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दलित युवती को कुएं से पानी लेने से रोका, कोर्ट ने आरोपियों को दी ढाई साल की कैद

अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम दलितों और आदिवासियों पर होने वाले अत्याचार के लिए कितना अहम है, यह इस अदालती फैसले से साबित होता है। आठ साल पहले जिन लोगों ने एक दलित युवती को कुएं से पानी लेने से रोका, उन्हें इसी कानून के तहत कोर्ट ने सजा दी। एक खबर

गुजरात के राजकोट में आठ साल के लंबे अंतराल के बाद आखिर दलित युवती को न्याय मिल ही गया। गुजरात के राजकोट में एक दलित महिला को कुएं से पानी नहीं भरने देने के आरोप में एक विशेष अदालत ने ऊंची जाति की महिला को ढाई साल जेल की सजा सुनाई है। इस मामले में पांच अन्य लोगों को भी एक-एक साल की कैद की सजा का फैसला सुनाया है। अदालत ने इस महिला सहित राजपूत जाति के इन सभी छह लोगों में से प्रत्येक पर 10-10 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है। विशेष अदालत ने इन लोगों को एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दोषी पाया।

गुजरात के राजकोट के सुदूर ग्रामीण इलाके में कुएं से पानी निकालती एक महिला (फाइल फोटो)

मामला वर्ष 2010 का है। गुजरात के गिर-सोमनाथ जिले के सुंगला गांव में एक दलित महिला साधना मनुभाई वाजा को सुगला गाँव में पानी लेने गई थी। राजपूत जाति की महिला गीता धीरुभाई खासिया ने उसको पानी लेने से रोका और उसको उसकी जातिसूचक शब्दों में गालियां भी दी। गीता धीरूभाई खासिया का कहना था कि दलित युवती के पानी लेने से कुएं का पानी दूषित हो जाएगा। इसलिए वह इस कुएं से पहले पानी भरेगी। महिला और कुछ अन्य लोगों पर यह आरोप था कि इन्होंने 19 वर्षीय इस दलित युवती को गाँव के कुएं से पानी नहीं भरने दिया। यही नहीं उसके साथ मारपीट भी की। जब साधना ने इसका विरोध किया तो गीता, उसके पति और अन्य लोगों ने उस पर हमला कर दिया। दलित महिला के बाल पकड़कर उसे घसीटा गया। साधना ने इसके बाद इस मामले के खिलाफ कोदिनार पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया।

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कोर्ट अमूमन इस तरह के मामले में प्रथम बार अपराध करने वालों को सजा में छूट देता है। लेकिन विशेष जज एस.एल. ठक्कर ने दोषियों को यह छूट देने से इनकार कर दिया। सहायक लोक अभियोजक  मोहन गोहेल ने कहा कि इस तरह का मामला और न हो इसके लिए जरूरी है कि ऐसे लोगों में क़ानून का डर पैदा किया जाए जो भेदभाव करते हैं।

कोर्ट ने की टिप्पणी : सरकारी प्रयासों के बाद नहीं थम रहे अत्याचार

कोर्ट ने कहा कि भेदभाव के बारे में सामाजिक जागरूकता पैदा करना जरूरी है। “सरकारी प्रयासों के बावजूद अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार का मामला नहीं थम रहा है,”

विशेष अदालत ने इस मामले में 21 जुलाई को फैसला सुनाया और गीता खासिया को आईपीसी की धारा 304, 504 और एससी/एसटी अधिनियम की धारा 3 (1) 5 के तहत दोषी मानते हुए उसे ढाई साल की कैद के सजा सुनाई। अदालत ने धीरूभाई खासिया, जसाभाई खासिया, जिनाभाई सर्विआया, भीखुभाई खासिया और जयदीप खासिया को भी सजा सुनाई है।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

अशोक झा

लेखक अशोक झा पिछले 25 वर्षों से दिल्ली में पत्रकारिता कर रहे हैं। उन्होंने अपने कैरियर की शुरूआत हिंदी दैनिक राष्ट्रीय सहारा से की थी तथा वे सेंटर फॉर सोशल डेवलपमेंट, नई दिल्ली सहित कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं

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