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नवल किशोर को मिली धमकियों से संबंधित तथ्य

फारवर्ड प्रेस के लिए धमकियां कोई नई बात नहीं हैं। जिस नवल किशोर कुमार को जान मारने की धमकियां दी जा रही हैं वे केवल एक पत्रकार नहीं हैं बल्कि संवेदनशील कवि भी हैं। वहीं ब्रह्मेश्वर मुखिया एक आतंक का नाम है जिसने मानवता को शर्मसार किया। इन धमकियों के मद्देनजर फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक प्रमोद रंजन का जवाब

फारवर्ड प्रेस के हिंदी-संपादक नवल किशोर कुमार को रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया के समर्थकों की ओर से पिछले तीन दिनों से लगातार धमकियां मिल रही हैं। ऐसी ही धमकियां एनडीटीवी के सीनियर एक्सक्यूटिव एडिटर रवीश कुमार को पिछले महीने मिलीं थीं। अभी पांच दिन पहले, 25 मई को उन्होंने अपना चर्चित कार्यक्रम प्राइम टाइम इसी को केंद्र में रख कर किया था। अपने कार्यक्रम में उन्होंने बताया था 25 और 26 अप्रैल को उन्हें गालियों और धमकियों से भरे हजारों फोन आए। उन्हीं के कार्यक्रम से हमने जाना कि स्वतंत्र पत्रकार राणा अयूब के साथ भी ट्रोल करने वालों ने बुरा सलूक किया है। रवीश के अनुसार धमकी देने वाले ये लोग स्वयं को हिदुत्व का रक्षक मानते हैं तथा नरेंद्र मोदी के समर्थक हैं। लेकिन नवल को धमकी देने वालों की पड़ताल करने पर हमने पाया कि इसकी जड़ें धर्म से कहीं अधिक जाति में है। नवल को फोन करने वालों में से कई ने दावा किया कि उन्होंने रवीश कुमार को भी फोन करके गालियां दी हैं।

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रणवीर सेना बिहार की सामंती जाति भूमिहारों का संगठन है। यह जाति अरसे से ब्राह्मण कहलाने के लिए संघर्ष कर रही है। लेकिन ब्राह्मण उन्हें अपने बराबर का दर्जा नहीं देते। जाति-व्यवस्था में त्रिशंकु की तरह लटकी यह जाति अपने जीवट और आक्रामक व्यहार के लिए जानी जाती है, जिसने एक जमाने में सहजानंद सरस्वती जैसे महापुरूष को जन्म दिया था।

1990 के दशक में  इसी जाति से आने वाले ब्रह्मेश्वर मुखिया ने रणवीर सेना का गठन किया। इस संगठन ने मुखिया के नेतृत्व में भोजपुर, गया, जहानाबाद आदि जिलों के विभिन्न गांवों की दलित-ओबीसी बस्तियों में नरसंहारों को अंजाम दिया तथा लगभग 300 लोगों की हत्याएं कीं।  इन नरसंहारों के साजिशकर्ता के रूप में मुखिया वर्षों तक भूमिगत रहा। इस दौरान पुलिस ने उस पर पांच लाख रूपए का ईनाम घोषित कर रखा था। 29 अगस्त 2002 को उसे पटना के एक्जीबिशन रोड से गिरफ्तार किया गया था। वह नौ साल तक जेल में रहने के बाद आठ जुलाई 2011 को जमानत पर  रिहा हुआ। वह 277 लोगों की हत्या से संबंधित 22 अलग-अलग आपराधिक मामलों (नरसंहार) में अभियुक्त था। इनमें से 16 मामलों में उसे साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था। बाकी छह मामलों में वह जमानत पर था। इन्हीं मामलों में से एक, बथानी टोला मामले में सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा कि मुखिया फरार है जबकि वह उस समय जेल में था। फरार घोषित किए जाने के कारण उस समय उसे इस मामले में  सज़ा नहीं हो सकी थी। बाद में उसे इस मामले में भी हाईकोर्ट से जमानत मिल गई थी। कुछ अज्ञात लोगों ने एक जून, 2012 को ब्रह्मेश्वर मुखिया की हत्या कर दी थी, जिसकी जांच सीबीआई कर रही है।

फारवर्ड प्रेस का जुलाई 2012 का अंक जिसकी कवर स्टोरी नवल किशोर कुमार ने लिखी थी

नवल किशोर रणवीर सेना पर लंबे समय से काम करते रहे हैं। ब्रह्मेश्वर मुखिया एक मात्र उपलब्ध मुकम्मल वीडियो इंटरव्यू भी उन्होंने ही किया था। वह भी अपने लैपटॉप के कैमरे से! पटना के पुनाईचक मोहल्ले के एक मकान में किए गए उस इंटरव्यू में वह मुखिया से सवाल पूछते तो लैपटॉप अपनी ओर घुमा लेते और जब वह जबाव देता तो लैपटॉप उसकी ओर कर देते! आप समझ सकते हैं कि एेसी साधन विहीन पत्रकारिता के लिए कैसे जीवट की आवश्यकता होती है। फारवर्ड प्रेस के प्रिंट संस्करण के मार्च, 2012 अंक में हमने उस इंटरव्यू को प्रकाशित किया था। वह इंटरव्यू हमारे यूट्यूब चैनल पर भी उपलब्ध है।

मुखिया की हत्या के बाद उसके समर्थकों ने पटना में खूब उत्पात मचाया था। उनके द्वारा की गई आगजनी आदि में दर्जनों लोग घायल हुए थे तथा करोडों रूपए की सरकारी संपत्ति स्वाहा हो गई थी। इसके बावजूद बिहार के अखबारों में यह साहस नहीं था कि वे एक हत्यारे को हत्यारा कह सकें। वे उसका महिमामंडन करने में जुटे थे। वे उसे ‘गांधीवादी’, ‘राष्ट्रवादी’, ‘ महान किसान नेता’ और न जाने क्या-क्या बता रहे थे। अखबारों के इस रूख से दलित-पिछडा समाज सहमा हुआ था।

उस समय, फारवर्ड प्रेस के प्रिंट संस्करण के जुलाई, 2012 अंक में हमने नवल किशोर की ही रिपोर्ट को  कवर स्टोरी बनाया था। हमने उसे शीर्षक दिया था : ‘किसकी जादूई गोलियों ने ली बिहार के कसाई की जान?’ उसी अंक में हमने दलित चिंतक कंवल भारती से भी एक लेख लिखवाया। उसका शीर्षक था- ‘हत्यारे की हत्या पर दु:ख कैसा?’

उस अंक के माध्यम से हमने दलित-पिछडों की भावनाओं को आवाज दी थी, साथ ही यह भी बताया कि मजलूमों की हत्या करने वालों को आदर्श के रूप में हम स्वीकार नहीं करेंगे। वह अंक बहुत पसंद किया गया था। लोगों ने उन दोनों लेखों की बडी संख्या में फोटो-प्रतियां करवा कर वितरित कीं।

गत 27 मई को उसी ब्रह्मेश्वर मुखिया के समर्थक लगभग सारी रात फोन करके नवल किशोर कुमार को धमकियां देते रहे। मामला नवल के निजी फेसबुक वॉल से जुड़ा था और फारवर्ड प्रेस के लिए आई एक खबर से भी।

लगभग 15 दिन पहले ‘अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन’ के एक पदाधिकारी ने उन्हें ब्रह्मेश्वर मुखिया की एक प्रतिमा की तस्वीर भेजी थी तथा बताया था कि वे लोग मुखिया के जन्म-स्थल भोजपुर के गांव खोपिरा में उसकी स्थापना करने जा रहे हैं। स्थापना कार्यक्रम एक जून को होगा। ‘अखिल भारतीय राष्ट्रवादी किसान संगठन’ दरअसल रणवीर सेना का ही बदला हुआ नाम है। इस संगठन की स्थापना ब्रह्मेश्वर मुखिया ने ही 5 मई, 2012 को की थी। इसके कुछ ही दिन बाद उसकी हत्या हो गई थी। इस संगठन के सर्वेसर्वा अभी उसके पुत्र इंदूभूषण हैं।

नवल किशोर कुमार को धमकी दिये जाने पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया आने के बाद रणवीर सेना के समर्थक द्वारा किया गया एक पोस्ट

रणवीर सेना जैसे संगठनों के लोग अपनी चर्चा करवाने के लिए अक्सर ऐसी खबरें पत्रकारों को भेजते रहते हैं। बडी संख्या में इनके समर्थक पत्रकार विभिन्न अखबारों में हैं। लेकिन नकारात्मक छवि के बूते अपना धंधा चलाने वाले इन संगठनों को अपने ‘विरोधी’ पत्रकारों से भी उम्मीदें रहती हैं। दरअसल, इनके दोनों हाथ में लड्डू होते हैं। आप इनका जितना विरोध करेंगे, उतना ही इनका फायदा भी होगा।

इसे ऐसे समझें। बिहार के जो अपराधी कुछ साल पहले तक पत्रकारों को फोन करके अनुनय करते थे कि खबरों में उन्हें ‘बाहुबली’ लिखा जाए, वे आज विधायक और सांसद हैं। उनमें से कुछ को सजा हो गईं तो अब उनकी पत्नियां राजनीति में हैं। इस तरह की नकारात्मक खबरों को फैलाने का भी पूरा एक चक्र चलता है। यही कारण है कि रणवीर सेना जैसे संगठन नवल किशोर जैसे विरोधी पत्रकारों को अपनी खबरें देना नहीं भूलते।

उनकी खबरों को उनके समर्थक पत्रकार तो महिमामंडित करके प्रकाशित करते ही हैं। अगर विरोधी ने विरोध किया तो उन्हें दुहरा प्रचार मिल जाता है।

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ब्रह्मेश्वर मुखिया की प्रतिमा स्थापना की खबर ऐसी एक खबर थी, जाे हम तक पहुंचाई जा रही थी। अब हम मुखिया की प्रतिमा का विरोध करें तब भी उनकी बल्ले-बल्ले, न करें, चुप्पी साध जाएं तब भी उनके समर्थक पत्रकार ताे बिहार के अखबार में खबर प्रकाशित करेंगे ही।

मैंने नवल को कहा कि वे खुद इस खबर को लिखने में समय जाया न करें बल्कि बिहार में किसी फ्रीलांस लेखक-पत्रकार से आग्रह करें कि वे इसके विरोध में एक लेख हमें भेज दें। उन्होंने इसे लिखने के लिए तीन  लोगों से आग्रह किया, लेकिन कोई तैयार नहीं हुआ। किसी ने कहा है कि मैं भुमिहारों के मुहल्ले में रह रहा हूं, इसलिए लिखना खतरनाक होगा, तो किसी ने कहा कि समय की कमी है। दरअसल, बिहार में जब से नीतीश कुमार भाजपा के साथ दुबारा आए हैं, तब से भूमिहारों के लंपट तबके की ताकत बहुत बढ़ गई है। पहले भी उनके शासनकाल को ‘कुर्मी को ताज और भूमिहार का राज’- कहा जाता था। इन दिनों तो खैर सुन रहा हूं, राज-ताज सब उन्हीं का हो गया है।

जब बिहार से किसी ने वह लेख लिखकर भेजने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ तो कुछ दिनों बाद नवल ने फिर से उसे स्वयं लिखने की इच्छा जाहिर की। वर्ष 2012 से, पिछले छह सालों में हम रणवीर सेना पर कई स्टोरियां प्रकाशित कर चुके थे, जिसमें रणवीर सेना के प्रति बिहार के अखबारों के शर्मनाक रूख का विश्लेषण भी शामिल था। इसलिए मैंने नवल जी को एक बार फिर इस स्टोरी पर स्वयं समय लगाने से मना किया। लेकिन वे मुखिया की प्रतिमा लगाए जाने की खबर से कहीं भीतर से विचलित थे। एक पत्रकार, जो उसके खौफनाक, आदमखोर रूप से परिचित रहा हो, उसके लिए यह स्वभाविक भी था।

शायद यही कारण रहा होगा कि उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर इससे संबंधित एक खबर लिखी। उसी खबर में मुखिया के लिए लिखे गए कथित अपमानजनक शब्द को लेकर रणवीर सेना के लोग हंगामा मचाने लगे। उनके फेसबुक पेज पर भद्दी-भद्दी गालियों और धमकियों की बाढ़ आ गई। अब तक 200 से अधिक फोन कॉल्स और 2000 से अधिक फेसबुक टिप्पणियां आ चुकी हैं। हम भाषा की मर्यादा अच्छी तरह समझते हैं, लेकिन यहां बात एक ऐसे स्वयं सिद्ध आरोपी की थी, जो मासूमों की जघन्यतम हत्याओं को उचित ठहराता था।

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नवल के फोन पर मैंने भी गालियां देने वाले कई लोगों से बात की। उनके फेसबुक पेज पर जाकर भी समझने की कोशिश की कि, उन्हें गालियां देन वाले कौन लोग हैं।

प्राय: वे सभी बेरोजगार युवा हैं, जिन्हें पैतृक संपत्ति के कारण खाने-पीने की तो कमी नहीं है, लेकिन समाज में कोई सम्मान हासिल नहीं हो रहा। प्रतिद्वंद्विता के इस जमाने के लिए आवश्यक काबिलियत वे पैदा नहीं कर पा रहे हैं और उनका अहंकार उन्हें  उन कामों में जाने से रोकता है, जहां शारीरिक श्रम की आवश्यकता होती है। जाति आधारित पेशों में विभक्त भारतीय समाज में उनके लिए व्यवसाय-व्यापार भी कठिन है क्योंकि इस क्षेत्र में वैश्यों से प्रतिद्वंद्विता किसी भी अन्य समुदाय में पैदा हुए व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है।

ले-देकर सरकारी नौकरी पाना इन युवाओं के जीवन का अंतिम सपना है। इस सपने के नहीं पूरा होने के लिए वे डॉ आम्बेडकर को जिम्मेवार मानते हैं और अपने राजनेताओं से अपेक्षा रखते हैं कि वे आरक्षण खत्म कर देंगे। अपने नेताओं से भी वे भीतर से बहुत जले हुए और दु:खी हैं। उन्हें विश्वास था कि भाजपा केंद्र की सत्ता में आने पर आरक्षण खत्म करेगी। लेकिन वे नरेंद्र मोदी के अनन्य समर्थक नहीं हैं, जैसा कि रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम में बताया था। लालू प्रसाद जैसे नेताओं के अतिरिक्त उनमें से कई  ‘पिछडा’ नरेद्र मोदी को भी अपने वॉल पर पानी पी-पी कर कोसते हैं। वे हिंदुत्व को एक ढाल जरूर बनाते हैं, लेकिन उनका असली उद्देश्य है अपनी जाति का गौरव। रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम में इस ओर नहीं देख पाए हैं। ये लोग रणवीर सेना के अतिरिक्त शिव सेना, हिंदू सेवा समिति, गौ-रक्षा समिति, भूमिहार रेजिमेंट नामक संगठनों से जुडे हैं तथा राजनीतिक तौर पर भाजपा और कांग्रेस – या जो कोई दल भी इन्हें इनका खोया हुआ सामंती गौरव वापस करवा दे, उसके पक्ष में हैं।

धमकियों के मद्देनजर ऊंची जाति से संबंध रखने वाले एक व्यक्ति द्वारा किया गये इस पोस्ट में परोक्ष रूप से ब्रह्मेश्वर मुखिया का महिमामंडन करने का प्रयास किया गया है

अगर आप इनके फेसबुक वॉल पर जाएं तो इनके अजीबो-गरीब विचारों से परिचित हो सकेंगे।

मई, 2017 में भी मेरा पाला ऐसे ही कुछ संगठनों से पड़ा था। उस समय मैं उत्तर प्रदेश में स्थित सहारनपुर के शब्बीरपुर की दलित बस्ती को जलाए जाने की घटना पर लिख रहा था। उस दौरान करणी सेना, प्रताप सेना आदि से जुडे लोग फूलन देवी के हत्यारे शेर सिंह राणा को आगे कर दलित-पिछडों के खिलाफ उन्माद का वातावरण तैयार करने में जुटे हुए थे। राजपूत जाति के इन युवाओं की मन:स्थिति भी ठीक वैसी ही थी, जैसी रणवीर सेना के इन भूमिहार युवकों की है।

एबीपी न्यूज का ऑपरेशन भूमिहार

आपमें से कुछ लेागों को याद होगा कि अक्टूबर,2015 में एबीपी न्यूज ने ‘ऑपरेशन भूमिहार’ नाम से एक कार्यक्रम प्रसारित किया था। इसमें जहानबाद के घोसी से रिर्पोटिंग करते हुए पत्रकार अभिसार शर्मा ने बताया था कि किस प्रकार पिछले 67 साल यानी आजादी से अब तक घोसी के दस गावों के दलितों-पिछड़ों को भूमिहारों ने वोट डालने नहीं दिया। इस कार्यक्रम के बाद बिहार के भूमिहारों के एक तबके ने हडकंप मचा दिया था। खुद भुमिहार जाति से आने वाले पूजा-पाठी हिंदू अभिसार शर्मा को भद्दी-भद्दी गालियां दी गईं थीं और उन्हें आस्तीन का सांप बताया गया था।

यह मजेदार पोस्ट भी पठनीय है : ऑपरेशन भूमिहार के असली मुजरिम की एबीपी न्यूज़ से छुट्टी

अभिसार शर्मा, राणा अयूब, रवीश कुमार और नवल किशोर कुमार को गालियां देने वाले लोगों का समूह एक ही है। हां, 2015 से 2018 के बीच भारत में इंटरनेट की गति बहुत तेज हो गई है। सबसे ज्यादा असर रिलांयस द्वारा जारी किए गए जिओ फोन और व्हाट्स एप्प की बढी हुई पहुंच का पड़ा है। नवल के मामले में हमने पाया कि फाेन करने वाले लोग एक-दूसरे से व्हाट्स एप्प समूहों से जुडे हुए थे। वे गालियां और धमकियां देने की रिकार्डिंग भी उन ग्रुपों में डाल रहे थे, ताकि वे मित्रों से सामने अपनी वीरता का प्रदर्शन कर सकें।

बहरहाल, नवल किशोर के मामले में हम लोगों ने पुलिस में शिकायत दे दी है। इस बीच कल से धमकी भरे फोन कॉल्स का आना भी कुछ कम है। देखते हैं आगे क्या होता है? फारवर्ड प्रेस के लिए इस प्रकार की घटनाएं कोई नई बात तो हैं नहीं। गाहे-बगाहे धमकियों भरे ईमेल पहले भी आते रहे हैं। हां, इस प्रकार की संगठित मुहिम का सामना हमें 2014 के महिषासुर-दुर्गा विवाद के बाद, पहली बार करना पड़ा है।

हां, नवल को गालियां देने वाले इन राष्ट्रवादियों से पूछना चाहूंगा कि क्या वे जानते हैं कि जिसे वे गालियां दे रहे हैं, वह मात्र एक पत्रकार नहीं, एक संवेदनशील कवि भी है? क्या वे जानते हैं इस वर्ष हुए आस्ट्रेलिया में आयोजित हुए राष्ट्रमंडल खेलों में हमारे देश की ओर से जो गीत गाया गया, उसे इस नवल ने ही लिखा है?

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नवल के गीत ने इस साल दुनिया के सामने राष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया है और हमारा सर ऊंचा किया है। क्या वे जानते हैं ब्रह्मेश्वर मुखिया ने दुनिया के सामने हमारे राष्ट्र की कैसी तस्वीर पेश की है? दुनिया भर के अखबारों में उसकी करतूतों के बारे में क्या-क्या छपा है?

(कॉपी एडिटर : सिद्धार्थ)


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लेखक के बारे में

प्रमोद रंजन

प्रमोद रंजन एक वरीय पत्रकार और शिक्षाविद् हैं। वे आसाम, विश्वविद्यालय, दिफू में हिंदी साहित्य के अध्येता हैं। उन्होंने अनेक हिंदी दैनिक यथा दिव्य हिमाचल, दैनिक भास्कर, अमर उजाला और प्रभात खबर आदि में काम किया है। वे जन-विकल्प (पटना), भारतेंदू शिखर व ग्राम परिवेश (शिमला) में संपादक भी रहे। हाल ही में वे फारवर्ड प्रेस के प्रबंध संपादक भी रहे। उन्होंने पत्रकारिक अनुभवों पर आधारित पुस्तक 'शिमला डायरी' का लेखन किया है। इसके अलावा उन्होंने कई किताबों का संपादन किया है। इनमें 'बहुजन साहित्येतिहास', 'बहुजन साहित्य की प्रस्तावना', 'महिषासुर : एक जननायक' और 'महिषासुर : मिथक व परंपराएं' शामिल हैं

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