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दलित-दमन : किसके इशारों पर नाच रहा है यह नया हमलावर?

धार (मध्यप्रदेश) में सिपाही भर्ती में नौजवानों के सीने पर एससी-एसटी लिख दिया गया; बदायूं(उत्तर प्रदेश) में अमीरजादे की फसल काटने से मना करने पर दलित की सरे-शाम पीटकर चौराहे पर मूंछ उखाड़ दी और उसे जूते में पेशाब भरकर पिलाई गई। छत्तीसगढ़ में बलात्कारी झुंड ने दलित युवती के स्तन काट दिए। एमपी के शाजापुर और राजस्थान के भीलवाड़ा में परिवारों के साथ मारपीट के बाद दो दूल्हों को तलवारें दिखाकर घोड़ों से उतारा गया। इन चारों राज्यों में बीजपी का शासन है। घटनाओं के खौफनाक अंधेरों को देखती कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट :

 कौन हैं वे, रामसिह कौन/जो हर समय आदमी का नया इलाज ढूंढते रहते हैं/जो बच्चों की नींद में डर की तरह दाखिल होते हैं/जो रोज रक्तपात करते हैं और मृतकों के लिए शोकगीत गाते हैं? तुम किसका हाथ हो रामसिंह।” रामसिंह (वीरेन डंगवाल की एक कविता का अंश)

दलितों का दमन थम नहीं रहा। बस, हथियारों को नये हाथों में पकड़ा दिया गया है। नये रामसिंह को। लेकिन यह बात जितनी नयी है उससे ज्यादा बड़ी है इसकी नयी बनावट। उत्तर भारत में पिछले सौ घंटों की बात करें, दिन के उजालों में ही दलितों को बलात्कार, जमीन-झगड़ों, उनके (ऊंच-नीच) (समाजिक असमानता) होने के चलते, सिर उठाने के लिए मार दिया गया और जो बच गया उसको मानवीय सभ्यता को शर्मसार करने की हद तक सदा के लिए ख़त्म कर दिया गया।

5 मई 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव में राजपूत दंगाइयों ने उत्पात मचाया था. चमार परिवार के एक जले हुए घर का दृश्य

मध्य प्रदेश के संदर्भ से कुछ देर के लिए अलग बात करते हैं। यूपी में गोरखपुर से फैली हिंदू वाहिनी कम नहीं थी कि इसी बीच डेढ़ साल से सत्तारूढ़ दल की वामन, बजरंगी भुजाएं बाहें फैलाकर साथ फहराने लगीं, लगभग प्रतिनिधि बनकर। सच्चाई से दूर नये मौहाल का मौजूदा सत्तातंत्र सुर्खियों में रहने वाली सामाजिक, राजनीतिक “दबंगई” को समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं की गुंडई कह कर प्रचारित करता है- जबकि आज हालात पूरी तरह बदले हुए हैं। इस दुष्प्रचार में दक्षिणपंथ का पूरा सूचना तंत्र सारी ताकतें झोंक चुका है। लेकिन हकीकत में डेढ़ साल से पूरा देश समझ चुका है कि अब दलित-ओबीसी लामबंद हो रहे हैं।

बताते चलें कि बजरंगियों और मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ की संस्था हिंदू वाहिनी का मूल चरित्र वैसा ही है जैसा कि अलीगढ़ में जिन्ना प्रसंग में बुधवार शाम को दिखा। वाहिनी के लोगों पर आरोप हैं कि उन्होंने गुंडागर्दी की और मारपीट करके एएमयू चौक से भाग गए। जाहिर है पुलिस तंत्र उनके साथ ही था- उसने घायल लोगों (यहां समझें धर्म विशेष के) पर फिर डंडे बरसाए- पुलिस भाषा में “हल्का बल प्रयोग”! हिंदू वाहिनी की भाषा पर गौर करें। इस संगठन के उपाध्यक्ष आदित्य पंडित ने अल्टीमेटम के लहजे में कहा था, छात्र संघ को 48 घंटे का वक्त देते हैं। खुद जिन्ना की तस्वीर हटा दें। यदि छात्र तस्वीर नहीं हटाते हैं तो आदित्य अपने राष्ट्रवादी साथियों के साथ जिन्ना की तस्वीर उतार देगा।

विश्व हिन्दू परिषद का शक्ति प्रदर्शन

 बहरहाल, मूल घटनाओं पर आते हैं और समझते हैं कि बीजेपी के शासन वाले राज्यों में दलितों पर दमन का कैसा चक्र चला है सरकारी मशीनरी क्या कर रही है।

निम्नांकित बानगियां- एक हफ्ते या उससे कम समय की हैं :

सीने पर लिखी जात : मध्यप्रदेश के धार में कांस्टेबल भर्ती के दौरान अभ्यर्थियों के सीने पर एस-एसटी लिखने का शर्मनाक वाकया सामने आया। मेडिकल परीक्षण के दौरान कई अभ्यर्थियों के सीने पर जाति उकेरने का काम हुआ। प्रावधान है कि सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए सिपाही भर्ती में, क्रम से 168 सेंटीमीटर और 165 सेंटीमीटर ऊंचाई हो। मेडिकल भर्ती के मौके पर मौजूद अफसर अब तक सामने नहीं आए।

इस संवाददाता से धार जिला अस्पताल के सिविल सर्जन एस. खरे ने फोन पर पुष्टि की कि मेडिकल बोर्ड की कार्यवाही के दौरान अभ्यर्थियों के सीने पर जाति का उल्लेख किया गया। इसकी जांच की जाएगी।

यहां के पुलिस अधीक्षक बीरेंद्र सिंह ने सफाई दी, “पुलिस की ओर से जातियां लिखने का निर्देश नहीं है। भर्ती में सहूलियत के लिए ऐसा लिखा गया होगा। इसके पीछे गलत भावना नहीं है।” उन्होंने ये भी बताया कि भर्ती की प्रक्रिया 30 अप्रैल को खत्म हो गई। इसमें 206 महिला-पुरुषों का मेडिकल परीक्षण किया गया।

मामला बढ़ता देख, बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने 30 अप्रैल को ही बयान जारी करके कहा कि एससी-एसटी लिखने की घटना को जातिवाद की घृणित करतूत है। उन्होंने कहा इस मामले में दोषी अधिकारियों को फौरन दंडित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, एससी-एसटी मामलों में केंद्र सरकार ही गंभीर नहीं है इसलिए राज्यों में सरकारी तंत्र में नौकरशाहों में जातिवादी मानसिकता घर कर रही है। केंद्र सरकार की ओर से मोदी मंत्रिमंडल के रामदास अठावले आगे आए और कहा कि ये घटना निंदनीय है। इसके बारे में वह मुख्यमंत्री को पत्र लिखेंगे।

जूते में पेशाब भरकर पिलाई : उत्तर प्रदेश बदायूं जिले में दलित गांव के ही चार लोगों ने पहले उसके साथ पहले मारपीट की और फिर उसकी जाति का नाम लेकर गालियां दीं। पीड़ित का कहना है कि उसने इस बार एक रईस के खेतों से गेहूं काटने से इनकार किया था। जिस पर आरोपियों ने उसके साथ पहले खेत में मारपीट की फिर गांव के चौराहे पर ले जाकर उसे बांध दिया। फिर जूते पर पेशाब भरकर पीने को मजूबर किया। पीड़ित के शब्दों में, मैं शाम अपने खेतों में काम कर रहा था तभी गांव के चार लोग आए। उन्होंने मेरे साथ गालीगलौच की और पूछा कि मैं उनके खेतों में फसलों की कटाई क्यों नहीं कर रहा हूं। मैंने उन्हें बताया कि मेरे खेतों का काम पूरा हो जाने के बाद मैं उनका काम कर दूंगा। उन्होंने मुझे गालियां दीं और मुझे धक्का मारा, मुझे घसीटते हुए गांव में ले गए। पेड़ से मुझे बांध दिया और मेरी मूछों को नोचा। और जूते में पेशाब भरकर जबरन पीने पर मजबूर किया।

घोड़ों से उतारे दूल्हे, महिलाओं से मारपीट : ये मामले पिछले महीने यूपी से अलग है। मध्यप्रदेश में 29 अप्रैल को शाजापुर के कांजा गांव का दलित युवक को शादी के दौरान घोड़ी पर बैठा और जुलूस निकाला लेकिन जुलूस निकाले जाने से नाराज गांव के ही कुछ बदमाशों ने उन पर लाठी डंडों से हमला किया। जुलूस में शामिल महिलाओं तक को दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया। कई को चोटें आईं, गहने भी चोरी हो गए। पांच लोग पुलिस ने धरे हैं।

जुलाई 2016 में गुजरात के ऊना में मरी हुई गाय का चमड़ा निकालने पर दलित युवकों को पीटते कथित गौ-रक्षक

ऐसे ही राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में एक दलित दूल्हे को कुछ लोगों ने जबरदस्ती घोडे़ से उतार दिया और बारात को रोक दिया। गोवर्धनपुरा गांव में 29 अप्रैल को उदय लाल रेगर नाम के शख्स की शादी थी जो दलित-बहुजन समुदाय से है। जब इसकी बारात निकली तो कुछ लोगों ने बारात को रोक दिया और दूल्हे को घोड़े से नीचे उतारा। रेगर ने कहा करीब 35 लोगों ने बारात पर हमला किया। बारात का आगे जाने से रोक दिया और मारपीट की। पीड़ित पक्ष ने पुलिस को तुरन्त बुलाया लेकिन हमला करने वाले लोगों ने पुलिस के सामने भी उनके साथ मारपीट की। पुलिस ने अब तक 7 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है और बाकी के आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए तलाश कर रही है।

 बताते चलें कि इससे पहले 8 अप्रैल को भी नीमच (मध्य प्रदेश) जिले की मनासा तहसील के भदवा गांव में रसूखदारों को दलित दूल्हे का घोड़ी पर चढ़ना बर्दाश्त नहीं हुआ था जब घर के सामने से गुजर रहे दूल्हे को घोड़ी पर से नीचे उतरवा दिया गया।

जमीन का हक मारा : सिहोर मे दलित परिवारों को 17 साल से चल रही लड़ाई का गुस्सा फूट पड़ा लेकिन उनको निहत्था कर दिया गया। उनके पास के गांव में सीएम आए लेकिन उनकी लड़ाई का अंत नहीं हो रहा है। दिग्विजय सिंह के शासनकाल में 2001 में वासुदेव गांव के 25 दलितों को जमीन के पट्टे वितरण किए गए थे उसके बाद से ही उनको उस जमीन पर हक मिलना था। दलितों को डराकर उनकी जमीन हड़पी गई।  चेतना मंच के महामंत्री जसवंत सिंह से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि वह लोग 17 साल से न्याय के लिए लड़ रहे हैं मगर दबंगों ने आज तक जमीन से दलितों का हक नहीं दिया और सरकार आंख बंद करके बैठी है। नसरुल्लागंज के एसडीएम हरिसिंह चौधरी को स्थानीय लोग रोज घेर देते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान वासुदेव के नजदीक एक गांव पहुंचे तो सिर्फ अपरोक्ष से कहा कि दस साल से अधिक समय से जो जहां भी रह रहा है उसको वहां के जमीन का हक दिया जाएगा। समाधान कब निकलेगा कोई नहीं जानता।

बलात्कार, हत्या के बाद स्तन काटे : छत्तीसग़ढ के कोरिया जिले में दलित युवती से सामूहिक दुष्कर्म और हत्या के बाद हुई बर्बरता दहला देनी वाली है। मामले में तीन स्थानीय बलात्कारी संलिप्त थे। युवती की मां ने कहा, “मेरी बेटी के शरीर से उसके स्तन कटे हुए थे। गुप्तांग से खून बह रहा था, उसके पैर तोड़ दिए गए थे, शरीर लहूलुहान था। दरिंदों ने मेरी बेटी को तड़पा तड़पाकर मारा।”

एएसपी निवेदिता पाल ने कहा कि 24 अप्रैल की रात को युवती को बहला फुसलाकर मोटर साइकिल पर गाँव से बाहर ले जाया गया। उसके बाद मुख्य आरोपी ने पीड़िता के साथ कई बार बलात्कार किया। पहली नजर में कुछ संदेह था था। मेडिकल से खुलासा हुआ कि दुष्कर्म के बाद हत्या की गई। गंभीर घटना थी, कई टीमें बनाई गई। मुखबिर तैनात किए गए। गिरफ्तारी से साफ हुआ कि शव को पेड़ पर लटका गया ताकि मामले को आत्महत्या जैसा रंग मिले। युवक सिंह नाम के गांव के सरपंच ने कहा कि यह हैवानियत उन्नाव और कठुवा जैसी घटना से भयावह है।

समाज की चिंता : फिल्म अभिनेता अभिनेता पीयूष मिश्रा कहते हैं कि इस समय देश बहुत ही बुरे हालत से गुजर रहा है। दलितों पर हो रहे अत्याचार को देखें तो आजादी के बाद से कोई परिवर्तन नहीं हुआ। समाज के भीतर जाति का दंश अंदर तक घुल चुका है।

हमारे समय के उल्लेखनीय हिंदी कहानीकार राजकुमार राकेश ने कहा, जैसी सामाजिक विभेद की स्थिति बनी हुई है, उससे दलितों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों का रूप बदला है लेकिन वह बंद नहीं हुआ है। पचास साल पहले जैसी स्थिति से क्या कहीं भिन्नता है। इसका चेहरा और कुरूप हो गया। हां, मौजूदा दौर में हिंदू ताकतें (जो सही रूप मे हिंदूवादी ताकतें हैं) ये भ्रम बना रहे हैं वो दलितों के साथ खड़े हैं। लेकिन ऊपरी जातियों का वर्चस्व खत्म नहीं हुआ है। दरअसल  संघ-शक्ति (आसएसएस की) ने इस दौर में दलित-बहुजन को डराया भी है और उसका वोट भी लिया है, यह भोली जनता को बरगलाने में उसकी चाल है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अब शैक्षणिक स्तर पर दलित-बहुजन जिस तरह से ऊपर आया है, उससे भी हिंदूवादी ताकतें दलितों को लेकर हिंसक हुई हैं।

उत्तराखंड के बीएसपी के नेता प्रदीप जाटव ने कहा, जब से “केन्द्र में बीजेपी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार आई है दलितों पर अत्याचार और ज्यादा बढ़ गए हैं। आम चुनावों में देश हिसाब देगा।”

बिजनौर के दलित-बहुजन नेता रविंद्र सिंह ने कहा कि आज भगवा का झंडा उठाने वाले राम के नाम पर भगवा आतंक के बीच दलितों को निशाना बना रहे हैं। हमें यह बात अलग-अलग करके नहीं देखनी चाहिए कि इसके निशाने पर अल्पसंख्यक हैं। सच्चाई ये है दलित सबसे ज्यादा निशाने पर है।

यूपी में कांग्रेस के एमएलसी दीपक सिंह के अनुसार, अक्सर कहा यह जाता है कि सरकार का कानून व्यवस्था पर नियंत्रण नहीं रह गया है लेकिन यूपी जैसे राज्य में दलितों पर अत्याचार एक सजग कानून व्यवस्था की साजिश है।

हिंदी कवि और आलोचक सत्यपाल सहगल ने फोन पर इस संवाददाता से कहा,  “मुझे ऐसा लगता है कि इस समय जैसी दलित वरोधी मानसिकता चल रही है, वह समझती है ये उसके लिए पलटवार करने का यह सबके माकूल समय है। राजनीति में, बौद्धिकता में उसे (दलित को) बेदखल करने का उनकी साजिश पुरानी है- कि कैसे दलित-बहुजन के पूरे विमर्श की आवाज को कमजोर कर दिया जाए। ये जान लीजिए कि मौजूदा सत्ता के किसी भी रूप में बैठे हर ठोस या प्रतीक की अंदरूनी इच्छा दलित की आवाज को अप्रासंगिक बनाने की है। दलित- बहुजन समर्थन में खड़े जो भी दल हैं, वो चुनावी राजनीति और सत्ता की सियासत में कमजोर पड़े हैं- इसलिए विरोधी शक्तियां पूरी ताकत के साथ अपनी अंदरूनी नफरत को उगलने को आतुर हैं।“

(कॉपी एडिटर : नवल)


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चिंतन के जन सरोकार

 

लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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