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उत्तर प्रदेश : झूठे मुकदमों में फंसाए जा रहे आदिवासी

आदिवासी चाहे बस्तर के जंगलों में रहने वाले हों या फिर गंगा के मैदानी भाग में, उनका दमन जारी है। जल, जंगल और जमीन से जबरन दूर किये जा रहे आदिवासियों के विरोध को दबाने का पुलिसिया तरीका भी एक समान है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में रहने वाले आदिवासियों को किस तरह झूठे मुकदमे में फंसाया जा रहा है, बता रहे हैं पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एस. आर. दारापुरी

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के नौगढ़ तहसील में अच्छी खासी संख्या आदिवासियों की है जिन्हें आज भी न्यूनतम अधिकार तक नहीं मिले हैं। वैसे तो पूरे प्रदेश में आदिवासियों की हालत अच्छी नहीं है। उसपर से कोल, खरवार, गोंड, थारु, धांगर, उरांव समेत कई आदिवासी समुदायों को अलग-अलग जिलों में अलग-अलग कैटेगरी (ओबीसी, एससी और एसटी) में बांट दिया गया है, जिसके कारण प्रदेश में एक भी संसदीय सीट आदिवासियों के लिए आरक्षित नहीं है, साथ ही इन्हें वनाधिकार कानून 2006 के तहत वनभूमि पर मिले अधिकार से भी वंचित होना पड़ रहा है।

आदिवासियों का जंगल से हमेशा नाता रहा है। आमतौर पर पूरे प्रदेश में आदिवासी पुश्तैनी रुप से वनभूमि पर ही बसे हैं। वनभूमि पर अधिकार के लिए देश के सभी आदिवासियों ने एक लंबा आंदोलन किया, जिसके फलस्वरुप संसद द्वारा वनाधिकार कानून 2006 बनाया गया। लेकिन इस कानून को उत्तर प्रदेश में मजाक बनाकर रख दिया गया। प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत जमा किए गए 92,433 में से 73,416 दावे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए और सुनवाई का अवसर दिए खारिज कर दिए गए। इनमें से सोनभद्र जनपद में 65,526 दावों में से 53,506 दावे, चंदौली में 14,088 में से 13,998 दावे, मिर्जापुर में 3,413 में से 3,128 दावे खरिज किए गए। एक तरफ यहां वन माफिया पुलिस और वन विभाग के संरक्षण में मौज मारता है वहीं दूसरी ओर आदिवासियों को उनके पुश्तैनी वनभूमि पर अधिकार नहीं मिलने के कारण आए दिन वन विभाग और पुलिस के जोर-जुल्म का शिकार होना पड़ता है।

पुलिसिया दमन के खिलाफ सोनभद्र जिले में एक जनसभा के दौरान आदिवासी महिलाएं

इसी पृष्ठभूमि में बीते 19 मई को सोनभद्र जिले के लीलासी गांव में 12 महिलाओं को वनभूमि विवाद में जेल भेजे जाने की घटना अखबारों द्वारा संज्ञान में आने के बाद स्वराज अभियान से जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा और मजदूर किसान मंच की टीम ने 20 मई को म्योरपुर थाने के लीलासी गांव का दौरा किया और ग्रामीणों से बातचीत के बाद यह पाया कि गिरफ्तार की गयी महिलाओं को वन भूमि से नहीं अपितु उनके घरों से गिरफ्तार किया गया है। जांच करके सत्यता सामने लाने की यह सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही भी सोनभद्र के पुलिस अधीक्षक को बेहद नागवार लगी। एफआईआर में नाम तक न होने के बाद भी एसपी के निर्देश पर 22 मई 2018 को लीलासी गांव में आदिवासियों व वन विभाग और पुलिस के बीच हुई विवाद की घटना के बाद जांच टीम के सदस्यों को सबक सिखाने के लिए उनके घरों पर छापे डाले जाने लगे।

जांच टीम के सदस्य मुरता के प्रधान डा. चंद्रदेव गोंड को 26 मई को एडीओ पंचायत दुद्धी फोन करके कहते हैं कि एसडीएम दुद्धी आपसे बात करना चाहते हैं। इस पर डा. चंद्रदेव द्वारा एसडीएम दुद्धी को फोन किया जाता है तो वह गांव की पेयजल समस्या पर वार्ता करने के लिए अपने कार्यालय बुलाते हैं जहां से दुद्धी पुलिस द्वारा उन्हें गिरफ्तार कर चोपन थाने ले जाया गया। चोपन थाने में 26 मई को आधी रात को  खुद एसपी जाते हैं और चंद्रदेव पर सरकारी गवाह बनने के लिए दबाव बनाते हुए कहते हैं कि तुम सरकारी गवाह बन जाओ तो बाकी लोगों की हम नेतागिरी छुड़वा देंगे। इससे इंकार करने पर चोपन से ही उनको जेल भेज दिया जाता है और फर्जी तरीके से दिखाया जाता है कि उन्हें 27 मई को मुखबीर की सूचना पर आश्रम मोड़ म्योरपुर से गिरफ्तार किया गया है।

वहीं ओबरा विधानसभा से स्वराज अभियान के प्रत्याशी रहे कृपाशंकर पनिका को 23 जून को उनके घर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। अभी भी जांच टीम के अन्य सदस्य मजदूर किसान मंच के जिला संयोजक राजेन्द्र प्रसाद गोंड़ और मजदूर किसान मंच के सह संयोजक देव कुमार विश्वकर्मा की गिरफ्तारी के लिए उनके घरों पर छापे डाले जा रहे है और स्वराज अभियान, मजदूर किसान मंच और आदिवासी वनवासी महासभा के अन्य नेताओं को भी पुलिस द्वारा मुकदमे में फंसाने की कोशिश की जा रही है।

गौरतलब है कि खनिज और संसाधनों से भरपूर सोनभद्र में प्रदूषित पानी और मलेरिया जैसी बीमारियों से हर वर्ष बड़े पैमाने पर बच्चों और ग्रामीणों की असमय मौतें होती हैं। बड़े पैमाने पर टमाटर पैदा करने वाले किसानों को उचित मूल्य और संरक्षण न होने के कारण हर वर्ष अपना टमाटर फेंकना पड़ता है। किसानों की फसल की खरीद नहीं होती और उसका वाजिब दाम नहीं मिलता। मनरेगा ठप्प पड़ी हुई है। पानी के जबर्दस्त संकट से यह क्षेत्र गुजर रहा है। अंधाधुध खनन से पर्यावरण व आम जनता का जीवन खतरे में है। कुल मिलाकर इस पूरे इलाके की स्थिति भयावह बनी हुई है। यहां के लिए जरूरी इन सवालों को हल करने की जगह अब अगला हथियार आ गया है कि राजनीतिक कार्यकर्ता बयान तक न दें। बयान देने की सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही पर चौतरफा दमन ढाया जा रहा है और इस दमन अभियान को एसपी खुद नेतृत्व दे रहे हैं।

(कॉपी एडिटर – राजन)


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लेखक के बारे में

एस.आर. दारापुरी

एस.आर. दारापुरी पूर्व पुलिस महानिरीक्षक, उत्तर प्रदेश व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वर्तमान में वे ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं

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