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मध्य प्रदेश : ओबीसी सीटें बढ़ने पर क्यूं बरपा हंगामा?

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान सरकार ने विभिन्न कॉलेजों में व्याख्याताओं की नियुक्ति में ओबीसी कोटे की वृद्धि कर दी है। इसे लेकर ऊंची जाति के लोग दलित और ओबीसी में फूट डालने की कोशिश कर रहे हैं। ताबिश बलभद्र की रिपोर्ट :

मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ शिवराज सिंह चौहान सरकार प्रदेश में अपनी चौथी बार सत्ता में आने के सपने देख रही है। इसी क्रम में राज्य सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना ने राजनीतिक विश्लेषकों को भाजपा की चुनावी रणनीति का संकेत दे दिया है। मसलन राज्य सरकार ने व्याख्याताओं की नियुक्ति के सिलसिले में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की बैकलॉग सीटों को कम कर दिया है और ओबीसी की सीटों में इजाफा कर दिया है।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

हालांकि सरकार के इस कदम को राजनीति से प्रेरित मानते हुए कुछ सामान्य वर्ग(ऊंची जातियों) के अभ्यर्थियों ने इस भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है। एमपीपीएससी ने वर्ष 2017 के जुलाई माह में प्रदेश के कालेजों में सहायक प्राध्यापकों के कुल 2408 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला था, जिसमें लगभग 22 विषयों के 707 बैकलॉग सीटें थी। बैकलॉग सीटों में 39 ओबीसी और 667 सीटें एससी और एसटी वर्ग की बताई गई थी। 2017 में जारी इस विज्ञापन के बाद भर्तियां नहीं हुईं और सरकार ने 12 अप्रैल 2018 को संशोधित विज्ञापन जारी किया। 3422 पदों के विरुद्ध नियुक्तियों की संशोधित अधिसूचना जारी की गई, जिसमें 22 विषयों में कुल 752 बैकलॉग पद दिखाया गया। इन 752 बैकलॉग पदों में 109 ओबीसी और 643 एससी एसटी वर्ग के लिए बताया गयायानी पहले के विज्ञापन से एसएसी एसटी के बैकलॉग पदों में 24 की कटौती कर दी गई। सामान्य वर्ग की एक उम्मीदवार डॉ. रिचा श्रीवास्तव ने बैकलॉग पदों पर गड़बड़ियों को लेकर जबलपुर उच्च न्यायालय में सरकार के नीतियों को चुनौती दी है।

इसमें कहा गया है कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सहायक प्राध्यापकों, क्रीड़ाधिकारियों, ग्रन्थपालों की सीधी भर्ती अंतिम बार वर्ष 1991 में विज्ञापन जारी करके किया गया। उसके बाद आज तक सीधी भर्ती नहीं हुई है। दूसरी ओर संविधान के 81वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 16(ख) में किए गए प्रावधान के अनुसार जब कभी सीधी भर्ती के समय मामलों में पूर्ववर्ती वर्ष या वर्षो में अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए आरक्षित रिक्तियां भर नहीं पाई तब बैकलॉग और/या वर्तमान रिक्तियों को अलग से सुभिन्न समूह माना जाएगा। इसमें यह भी कहा गया है कि उस वर्ष की कुल रिक्तियों की कुल संख्या पर आरक्षण की पचास प्रतिशत अधिकतम सीमा का नियम उस वर्ष की आरक्षित रिक्तियों के साथ नहीं मानी जाएगी जिसमें वे रिक्तियां भरी जा रही हैं।

भारत सरकार ने वर्ष 1993 में अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना की और उसके बाद सीधी भर्ती हेतु जारी विज्ञापनों के माध्यम से अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को आरक्षण रोस्टर के अनुसार पद आरक्षित कर उनकी भर्ती की जाने लगी। इस आयोग की स्थापना के बाद जिन विभागों में सीधी भर्ती नहीं हुई तथा कुछ विभागों की स्थापना ही आयोग के गठन के बाद हुई, उन विभागों में भी विशेष भर्ती अभियान चलाकर नियम विरुद्ध अन्य पिछड़ा वर्ग (बैकलॉग) का सीट आरक्षित एवं चिन्हित करके भर्ती की गई या की जा रही है। ऊंची जाति से संबंध रखने वाले भोपाल के आरटीआई एक्टिविस्ट डॉ. डी.पी. सिंह कहते हैं कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा सहायक प्राध्यापकों की बैकलॉग पदों पर वर्ष 1998 में 379, 2003 में 863, 2006 में 336, और 2008 में 190 पदों पर भर्ती की गई, जबकि वर्ष 2006 से विज्ञाप्ति पदों में अन्य पिछड़ा वर्ग (बैकलॅाग) को विषयवार नियम विरुद्ध समाहित किया गया। डीपी सिंह कहते हैं कि मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय 1992 में बना और एक बार भी इसमें सीधी भर्ती नहीं हुई तो बैकलॉग के पद कैसे और कहां से आ गए जिस पर विज्ञापन प्रकाशित कर भर्ती की गई है। नियमानुसार केवल अनुसूचित जाति या जनजाति का बैकलॉग बताया गया है तो फिर अन्य पिछड़ा वर्ग का बैकलॉग कैसे आया?

हालांकि सरकार ने इन विज्ञापनों की चुनौतियों को खारिज कर दिया है। 26 अप्रैल को उच्च न्यायालय में सरकार ने अपना पक्ष रखा और कहा कि चूंकि सरकार नियोक्ता है, इसलिए नियोक्ता को यह अधिकार है कि वह किस वर्ग में कितनी पद सृजित करेगी और भर्तियां करेगी। पदों की संख्या घटाने और बढ़ाने की स्वतंत्रता भी नियोक्ता को है। सरकार ने जो दलील दी है उसके आधार पर हाईकोर्ट ने इस मामले (संख्या-डब्ल्यू पी 29192018) को खारिज कर दिया है। हालांकि भर्ती नियमों का हवाला देकर वादी इस हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की तैयारी में है।

(कॉपी एडिटर : अशोक/नवल)

तथ्य पुन: संपादित : 18 मई, 2018, 7:45 सायं


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ताबिश बलभद्र

मनवाधिकारकर्मी ताबिश बलभद्र फारवर्ड प्रेस समेत अनेक संस्थानों में बतौर पत्रकार काम कर चुके हैं। उन्होंने माखन लाल चतुर्वेदी पत्रकारिता व संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से पीएचडी की है

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