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फ्रांस को पछाड़ आगे निकला भारत और दिल्ली में भूख से मर गयी तीन बच्चियां

एक ओर देश फ्रांस को पछाड़ने का जश्न मना रहा है, वहीं देश की राजधानी में तीन बच्चियों ने भूख से दम तोड़ दिया। पोस्टमार्टम रिपोर्टें बताती हैं कि उनकी आंतें खाली थीं। मेहनत- मजदूरी करने वाले मां-बाप अपनी बेटियों का पेट भी नहीं भर सके। यह क्यों और कैसे हुआ बता रहे हैं, नवल किशोर कुमार :

दिल्ली यानी देश की राजधानी। प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से पूरे देश में गोवा के बाद दूसरे नंबर पर। इसी वर्ष राज्य सरकार द्वारा पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार यहां प्रति व्यक्ति आय प्रति वर्ष के हिसाब से 3 लाख 29,हजार 93 रुपए है।[1] दिल्ली इसलिए भी खास है क्योंकि यहीं देश के सभी शीर्षस्थ हुक्मरान रहते हैं। इसी दिल्ली में बीते मंगलवार को एक घटना घटित हुई। एक साथ तीन बच्चियां भूख के कारण मर गयीं। झारखंड, बिहार और उड़ीसा आदि राज्यों में भूख के कारण होने वाली मौत की खबरों के जैसी नहीं थी यह खबर। व्हाट्सअप के जरिए जब इस खबर की जानकारी मिली तो पहली बार यकीन नहीं हुआ। दिल्ली में भूख के कारण तीन बच्चियों की मौत कैसे हो सकती है? लेकिन यह सच था। इस सच की पुष्टि के लिए सरकारी तंत्र द्वारा मृत बच्चियों का दो-दो बार पोस्टमार्टम कराया गया और दोनों बार परिणाम यही निकला।

खैर तीन बच्चियों की मौत उस देश के लिए एक आईना है जिसके हुक्मरान ने यह दावा किया है कि भारत ने आर्थिक विकास के मामले में फ्रांस को पछाड़ कर पूरे विश्व में छठा स्थान हासिल कर लिया है।  

अपनी बच्चियों के साथ रिक्शा चालक मंगल सिंह

फारवर्ड प्रेस के संपादकीय कार्यालय से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर है पूर्वी दिल्ली के मंडावली का साकेत इलाका जिसके गली नंबर 14 में मंगल सिंह अपनी पत्नी और तीन मासूम बच्चियों (शिखा 8 वर्ष, मानसी 6 वर्ष और पारूल 2 वर्ष) के साथ रहता था। बीते मंगलवार की दोपहर को उसकी पत्नी वीणा अपने तीन बच्चियों को लेकर लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल पहुंची। करीब दो घंटे बाद चिकित्सकों ने उसे इस बात की जानकारी दी कि उसकी तीनों बेटियां अब इस दुनिया में नहीं है। चिकित्सक भी हैरान थे। बच्चियों के देह पर किसी तरह का कोई निशान नहीं था। पोस्टमार्टम हुआ तब चिकित्सकों के भी होश उड़ गए। बच्चियों के पेट (आंतें यानी जहां खाना खाये जाने का सबूत रहता है) पूरी तरह खाली थीं। अस्पताल के चिकित्सकों ने इस बाबत जानकारी दी कि ऐसा तभी होता है जब कोई लंबे समय से खाना न खाये। हालांकि सरकार के हुक्मरान तब भी यह मानने को तैयार नहीं हुए कि बच्चियों की मौत भूख के कारण हुई। लिहाजा मृत बच्चियों के शवों का दुबारा अंत्यपरीक्षण गुरू तेग बहादुर अस्पताल में कराया गया। वहां भी परिणाम वहीं निकला।

पूर्वी दिल्ली के मंडावली गांव के साकेत इलाके इसी बंद गली के आखिरी घर में रहता था मंगल सिंह का परिवार

दूधमुंही बच्ची को दूध के बदले पानी और मांड़

मंगल सिंह के एक पड़ोसी तारा देवी ने बताया कि मंगल सिंह पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले का रहने वाला है। उसकी पत्नी भी लंबे समय से बीमार चल रही है। वह मानसिक रोग की शिकार है। अपने परिवार का पेट पालने के लिए मंगल रिक्शा चलाता था। इसी महीने तीन जुलाई को चोरों ने उसका रिक्शा चुरा लिया। इसके बाद से ही उसका परिवार भूखमरी का शिकार होने लगा। रिक्शा किराये का था और रिक्शे का मालिक उससे रोजाना 75 रुपए मांगता था और कहता था कि जबतक रिक्शे की कीमत नहीं दोगे तबतक प्रतिदिन इतनी रकम देनी होगी। मंगल सिंह के दोस्त नारायण ने बताया कि उसके पास खाने को पैसे तो थे ही नहीं, रिक्शे का किराया कहां से देता। वहीं मुकुल मेहरा जिसके मकान के एक कमरे में वह रहता था, वह भी मंगल से बकाये किराये की मांग कर रहा था। पिछले चार महीने से उसने किराया भी नहीं दिया था। अभी बीते ही शनिवार को मुकुल ने मंगल और उसके परिवार को अपने घर से बाहर निकाल दिया।

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नारायण ने बताया कि शनिवार को देर शाम मंगल उसके पास आया और उसने पूरी बात बतायी। उसके दुख को सुनकर उससे रहा नहीं गया और उसने अपने घर के एक कमरे में रहने को आसारा दिया। लेकिन उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि मंगल और उसका पूरा परिवार कई दिनों से भूखा है। नारायण ने बताया कि यदि वह इस बात को जानता तो बच्चों की मौत नहीं होती।

यह ऐसी घटना थी जिसे सुनकर हर कोई आवाक् था। मंडावली गांव के साकेत इलाके के गली नंबर 12 के कोने पर किराना दुकान चलाने वाले रमेश ने बताया कि आज से करीब पांच साल पहले मंगल और उसकी पत्नी इसी मोहल्ले में होटल चलाते थे। वे उनके अच्छे दिन थे। बाद में होटल बंद हो गया और मजबूरी में मंगल रिक्शा चलाने लगा। उसका परिवार उनके यहां से ही राशन ले जाता था। हाल के महीनों में उसकी हालत बहुत खराब हो गयी थी।

यह भी पढ़ें – भुखमरी और कुपोषण के सबसे अधिक शिकार दलित-आदिवासी

मंगल की पड़ोसी चंदा ने बताया कि उसका परिवार लंबे समय से आर्थिक संकट से जुझ रहा था। अपने परिवार के लालन-पालन के लिए मंगल की पत्नी घरों में काम करने जाया करती थी। लेकिन बीते छह महीने से उसकी तबीयत अधिक खराब थी। वह काम पर भी नहीं जा पाती थी। चंदा के मुताबिक उसकी सबसे छोटी बेटी पारूल की उम्र करीब दो साल थी। वह दूध ही पीती थी। लेकिन उसे दूध नहीं दे पाती थी। मजबूरी में वह पानी पिला देती तो कभी मांड़ पिला देती थी। किसी तरह वह अपने बच्चों को पाल रही थी।

बेमानी है राशन कार्ड नहीं होने की बात

मंडावली गांव का साकेत इलाका अन्य राज्यों से पलायन कर आये उन लोगों से अटा पड़ा है जो दिल्ली में दिहाड़ी करने से लेकर रिक्शा आदि चलाते हैं। इसी इलाके के मदरसे वाली गली में इकबाल का गैराज है जो असल में रिक्शा का गैराज है। इसी गैराज के ठीक सामने वाली गली में मंगल का परिवार रहा है। इस इलाके में सैंकड़ों की संख्या में लोग हैं जो मंगल की तरह ही तमाम आर्थिक चुनौतियों से जुझ रहे हैं। सरकारी व्यवस्था की बात करें तो यहां रहने वाले अधिकांश लोगों के पास दिल्ली का अाधार कार्ड है। लेकिन सस्ते दर पर अनाज मिलने की सरकारी जन वितरण प्रणाली का लाभ ले सकें, इसके लिए राशन कार्ड नहीं है। बिहार और झारखंड के जैसे यहां भी अमीरों को गरीबों की सूची में रखा गया है। मंगल की पड़ोसी तारा देवी के अनुसार वह जिस व्यक्ति के मकान में किराये पर रहती हैं, वह गरीबों में शुमार है लेकिन उसके किरायेदारों को गरीबों में शामिल नहीं किया गया है।

पूर्वी दिल्ली के गणेश नगर चौक पर यात्रियों के इंतजार में रिक्शा चालक

वैसे भी दिल्ली जैसे महानगर में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि किसी के पास राशन कार्ड है या नहीं है। रोजगार की उपलब्धता के मामले में सबसे आगे देश की राजधानी में असल समस्या राशन कार्ड मायने नहीं रखता है। असल समस्या निम्न आय वर्गीय लोगों के लिए घटते रोजगार के साधन हैं। मंगल सिंह के मित्र नारायण बताते हैं कि आजकल रिक्शा चलाने का काम फायदे का काम नहीं रह गया है। पहले जब बैट्री वाला ई-रिक्शा नहीं था तब उसके जैसे सैंकड़ोंं की संख्या में रिक्शाचालकों को प्रतिदिन 500 से 1000 रुपए तक की आमदनी हो जाया करती थी। लेकिन अब ढाई-तीन सौ रुपए की कमाई भी नहीं हो पाती है। उस पर प्रति आठ घंटे के लिए रिक्शा किराये पर लेने बदले 75 रुपए उसके मालिक को देना पड़ता है।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और स्थानीय विधायक सह उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया : बच्चियों की मौत से सरकार पर सवाल

हरकत में आयी केजरीवाल सरकार

बीते मंगलवार को जैसे ही यह खबर आयी दिल्ली में राज कर रही केजरीवाल सरकार हरकत में आयी। मंडावली पूर्वी दिल्ली का विधानसभा भी है और यहां के स्थानीय विधायक कोई और नहीं बल्कि उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हैं। बच्चियों की मौत की खबर आने के बाद उन्होंने स्थानीय मीडिया को यह बयान दिया कि वे इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं और पीड़ित परिवार को हर तरह की सुविधा उपलब्ध करायी जाएगी। साथ ही उन्होंने परोक्ष रुपए से इसका ठीकरा दिल्ली के उपराज्यपाल पर फोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि यदि उपराज्यपाल ने पहले ही सरकार द्वारा घर-घर राशन भेजवाने संबंधी निर्णय को सहमति दे दी होती तो यह घटना नहीं घटित होती।

(इनपुट : विशद कुमार, कॉपी एडिटर : सिद्धार्थ )

[1] https://indianexpress.com/article/cities/delhi/economic-survey-2017-18-at-rs-3-3-lakh-delhis-per-capita-income-second-highest-in-the-country-5103843/

 


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लेखक के बारे में

नवल किशोर कुमार

नवल किशोर कुमार फॉरवर्ड प्रेस के संपादक (हिन्दी) हैं।

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