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भगत महतो का पीएचडी प्रवेश बहाल, विश्वविद्यालय को झुकना पड़ा

आखिरकार महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय को छात्रों की एकता के सामने झुकना पड़ा। भगत महतो का पीएचडी में प्रवेश का रास्ता साफ हो गया। जिसे विश्वविद्याल ने मनमाने तरीके से रद्द कर दिया था। लेकिन प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति पैदा ही क्यों हुई? पूरे घटनाक्रम के बारे में बता रहे हैं, कमल चंद्रवंशी :

महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के युवा और प्रतिभाशाली आदिवासी शोध स्कॉलर भगत नारायण महतो का पीएच-डी में प्रवेश बहाल हो गया है। इस मामले में विश्वविद्यालय प्रशासन को पूरी तरह से यू-टर्न लेने पर मजबूर होना पड़ा। बताया जा रहा है कि दलित अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफसर लेल्ला कारुण्करा ने कुलपति को अपनी नई अनुशंसा में लिखा है कि मानवीय आधार पर पीएचडी छात्र भगत नारायण महतो को फिर से दलित आदिवासी अध्ययन केंद्र में प्रवेश दिया जा सकता है।

भगत नारायण महतो का पीएच-डी में प्रवेश रद्द करने का विरोध करते छात्र

बताते चलें कि सोमवार को महतो विश्वविद्यालय के उत्पीड़न से इतने परेशान हो गए कि उनको हाईपरटेंशन की स्थिति में अस्पताल के आईसीयू में भर्ती करना पड़ा। वह दिन में कुलपति और विश्वविद्यालय प्रशासन के तमाम अधिकारियों से मिलकर ज्यों ही बाहर निकले, गहरे अवसाद की स्थिति में विश्वविद्यालय भवन के पास ही अचेत होकर गिर पड़े। अस्पताल के मुताबिक, उनकी दिल की घड़कनें तेज थीं। रक्तचाप में भारी उतार-चढ़ाव हो रहा था, जिसके चलते वह बेहोश होकर गिर गए थे। विश्वविद्यालय के उनके सहयोगी छात्रों ने उनको फौरन अस्पताल पहुंचाया। उनको सेवा ग्राम अस्पताल के इमरजेंसी में भर्ती किया गया, लेकिन डॉक्टरों ने हालत नाजुक देखते हुए उनको आईसीयू में रेफर कर दिया। लेकिन देर शाम को उनकी हालत सुधरने पर साथी छात्र हॉस्टल लाये।

विश्वविद्यालय के ताजा फैसले से विश्विविद्यालय परिसर और महतो के दोस्तों में खुशी की लहर है। उनका कहना है कि यह सच्चाई की जीत है और हम छात्र एकता और फारवर्ड प्रेस के आभारी हैं जिन्होंने हर कदम पर साथ दिया और हमारी आवाज को उठाया।

महतो के साथ हॉस्टल के सहयोगी शोधार्थी छात्र ने बताया, भगत नारायण महतो को इन कुछ दिनों में इतना धमकाया गया था कि उनकी तबीयत ख़राब हो गई। मैं सोमवार को दिनभर उनके साथ था। हम सब लोग कुलपति गिरिश्वर मिश्रा से मिले थे और विश्वविद्यालय की उस कमेटी के बारे में जानकारी दी, जिसका कैंपस में फिलहाल एक ही सदस्य मौजूद था। लेकिन तनाव से महतो के अचेत स्थिति में जाने के बाद ही विश्वविद्यालय प्रशासन नींद से जागा, क्योंकि किसी भी अनहोनी के लिए आखिरी जिम्मेदारी उन पर आनी तय थी।

तेजी से बदला घटनाक्रम : सोमवार को कुलपति और छात्रों के बीच बैठक के ऑडियो से पता चलता है कि कुलपति गिरीश्वर मिश्र छात्र की फरियाद को डिक्टेट” करने कोशिश कह रहे हैं और काफी आगबबूला होकर कह रहे हैं कि मेरे कमरे में आप लोग जिस तरह आए हैं वो सिर्फ अनावश्यक दबाव बनाने की कोशिश है।मंगलवार सुबह इस संवाददाता ने कुलपति कार्यालय से संपर्क किया तो वहां से बताया गया कि अगर आपके पास ऑडियो है तो फिर कुलपति से क्या बात करेंगे। वही उनका पक्ष है। 

दलित अध्ययन केंद्र के निदेशक प्रोफसर लेल्ला कारुण्करा और कुलपति गिरिश्वर मिश्र

इस नए घटनाक्रम के दौरान प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा हैदराबाद में थे और शाम होते होते बिना देर किए उन्होंने फौरन अपनी पूर्व की अनुशंसा को नजरअंदाज कर नई सिफारिश भेजी। लेल्ला कारुण्यकरा दलित बहुजन मामलों के नामी लेखक भी हैं।

क्या है मामला :  बताते चलें कि भगत नारायण महतो थारू आदिवासी जनजाति के एक होनहार स्कॉलर है और उन्होंने वर्धा विश्वलिद्यालय से ही एम.फिल किया था। उन्होंने दिसंबर 2017 में पीएचडी के लिए प्रवेश लिया था लेकिन यहां कथित तौर परज़रूरी हाज़िरी नहीं होने औऱ नियमानुसार रजिस्ट्रेशन से पहले शोध प्रबंध के बारे में सेमीनार में प्रस्तुति नहीं देने को आधार बनाकर उनका प्रवेश रद्द कर दिया गया था। आदिवासी छात्र के साथ उत्पीड़न की दास्तां तब शुरू हुई जब निदेशक लेल्ला कारुण्यकरा ने अपनी संस्तुति में लिखकर दिया था कि छात्र नियमों से इतर गैरहाजिर रहा और सेमिनार में प्रस्तुति नहीं दी।

मंगलवार शाम को अपनी अनुशंसा भेजने से पहले प्रोफेसर लेल्ला कारुण्यकरा से हमने ताजा घटनाक्रम पर संपर्क किया तो उनका कहना था कि भगत के बारे में जो भी आदेश दिया है वो विश्वविद्यालय का है, मैं सिर्फ विभागाध्यक्ष हूं। मैं इस समय हैदराबाद में हूं और इस मामले में पहले ही आपको अपना पक्ष बता चुका हूं। प्रोफेसर लेल्ला ने पिछले हफ्ते कहा था- मैं व्यक्तिगत रूप से भगत या किसी भी अन्य छात्र के खिलाफ नहीं हूं। मैं खुद भारतीय दलित समाज से हूं और इसके नाते मुझे पता है कि एससी/एसटी/ओबीसी छात्रों के सामने कितनी सारी कठिनाइयां आती हैं। इन कठिनाइयों को मैं समझता हूं। लेकिन मैं यूजीसी के नियमों से बाहर नहीं जा सकता- किसी भी छात्र के लिए यूजीसी के नियम नहीं तोड़ सकता। चाहे वह किसी विशेष समाज से ही क्यों ना संबंधित हो। भगत ने पीएचडी छुट्टियों को लेकर बार-बार यूजीसी के नियमों को तोड़ा है। इसलिए, उनका प्रवेश अस्थाई तौर पर रद्द कर दिया गया है। इस मामले को देखने के लिए विश्वविद्यालय ने एक समिति गठित की है। दुर्भाग्य से, मुझे लक्ष्य करते हुए एबीवीपी (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) ने इस मुद्दे को राजनीतिक हवा दी है। इस मामले में एबीवीपी ने मेरे खिलाफ विश्वविद्यालय से शिकायत की है। इसलिए अब सवाल सिर्फ भगत के प्रवेश के बारे में ही नहीं बल्कि मेरी सत्यनिष्ठा का भी है। विश्वविद्यालयी समिति ही तय करेगी कि आगे क्या अच्छा है और क्या होना चाहिए।”

अब विश्वविद्यालय प्रशासन पूरी तरह से बैकफुट पर है लेकिन कुछ सवाल अब भी मुंह बाए खड़े हैं। जानकारी के अनुसार महतो को हुए तनाव के पीछे सिर्फ कुलपति के साथ निराशाजनक मुलाकत ही जिम्मेदार नहीं है बल्कि ‘पवित्र दलित परिवार’ (पीडीपी) नामक संगठन का भी कम हाथ नहीं है। पीडीपी पर कथित तौर पर आरोप लगा कि उसने छात्र को माफीनामा लिखने का दबाव डाला। जबकि छात्रों का कहना था- हम माफी मांगने के लिए तैयार थे लेकिन इतना तो बता दिया जाए की किस बात के लिए माफी मांगे। कोई आधार तो हो। जहां तक सवाल केंद्र निदेशक के बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन को आरएसएस के छात्र संगठन एबीवीपी शिकायत का है तो हमारा साफ कहना है कि उसमें भगत महतो को सिर्फ ढाल की तरह इस्तेमाल किया गया, क्योंकि एबीवीपी के पास दो साल अपनी राजनीति चमकाने के लिए कोई मुद्दा नहीं मिल रहा था। पीडीपी संगठन के बारे में पता चला है कि इसे विश्वविद्यालय प्रशासन के नजदीकी लोगों का संरक्षण प्राप्त है जिसमें कथित तौर पर केंद्र निदेशक का भी नाम लिया जाता है।

गंभीर हालत में आईसीयू मेंं भर्ती भगत नारायण महतो

गौरतलब है कि महतो बिहार के चंपारण जिले से हैं और थारू आदिवासी जनजाति से आते हैं। थारू आदिवासी जातियां बिहार के अलावा उत्तराखंड में भी हैं जो सामाजिक आर्थिक रूप से बहुत पिछड़े और हाशिये में छिटके समुदाय हैं। महतो के कंधों पर परिवार के देखभाल का भी जिम्मा है।

इस बीच अकादमिक क्षेत्र से जुड़े देशभर के लोगों ने भगत नारायण प्रकरण पर गहरी चिंता जाहिर की थी। ए. के. पंकज ने अपने एक सोशल मीडिया पेज पर लिखा है कि तत्काल जरूरत इस बात की है कि भगत को पूरा समर्थन मिले ताकि वह मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से स्वस्थ रहें। हम जानते हैं कि छात्र अध्यापक का रिश्ता सदा एक-सा नहीं रहता। हम अनुरोध करते हैं कि वे इस मामले को संजीदा से लें। हर जान कीमती है। हम स्वयं को एक परिवार मानें। पीएमओ और महाराष्ट्र के सीएम को टैग करते हुए एक छात्र ने लिखा है- हम बढ़चढ़कर अपने आप को आदिवासी चिंतक और उनका हितैषी कहते हैं आदिवासियों के साथ असली अन्याय होता है तो अंधेरों में जाकर छिप जाते हैं।

महतो को पूरे प्रकरण में सोशल मीडिया पर जोरदार समर्थन मिला और विश्वविद्यालय की खासी किरकिरी हुई। लेकिन इस प्रकरण के बाद जैसी दूरियां छात्रों के मन में घर कर गई हैं, उसे मिटाकर अकादमिक माहौल तैयार करने की  चुनौती अब विश्वविद्यालय के सामने है। जिसके पास दूरदराज से आई प्रतिभाओं की एक ऐसी प्रगतिशील पीढ़ी है जो देश को नये मुकाम पर पहुंचाने का माद्दा रखती है।

(कॉपी-संपादन : सिद्धार्थ)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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