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जातिवाद व कट्टर हिंदूवाद ने की नाथ सम्प्रदाय की हत्या

जातिवाद और धार्मिक आंडबरों के विरोधी रहे नाथ सम्प्रदाय पर अाज एक जाति-विशेष का कब्ज़ा है। इन्होंने नाथ सम्प्रदाय की हत्या कर दी है। पढ़िए प्रद्युम्न यादव का शोध आलेख :

नाथ सम्प्रदाय की मठ परंपरा के संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ मीनपा थे, जिनका संबंध मछुआरा जाति से था। गोरखनाथ का अतीत देखने पर पता चलता है कि उनसे जुड़ी और उनके बाद नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी अनेक बातें बेहद संदिग्ध हैं। गोरखनाथ मठ के इतिहास में गोरखनाथ का जन्म मत्स्येन्द्रनाथ की कृपा से हुआ बताया जाता है। मठ की कथा के अनुसार, मत्स्येन्द्रनाथ ने एक निःसन्तान ब्राह्मण महिला को बच्चा होने के लिए भभूति दी थी। उस महिला ने मत्स्येंद्रनाथ के जाने के बाद भभूति को गोबर के ढेर पर फेंक दिया था। 12 वर्ष बाद जब मत्स्येन्द्रनाथ को अचानक वह महिला मिली तो उन्होंने उसकी संतान के बारे में पूछा। महिला ने झेंपते हुए उन्हें गोबर वाली बात बताई। मत्स्येन्द्रनाथ झल्ला उठे। उन्होंने गोबर के ढेर वाली जगह पर जाकर आवाज़ लगाई तो वहां से 12 वर्ष का लड़का सामने आया। मत्स्येन्द्रनाथ ने उस लड़के का नाम गोरखनाथ रखा।

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित गोरखनाथ मंदिर में गोरखनाथ की प्रतिमा

वस्तुतः गोरखनाथ किसी कथा का विषय न होकर एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व हैं। इन्हीं गोरखनाथ के नाम पर गोरखपुर को उसका नाम मिला। इन्हीं के नाम पर गोरखनाथ मठ की स्थापना हुई और इन्हीं के शिष्य थे राजा गोपीचंद और भर्तहरि। जोगियों के अनुसार गोपीचंद ने सारंगी का आविष्कार किया तथा राजा भर्तहरि वो व्यक्ति थे, जिन्होंने गोरखनाथ के प्रभाव से राजपाट का वैभव छोड़ दिया। जोगी आज भी अपने गीतों में राजा भर्तहरि का उल्लेख करते हैं।

यहां यह ध्यान देने की बात है कि गोरखनाथ के जन्म और जाति को छिपाया गया है और कबीर की तरह इन पर भी परोक्ष रूप से ब्राह्मणी की कोख से जन्म वाली कथा को थोपा गया है। गोरखनाथ मठ की कथा का कोई ऐतिहासिक और साहित्यिक आधार नहीं है। न ही वह वैज्ञानिक नज़रिये से उचित ठहराने लायक है। फिर भी, गोरखनाथ मठ इसी कथा को सत्य मानता है और आम लोगों में यही कथा प्रचलित है।

गोरखनाथ मठ में आरती करते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ

दूसरी बात जो सबसे अहम है, गोरखनाथ ने ब्राह्मणवाद व बौद्ध परम्परा में अतिभोगवाद तथा सहजयान में आई विकृतियों के खिलाफ विद्रोह किया था। वह हिन्दू और मुस्लिम, दोनों ही समुदायों में बेहद प्रभावी व्यक्तित्व थे। इसीलिए वे हिन्दू-मुसलमान एकता की नींव रख सके तथा नाथ सम्प्रदाय द्वारा ऊंच-नीच, भेदभाव और आडंबरों का विरोध किया। इसी वज़ह से नाथ सम्प्रदाय में मुसलमान तथा बड़ी संख्या में सनातन धर्म से अलगाव की शिकार रही अस्पृश्य जातियाँ भी शामिल हुईं। नाथपंथियों में वर्णाश्रम व्यवस्था से विद्रोह करने वाले सबसे अधिक थे। इन्हीं वज़हों से गोरखनाथ का प्रभाव कबीर, दादू, जायसी और मुल्ला दाऊद जैसे अस्पृश्य जातीय और गैर-हिन्दू कवियों पर भी माना जाता है।

तीसरी अहम बात यह है कि गोरखनाथ के बाद उनके उत्तराधिकारियों श्री वरदनाथ, तत्पश्चात परमेश्वरनाथ एवं गोरखनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करने वालों में प्रमुख रहे प्रबुद्धनाथ जी (1708-1723 ई), बाबा रामचंद्रनाथ जी, महंत पियारनाथ जी, बाबा बालकनाथ जी, योगी मनसानाथ जी, संतोषनाथ जी, मेहरनाथ जी महाराज, दिलावरनाथ जी, बाबा सुंदरनाथ जी, सिद्ध पुरुष योगीराज गंभीरनाथ जी, बाबा ब्रह्मनाथ जी महाराज तक के इतिहास में कुछ खास नहीं मिलता हैै। ये कौन थे, किस पृष्ठभूमि से थे, इस बारे में आज पता लगाना मुश्किल है।

दिग्विजयनाथ

अब आते हैं अंतिम बात पर। गोरखनाथ मठ का इतिहास अचानक ही राजस्थान के ठाकुर नान्हू सिंह यानी दिग्विजयनाथ के महंत बनने के बाद से मिलना शुरू होता है। यह शुरुआत में कांग्रेसी थे। बाद में गांधी जी द्वारा असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद इन्होने कांग्रेस छोड़ दी। आगे चलकर ये हिन्दू महासभा के सदस्य बन गए। 1935 में यह गोरखनाथ मठ के महंत बने और उसके बाद पहली बार मुस्लिम तथा अस्पृश्य जाति के जोगियों की संख्या में गिरावट आनी शुरू हुई। दिग्विजयनाथ के बाद 1969 में अवैद्यनाथ यानी कृपाल सिंह बिष्ट (पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड ) मठ के महंत बने और इनके बाद सितंबर, 2014  में आदित्यनाथ यानी अजय सिंह बिष्ट (पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड) को महंत बनाया गया। पौड़ी गढ़वाल के दोनों सजातीय महंतों का परस्पर क्या रिश्ता रहा है, इस पर तमाम कयास लगाये जाते हैं, किंतु वास्तविकता किसी को ज्ञात नहीं है, कभी बताया भी नहीं गया।

अवैद्यनाथ

 

इन तीनों महतों के आने के बाद तीन प्रमुख बातें देखने को मिलती हैं –

  1. गोरखनाथ मठ में तीन पीढ़ियों से क्रमशः एक ही जाति (ठाकुर) के महंत बनने की परंपरा कायम हुई।
  2. नाथ सम्प्रदाय हिन्दू-मुस्लिम एकता की पैरवी तथा ऊंच नीच एवं आडंबरों का विरोध छोड़कर कट्टर हिन्दू सम्प्रदाय बन गया।
  3. मुस्लिम और अस्पृश्य जाति के जोगियों की संख्या जो दिग्विजयनाथ के समय से कम होनी शुरू हुई, वह आदित्यनाथ के समय तक इतनी कम हो गयी कि ऐसे जोगी अब सार्वजनिक जीवन से लुप्त ही हो गए हैं।

जार्ज वेस्टन ब्रिग्स की पुस्तक  ‘गोरखनाथ एंड द कनफटा योगीज’ में उल्लिखित 1891 की जनसंख्या रिपोर्ट और इसी वर्ष की पंजाब की जनसंख्या रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 28,816 गोरखनाथी और 78,387 योगियों में 38,137 मुसलमान थे। आज हालत यह है कि उत्तर भारत, खासकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र से उनका पूरी तरह सफाया हो चुका है। गोरखपुर में जो थोड़े-बहुत मुसलमान जोगी बचे भी थे, वो अब हिन्दू युवा वाहिनी के डर से भगवा वस्त्र पहनना और सारंगी बजा कर गीत गाना छोड़ चुके हैं।

इस तरह उक्त तीन महंतों के कारण उत्तर प्रदेश में नाथ सम्प्रदाय अब अपने मूल स्वभाव को खो चुका है और कभी सामाजिक समरसता, बराबरी, धार्मिक एकता तथा सद्भाव की बात करने वाला यह सम्प्रदाय अब कट्टर हिंदुत्व की हिमायत करने वालों के हत्थे चढ़ कर मृत हो चुका है। यह विडंबना ही है कि जातिवाद के घोर विरोधी नाथ सम्प्रदाय पर एक जाति विशेष का पिछली तीन पीढ़ियों से कब्ज़ा है। अतीत से अब तक इन तीनों महतों के काम से यही प्रतीत होता है कि इन्होंने समवेत रूप से नाथ सम्प्रदाय का भगवाकरण कर उसकी हत्या की है और उसे उसके असल वारिसों से छीन लिया है। ऐसे वक्त में नाथ सम्प्रदाय के अतीत को खंगालने की जरूरत है, ताकि उसके असल उत्तराधिकारियों की खोज हो सके और नाथ सम्प्रदाय को पुनः उसके मौलिक स्वरूप और आदर्श मूल्यों के साथ स्थापित किया जा सके।

(कॉपी एडिटर : अनिल)


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लेखक के बारे में

प्रद्युम्न यादव

लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में एम.ए. (प्राचीन इतिहास) के छात्र हैं

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