h n

ओबीसी आरक्षण के खिलाफ है भाजपा

आरएसएस शुरुआती दिनों में नागपुर के खास समुदाय के सदस्यों का संगठन था, जिसका उद्देश्य ऊँच-नीच की हिन्दू वर्ण व्यवस्था को बनाये रखना था, जो आज भी है। इसमें, दबे-कुचले वर्गों को दबाये रखने की साजिश है। आज तथाकथित ओबीसी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में ओबीसी आरक्षण को जिस तरह से मटियामेट किया जा रहा है। आने वाले दिनों में आरक्षण ही प्रभावहीन हो जायेगा। कैसे? बता रहे हैं अनूप पटेल :

एक कहावत है कि हिरन और बहेलिया में दोस्ती नहीं होती है। दोनों के हित परस्पर विरोधी हैं। आज के दौर में ओबीसी आरक्षण और भाजपा का संबंध वैसा ही है। वर्तमान में तथाकथित ओबीसी प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में ओबीसी आरक्षण को जिस तरह से मटियामेट किया जा रहा है। आने वाले दिनों में आरक्षण ही प्रभावहीन हो जायेगा। भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा भी है कि हम आरक्षण को उस स्थिति में ले जाना चाहते हैं, जहां पूरी तरह से प्रभावहीन हो जाए। ऐसे में भाजपा और ओबीसी आरक्षण के बे-मेल रिश्तों की जांच पड़ताल जरूरी हो जाता है।

ओबीसी आरक्षण

भारत की आज़ादी नहीं था आरएसएस का उद्देश्य  :

आरएसएस डा. हेडगेवार के नेतृत्व में 1925 में संगठन स्थापित हुआ, जिसका मूल उद्देश्य कभी भारत की आजादी नहीं थी। जबकि उस समय कांग्रेस अंग्रेजों से आजादी के लिये लड़ रही थी। आरएसएस शुरुआती दिनों में नागपुर के खास समुदाय के सदस्यों का संगठन था। जिसका उद्देश्य ऊँच-नीच की हिन्दू वर्ण व्यवस्था को बनाये रखना था, जो आज भी है। अपने इस एजेंडे को विस्तार देने हेतु आरएसएस ने अन्य समाजों को जोड़ना शुरू किया। गुरु गोललवकर ने एक विभाजनकारी समाज की नींव रखी, जिसका विस्तार बाद के दिनों में हुआ।

मोहन भागवत

1951 में जनसंघ बना, जिसने मनुवादी संस्कृति को बढ़ाने और मुस्लिमों को दोयम दर्जे के नागरिक मानने की अवधारणा को बल दिया। जनसंघ और आरएसएस लोकतंत्र के विरोधी संगठन थे और राजा-रजवाड़े की ताकत बने रहने का समर्थन करते थे। दोनों संगठन गाँधी, सरदार पटेल, नेहरू और अांबेडकर के विरोधी थे, जो आधुनिक भारत का निर्माण कर रहे थे।

पार्टी गठित कर जमायीं जड़ें :

जनसंघ के बाद भारतीय जनता पार्टी 1980 में अस्तित्व में आयी। भाजपा का अस्तित्व बहुत सीमित था। इमरजेंसी के दौरान जयप्रकाश ने कांग्रेस के खिलाफ अपनी मुहिम में भाजपा को शामिल किया तभी से भाजपा को खाद-पानी मिलना शुरू हुआ। जनता पार्टी के नेतृत्व में जो सरकार बनी, उसमें भाजपा भी शामिल हुई। जनता पार्टी की सरकार के समय ही मंडल कमीशन की स्थापना हुई, जिसे देश के पिछड़ा वर्ग की समस्याओं पर रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया। जनता सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पायी और कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मंडल कमीशन को दो बार विस्तार दिया। मंडल कमीशन ने अपनी रिपोर्ट कांग्रेस सरकार को सौंप दी। इंदिरा गांधी जी की हत्या से मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू नहीं हो पायी।

वी.पी. सिंह सरकार में मंडल कमीशन हुआ लागू :

1989 में जब वी.पी. सिंह की सरकार बनी, तो मंडल कमीशन को लागू करने का बीड़ा उठाया। वी.पी. सिंह की सरकार की घटक भाजपा ने मंडल कमीशन के विरोध में समर्थन वापस खींच लिया, जिससे सरकार गिर गई।

मंडल कमीशन के लागू होने से समाज, राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधित्व आने मात्र से भाजपा मंडल के खिलाफ कमंडल आन्दोलन और राममंदिर का आन्दोलन छेड़ दिया। ओबीसी वर्ग अभी नव-चेतना से युक्त ही हो रहा था कि वो भाजपा के धार्मिक उन्माद की राजनीति में फँस गया, जबकि भाजपा का सीधा निशाना मंडल कमीशन को लागू न होने देना था।

वी.पी. सिंह

जब पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार बनी, तो सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत ओबीसी के लिये आरक्षण लागू किया गया। तत्कालीन सामाजिक न्याय मंत्री सीताराम केसरी ने ओबीसी वर्ग से आने वाले वी. राजशेखर की प्रथम नियुक्ति की। लेकिन मंडल कमीशन की अन्य सिफ़ारिशें लागू नहीं हो सकीं।

बाजपेयी सरकार ने नहीं दिया ध्यान :

1999 में जब बाजपेयी सरकार आयी, तो मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों को ध्यान नहीं दिया। जबकि भारतीय संविधान के पुनरीक्षण की कोशिशें कीं। भाजपा संविधान से समाजवाद, धर्म निरपेक्षता शब्द और आरक्षण के प्रावधानों को हटाना चाहती थी। लेकिन कोशिशें कामयाब नहीं हुईं। इसी बीच वर्ष 2002 में गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए और देश को हिन्दू-मुसलमान के बीच बांटने की कोशिश की गयी।

2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार बनी, जिसमें अनेक जन कल्याणकारी योजनाएं लागू हुईं। यूपीए सरकार ने मंडल कमीशन की एक और सिफारिश लागू की,  जो राज्य के पिछड़े वर्ग के प्रतियोगियों को हॉस्टल, लाइब्रेरी आदि की सुविधाएं देने को अनुदेषित करता है। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने मंडल कमीशन की एक और सिफारिश लागू की, जिसके अनुसार शिक्षा संस्थानों में 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण को लागू किया। यूपीए-2 के कार्यकाल में देश में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना आरम्भ हुई, जिसके आंकड़े केंद्र सरकार के पास सुरक्षित हैं।

2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी। नरेंद्र मोदी तथाकथित पिछड़ा समुदाय से संबंधित हैं, जिनकी जाति करीब दो दशक पहले ओबीसी कैटेगरी में शामिल की गयी थी। नरेंद्र मोदी ने पिछड़ा वर्ग को ख़ूब लुभाया और बहुमत मिला भी। लेकिन, ओबीसी का आरक्षण मामले में सर्वाधिक नुकसान मोदी सरकार ने ही किया। मंडल कमीशन की अन्य सिफ़ारिशों को लागू करने की बात तो दूर, जो अभी तीन सिफ़ारिशें लागू हैं उन्हीं को मटियामेट कर दिया है। ओबीसी वर्ग के लाखों पद खाली है लेकिन उन्हें भरा नहीं जा रहा है। समय श्रेणी को एक तरह से सामान्य वर्ग हेतु आरक्षित कर दिया गया है। जो ओबीसी अभ्यर्थी सामान्य श्रेणी में चयनित हो रहे हैं, उन्हें नियुक्तियां नहीं दी जा रही हैं। मोदी सरकार सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के आंकड़ों को भी नहीं प्रकाशित कर रही है। वित्त मंत्री अरुण जेटली यह कह रहे हैं कि इससे देश में अराजकता फैल जाएगी। कुल मिलाकर देखा जाए तो इनकी भावना ही ओबीसी विरोधी है। इसी वजह से जाति-जनगणना के आंकड़े नहीं बताए जा रहे हैं। राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग को कुछ अधिकार से मजबूत तो किया, लेकिन एससी/एसटी जैसी संवैधानिक ताकत देने से वंचित किया। डॉ. मनमोहन सिंह के समय प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण की जो मुहिम शुरू हुई थी, उसे बंद कर दिया गया है।

मोदी सरकार की जन विरोधी नीतियों के चलते जनता में अपार गुस्सा है। मोदी सरकार ने जनता से जो वादे किया था, वो सब जुमलों में बदल गए हैं। अब मोदी सरकार ने फिर से ओबीसी आरक्षण के साथ खेल करना शुरू किया है। केंद्र  सरकार की एक समिति ओबीसी आरक्षण के दायरे को बिना बढ़ाये उसे तीन श्रेणियों में विभाजित करना चाहती है और चुनावी फायदे के लिए,ओबीसी वर्ग के बीच वैमनस्यता और कलह को बढ़ावा देना चाहती है। ओबीसी आरक्षण को तीन श्रेणियों- पिछड़ा वर्ग,  अत्यंत पिछड़ा वर्ग और अत्यधिक पिछड़ा वर्ग में विभाजित करना चाहती है। लेकिन, जाति-जनगणना के आंकड़े नहीं बताना चाहती। ओबीसी के बैक लॉग को नहीं भरना चाहती है। ओबीसी आरक्षण का दायरा आबादी के अनुरूप नहीं   बढ़ाना चाहती है। जबकि, तमिलनाडु में ओबीसी आरक्षण का दायरा 69 प्रतिशत तक है। मंडल कमीशन की सिफ़ारिशों को भी नहीं लागू करना चाहती है।

आज़ादी के बाद भाजपा की दो सरकार बनी है, जिसने ओबीसी के हितों को मजबूत करने की बजाय उनका नुकसान ही किया है। भाजपा ओबीसी हितों का जुमला ही फेंकती है, जबकि वास्तविक रूप से ओबीसी हितों के विरोध में ही कार्य करती है। अभी हाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि वह अति पिछड़ों को तय कोटे में ही ज्यादा फायदा दिलाना चाहते हैं। मतलब वह आरक्षण की सीलिंग को नहीं बढ़ाना चाहते हैं।  यद्यपि मोदी ख़ुद को पिछड़ा वर्ग का कहते हैं, लेकिन इस पर कई सवाल उठते हैं, जो यह सिद्ध करते हैं कि भाजपा सरकार कहीं से कहीं तक ओबीसी के आरक्षण के पक्ष में नहीं है। सवाल इस प्रकार हैं-

  • वह (मोदी) जाति जनगणना के आंकड़े क्यों दबाकर बैठे हैं?
  • 1931 में पिछड़ा वर्ग की आबादी 52 प्रतिशत थी, अब कितनी है? किसी को पता नहीं है।
  • मंडल कमीशन की सिफ़ारिशें क्यों लागू नहीं करवाते?
  • शिक्षा संस्थानों में ओबीसी रिजर्वेशन को महत्वहीन कर दिया है। प्रोफेसर के पद पर ओबीसी आरक्षण नहीं है। 60 प्रतिशत की आबादी वाले पिछड़े वर्ग से कुल 60 प्रोफेसर भी नहीं होंगे। ऐसा क्यों?
  • न्यायपालिका में आरक्षण लागू क्यों नहीं कराते?
  • आपके दो मंत्री (उपेन्द्र कुशवाहा और राम विलास पासवान) न्यायपालिका में आरक्षण की मांग कर चुके हैं। उनकी बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है?
  • देश की सम्पदा और संसाधनों पर 10 पूंजीपति कुंडली मार कर बैठे हैं। आपके राज में उनकी पकड़ और मजबूत हुई है। वहां पिछड़े वर्ग की हिस्सेदारी क्यों नहीं दिलाते?
  • देश के सरकारी स्कूलों में सबसे ज्यादा पिछड़े वर्ग के बच्चे पढ़ते हैं। सरकारी स्कूलों की बदतर स्थिति है। राजस्थान सरकार ने कई  प्राथमिक स्कूल बंद कर दिये हैं। सरकारी स्कूलों में विकास का मॉडल लागू क्यों नहीं करते? क्या इससे ओबीसी वर्ग के बच्चों का भविष्य और ख़तरे में नहीं पड़ रहा?
  • देश में सबसे ज्यादा लोग भूमिहीन पिछड़े वर्ग के हैं। ज़मीन पर कुछ ख़ास जातियों का कब्ज़ा है। ज़मीन का न्यायपूर्ण बँटवारा क्यों नहीं करवाते?
  • प्रधानमंत्री मोदी को पहले इन मुद्दों पर काम करना चाहिए। न कि 56 इंची का सीना दिखाकर और जुमलेबाजी करके देश के ओबीसी तबके के अहित में काम करना चाहिए। अगर प्रधानमंत्री ख़ुद को ओबीसी का बताकर भी काम नहीं करते हैं, तो आपसे बेहतर तो एक ठाकुर प्रधानमत्री सम्मानित वी.पी. सिंह थे, जिन्होंने 10 महीनों में पिछड़े वर्ग के लिए इतना काम कर दिया, जो आपके चार साल के कार्यकाल पर भारी पड़ रहा है।
  • पिछड़ा वर्ग को ध्यान रखना  होगा कि कहीं  मोदी जुमला तो नहीं फेंक रहे हैं और क्यों? कहीं आप सीधे-सादे ओबीसी वर्ग को छलने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं?

 

(कॉपी सम्पादन : प्रेम बरेलवी)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +919968527911, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार

लेखक के बारे में

अनूप पटेल

अनूप पटेल कांग्रेस के ओबीसी विभाग- उत्तर प्रदेश के मुख्य प्रवक्ता हैं। उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से ‘भारत की आरक्षण प्रणाली और दक्षिण अफ्रीका के अफर्मेटिव एक्शन के तुलनात्मक अध्ययन’ विषय पर पीएचडी की है

संबंधित आलेख

वोट देने के पहले देखें कांग्रेस और भाजपा के घोषणापत्रों में फर्क
भाजपा का घोषणापत्र कभी 2047 की तो कभी 2070 की स्थिति के बारे में उल्लेख करता है, लेकिन पिछले दस साल के कार्यों के...
शीर्ष नेतृत्व की उपेक्षा के बावजूद उत्तराखंड में कमजोर नहीं है कांग्रेस
इन चुनावों में उत्तराखंड के पास अवसर है सवाल पूछने का। सबसे बड़ा सवाल यही है कि विकास के नाम पर उत्तराखंड के विनाश...
मोदी के दस साल के राज में ऐसे कमजोर किया गया संविधान
भाजपा ने इस बार 400 पार का नारा दिया है, जिसे संविधान बदलने के लिए ज़रूरी संख्या बल से जोड़कर देखा जा रहा है।...
केंद्रीय शिक्षा मंत्री को एक दलित कुलपति स्वीकार नहीं
प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा के पदभार ग्रहण करने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की विचारधारा में आस्था रखने वाले लोगों के पेट में...
आदिवासियों की अर्थव्यवस्था की भी खोज-खबर ले सरकार
एक तरफ तो सरकार उच्च आर्थिक वृद्धि दर का जश्न मना रही है तो दूसरी तरफ यह सवाल है कि क्या वह क्षेत्रीय आर्थिक...