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ओबीसी में पैठ का कांग्रेसी दांव

कांग्रेस के इतिहास में उसके किसी राष्ट्रीय अध्यक्ष ने पहली बार देशभर से आए ओबीसी समाज के नेताओं और प्रतिनिधिमंडल का दिल्ली के खचाखच भरे तालकटोरा स्टेडियम में जोरदार सम्मेलन किया। उसे इसकी जरूरत क्यों पड़ी? उसे अपने ही अतीत पर पैठ बनाने के लिए क्यों इतनी मशक्कत करनी पड़ रही? इस सम्मेलन की दशा-दिशा बता रहे हैं कमल चंद्रवंशी :

ऐन उस वक्त जब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह छत्तीसगढ़ में कैमरों के सामने ओबीसी के बारे में हुंकार भर रहे थे कि हमारे रहते हुए आपकी जगह किसी दूसरे से नहीं भरी जाएगी, ठीक उसी समय अखिलेश यादव मैनपुरी में उनको (ओबीसी वर्ग को) नया संदेश और मीडिया की गफलत को दूर करने के लिए सफाई दे रहे थे कि हम (एसपी-बीएसपी) इनको (बीजेपी) हराने के लिए सीटों के गुणा-भाग में कुछ नुकसान में भले रहें, तो भी गठबंधन के साथ चुनावों में जाएंगे। लेकिन इसी दरमियानी 11 जून की शाम दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम का एक ऐसा मंजर सज चुका था जो किसी बड़ी इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ने तैयार नहीं किया था बल्कि यह कांग्रेस के ओबीसी सम्मेलन की तैयारी का मंच था जो कार्यकर्ताओं ने अपने नेताओं के लिए तैयार किया था। यहां जमा हुए देशभर से आए कांग्रेस के ओबीसी नेता थे और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो पहला वार किया और वह भी सीधे किया- आप “थोड़ी सी जगह” की बात करते हैं, हम जगह नहीं पूरा हक ओबीसी को देते हैं जो उनका बनता है। राहुल को लगा यह लहजा भी शायद कृपालु है, कुछ दया करते जैसा। वह यकायक जागे और कहा, हम आपको “थोड़ी सी जगह” ही नहीं, हमने आबादी के 55 फीसद से ज्यादा जनसंख्या वाले ओबीसी लोगों के लिए सियासत में सारे दरवाजे खोल दिए हैं। सबको प्रतिनिधित्व मिलेगा और इसकी बानगी सामने बैठे नेता हैं।

ओबीसी सम्मेलन को संबोधित करते कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी

कांग्रेस के इतिहास में यह ओबीसी नेताओं के इस तरह के पहला सम्मेलन दिखा। राहुल गांधी ने कहा कि बीजेपी एक ऐसी बस है जिसका ड्राइवर आरएसएस का है,  “बीजेपी की बस को आरएसएस चलाती है, यह ओबीसी समुदाय को बांट चुकी है। हमारे लिए ओबीसी की जगह मुख्यधारा में उनकी राजनीति और समाज में भागीदारी को लेकर है। हमारी बस की चाबी आपके हाथों में हैं। कांग्रेस उसे स्थाई तौर पर आपके पास ही रखने का हक देना चाहती हैं।”

जाहिर है, इस बीच अशोक गहलोत समेत कई ओबीसी नेताओं के अलावा सेवा दल के खांटी कांग्रेसी अपनी जेबों से धूल झाड़ चुके थे। ओबीसी आबादी वाले चार बड़े राज्यों में चुनाव से ठीक पहले आयोजित इस सम्मेलन के सियासी माने चाहे जितने बड़े हों लेकिन ये लाइन तो साफ थी कि वह पुराने समर्थकों को सोशल इंजीनियरिंग से पार्टी में जोड़ रहे हैं। दरअसल 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस ने अपनी रणनीति के सारे पत्ते खोल दिए हैं। विपक्ष को साथ लाने की कोशि‍श उसकी जारी है। इसके साथ ही कांग्रेस अपना वोट बैंक भी मजबूत करने में जी-जान से जुटी है। उसके बराबर सम्मेलन हो रहे हैं। इससे पहले राहुल गांधी मंदसौर में किसानों की रैली को संबोधित कर चुके हैं। वहीं 23 अप्रैल को दलित समाज के एक सम्मेलन को भी राहुल ने संबोधित किया था जो एक ही रणनीति के हिस्सा है। राहुल गांधी ने कहा, “बहुत जल्द आरएसएस और बीजेपी को एहसास हो जाएगा कि उनके पास बस चलाने का न हौसला बचा था, न इसका कोई कौशल उनके पास था। देश को इस बस के भरोसे वैसे छोड़ भी नहीं सकते।” राहुल के भाषण में कई प्रतीक और लोक की कथाएं थीं। ‘थोड़ी सी जगह’ और ‘बस के खेवनहार’ इन्हीं प्रतीकों के प्रकार थे।

ओबीसी सम्मेलन को संबोधित करते अशोक गहलोत

कुशल इंडिया, कौशल इंडिया यानी स्किल इंडिया के हो-हल्ले पर राहुल ने कहा कोका कोला कंपनी, मैकडोनाल्ड कंपनियां कहां से कहां पहुंच गई, इन सभी कंपनियों को शुरू करने वाले लोग मामूली लोग थे। हिंदुस्तान के लोगों में भी वही क्षमता है जो दुनिया की नामी गिरामी कंपनियों को स्थापित करने वालों के पास हैं। भारत में ढाबे वालों, ड्राई क्लीनर्स, मैकेनिक, कारीगरों के लिए ये देश कुछ नहीं देता है। फिर देश कहता है कि देश में रोजगार नहीं है। मोदी जी कहते हैं कि हिंदुस्तान में हुनर की कमी है। हिंदुस्तान में हुनर की कमी नहीं है। ओबीसी देश में सबसे हुनरमंद हैं।

उन्होंने कहा, “बहुत जल्द आरएसएस और बीजेपी को एहसास हो जाएगा कि उनके पास बस चलाने का न हौसला बचा था, न इसका कोई कौशल उनके पास था। देश को इस बस के भरोसे वैसे छोड़ भी नहीं सकते।” राहुल के भाषण में कई प्रतीक और लोक की कथाएं थीं। ‘थोड़ी सी जगह’ और ‘बस के खेवनहार’ इन्हीं प्रतीकों के प्रकार थे। कुशल इंडिया, कौशल इंडिया यानी स्किल इंडिया के हो-हल्ले पर राहुल ने कहा, “कोका कोला कंपनी, मैकडोनाल्ड कंपनियां कहां से कहां पहुंच गईं। इन सभी कंपनियों को शुरू करने वाले लोग मामूली लोग थे। हिंदुस्तान के लोगों में भी वही क्षमता है जो दुनिया की नामी गिरामी कंपनियों को स्थापित करने वालों के पास हैं। भारत में ढाबे वालों, ड्राई क्लीनर्स, मैकेनिक, कारीगरों को यह देश कुछ नहीं देता है। फिर देश कहता है कि देश में रोजगार नहीं है। मोदी जी कहते हैं कि हिंदुस्तान में हुनर की कमी है। हिंदुस्तान में हुनर की कमी नहीं है। ओबीसी देश में सबसे हुनरमंद हैं।

राहुल के इशारे भी सीधे

कांग्रेस अध्यक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उन पर सीधी लागू होने वाली कई बातें भी इशारों में कहीं। उन्होंने कहा वो दूसरों के काम का क्रेडिट लेते हैं। इसके अलावा उन्होंने कुछ मुट्ठीभर अमीरों के लिए काम किया है। जिनके पास हुनर है, जो काम करते हैं, उन्हें सम्मान नहीं मिलता इनके लोगों से, इस सरकार से।” राहुल ने जोड़ा, “देश के स्किल्ड लोगों का फायदा किसी और को मिलता है। वो (नरेंद्र मोदी) सिर्फ 15 सबसे अमीर लोगों के लिए काम कर रहे हैं। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। लेकिन उनका कर्ज माफ नहीं होता ना होने के आसार हैं। बीजेपी को दो तीन लोग चला रहे। एक मोदी, दूसरे शाह और तीसरे और सबसे आरएसएस प्रमुख। ये लोग देश को अपना गुलाम नहीं बना सकते। यह स्थिति बदलेगी। आरएसएस ओबीसी को बांटना चाहता है। कांग्रेस के समय में हम जो चाहते थे, वह कह देते थे। लेकिन आज कोई भी खुलकर नहीं बोल भी नहीं पाता है। किसान दिनभर काम करता है लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी के दफ्तर में किसान नहीं दिखता न ही उनका कोई प्रतिनिधि। एनपीए 10 लाख करोड़ रुपए से ऊपर हो गया है, ढाई लाख करोड़ रुपए उद्योगपतियों के माफ किए गए हैं।

ओबीसी सम्मेलन के मंच पर मौजूद नेतागण

कांग्रेस और बीजेपी में यही फर्क है कि कांग्रेस में जनता जनार्दन है जबकि बीजेपी में आरएसएस पार्टी को चलाती है। अगर हिंदुस्तान को आगे बढ़ना है तो पचास से पचपन फीसदी आबादी मतलब ओबीसी को आगे बढ़ाना होगा। पूरा विपक्ष एक साथ बीजेपी के खिलाफ खड़ा हो गया है। नरेंद्र मोदी, अमित शाह, मोहन भागवत को हिंदुस्तान की ताकत समझ आ जाएगी। रोजगार देने का वादा किया गया था। राहुल ने कहा कि कांग्रेस ध्यान रखेगी, रिजर्वेशन, एजुकेशन सभी मुद्दों पर आपके साथ खड़े रह सकें। राहुल ने कहा- “अशोक गहलोतजी ने कहा कि थोड़ी सी जगह ओबीसी को भी कांग्रेस में मिलनी चाहिए। ये बात मुझे अच्छी नहीं लगी। ये जो थोडी सी जगह शब्द है,  इसको आप हटा दीजिए, हमारा संघर्ष 70 साल से ओबीसी के साथ है।”

क्या है इतिहास

भारत में आधुनिक राजनीतिक विश्लेषक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी से दो दशक पहले अंग्रेजों द्वारा कराई गई अंतिम जाति आधारित जनगणना के अनुसार, उस समय देश की जनसंख्या में 51 प्रतिशत हिस्सा ओबीसी का था। परंपरागत रूप से कांग्रेस का जनाधार माना जाने वाला ओबीसी समाज मंडल राजनीति के उदय के बाद सभी बड़े राज्यों में पार्टी से दूर हो गया। ओबीसी राजनीति के उभार ने कांग्रेस को कमजोर कर दिया।” साथ ही कहा जा रहा है कि राजनीतिक रूप से बेहद अहम माने जाने वाले राज्य यूपी में, जहां कांग्रेस जिस समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन बनाती दिख रही है, वहां उसी पार्टी ने ओबीसी राजनीति से बहुत कुछ हासिल किया है। उसी तरह से बिहार में आरजेडी को ओबीसी राजनीति का फायदा मिला। 65 प्रतिशत ओबीसी आबादी वाले तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में डीएमके और एआईएडीएमके जैसी पार्टियां इसी ओबीसी राजनीति पर सवार होकर सत्ता में आईं। केरल में ओबीसी आबादी लगभग 69 प्रतिशत है और इस समुदाय का पूरा समर्थन वाम दलों को मिलता रहा है।

बहरहाल, राहुल गांधी के भाषण से पहले राज्यों से आए ओबीसी समाज के वक्ताओं ने कहा कि जनसंख्या के अनुपात में ओबीसी को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। कई ओबीसी नेताओं ने आरक्षण नीति लागू करने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा उठाए गए कदमों को याद किया। कुछ वक्ताओं ने मोदी सरकार से जाति आधारित जनगणना के आंकड़ों को जारी करने की मांग की। कांग्रेस के राज्यसभा सांसद बीके हरिप्रसाद ने कहा कि आरक्षण को अक्सर प्रतिभा को कुचलने के साधन के तौर पर बताया जाता है लेकिन यह एक झूठ है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इस समय देशभर के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में 436 महाप्रबंधक काम कर रहे हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ 6 अधिकारी ही ओबीसी वर्ग से आते हैं।

(कॉपी एडिटर : नवल)

(13 जून, 2014 को अपराह्न 3.10 बजे संपादित व परिवर्धित)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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