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आदिवासियों के हिस्से का पैसा कहां गया? जवाब दे सरकार : उदय नारायण चौधरी

आदिवासियों के दुख-दर्द की किसी को चिन्ता नहीं है। लगातार उनके हितों की उपेक्षा की जा रही है। सर्वे में आदिवासियों की गणना गैर-अादिवासी धर्मों के साथ की जा रही है। उनके हिस्से के फंड को डायवर्ट किया जा रहा है। गैर आदिवासियों को उनके खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। फारवर्ड प्रेस के साथ बातचीत में बिहार विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी :

बीते 24 जून को पटना में संविधान बचाओ देश बचाओ सम्मेलन के बाद अब 12 अगस्त को वंचित वर्ग मोर्चा की तरफ से आदिवासी आरक्षण बचाओ, संविधान बचाओ सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है। इस आयोजन के मुख्य कर्ता-धर्ता वंचित वर्ग मोर्चा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी बिहार की राजनीति में और खासकर दलित अधिकार की राजनीति में जाना-माना नाम हैं। फारवर्ड प्रेस के प्रतिनिधि अनिल गुप्ता ने उनसे विशेष बातचीत की।

कैसा कार्यक्रम है 12 अगस्त को आपके द्वारा आहूत सम्मेलन?

आगामी 12 अगस्त को पटना में होने वाले ‘आदिवासी आरक्षण बचाओ संविधान बचाओ’ सम्मेलन का मूल उद्देश्य आदिवासियों के विरुद्ध हो रही सरकारी गड़बड़ी का पर्दाफाश करना है। अभी बिहार में डबल इंजन वाली जो सरकार है वह एक-एक करके आदिवासियों के हक छीन रही है। बिहार में आदिवासियों का आरक्षण मात्र एक प्रतिशत है। राज्य बंटवारे के बाद सन 2000 से, यहां दो विधानसभा क्षेत्र हैं- मनिहारी और कटोरिया, लेकिन आरक्षण मात्र एक प्रतिशत है। इस एक प्रतिशत में भी लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है।

उदय नारायण चौधरी, पूर्व अध्यक्ष, बिहार विधानसभा

जबतक आरक्षण का प्रतिशत नहीं बढ़ जाता, तबतक जिनको जोड़ रहे हैं उनके साथ भी जुर्म कर रहे हैं, आंख में धूल झोंक रहे हैं और जिनको दिए हुए हैं उनको भी बेवकूफ बना रहे हैं। इसलिए हम इसका खुलासा करना चाहते हैं। आदिवासियों के साथ सरकार के द्वारा जो छलावा हो रहा है उसके बारे में आदिवासियों को और उनके आरक्षित वर्ग में जिनको जोड़ा जा रहा है, उनको भी समझ में आना चाहिए।

जाति का विनाश अब अमेजन पर उपलब्ध

ये विकास की बात करते हैं। मैं पूछना चाहता हूँ राज्य सरकार से, कितने लड़कियों के लिए आपने छात्रावास खोले या निर्माण किए हैं? आदिवासी बहुल इलाकों में कितने आदिवासी स्कूल और हाईस्कूल खोले हैं आपने? 2006 में बने वन अधिकार अधिनियम का क्या हश्र हुआ है? क्या वास्तव में लागू है? जो आदिवासियों का सब-प्लान का पैसा है वह कहां खर्च हो रहा है? क्या उसका डायवर्जन नहीं हो रहा है? हम ये सारे सवाल खड़े करेंगे।

लेकिन आदिवासियों के अधिकार के लिए सारी बात इसी समय क्यों हो रही है? अभी के पहले आपको ऐसा आयोजन करना, उनको एकजुट करना जरूरी क्यों नहीं लगा?

भाई, जब भूख-प्यास लगती है, तब आदमी पानी पीता है। अभी आदिवासियों के साथ यह सब जुर्म हो रहा है, अभी सर्वे में सब जगह आदिवासियों को गैर-आदिवासी धर्मों के साथ लिखा जा रहा है। आदिवासी-गैर आदिवासी के नाम पर लोगों का ध्रुवीकरण कराया, उन्हें लड़ाया जा रहा है।

कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी विरोधी मुहिम या भाजपा विरोधी मुहिम से आदिवासियों को जोड़ने के लिए यह सारा प्रयास हो रहा है?

मैं बहुत ही विनम्रता से बताना चाहता हूँ कि मोदी विरोध से मेरा कोई मतलब नहीं है। जो हकीकत है, उसका मैं पर्दाफाश करना चाहता हूं। अब कौन उससे आहत होता है, कौन उससे अपने-आप को सहज महसूस करता है, यह वो जाने। जो चाहते हैं कि सबका विकास सबका साथ हो, तो वे बताएं कि किसका विकास हो रहा है? आदिवासी का हो रहा है? दलित का हो रहा है? अल्पसंख्यक का हो रहा है? ओबीसी का हो रहा है?

जो सिस्टर लोग यहां सेवा कार्य करती हैं, उन्हें बच्चा चोरी के इल्जाम में फंसाया जा रहा है। क्या करना चाहते हैं? अल्पसंख्यक लिंचिंग में मारे गए हैं रामगढ़ में… गाय का मांस लिए जा रहा है, इस नाम पर हत्या कर दी भीड़ ने… फ़ास्ट कोर्ट से जिसको सजा मिलती है उस सज़ावार को भारत सरकार के मंत्री माला पहनाने जाते हैं।

बिहार में इस तरह….

…बिहार में अभी पिछले दिनों रामनवमी के अवसर पर गाँव-गांव तलवार बंटवाये गए। …औरंगाबाद में, नवादा में अल्पसंख्यक मुस्लिमों की दुकानों को जलाया और लूटा गया। जो उस काम में शामिल थे उनको जेल में भारत सरकार के मंत्री माला पहनाते हैं? और कहते हैं सबका साथ सबका विकास! कमाल है! यानी जैसा चाहें वैसा डेफिनेशन आपलोग दे दीजिए और हमलोग सुनते रहें?

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अभी एक सप्ताह भी नहीं हुआ है मसौढ़ी के चरमा गांव में जो सैकड़ों वर्ष से दलित रह रहे थे, जो रविदास और भुइयां जाति के लोग थे, बुलडोजर लगाकर उनको हटा दिया गया, पईन सफाई के नाम पर उनको हटा दिया गया। सरकार ने कहा था कि पांच डिसमिल जमीन देंगे उनको। तो क्या उजड़ने के पहले उनको बसाने की व्यवस्था की गई? अभी मधुबनी जिले के खुटौना में 102 परिवार को सरकार ने बुलडोजर लगाकर उजाड़ दिया। लोगों को बेघर करके पानी में भींगते हुए छोड़ दिया गया।

बिहार में आदिवासियों की संख्या कुल आबादी का कितना प्रतिशत है?

डेमोक्रेटिक सिस्टम में लोक कल्याणकारी सरकार होती है। जो सामाजिक तौर से पिछड़े हैं, जिनके साथ गैर-बराबरी का व्यवहार होता है, उन्हें आगे लाना है। आबादी के दृष्टिकोण से सरकार को खुलासा करना चाहिए कि राज्य में कितने आदिवासी हैं। कैमूर में आदिवासी हैं, पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर, बांका, जमुई आदि जिलों में इनकी बहुतायत है…

आप तो लगातार दलित, आदिवासी और वंचित तबके के लिए इधर कई महीनों से अपना अभियान छेड़े हुए हैं। आपको क्या लगता है, बिहार में इनके अधिकार की लड़ाई किस स्थिति में पाते हैं?

धीरे-धीरे ये मजबूत हो रहे हैं और आगे आने वाले समय में जवाब देंगे।

बिहार में दलितों, आदिवासियों और दूसरे वंचित तबके के लोगों की अधिकार की लड़ाई में आप किन-किन राजनीतिक धड़ों को अपने साथ पाते हैं?

कोई साथ है कि नहीं है, ये जानना महत्वपूर्ण नहीं है। मैं अपने-आप में ईमानदारी के साथ इस आवाज को बुलंद कर रहा हूँ…

आरजेडी और वामपंथी दलों को आप अपने कितना करीब पाते हैं?

मैं महागठबंधन के सभी लोगों को देखता हूं कि वे सब हमारे प्रति पॉजिटिव हैं, पक्षधर हैं।

और वाम दल?

वाम दल भी साथ हैं। सीपीआई एमएल का तो आंदोलन ही चल रहा है पांच डिसमिल जमीन देने के लिए।

उनलोगों से कोई बातचीत अपने आंदोलन को विस्तार देने के लिए?

वैचारिक बातचीत सब लोगों से हमारी है।

आंदोलन को विस्तार देने के लिए बातचीत हालिया समय में?

अभी तक कोई बातचीत आंदोलन को विस्तार देने के लिए नहीं हुई है, लेकिन उसकी रूपरेखा तैयार की जा रही है।

आपका यह पर्चा 12 अगस्त को प्रस्तावित आदिवासी आरक्षण बचाओ संविधान बचाओ सम्मेलन का बताता है कि हेमंत सोरेन आएंगे इसमें, झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री, मुंशी मरांडी आएंगे, छात्र नेता दीपा मिंज आएंगी। इसके अलावा और कौन-कौन से महत्वपूर्ण नाम हैं जिनके आने की संभावना है?

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उगता हुआ सितारा हैं। हेमंत सोरेन ने अपने समय में मुस्तैदी से बीजेपी को जवाब देने का काम किया है। उनके लहर में भी उनको जवाब दिया है। आप इसको कमजोर चेहरा समझते हैं क्या? इनके जैसा ही हैं सबलोग मजबूत। आदिवासी तो देखने में कमजोर लगता ही है, फकीर लगता ही है, गरीब लगता ही है। दलित तो फकीर, गरीब लगता ही है। लेकिन उसका दिल देखिए कि अंदर से वो कितना मजबूत है, कितना जुझाडू है, कितना लड़ाकू है, कितना कमिटेड है, कितना लोगों के प्रति संवेदनशील है।

बहुत-बहुत धन्यवाद आपको इस बातचीत के लिए।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

अनिल गुप्त

वरिष्ठ पत्रकार अनिल गुप्ता दैनिक भास्कर, दैनिक जागरण और राजस्थान पत्रिका के विभिन्न संस्करणों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं। वे इन दिनों बिहार की राजधानी पटना में रहकर स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं

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