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डॉ. आम्बेडकर के पौत्र ने केंद्र सरकार को आगाह किया

बीते 11 जून को देहरादून में एक कार्यक्रम में भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर के पौत्र भीमराव यशवंत ने दलित व पिछड़े समाज की पीड़ा रखी और सरकारों को आगाह किया। साथ ही यह भी कहा कि दलित समाज वोट की चोट से शासकों को सबक सिखाएं। कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट :

वोट की चोट से सिखाएंगे सबक : यशवंत आंबेडकर भीमराव

यशवंत आंबेडकर ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि 2019 के आगामी लोकसभा चुनाव में अपने वोट की चोट से दलित, आदिवासी और ओबीसी समाज केंद्र सरकार को करारा जवाब देगी। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद भी अभी तक दलित पिछड़े समाज की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। पिछली सरकारों ती तरह वर्तमान की केंद्र सरकार ने भी हमारे समाज की अनदेखी की है। इसका खामियाजा उसे 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ेगा। यशवंत आंबेडकर ने कहा कि धरना-प्रदर्शन और आंदोलन के जरिए सरकार को जगाने का समय आ गया है। उत्तराखंड में एससी एसटी कीeddkar स्थिति विचार के लिए देहरादून में सोमवार 11 जून को एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के पौत्र भीमराव यशवंत आंबेडकर मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए।

देहरादून में आयोजित कार्यशाला के दौरान मंच पर यशवंत आंबेडकर व अन्य

उन्होंने कहा केंद्र में जब से बीजेपी की सरकार आई है, तब से दलित-बहुजन समाज के लोगों के लिए नौकरियां खत्म हो गई हैं क्योंकि सरकार ज्यादातर काम सिर्फ ठेकों पर करवा रही है। बीजेपी की अनेक राज्यों में सरकार है तो कई में गठबंधन की सरकारें हैं। यहां हर जगह दलित बहुजन पर अन्याय हो रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र अन्याय अत्याचार बढ़ रहे हैं। दोनों राज्य इसमें सबसे आगे हैं। लेकिन हमारा समाज आज जाग उठा है। लोग इकठ्ठा हो रहे हैं। कई जगहों पर राजनीतिक दल हैं, वह उन झंडों के नीचे जमा हो रहे हैं। जहां राजनीतिक दल नहीं हैं वहां दलित बहुजन तबका खुद ही आंदोलन करता है। मैं एक उदाहरण देता हूं। 2 अप्रैल को भारत बंद हुआ। इसके लिए किसी लीडर ने ऐलान नहीं किया लेकिन लोगों ने देखा कि चार साल में दलितों पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। सरकार ने नौकरियों में भर्तियां रोकी हुई हैं। वह ज्यादातर कोशिश में है कि सारा काम निजी हाथों में चला जाए, ठेकों में चले। इसके रोष में लोग खड़े हो गए हैं। बाबा साहब ने कुछ और सपना देखा था। देश के बाहर हमारी जो छवि जा रही है वह एक बिगड़ी हुई छवि जा रही है। देश संविधान से नहीं चल रहा है, इसलिए यह स्थिति बनी है। किसी भी दल ने आज तक ठीक से कोशिश नहीं की। संविधान को ठीक से लागू नहीं करने के ये नतीजे निकल रहे हैं।

यशवंत आंबेडकर ने आगे कहा कि मैं समझता हूं कि आज दलित बहुजन सभी जगह एक हो रहे हैं। मेरा सोचना है कि उन सबको एक साथ आगे बढ़कर मंच पर आना होगा। जैसे कि आज उत्तराखंड अनुसूचित जाति-जनजाति परिषद की बैठक से जो मैसेज जाएगा वह एक बड़ा संदेश होगा। एक साथ आना जरूरी है। इस सेमिनार की आवाज निश्चित ही सरकार तक भी जाएगी। यशवंत आंबेडकर ने कहा कि दलित बहुजन को एकजुट होकर अपनी लड़ाई लड़नी होगी। जब तक हम एकता नहीं दिखाएंगे, हमारा उत्पीड़न होता रहेगा।

भारतीय बौद्ध महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भीमराव यशवंत आंबेडकर का यह पहला देहरादून दौरा था। उनको पहाड़ के लोगों के भी विचार सुनने को मिले। उन्होंने कहा कि आरक्षण को लेकर जो स्थिति देश के तमाम राज्यों में है, लगभग वही स्थिति उत्तराखंड में भी है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों से मांग करते हुए कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आरक्षण को लेकर दिए गए निर्णय का पालन किया जाए ताकि आरक्षण का उचित लाभ लाभार्थियों को मिल सके। सेमिनार एससी-एसटी शिक्षक एसोसिएशन उत्तराखंड की ओर से किया गया। उन्होंने कहा कि यह देखा जा रहा है कि जहां-जहां बीजेपी की सरकारें हैं, वहां दलित उत्पीड़न के मामले बढ़े हैं। इसे रोका जा सकता है लेकिन एकजुटता के बिना यह संभव नहीं है। हमें हकों की लड़ाई लड़नी होगी।

कार्यशाला में शामिल लोग

इस मौके पर राज्य के पूर्व शिक्षा निदेशक और अनुसूचित जनजाति कल्याण परिषद के अध्यक्ष सीएस ग्वाल ने भी विचार रखे। उन्होंने कहा कि हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है कि हम आरक्षण की बात आने पर शर्म सी महसूस करते हैं। ये किसी की दया नहीं है हम पर। ये हमारा अधिकार है जो संविधान ने हमें दिया है। हमे संवैधानिक प्रावधानों के तहत आर्थिक सुरक्षा दी गई है। इसका उल्लंघन कोई सरकार या उसकी एजेंसियां नहीं कर सकती। मुख्यमंत्री भी नहीं कर सकते। पत्रकार शंभू कुमार ने कहा कि मैं सिर्फ उत्तराखंड की बात नहीं करता। सारे देश में हालात ये हो चुके हैं कि किसी सवर्ण के घर दलित समाज के लोगों को किराए का घर नहीं मिलता है। उत्तराखंड में दलितों में घर घुसने पर ब्राह्मण ठाकुर परिवारों की दादियां उन घरों की दादियां पूरे घर को पानी से धोकर शुद्धिकरण करती हैं। दलित के पास आज सिर्फ वोट और आरक्षण है। जिसके सही इस्तेमाल से वे अपने समाज का विकास कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि हक चाहिए तो अपनी सरकार और अपनी नौकरशाही बनानी होगी। सेमिनार में कहा गया कि कई राजनीति में एससी-एसटी की भूमिका,  राजनैतिक दलों की मंशा, वोट के ताकत सहित तमाम मुद्दों पर अपने विचार रखे। भारतीय दलित साहित्य अकादमी के प्रदेश अध्यक्ष प्रोफेसर जयपाल ने भी सभी संगठनों को अलग-अलग लड़ने के बजाए एकजुट होकर लड़ने की सलाह दी।

सम्मेलन में भारतीय बौद्ध महासभा के राष्ट्रीय महासचिव एसएस वानखेडे, पूर्व आईएएस चंद्र सिंह, हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश कांता प्रसाद, एससीईआरटी के संयुक्त निदेशक रघुनाथ लाल आर्य भी शामिल हुए। संगठन के संयोजक मदन कुमार शिल्पकार ने कहा कि दलित-बहुजन समाज के लोगों को सियासत में आना जरूरी है। बिना उसके लड़ाई अधूरी रहेगी। मदन कुमार के भाषण पर हंगामा हुआ। उन्होंने मंच से ही कहा कि वो पौड़ी गढ़वाल सीट से 2019 लोकसभा का चुनाव बीएसपी के बैनर से लड़ेंगे। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष संजय भाटिया, एसोसिएशन के प्रांतीय महामंत्री जितेंद्र बुटोइया और सोहन लाल सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और स्थानीय लोग मौजूद रहे।


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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