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पदोन्नति में दलित और आदिवासियों के आरक्षण पर आवाज बुलंद करेंगे देश भर के संगठन

सरकारी नौकरियां कर रहे दलितों और आदिवासियों को पदोन्नति में आरक्षण मिले, इसके लिए पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार ने संसद में एक विधेयक पेश किया था। राज्यसभा में यह विधेयक पारित भी हो गया था लेकिन लोकसभा में यह ठंढ़े बस्ते में चला गया। इसे लेकर देश भर के एससी और एसटी संगठन आंदोलन की योजना बनाने हेतु दिल्ली में जुट रहे हैं। कबीर की खबर :

आगामी 29 जुलाई 2018 को पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर देश भर के एससी-एसटी कर्मचारी संगठन राजधानी दिल्ली में आवाज बुलंद करेंगे। ऑल इंडिया डिफेंस-सचिवालय एससी-एसटी इंफ्लाइज फेडरेशन के तत्वावधान में रविवार को राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा। दिगंबर मार्ग पर स्थित राजाराम मोहनराय सभागार में 29 जुलाई को होने वाले इस सम्मेलन में आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, चंडीगढ़, कर्नाटक समेत तमाम जगहों के एसोसिएशन पदाधिकारी शामिल होंगे।

सम्मेलन में दलित मुद्दों पर देश भर में हो रही अनदेखी पर चर्चा की जाएगी और सभी संगठनों की तरफ से साझा आंदोलन की कार्यनीति तय की जाएगी। फेडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष नेतराम ठगेला ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से आरक्षण के प्रावधानों को लगातार कमजोर किया जा रहा है। ऐसे नियम बनाए जा रहे हैं, जिससे एससी-एसटी तबका आरक्षण का लाभ नहीं ले सके। जबकि, सभी संगठनों द्वारा साझा लड़ाई के बाद पिछली सरकार के कार्यकाल में पदोन्नति में आरक्षण का विधेयक तैयार किया गया था। उस समय यह विधेयक राज्यसभा में पास हो गया था। लेकिन, लोकसभा में बहुमत नहीं होने की वजह से यह विधेयक पास नहीं हो सका था। अब सरकार के पास लोकसभा में भी पूरा बहुमत है। इसलिए इस विधेयक को तत्काल पारित किया जाना चाहिए।

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उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सम्मेलन के जरिए उच्च सरकारी पदों पर भी एससी-एसटी वर्ग को प्रतिनिधित्व दिए जाने की मांग की जाएगी। नेतराम ठगेला के मुताबिक सरकारी नीतियों को बनाने का काम उच्च पदस्थ अधिकारी करते हैं। लेकिन, यहां पर एससी-एसटी वर्ग को प्रतिनिधित्व नहीं मिल रहा है। इसके चलते नीतियों को उनके हितों के अनुरूप नहीं बनाया जा रहा है। उच्चतम पदों पर एससी-एसटी वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए या फिर आबादी के हिसाब से सभी को प्रतिनिधित्व दिया जाए। सम्मेलन में एससी-एसटी एसोसिएशनों को समान अधिकार दिए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा की जाएगी।

ठगेला ने बताया कि फिलहाल सामान्य वर्गों द्वारा बनाए जाने वाले कर्मचारी एसोसिएशन को तो मान्यता दी जाती है। लेकिन, एससी-एसटी एसोसिएशन को मान्यता के लिए संघर्ष करना पड़ता है। इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि जाति आधारित एसोसिएशन को मान्यता नहीं दी जा सकती। जबकि, ऐसा सोचना गलत है। क्योंकि, एससी-एसटी कोई एक जाति नहीं हैं। बल्कि यह एक जाति समूह है। सामाजिक स्तर है। इसे भी एक वर्ग माना जाना चाहिए और उसी अनुसार उनके एसोसिएशन को मान्यता दी जानी चाहिए।

यह भी पढ़ें : दलितों और आदिवासियों के आरक्षण पर खतरा

वहीं सम्मेलन में सरकार द्वारा नौकरियों में संविदा और प्रतिनियुक्तियों को तवज्जो दिए जाने का भी विरोध किया जाएगा। ठगेला ने बताया कि इन नियुक्तियों में आरक्षण का प्रावधान नहीं है। इसके चलते यहां पर भी एससी-एसटी को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

कबीर

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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