h n

ब्राह्मणवाद से मुक्ति का घोषणा पत्र है ‘जाति का विनाश’

बाबा साहेब ने संविधान की रचना से पहले ही भारतीय सामाजिक व्यवस्था के जड़ में लगे घुन को खत्म करने की ठान ली थी। वे इसका इलाज भी जानते थे और इसकी अभिव्यक्ति ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ के रुप में सामने आयी थी। फारवर्ड प्रेस बुक्स ने उनके कालजयी भाषण का हिंदी अनुवाद ‘जाति का विनाश’ मुकम्मिल स्वरूप में प्रस्तुत किया है। बीते दिनों इसका लोकार्पण किया गया

एलआईसी एससी/एसटी/बुद्धिस्ट कर्मचारी एवं अधिकारी कल्याण संघ की केंद्रीय इकाई द्वारा  9 जुलाई को दिल्ली में भारतीय जीवन बीमा निगम उत्तर मध्य क्षेत्र एवं उत्तर क्षेत्र की  संयुक्त क्षेत्रीय बैठक मंडल कार्यालय दिल्ली-1 डीटीसी सभागार में संपन्न हुई। इस बैठक में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा एवं दिल्ली के सभी मंडलों के प्रतिनिधि उपस्थित थे। इस बैठक में फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित किताब ‘जाति का विनाश’ का लोकार्पण किया। बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के कालजयी भाषण का हिंदी अनुवाद वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर जी ने किया है। यह उनकी अंतिम कृति है।

जाति का विनाश का लोकार्पण करते अतिथि

किताब का लोकार्पण के.पी. चौधरी (राष्ट्रीय महासचिव),  एन. आई. चावला (राष्टीय अध्यक्ष), सुखारी राम (राष्टीय प्रशासनिक सचिव), एस.एस. धारीवाल और शैलेन्द्र कुमार (क्षेत्रीय सचिव) ने किया। ‘जाति का विनाश’ के लोकार्पण के बाद राष्ट्रीय महासचिव के. पी. चौधरी ने कहा कि इस किताब को इस रूप में प्रकाशित करके फारवर्ड प्रेस ने एक ऐतिहासिक जरूरत को संपन्न किया है। कहने की जरुरत नहीं है कि बाबा साहेब ने समाज का व्यापक अध्ययन किया और जिस पीड़ा को वे स्वयं भोग रहे थे, उससे बहुजन समाज मुक्त हो सके, इसके लिए आजीवन संघर्ष किया। जाति का विनाश में उनकी यही हस्तक्षेप नजर आता है। श्री चौधरी ने कहा कि मुझे यह देखकर खुशी हुई है कि इसमें बाबा साहेब के द्वारा कोलंबिया विश्वविद्यालय में दिया गया भाषण भी संकलित है, जिसे वह ‘एनिहिलेशन ऑफ कास्ट’ पुस्तक में शामिल करना चाहते थे।

अमेजन पर उपलब्ध है ‘जाति का विनाश’

वहीं राष्ट्रीय अध्यक्ष एन. आई. चावला ने कहा कि किताब का अनुवाद बहुत सरल भाषा में किया गया है ताकि आम जन भी बाबा साहब के विचारों को जान-समझ सकें। बाबा साहेब भी मानते थे कि बदलाव की असली शुरूआत तो आम जन ही कर सकते हैं। जबतक वे नहीं समझेंगे तबतक सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया शुरु ही नहीं होगी। उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्य है कि एक समय बाबा साहब को उनका यह भाषण पढ़ने नहीं दिया गया और आज भी हालत यह है कि दलित पूरे देश में अत्याचार के शिकार हो रहे हैं, उनका आर्थिक व सामाजिक शोषण जारी है, इसके बावजूद जिस तरह की जागरूकता समाज में होनी चाहिए थी, वह नहीं हो सकी है। उन्होंने कहा कि ‘जाति का विनाश’ दलित-बहुजन समाज की इस जरुरत को पूर्ण करती है।

कार्यक्रम में उपस्थित विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधि

वहीं फारवर्ड प्रेस के हिंदी संपादक सिद्धार्थ ने कहा कि यह किताब ब्राह्मणवाद के मुक्ति का घोषणा-पत्र है। जाति के विनाश के बिना समता, स्वतंत्रता और भाईचारा आधारित भारत के निर्माण नहीं किया जा सकता है और न ही दलित और अोबीसी समाज को जातीय अपमान से मुक्ति मिल सकती है। जबतक भारत में जाति है, इस किताब जरूरत तब तक बनी रहेगी।  उन्होंने कहा कि फारवर्ड प्रेस का उद्देश्य इस किताब के जरिए बाबा साहेब के विचारों को जन-जन तक पहुंचाना है। उन्होंने यह भी कहा कि इस किताब की एक खासियत इसमें दिये गये फुटनोट्स हैं जिन्हें सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है। यह किताब राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए उपयोगी तो है ही, राजनीति विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए भी महत्वपूर्ण साबित होगी।

कार्यक्रम में विभिन्न राज्यों से आये प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय प्रशासनिक सचिव सुखारी राम ने किया।

 

(कॉपी एडिटर : नवल)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। एफपी बुक्‍स के नाम से जारी होने वाली ये किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, सस्‍क‍ृति व सामाजिक-राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के साथ-साथ इसके सूक्ष्म पहलुओं को भी गहराई से उजागर करती हैं। एफपी बुक्‍स की सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : info@forwardmagazine.in

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें :

बहुजन साहित्य की प्रस्तावना 

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक’

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबी

चिंतन के जन सरोकार 

 

लेखक के बारे में

अलख निरंजन

अलख निरंजन दलित विमर्शकार हैं और नियमित तौर पर विविध पत्र-पत्रिकाओं में लिखते हैं। इनकी एक महत्वपूर्ण किताब ‘नई राह की खोज में : दलित चिन्तक’ पेंग्विन प्रकाशन से प्रकाशित है।

संबंधित आलेख

पुनर्पाठ : सिंधु घाटी बोल उठी
डॉ. सोहनपाल सुमनाक्षर का यह काव्य संकलन 1990 में प्रकाशित हुआ। इसकी विचारोत्तेजक भूमिका डॉ. धर्मवीर ने लिखी थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि...
यूपी : दलित जैसे नहीं हैं अति पिछड़े, श्रेणी में शामिल करना न्यायसंगत नहीं
सामाजिक न्याय की दृष्टि से देखा जाय तो भी इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने से दलितों के साथ अन्याय होगा।...
कबीर पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक 
कबीर पूर्वी उत्तर प्रदेश के संत कबीरनगर के जनजीवन में रच-बस गए हैं। अकसर सुबह-सुबह गांव कहीं दूर से आती हुई कबीरा की आवाज़...
पुस्तक समीक्षा : स्त्री के मुक्त होने की तहरीरें (अंतिम कड़ी)
आधुनिक हिंदी कविता के पहले चरण के सभी कवि ऐसे ही स्वतंत्र-संपन्न समाज के लोग थे, जिन्हें दलितों, औरतों और शोषितों के दुख-दर्द से...
बहस-तलब : आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के पूर्वार्द्ध में
मूल बात यह है कि यदि आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया जाता है तो ईमानदारी से इस संबंध में भी दलित, आदिवासी और पिछड़ो...