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दिल्ली विश्वविद्यालय में एससी/एसटी और ओबीसी को एमफिल और पीएचडी में दाखिला नहीं

यूजीसी के एमफिल और पीएचडी में दाखिले के नियम को दिल्ली विश्वविद्यालय ने लागू किया है जिसके बाद दलित, आदिवासी और पिछड़ों के दाखिले के रास्ते बंद हो गए हैं। बता रहे हैं कमल चंद्रवंशी

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नए नियम के चलते इस साल दिल्ली विश्वविद्यालय में एमफिल और पीएचडी की कई विभागों में सीटें के खाली रहने का अंदेशा है। यूजीसी के नए नियम के मुताबिक एमफिल के साक्षात्कार के लिए उम्मीदवारों को लिखित प्रवेश परीक्षा में 50 फीसद अंक लाने अनिवार्य हैं। नियम के तहत हर श्रेणी के उम्मीदवार के इतने अंक नहीं होंगे तो ऐसे उम्मीदवारों को इस सत्र से साक्षात्कार के लिए नहीं बुलाया जाएगा। इस नियम से आधुनिक भारतीय भाषा और साहित्यिक अध्ययन जैसे कई विभाग मुश्किल में हैं। नए नियम की कसौटी पर एससी, एसटी छात्र प्रवेश परीक्षा को निर्धारित मानदंड पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं। इतिहास, वनस्पति विज्ञान और मनोविज्ञान जैसे विभाग भी इसी संकट का सामना कर रहे हैं। यूजीसी के 2016 में निकाले गए नियम को दिल्ली विश्वविद्यालय की अकादमिक और कार्यकारी परिषद ने 2017 में मंजूरी दी थी।

साभार : न्यूज क्लिक


दाखिले के संकट को लिए मिसाल के तौर पर इतिहास में पीएचडी की 30 सीटों के लिए सिर्फ तीन उम्मीदवारों ने साक्षात्कार के लिए क्वालिफाई किया जिनमें एक ओबीसी श्रेणी का उम्मीदवार है। विभाग में अब भी 27 सीटें खाली हैं। इसी तरह विभाग में एमफिल की 25 सीटें खाली हैं। एमफिल के लिए सामान्य श्रेणी के 13 उम्मीदवार लिखित परीक्षा पास करके क्वालिफाई कर सके जबकि ओबीसी और एससी के दो-दो और एक एसटी श्रेणी का उम्मीदवार साक्षात्कार के लिए क्वालिफाई कर पाए।

आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में सबसे बुरी हालत है जहां पीएचडी की कई सीटें खाली हैं। पीएचडी में 35 सीटों में से एक ओबीसी छात्र समेत कुल 7 उम्मीदवार लिखित परीक्षा पास कर पाए हैं। विभाग ने भले ही नेट और जूनियर रिसर्च फैलोशिप वाले छात्रों के लिए नौ सीटें आरक्षित की हैं लेकिन इसके बाद भी इसमें सात सीटें खाली रह जाएंगी।

दिल्ली विश्वविद्यालय के इस कदम से दलित और वंचित समुदाय के छात्रों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। इतिहास विभाग के में पीएचडी के लिए आवेदन करने वाले छात्र सुमित ने कहा कि जिन छात्रों ने नेट और जूनियर रिसर्च फलोशिप की योग्यता हासिल की है या जो राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्ति प्राप्त कर रहे हैं उन्हें प्रवेश परीक्षा से छूट दी गई है, लेकिन कई छात्रों के लिए प्रवेश परीक्षा दाखिला लेने का एकमात्र तरीका है।

उन्होंने कहा, “एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणी के उन शिक्षार्थियों के लिए यह कदम एक बड़ा झटका है जो उच्च शिक्षा में आगे बढ़कर कुछ काम करना चाहते हैं। नेट के बाद इससे भी दाखिले के लिए लिए क्वालिफाई करने में मुश्किल आ रही है। इसी प्रकार, राष्ट्रीय स्तर की छात्रवृत्तियां बहुत कम छात्रों को मिल पाती है। इस तरह से क्वालीफाइंग टेस्ट पास करके  एमफिल और पीएचडी पाठ्यक्रमों में प्रवेश पाने का एकमात्र तरीका है जिसे यूजीसी के नए मानदंड ने नया अवरोध खड़ा कर दिया है।”

स्टूडेंट फैडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई के) के दिल्ली इकाई के सचिव प्रशांत मुखर्जी ने कहा कि प्रवेश के लिए ये मानदंड नए नहीं हैं लेकिन छात्रों को इस सत्र से इसलिए नाराजगी है कि क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पहली बार ऑनलाइन परीक्षाएं आयोजित कीं और छात्रों को मिले अंकों को सार्वजनिक किया। मुखर्जी ने कहा, “यूजीसी का हर श्रेणी के लिए 50 फीसद अंक लाने का मानक मूलरूप से वंचित लोगों को मिले आरक्षण के प्रावधान और संविधान के खिलाफ है। दलित पिछड़ों के लिए समान योग्यता रखने का नियम वापस होना चाहिए ताकि इस वर्ग के छात्रों के साथ न्याय सुनिश्चित किया जा सके।


उन्होंने कहा कि यूजीसी की 2016 की अधिसूचना ने उच्च शिक्षा को धक्का पहुंचाया और इसका असर हमने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में देखा जब कई पाठ्यक्रमों से बड़ी संख्या में सीटें खत्म कर दी गईं। एमफिल और पीएचडी में दाखिले के लिए साक्षात्कार में मिले अंकों को प्रवेश का एकमात्र मानदंड बनाया गया जिसे अब वापस ले लिया गया लेकिन इसके क्रियान्वयन के लिए अभी तक कोई सर्कुलर जारी नहीं किया गया। इसी तरह से हर वर्ग के छात्रों के लिए समान नंबर लाने की बाध्यता को हर हाल में वापस लिया जाना चाहिए ताकि संकट का समाधान निकल सके।

छात्रों में यूजीसी के आदेश के खिलाफ भारी गुस्सा है। 25 जुलाई को वे इस सिलसिले में प्रदर्शन भी कर चुके हैं। छात्रों का कहना है कि ये नियम गलत है और इससे पिछड़े और गरीब घरों से आने वाले बच्चों का भविष्य बर्बाद हो जाएगा। इसलिए यूजीसी और डीयू को जल्द से जल्द इस नियम को हटाना चाहिए। पहले कुछ डिपार्टमेंट में इस आदेश के बिना सबको इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था लेकिन बाद में एक नया नोटिफिकेशन निकाला गया जिसमें 50 फीसदी से ज्यादा नंबर लाने वालों को ही इंटरव्यू में बुलाया गया है।


विश्वविद्यालय के ईसी मेंबर डॉक्टर राजेश झा ने यूजीसी के इस आदेश के खिलाफ एक पत्र वीसी को लिखा है। उनका कहना है कि इस आदेश के पालन से छात्रों के लिए मौके कम होंगे।


(कापी एडिटर : नवल)

संदर्भ :

1 हैवक इन डीयू, नो एससी एसटी स्टूडेंट इन एमफिल पीएचडी कोर्सेस फॉलोइंग न्यू यूजीसी रूल्स, रवि कौशल न्यूज स्टिक, 26 जुलाई

2 एज दिल्ली यूनिवर्सिटी एडॉप्ट न्यू यूजीसी नार्म्स, एमफिल पीएचडी सीट्स गो वैकेंट, शारदा चेत्री, इंडियन एक्सप्रेस, दिल्ली, 26 जुलाई

 


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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