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यूजीसी ने फारवर्ड प्रेस समेत प्रगतिशील व जातिवाद विरोधी कई पत्रिकाओं की मान्यता रद्द की

यूजीसी ने अपनी सूची से जहां कुछ कमजोर पत्रिकाओं को बाहर किया है, वहीं अनेक ऐसी पत्रिकाओं को भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है, जो उच्च रचनात्मकता और गुणवत्ता पूर्ण शोध के लिए जानी जाती हैं। प्रगतिशील और जातिवाद विरोधी रूझान रखने वाली इन पत्रिकाओं को मान्यता प्राप्त सूची से बाहर करने का निर्णय महज संयोग नहीं है

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फारवर्ड प्रेस समेत प्रगतिशील और जातिवाद-विरोधी रूख रखने वाली अनेक हिंदी-अंग्रेजी पत्रिकाओं को अपनी सूची से बाहर कर दिया है। आयोग ने विश्वविद्यालयों को दिए गए एक निर्देश में कहा है कि इन पत्रिकाओं के द्वारा प्रकाशित सामग्री को शिक्षकों की नियुक्ति व प्रमोशन आदि का आधार न बनाया जाए।

यूजीसी की सूची से बाहर की जाने वाली  हिंदी पत्रिकाओं में हंस, वागर्थ, कथाक्रम, दलित दस्तक, सामाजिक न्याय संदेश, दलित साहित्य आदि शामिल हैं। जबकि अंग्रेजी पत्रिकाओं में इकोनामिक एंड पोलिटिकल वीकली का आॅनलाईन  संस्करण और मेनस्ट्रीम आदि हैं।

यूजीसी के मुताबिक  उसने कुल 4305 पत्रिकाओं को अपनी सूची से बाहर किया है तथा  191 पत्रिकाओं को पेंडिंग सूची में रखा है। पेंडिंग सूची में शामिल पत्रिकाओं पर बाद में विचार किया जाएगा।

जिन पत्रिकाओं को यूजीसी ने अपनी सूची से बाहर किया है, उनमें  बौद्ध दर्शन पर आधारित करीब एक दर्जन पत्रिकाएं शामिल हैं। इसके अलावा ब्रिटेन के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय आक्सफोर्ड से निकलने वाला जर्नल ‘ जर्नल ऑफ दी आक्सफोर्ड सेंटर ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज’ और अमेरिका के हावर्ड विश्वविद्यालय  का जर्नल ‘ हावर्ड एशिया पेसिफिक रिव्यू’ को भी बाहर किया गया है।

यूजीसी ने जो सूचना सार्वजनिक की है, उसमें इन पत्रिकाओं/जर्नल बाहर करने के कारण भी बताये गये हैं। कहा गया है कि यह कार्रवाई भ्रामक सूचनाओं के प्रकाशन, अधूरी जानकारी व गलत दावे किये जाने संबंधी शिकायतें मिलने पर की गई है। हालांकि इसका जिक्र नहीं किया गया है कि जिन पत्रिकाओं के खिलाफ कार्रवाई की गयी है, उन्हें कार्रवाई से पहले सूचना दी गयी या नहीं। या फिर उन्हें अपना पक्ष रखने दिया गया या नहीं।

यूजीसी ने कहा  है कि उसे कथित तौर पर अनेक ‘अनाम लोगों’ तथा कुछ अध्यापकों, अध्येताओं, अकादमिक जगत के अन्य सदस्यों के अलावा प्रेस प्रतिनिधियों से कई ऐसे पत्र/पत्रिकाओं को अपनी सूची में शामिल रखने संबंधी शिकायतें मिलीं थीं। मिली शिकायतों को उसने एक स्टैंडिंग कमिटी को सौंपा गया। यूजीसी का कहना है कि कमिटी ने दो तरह के पत्र-पत्रिकाओं को अपने संज्ञान में लिया। इनमे एक वे पत्र-पत्रिकाएं थीं जिनकी अनुशंसा विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा की गयी थी और दूसरी वे जिनका सूचीकरण व वर्गीकरण इन्डियन साइटेशन इंडेक्स द्वारा किया गया था।

यूजीसी ने अपनी सूची में  फारवर्ड प्रेस की मान्यता रद्द करते हुए कहा है कि यह उसके प्राथमिक मापदंड (प्राइमरी कैरेटेरिया) को पूरा नहीं करती। उसने अपनी सूची में इसका  आइएसएसएन नंबर 2348-9286 बताया है। यह आईएसएसएन नंबर फारवर्ड प्रेस के प्रिंट संस्करण का है, जिसका प्रकाशन जून, 2016 से स्थगित है। जून,2016 से फारवर्ड प्रेस का सिर्फ ऑनलाइन संस्करण प्रकाशित होता है, जिसका आईएसएसएन नंबर 2456-7558 है। सवाल यह है कि आखिर फारवर्ड प्रेस  जैसी पत्रिकाओं की मान्यता रद्द करने की इतनी हडबडी यूजीसी को क्यों है?

नवभारत टाइम्स में प्रकाशित खबर की कतरन

बहरहाल, मीडिया के एक हिस्से  ने यूजीसी की इस कार्रवाई के संदर्भ में जिस प्रकार से खबरें प्रकाशित की, वह भी कम रहस्यमय नहीं है। मसलन, दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नवभारत टाइम्स ने इससे संबंध में 6 मई को प्रकाशित अपनी खबर का शीर्षक दिया –   ‘संघ से जुड़ी शोध पत्रिका इतिहास दर्पण को यूजीसी ने दिखाया दिया आईना’ । खबर में कहा गया कि ‘संघ से जुडा संगठन अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना इतिहास दर्पण नाम से रिसर्च जर्नल निकालता है। इसकी अब तक यूजीसी में मान्यता थी, लेकिन अब इसे भी स्वीकृत लिस्ट से बाहर कर दिया गया है।’ खबर को इस तरीके से लिखा गया ताकि यूजीसी के फैसले को सही ठहराया जा सके।

 संबंधित सूचनाएं यूजीसी की वेबसाइट पर यहां देखें : 
https://www.ugc.ac.in/journallist/


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