाफ मुजफ्फरपुर के जिलाधिकारी धर्मेंद्र सिंह को ज्ञापन सौंपते निषाद समाज के प्रतिनिधि

रोक के बावजूद अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के कार्यक्रम में शामिल होने पर राणा सहित 25 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज किये जाने की बात अहियापुर थाना प्रभारी धनंजय कुमार ने कही। फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में थाना प्रभारी ने कहा कि यह प्राथमिकी उनके अपने बयान के आधार दर्ज किया गया है। आरोपियों पर जिला प्रशासन के आदेश का उल्लंघन करने का आरोप है। उन्होंने कहा कि शेर सिंह राणा के आगमन को लेकर कई संगठनों ने आपत्ति दर्ज कराई थी और शांति बनाये रखने के लिए एहतियात के तौर पर राणा को कार्यक्रम में भाग लेने से प्रतिबंधित किया गया था। लेकिन अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के बिहार प्रभारी रविन्द्र सिंह ने राणा को कार्यक्रम में शामिल कराया।

थाना प्रभारी धनंजय कुमार ने बताया कि उनके पास अभी भी शेर सिंह राणा की तस्वीर नहीं है। इसलिए उसके खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकी है। अन्य आरोपियों की पहचान की जा रही है।

भीम आर्मी के प्रदेश अध्यक्ष अमर आजाद

खैर इस पुरे मामले में निषाद समाज के स्थानीय नेता व नरेश सहनी के अनुसार मुजफ्फरपुर पुलिस का दोहरा चरित्र जगजाहिर हो रहा है। तकनीकी रूप से भी यह प्रशासन को कटघरे में खड़े करता है कि कार्यक्रम का आयोजन पुलिस लाइन के मैदान में हुआ और मैदान में बड़े-बड़े बैनर लगाये गये थे जिनमें शेर सिंह राणा को ‘हिन्दू हृदय सम्राट’ के रूप में तस्वीर के साथ प्रदर्शित किया गया था। इसके अलावा शहर के सभी मुख्य चौक-चौराहों पर पोस्टर लगाये गये थे। नरेश के मुताबिक जातिगत कारणों से मुजफ्फरपुर पुलिस शेर सिंह राणा पर हाथ डालने से बचना चाह रही है, यह इस बात से भी साबित होता है कि अहियापुर थाना प्रभारी धनंजय कुमार ने अपने ही बयान पर अपने ही थाने में दर्ज प्राथमिकी में शेर सिंह राणा का वर्तमान पता उल्लेखित किया है, जो रूड़की, उत्तराखंड में है। ऐसे में यह कल्पना से परे है कि पुलिस के पास शेर सिंह राणा के संबंध में जानकारी नहीं है। वहीं भीम आर्मी के बिहार प्रदेश के अध्यक्ष अमर आजाद मानते हैं कि शेर सिंह राणा को सत्ताीसन भाजपा के कहने पर स्थानीय प्रशासन ने संरक्षण प्रदान किया। इसकी एक वजह जातिगत भी थी।

निषाद समाज के स्थानीय नेता नरेश सहनी

बहरहाल यह तो साफ है कि शेर सिंह राणा के खिलाफ कार्रवाई करने से बचना चाह रही है। वह ऐसा क्यों कर रही है, यह सवाल भी जटिल नहीं है। मुजफ्फरपुर को उत्तर बिहार का सबसे प्रमुख जिला माना जाता है। यहां जातिगत वर्चस्व की राजनीति चलती रही है। संपूर्ण क्रांति के भी पहले साठ के दशक में दलितों और ओबीसी वर्गों के लोगों का जमीनी आंदोलन प्रभावकारी था। यही वजह थी कि जयप्रकाश नारायण ने मुसहरी प्रखंड में भूमि सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया था। नब्बे के दशक में मुजफ्फरपुर में ऊंची जातियों के वर्चस्व को झटका लगा था। लेकिन वर्तमान में एक बार फिर यहां ऊंची जातियों का वर्चस्व स्थापित हो गया है। शेर सिंह राणा के खिलाफ कार्रवाई नहीं किया जाना भी इसी ओर संकेत करता है।


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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