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उत्तराखंड : शहरी निकायों से दलित-आदिवासियों को बाहर कर रही त्रिवेंद्र सरकार

उत्तराखंड में निकाय चुनाव नजदीक हैं। चुनाव से ठीक पूर्व परिसीमन के नाम पर एससी-एसटी वोटरों की बड़ी आबादी को मतदाता सूची से बाहर कर भाजपा सरकार ने नया बवाल खड़ा कर दिया है। करीब डेढ़ महीने तक कोर्ट में चली लड़ाई के बाद गेंद पूरी तरह से सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के पाले में है। सवाल उठता है कि क्या वह नए परिसीमन के आधार पर चुनाव कराने जा रही है? कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट :

उत्तराखंड के नगर निकायों के परिसीमन विस्तार (ग्रामीण इलाकों को शहरी क्षेत्र में शामिल करने की क़वायद) में कई क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय से जुड़ी आबादी को मतदाता सूची से ग़ायब कर दिया गया है। सरकार से ग़ुस्साए लोगों ने अब खुलकर प्रशासनिक इकाइयों, ख़ासकर शहरी विकास विभाग को कटघरे में खड़ा किया है। इनका आरोप है कि विभाग के साथ मिलकर प्रशासनिक इकाइयां सरकार को चुनावी फ़ायदा पहुंचाना चाहती हैं। उत्तराखंड में कुल 8 नगर निगम हैं जबकि नगरपालिका परिषदाें की संख्या 41 है। प्रदेश में 92 नगर निकाय हैं। इसी साल 88 नगर निकायों में चुनाव होना है। केदारनाथ, बदरीनाथ, गंगोत्री में निकाय चुनाव नहीं होते हैं जबकि भदरोजखान नगर पंचायत में चुनाव पर कोर्ट ने रोक लगा रखा है।

नये परिसीमन के बाद मतदाता सूची में नाम गायब किये जाने पर विरोध करते नानक मत्ता इलाके के निवासी

राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार ने इसी साल 5 अप्रैल में नए परिसीमन के आधार पर नगर निकायों के चुनावों के लिए अधिसूचना जारी की। इसके पीछे वजह थी शहरी क्षेत्रों में भाजपा समर्थित वोटरों की तादाद का कथित तौर पर ज्यादा समझा जाना। लेकिन 19 मई को उसके मंसूबों पर उस समय पानी फिर गया जब नैनीताल हाईकोर्ट ने सरकार की परिसीमन की अधिसूचना को रद्द कर दिया और पुराने सीमा आधार को वैध माना। कोर्ट में भी इसे लेकर नाटकीय घटनाक्रम हुआ। 22 मई को सरकार की ओर से दी गई चुनौती पर एकल पीठ के फैसले को कोर्ट ने पलट दिया और इसके साथ ही सरकार के सामने अब रास्ता खुल गया है कि वह अपने मनमाफिक तरीके से शहरों के निकायों में पुराने या नए सीमांकन के आधार पर चुनाव करा सकती है। राज्य सरकार ने 24 शहरों में नगर निकाय चुनावों के लिए सीमा विस्तार को अंतिम रूप दिया है। ज्ञात रहे कि कोटद्वार (गढ़वाल) और डोईवाला (देहरादून) क्षेत्र के अलावा पिथौरागढ़, टकनपुर, हल्द्वानी, भवाली के सैकड़ों परिवारों ने हाईकोर्ट में इसके खिलाफ दस्तक दी थी। लेकिन अब झटके में 41 निकायों के 282 गांव फिर से निकायों में शामिल हो गए हैं।

त्रिवेंद्र सिंह रावत, मुख्यमंत्री, उत्तराखंड

पूरा गढ़ीपट्‌टी जनजाति समाज मतदाता सूची से गायब

सितारगंज स्थित नानकमत्ता नगर पंचायत में वार्डों के हुए परिसीमन में गढ़ीपट्‌टी जनजाति समाज की पूरी जनसंख्या को मतदाता सूची से ही गायब कर दिया गया। वार्ड में 80 फीसदी अस्सी फीसद थारू जनजाति के लोग रहते हैं। उत्तराखंड की भाजपा सरकार से गुस्साए लोगों ने परिसीमन में हेराफेरी की शिकायत शहरी विकास विभाग के निदेशक से की है। इसके साथ ही परिसीमन के बहाने ग्रामीण वोटरों को, खासकर भाजपा समर्थकों को “नगर क्षेत्रों में शामिल करने के चेष्टा” पर त्रिवेंद्र सरकार पर हमले तेज हो गए हैं। गढ़ीपट्टी गांव की पूर्व प्रधान अनुराधा राणा ने शहरी विकास विभाग के निदेशक को भेजे पत्र में कहा कि नानकमत्ता नगर पंचायत अध्यक्ष, कक्षों के परिसीमन व आरक्षण में अनियमितताएं बरती गई हैं। उन्होंने कहा कि जातिगत आधार पर परिसीमन में हेराफेरी की गयी है। हैरानी की बात है कि गढ़ीपट्टी में अनुसूचित जनजाति की संख्या वोटर लिस्ट में शून्य कर दी गई है। उन्होंने कहा कि नगर पंचायत नानकमत्ता थारू जनजाति बहुल वाला क्षेत्र है। गढ़ीपट्टी, मिलकनजरी, मिलक, तपेड़ा में नब्बे प्रतिशत लोग थारू जनजाति के लोग रहते हैं। इस क्षेत्र में नगर पंचायत अध्यक्ष पद की सीट स्पेशल कंपोनेट में एसटी महिला आरक्षित करने की मांग भी समय-समय पर उठती रही है।

भोटिया समुदाय की महिलायें

जनजाति और अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी सिर्फ कुमाऊं मंडल में ही नहीं बल्कि गढ़वाल के चकराता, देहरादून और उत्तरकाशी में सर्वाधिक है। राज्य में जनजाति समुदाय में थारू जनजाति 90,431, जौनसारी 81,814, भोटिया आबादी 42,922, राजी जनजाति और थारूओं, दोनों को मिलाकर 50 हजार से ज्यादा है। हालांकि इस आकड़े को जनजाति समुदाय के प्रतिनिधि दोगुना होने का दावा करते हैं लेकिन सच यह है कि एससी और एसटी की कुल आबादी पौने तीन लाख के करीब है।

उत्तराखंड सरकार के अनुसूचित जनजाति समाज कल्याण मंत्रालय के द्वारा जारी एक तस्वीर

बहरहाल, जनजाति समुदाय जिनकी आबादी शहरी इलाकों नगर पंचायतों और नगर निगम परिषद से लगती है, क्या उन हजारों वोटरों को सरकारी मशीनरी ने वोटर लिस्ट से गायब कर दिया है? कोटद्वार और डोईवाला और कुमाऊं मंडल के क्षेत्र के लोगों के जागते ही राज्य में उन लोगों की भी आंखें खुल गई कि उनके इलाकों में गड़बड़ी हुई है क्योंकि वो परंपरागत तौर पर भाजपा के वोटर नहीं रहे हैं। उत्तराखंड सरकार ने पिथौरागढ़ नगर पालिका के सीमा विस्तार के साथ नए सिरे से परिसीमन के बाद 5 अप्रैल को अधिसूचना जारी की थी। इसके तहत नगर के आसपास की छह ग्राम सभाओं को पालिका में शामिल किया था। पालिका में शामिल ग्राम पंचायतों में दौला, नेड़ा, बस्ते, धनौड़ा, ऐंचोली, सिकराड़ी को शामिल किया था। इसके साथ ही पालिका के वार्डो की संख्या बढ़ाकर 20 कर दी थी।

सरकार ने कोर्ट में गलत तथ्य पेश किए : भूपेश नगरकोटी

अब नगर निकायों में सीमा विस्तार और नए परिसीमन के आधार पर चुनाव कराए जाने के आसार हैं। लेकिन इसके साथ ही जनजाति समुदायों में आशंकाएं घर कर गई हैं। मामले को लेकर नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका करने वाले दौला ग्राम के प्रधान भूपेश नगरकोटी ने कहा, “सरकार ने सीमा विस्तार के लिए गलत तथ्य कोर्ट के समक्ष रखे। हम अदालत के इस फैसले को चुनौती देंगे…।”

उत्तराखंड हाईकोर्ट

इस सिलसिले में हमने बीजेपी के जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष रामकिशन सिंह और बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष श्यामवीर सैनी से संपर्क किया। इन दोनों नेताओं ने पहले तो किसी भी निकाय क्षेत्र की ऐसी शिकायत से इनकार किया लेकिन जब उनको थारू प्रतिनिधियों के पत्र का सार बताया गया तो कहा कि इस मामले में प्रशासन और पंचायत के स्तर पर निस्तारण किया जाएगा। सैनी ने कहा कि कुमाऊं मे उनके नेता नेत्रपाल मौर्य इस शिकायत के मद्देनजर काम कर रहे हैं। और मतदाता सूची को अंतिम रूप देने से पहले ही इसमें सुधार कराएंगे।

कोर्ट का पूरा फैसला

एकल पीठ की फैसले के खिलाफ मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति केएम जोसफ व शरद शर्मा की संयुक्त खंडपीठ में सुनवाई हुई याचिकाकर्ताओं ने कहा कि निकायों के सीमा विस्तार की अधिसूचना राज्यपाल के स्तर से जारी नहीं की गई, जो असंवैधानिक है। सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि कुछ विशेष कार्यों के अलावा प्रदेश सरकार के हर कार्य में राज्यपाल की सहमति मानी जाती है। मुख्य न्यायाधीश की संयुक्त खंडपीठ ने दलील पर असहमति व्यक्त करते हुए कहा कि सरकार का हर कार्य राज्यपाल के स्तर से नहीं होता है हालांकि उसके प्रत्येक कार्य में राज्यपाल की सहमति मानी जाती है। प्रदेश में निकायों के सीमा विस्तार को लेकर कवायद सामान्य प्रक्रिया है। इसके लिए सरकार की कार्रवाई न्याय संगत है। यह कहना ठीक नहीं है कि आपत्तियों की सुनवाई राज्यपाल के स्तर से नहीं हुई है। इसको देखते हुए संयुक्त खंडपीठ ने एकलपीठ के आदेश को खारिज कर दिया। इसके साथ ही कोटद्वार और ऋषिकेश नगर निगम का दर्जा फिर बहाल हो गया है। सरकार ने सीमा विस्तार के जरिए ऋषिकेश में दो जबकि कोटद्वार में 73 ग्राम पंचायतों को शामिल किया था।

देहरादून,  ऋषिकेश, मसूरी के एससी-एसटी वोटरों पर भाजपा की नजर  

सवाल उठता है कि जहां जहां एससी-एसटी की शिकायतें हैं क्या उनको अनसुना कर दिया जाएगा और यथास्थिति में चुनाव कराएगी?  कुमाऊं के अलावा गढ़वाल में भी भारी संख्या में एससी-एसटी के वोटर हैं जिनका अंदाजा आरक्षित वार्डों की संख्या से लगाया जा सकता है। देहरादून नगर निगम के कुल 100 वार्डों में से 50 वार्ड आरक्षित हैं। इसमें 50 वार्ड महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित हैं। ऋषिकेश नगर निगम के कुल 37 वार्डों में 18 वार्ड आरक्षित हैं। नगर पालिका मसूरी में 13 में से 6 वार्ड और डोईवाला में 20 वार्ड में से 9 वार्ड आरक्षित हैं। जबकि नगर पालिका विकासनगर के कुल 11 वार्डों में से 4 वार्ड आरक्षित हैं। कल्याणपुर अनुसूचित जाति महिला, दिनकर विहार अनुसूचित जनजाति महिला, विद्यापीठ पिछड़ी जाति महिला, इंद्रा उद्यान पर हर एक की नजर है। नगर पालिका हरबर्टपुर में 9 में से 3 वार्ड आरक्षित हैं। इसमें बंशीपुर अनुसूचित जाति महिला, आसनबाग पिछड़ी जाति महिला और आदर्शनगर झाडोवाला आरक्षित हैं। मसूरी में बालागंज अनुसूचित जाति महिला, राजमंडी महिला,  लंढौर महिला, नगर पालिका कंपाउंड मसूरी, सुमित्रा भवन हुसैनगंज पिछड़ी जाति महिला, किताबघर एससी। नपा डोईवाला में स्वामीराम नगर महिला, केशवपुर अनुसूचित जाति, राजीवनगर अनुसचित जाति महिला के लिए आरक्षित हैं।

(कॉपी एडिटर : ब्रह्मदेव)


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चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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