h n

देशद्रोही नहीं हैं पत्थलगड़ी आंदोलनकारी : सोहन पोटाई

आरएसएस आदिवासियों को समूल नष्ट कर देना चाहती है। फारवर्ड प्रेस के संवाददाता तामेश्वर सिन्हा से साक्षात्कार में कांकेर, छत्तीसगढ़ के पूर्व भाजपा सांसद सोहन पोटाई मानते हैं कि आरएसएस जल-जंगल-जमीन के साथ उनके सांस्कृतिक पहचान को खत्म करने का प्रयास कर रही है

इन दिनों छत्तीसगढ़, झारखंड में आदिवासी समाज के लोग अपनी जमीन बचाने के लिए पत्थलगड़ी आंदोलन करके अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। सरकार इसे देशद्रोह का नाम देकर उन्हें प्रताड़ित कर रही है। दरअसल, उनकी जमीन पर जबरन कब्जा जा रहा है और आंदोलन को दबाने के लिए उन्हें देशद्रोही करार देकर उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। कांकेर, छत्तीसगढ़ के पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने आरएसएस और भाजपा पर आदिवासियों द्वारा चलाए जा रहे इस आंदोलन का दमन करने का आरोप लगाया है। पोटाई का कहना है कि राज्य सरकार आदिवासियों का हक छीन रही है और जब लोग इसके लिए आंदोलन कर रहे हैं, तो उन्हें देशद्रोही बता कर जेलों में डाल रही है। हाल ही में इस विषय पर फॉरवर्ड प्रेस के संवाददाता तामेश्वर सिन्हा ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत है संपादित अंश :

सोहन पोटाई, पूर्व सांसद, कांकेर

छत्तीसगढ़ सहित देश के अन्य इलाकों में आदिवासियों का आंदोलन चल रहा है। इसे आप किस नजर से देखते हैं? क्या आप इससे सहमत हैं?

देखिए, पत्थलगड़ी आज से नहीं। यह ब्रिटिश काल से चल रहा है। और पूरे ट्राइबल क्षेत्र में विशेष कर यह पत्थलगड़ी की प्रथा है। वहाँ पर पत्थलगड़ी कहते हैं। हमारे यहाँ शिवहार कहते हैं। या फिर उस को बदरूम के नाम से जाना जाता है। यह हमारे यहाँ रूढ़िगत परंपरा है। जो ट्राइबल पाँचवी अनुसूची क्षेत्र मेंआते हैं, रूढ़िगत परंपरा सर्वोपरि है। यह काम कोई नया नहीं हो रहा है। यह पहले का कार्यक्रम है। जिस तरह से अभी जसपुर क्षेत्र में धर्मांतरण की बात कही जा रही है। सरकार का आरोप है कि धर्मांतरण हो रहा है। मैं सरकार से जानना चाहूँगा सरकार से कि जब वहाँ के लोग ऑलरेडी धर्मांतरण कर चुके हैं, तो आज धर्मांतरण करने का कोई औचित्य है ही नहीं। भाई वहाँ पर जितने उरांव थे, जो पहले धर्मांतरण कर चुके हैं। अब वो धर्मांतरण होने के बाद पुनः अपने ट्राइबल की रूढ़िगत परंपरा में पुन: लौट रहे हैं। इसे वे धर्मांतरण/देशद्रोह की, दुनिया भर की बातें कर रहे हैं। राष्ट्रद्रोह की बात कर रहे हैं। यह सरासर अन्याय है।

छत्तीसगढ़ में पत्थलगड़ी आंदोलन के क्रम में आदिवासियों द्वारा गाड़ा गया एक पत्थर (फोटो – तामेश्वर सिन्हा)

क्या आपको नहीं लगता कि पत्थलगड़ी आंदोलन से जल-जंगल-जमीन पर अपना अधिकार बचाए रखने के लिए नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के द्वारा आदिवासियों को सांस्कृतिक गुलाम बनाया जा रहा है, उसे रोकने का मकसद है। क्या यह भी एक साजिश है?

देखिए, यह जो हिंदुओं की बात कहते हैं। तो सुप्रीम कोर्ट भी कहता है कि ट्राइबल का हिंदू धर्म से कोई संबंध नहीं है। और हिंदू जो शब्द है… हिंदू कोई धर्म नहीं, बल्कि एक व्यवस्था है। यह सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है। तो फिर यहाँ पर धर्म और धर्म परिवर्तन की बात कहीं न कहीं सर्वथा अनुचित है। हम वहाँ फील्ड में भी गए थे। वहाँ हमने जो जाकर देखा तो ऐसा लगा कि वहाँ सद्भावना यात्रा के नाम पर दुर्भावना यात्रा निकाली गयी। वहाँ पत्थलगड़ी जो किए थे, उसमें किसी भी प्रकार का लेख नहीं लिखा गया था। केवल सीमेंट की दीवार बनाए हुए थे। उसमें कोई लिखा-पढ़ी नहीं हुई थी। उसको तोड़ दिया। ऐसा लगता है कि यह सद्भावना यात्रा नहीं, बल्कि दुर्भावना यात्रा है। और जो ट्राइबल की रूढ़िगत परंपरा है। उसको यह कुचलने का प्रयास है।

यह भी पढ़ें : पत्थलगड़ी आंदोलनारियों की मांगें जायज, सरकार बंद करे गिरफ्तारी : बाबूलाल मरांडी

सद्भावना यात्रा भी भाजपा के लोगों और आरएसएस द्वारा निकाली गई थी। तो एक तरह से जो है, पत्थलगड़ी आंदोलन आदिवासियों की संस्कृति का हिस्सा है। और इस को गुलाम बनाकर रखना चाह रहे हैं। कि संस्कृतिक खत्म करने के लिए एक दबाव बना रहे हैं?

बराबर (सही है), यह दबाव है। और इसमें चाहे वह आरएसएस हो। यह जो सरकार है भारतीय जनता पार्टी की। उसमें पूरा उन्हें सहयोग कर रही है। और सहयोग करके हमारी जो परंपरा है, संस्कृति है, हमारी रूढ़ि प्रथा है, उसको यह कुचलने का प्रयास कर रही है।

आप लंबे समय तक भाजपा के सांसद रहे। उसके बाद आपको भाजपा से निष्कासित किया गया। इसका कारण क्या यह था कि आप आदिवासियों को उनकी संस्कृति बचाने और उनको हिंदू साबित करने संबंधी आरएसएस के प्रयास के खिलाफ आवाज उठाना?

बराबर! मैं 2004 में जब सांसद था, तब से ही जहाँ ट्राइबल के खिलाफ अत्याचार होता था। उसको मैं बराबर जहाँ उचित होता था, पार्टी के मंच पर बराबर इस बात को मैं रखता था। और उसका उदाहरण आदिवासियों को आरक्षण कम करने , उसको हमने आंदोलन के रूप में रखा। परिसीमन के समय चार विधानसभा, एक लोकसभा (सीट) कम करने का जो प्रयास किया गया, उसके लिए भी हमने आंदोलन के माध्यम से विरोध किया। तो हमने सांसद रहते हुए भी जहाँ अन्याय हुआ, उसके खिलाफ हम लड़े। इसका परिणाम हो सकता है कि पार्टी को भाई नागवार गुजरा कि पार्टी में रहकर इस तरह से बात करते हैं। तो उन्होंने किया, इसके लिए तो हम भारतीय जनता पार्टी को धन्यवाद कहना चाहिए। हम साधुवाद भी देंगे। क्योंकि हम पार्टी में रहकर कई बातों को खुले मंच पर नहीं कर सकते थे, लेकिन आज हम जहाँ अन्याय हो रहा है, उसको खुले मंच पर कह रहे हैं।

 

आज आप आरएसएस की गतिविधियों को किस रूप में देखते हैं?

आरएसएस की गतिविधियाँ हैं कि भाई हमारे जितने भी ट्राइबल हैं। पहले आदिवासी भाजपा के पक्ष में थे। लेकिन दिनोंदिन आदिवासियों के अधिकार उनके संवैधानिक अधिकार, उनके जो जल-जंगल-जमीन पर जिस तरह से अतिक्रमण कर रहे हैं। अभी जसपुर क्षेत्र में बात करें, चाहे आपके राजगढ़ से लेकर सूरजपुर-बैकुंठ हो। पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ट्राइबल को जमीन को अधिग्रहण करके निजी कॉरपोरेट को दे रहे हैं। यह गलत है।

यह आरएसएस का सोचा-समझा प्लान है?

बिल्कुल! यह आरएसएस का प्लान है कि ट्राइबल आबादी को समूल नष्ट करना है। इसी सिलसिले में चाहे सरगूजा में कहें। बस्तर में कहें। बस्तर में भी जिस तरह से नक्सलाइटों की जो गतिविधियाँ जो चल रही हैं। यह सीधा-सीधा सरकार नहीं चाहती कि नक्सलाइट में मूवमेंट को पूर्ण रूप से समाप्त करे।

आज पाँचवी अनुसूची का अनुपालन नहीं हो रहा है ? इस मामले को किस नजर से देखते हैं?

मैंने पहले ही कहा है कि पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में ट्राइबल की जमीन है। ट्राइबल समुदाय का जो है ग्राम सभा… जो रूढ़िगत ग्राम सभा है। पंचायती ग्राम सभा नहीं होता है। जिसमें वहाँ का जो पटेल है, वह प्रमुख होता है। वहाँ पटेल होता है। गायता होता है। वहाँ का मांझी होता है। इनके माध्यम से होता है। उनकी अनुमति के बगैर कोई सरकार उस जमीन का अधिग्रहण नहीं कर सकती। न ही दूसरे को हस्तांतरण किया जा सकता है। लेकिन इसकी अनदेखी करते हुए सरकार जो कर रही है, और इसी के परिणामस्वरूप आज पत्थलगड़ी है। पत्थलगड़ी हमारे गाँव की सीमा है। पहले जैसे गाँव में कोतवाल होता था। तो गाँव में यदि किसी के यहाँ मेहमान आ जाता था, उसका एक मुसाफिरी होता था। उसमें गाँव का कोतवाल जो है, गाँव में जाकर कि किसके यहाँ कौन आया है? कहाँ का है? उसके नाम-गाँव का उल्लेख करके रिपोर्ट देता था। आजकल यह प्रथा खत्म हो गई है। लेकिन ट्राइबल है, जो पांचवीं अनुसूची  के क्षेत्र में कौन आदमी है? कहाँ का है? क्यों आया है? उसकी जानकारी रखने के लिए। क्योंकि सीमा जो बनाई जाती है। सीमा आज से नहीं पहले से ही है, ताकि हमको पता चले कि यह गाँव की सीमा है यह। मेरे गांव की जमीन है यह। मेरे गांव का एरिया है।

आदिवासी समाज की एक महत्वपूर्ण संस्था है जिसका आप प्रतिनिधित्व करते हैं। पत्थलगड़ी आंदोलन को लेकर आपकी क्या रणनीति है?

देखिए, अभी पत्थलगड़ी जो आंदोलन है। हमारे पाँच ट्राइबल के जो लोग हैं, जहाँ जसपुर से उनकी गिरफ्तारी हुई है। दो पूर्वा से गिरफ्तार किए हैं। अभी एक मानपुर से भी गिरफ्तार हुआ है। और 45 लोगों पर सूरजपुर में एफआईआर दर्ज हुआ है। और सभी के ऊपर लगभग राष्ट्रद्रोह की धारा लगाई गई है। जबकि कहीं भी हमने राष्ट्रद्रोह का कार्य नहीं किया है। बल्कि अपनी परंपरागत रूढ़िगत जो परंपरा है, उस को कायम रखने के लिए कार्य किया है। आदिवासी सर्वसमाज की बीते 9 मई की बैठक हुई थी, जिसमें लोगों ने  सरकार के दमनकारी नीति की निंदा की है। 14 मई तक उनको यदि बिना शर्त रिहा नहीं किया जाता है, तो 15 मई को पूरे प्रदेश में इसके लिए एक आंदोलन होगा। गिरफ्तारी हम करवाएँगे सभी लोगों की। लोगों की गिरफ्तारी होगी और उसके साथ-साथ हम पूरे प्रदेश में जहाँ-जहाँ पांचवीं अनुसूची का क्षेत्र है, वहाँ पर पत्थलगड़ी करेंगे।

क्या आपको लगता है कि अगले वर्ष लोकसभा चुनाव हैं, तो आदिवासी समाज के लिए क्या यह मुद्दा बनेगा?

देखिए, सरकार यदि चाहती है कि आदिवासी समाज के वोटर्स हाथ से खिसक रहे हैं। उसके लिए जिन्होंने भी एक प्रकार से हमारे पत्थलगड़ी को जो कुचला है या उसको क्षति पहुँचाया है, उनके ऊपर कार्रवाई करनी चाहिए।

 

(लिप्यांतर : प्रेम बरेलवी)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

तामेश्वर सिन्हा

तामेश्वर सिन्हा छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र पत्रकार हैं। इन्होंने आदिवासियों के संघर्ष को अपनी पत्रकारिता का केंद्र बनाया है और वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर रिपोर्टिंग करते हैं

संबंधित आलेख

सामाजिक आंदोलन में भाव, निभाव, एवं भावनाओं का संयोजन थे कांशीराम
जब तक आपको यह एहसास नहीं होगा कि आप संरचना में किस हाशिये से आते हैं, आप उस व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा...
दलित कविता में प्रतिक्रांति का स्वर
उत्तर भारत में दलित कविता के क्षेत्र में शून्यता की स्थिति तब भी नहीं थी, जब डॉ. आंबेडकर का आंदोलन चल रहा था। उस...
पुनर्पाठ : सिंधु घाटी बोल उठी
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर का यह काव्य संकलन 1990 में प्रकाशित हुआ। इसकी विचारोत्तेजक भूमिका डॉ. धर्मवीर ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि...
कबीर पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक 
कबीर पूर्वी उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर के जनजीवन में रच-बस गए हैं। अकसर सुबह-सुबह गांव कहीं दूर से आती हुई कबीरा की आवाज़...
महाराष्ट्र में आदिवासी महिलाओं ने कहा– रावण हमारे पुरखा, उनकी प्रतिमाएं जलाना बंद हो
उषाकिरण आत्राम के मुताबिक, रावण जो कि हमारे पुरखा हैं, उन्हें हिंसक बताया जाता है और एक तरह से हमारी संस्कृति को दूषित किया...