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अल्पसंख्यक विश्वविद्यालयों में आरक्षण का सवाल, वंचितों की फिक्र कम राजनीति ज्यादा

केंद्र द्वारा जेएनयू, हैदराबाद और आईआईएम में आजमाये दांव विफल हो चुके हैं। जानकारों का कहना है अब सरकार और (बीजेपी के) पार्टी के रणनीतिकारों ने निशाने पर लिया है एएमयू और जामिया मिल्लिया इस्लामिया को। कोई नई चीज़ जोड़ी गई है तो वह है दलित छात्रों को दाखिलों में आरक्षण का कार्ड। कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट

बिना ओबीसी, बहुजन को साथ लिए कैसे किसी सियासी व्यूहरचना का चक्र भेद दिया जाता है, इसका बड़ा सबक केंद्र और यूपी सरकार को मिला है। आखिर दो साल में अचानक ऐसा क्या हुआ कि केंद्र सरकार, बीजेपी और यूपी सरकार को ये ध्यान आया कि एएमयू और जामिया यूनिवर्सिटी में दलित और पिछड़ों को आरक्षण मिलना चाहिए। यकायक उसकी चिंता का सबब सामने लगा लेकिन उसके मकसद को भेद लिया गया।

आधी-अधूरी पहल: साढ़े चार साल बाद जागा राज्य एससी/एसटी आयोग

बीजेपी ने प्रधानमंत्री के 28 जून को लेकर एक बयान जारी किया। कहा गया कि पीएम की “उत्तर प्रदेश में शुरुआती रैलियां आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े जिलों में कराई जा रही हैं। इसका मुख्य उद्देश्य पिछड़े जिलों का सर्वांगीण विकास है। केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया कि पूर्वांचल के संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर (के साथ-साथ) आज़मगढ़ का सर्वांगीण विकास नहीं हो सका है। इस सूची में महाराजगंज, बस्ती, मऊ, बलिया का भी नाम है। अब इन जिलों में विकास का पहिया तेज करने की रणनीति बनी है। इसी क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियां कराई जा रही हैं। पहली रैली संतकबीरनगर तो दूसरी आजमगढ़ में होनी है। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले सिद्धार्थनगर में भी प्रधानमंत्री मोदी की रैली होगी।

डॉ सत्येंद्र सिन्हा उपाध्यक्ष बीजेपी गोरक्ष प्रांत ने कहा कि प्रधानमंत्री का ध्यान आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े जिलों के विकास पर है। प्रधानमंत्री का विजन श्रेष्ठ है। वह सबका साथ सबका विकास की नीति पर आगे बढ़ रहे हैं।

दलित मामलों के लेखक बद्रीनारायण के कहते हैं कि 1990 के दशक में कांशीराम और मायावती ने कबीर के प्रतीक को अपनी राजनीति से जोड़ने की कोशिश की थी। इसी के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में संतकबीरनगर नाम से एक नया जिला बनाया गया। कबीर के नाम पर कई योजनाएं एवं पुरस्कार भी घोषित किए गए। अब बीजेपी ने कबीर के प्रतीक को स्वयं से जोड़कर दलितों एवं पिछड़ों में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की है। कबीर से जुड़े ‘कबीर पंथ’ के देश में करोड़ों अनुयायी हैं। कबीर पंथ प्रारंभ में केवल बुनकर समूहों का पंथ रहा। बुनकर समूहों में 22 जातियां एवं सामाजिक समूह शामिल हैं। इन्हें कपड़ा बुनकर आजीविका चलाने वाली जातियां कहा जाता था। इनमें हिंदुओं की कोरी, कोबिंद तांती जैसी जातियां और मुसलमानों में जुलाहा सामाजिक समूह आते हैं। पंजाब से लेकर बंगाल तक इनकी बस्तियां हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बंगाल में इन सामाजिक समूहों के लोग अच्छी-खासी संख्या में हैं।

जाहिर है यूपी के मार्फत देशभर को संदेश दिया जा रहा है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीई) उत्तर प्रदेश के राज्य सचिव गिरीश मंडल ने आरोप लगाया कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) और दूसरे अल्पसंख्यक संस्थानों में एससी, एसटी एवं अन्य पिछड़े वर्गों के आरक्षण के मामले में खुद भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की नीयत साफ़ नहीं है। बीजेपी और संघ को दलित हितों से कोई लेना देना नहीं है। यदि उन्हें दलितों की शिक्षा की जरा भी फ़िक्र होती तो वे दलितों के लिए सरकार के चार साल के कार्यकाल में कई विश्वविद्यालय बना कर खड़े कर सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। पहले उन्होंने जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) और भारतीय प्रबन्ध संस्थान (आईआईएम) को निशाना बनाया। फिर जिन्ना की तस्वीर के बहाने एएमयू को निशाना बनाया गया और अब आरक्षण के नाम पर उस पर ताला जड़ने की कोशिश की जा रही है। यह समाज के कमजोर वर्गों को शिक्षा से वंचित करने की साजिश का हिस्सा है। गिरीश मंडल ने कहा कि मदरसों में ड्रेस कोड का शिगूफा और एएमयू में आरक्षण का मुद्दा ऐसे ही ताजा हथकंडे हैं।

हिंदी कवि और समाज विज्ञानी बद्रीनारायण ने कहा, “कबीर, रविदास और गोरखनाथ जैसे प्रतीकों की माला को जोड़कर बीजेपी दलितों एवं पिछड़ों में हाल में उभरे असंतोष को भी कम करना चाहती है। वह आंबेडकर के प्रतीक से अपनी राजनीति को आक्रामक रूप से जोड़ना भी इस दिशा में एक कदम है। रोहित वेमुला खुदकुशी मामले और आरक्षण का मुद्दा उठाकर दलित एवं पिछड़े समूहों को गोलबंद करना चाह रहे हैं। देखना यह है कि 2019 के चुनाव में यह गोलबंदी क्या असर दिखाती है।

सरकार की अचानक सक्रियता

हाल में मुस्लिम पहचान रखने वाले एएमयू और जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में दलितों को आरक्षण देने की मांग मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सबसे पहले उठाई। इसके बाद राष्ट्रीय अनुसूचित जाति-जनजाति के अध्यक्ष राम शंकर कठेरिया 2 जुलाई को एएमयू के दौरे पर गए। वह आरक्षण नीति लागू किए जाने के मसले पर कमिश्नर, डीएम, एसएसपी, एएमयू के वीसी एवं रजिस्ट्रार से मिले। उनका एक कार्यक्रम रखा गया एससी-एसटी और ओबीसी के छात्रों के साथ संवाद का। कठेरिया के यूनिवर्सिटी में आने से पहले ही अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने भी एएमयू वीसी को इस बारे में खत लिख चुके थे। सीएम योगी ने लाइन दी कि जो दल बीजेपी को दलित विरोधी बता रहे हैं, वो इन विश्वविद्यालयों में दलितों को आरक्षण नहीं दिलवा पाए हैं। कन्नौज के कार्यक्रम में योगी ने सीधा सवाल किया और पूछा कि जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में दलितों को आरक्षण दिया जाता है तो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी और दिल्ली की जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में उन्हें आरक्षण का लाभ क्यों नहीं मिल सकता? राजनीतिक दल इसे लेकर आंदोलन क्यों नहीं नहीं छेड़ते हैं।

यह भी पढ़ें : अल्पसंख्यक काॅलेजों में ओबीसी आरक्षण के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट पहुंची फडणवीस सरकार

जानकार कहते हैं कि हाल ही में दलितों पर लगातार हो रहे हमले,  एससी एसटी कानून में बदलाव समेत दलितों से जुड़े कई ऐसे मुद्दे रहे हैं, जिनको लेकर मोदी सरकार और बीजेपी बैकफुट पर रही। कई मामले तो उत्तर प्रदेश से ही जुड़े हुए थे।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का मुख्य भवन

बहरहाल इसी दौरान उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आयोग ने भी मोर्चा संभाला। उसने आरक्षण न देने के खिलाफ नोटिस जारी कर एक महीने में जवाब मांगा है। आयोग के अध्यक्ष बृजलाल ने कहा कि विश्वविद्यालय को नोटिस जारी कर दिया गया है और अगर जवाब जल्द नहीं मिला तो आगे कार्रवाई की जाएगी। आयोग की दलील है कि जब अदालत ही उसे मुस्लिम विश्वविद्यालय नहीं मानता तो आखिर किस आधार पर दलितों और पिछड़ों को आरक्षण नहीं दिया जा रहा है। बृजलाल ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना के समय इसमें मुस्लिम व गैर मुस्लिम, दोनों ने ही अनुदान दिया। 1990 में मुसलमानों को विश्वविद्यालय के विभिन्न पाठ्यक्रमों में 50 फीसदी आरक्षण दिए जाने की व्यवस्था की गई थी।

आयोग ने कुल सचिव को लिखे पत्र में कहा कि वह आयोग को अवगत कराये कि अभी तक संस्थान द्वारा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजातियों के लोगों को संविधान प्रदत्त आरक्षण का लाभ क्यों नहीं दिया गया और ऐसा किन परिस्थितियों में किया गया। क्योंकि उच्चतम न्यायालय द्वारा भी अभी तक ऐसा कोई निर्णय नहीं दिया गया है जिसमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लोगों को एएमयू में आरक्षण देने से मना किया गया हो। उन्होंने बताया कि इस संबंध में एएमयू प्रशासन से 8 अगस्त 2018 तक आख्या मांगी गयी है। आयोग ने कहा कि एएमयू प्रशासन यदि उसके पत्र का जवाब नहीं देता है तो आयोग उसे सम्मन जारी करेगा।

जब पत्रकारों ने कहा कि क्या आपके ‘एएमयू अभियान’ में सिर्फ एससी-एसटी शामिल हैं तो वह भूल सुधार करते हुए उन्होंने कहा- ओबीसी भी एएमयू में आरक्षण के लाभ से वंचित हैं। आयोग का राजनीति से उनका कोई सरोकार नहीं है। आयोग ने एससी-एसटी के अधिकारों के तहत यह कदम उठाया है। बृजलाल ने कहा कि 1920 में स्थापित एएमयू में अब तक एससी-एसटी विद्यार्थियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया, जिससे अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लाखों बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक बनने व सरकारी सेवाओं में आने से वंचित रह गए।

गौरतलब है कि सन् 1877 में सर सैयद अहमद द्वारा मोहम्मडन एंग्लो ओरियन्टल कालेज शैक्षणिक संस्था के रूप में शुरू किया गया था। इसके बाद अलीगढ़ में विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए एक फाउन्डेशन कमेटी गठित की गयी और उसने विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए धन इकट्ठा करना शुरू किया। इस कमेटी को अनुदान मुस्लिम और गैर मुस्लिम लोगों द्वारा दिया गया जिसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय 1920 अधिनियम के माध्यम से स्थापित किया गया।

अलीगढ़ से बीजेपी सांसद सतीश गौतम ने भी एएमयू में एससी-एसटी के आरक्षण की मांग करते विश्वविद्यालय प्रशासन पर सवाल किए। आगरा के बीजेपी सांसद कठेरिया ने यहां तक कहा है कि कार्यवाही नहीं हुई तो हम केंद्र से एएमयू को मिलने वाली ग्रांट को रोक देंगे।

एएमयू का पक्ष

लेकिन अभी सिर्फ जुबानी जमा खर्च हो रहा है। हमने एएमयू के जनसंपर्क अधिकारी उमर सलीम पीरजादा से संपर्क किया तो उन्होंने कहा हमें नोटिस नहीं मिला है। मिलने पर उसका जवाब दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि एएमयू एक्ट 1981 के तहत आरक्षण की व्यवस्था लागू है। उसने ही विश्वविद्याय को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा दिया है। अल्पसंख्यक दर्जे को लेकर हाईकोर्ट ने वर्ष 2006 में जो फैसला दिया था, उसकी अपील अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। वहां से फैसला आने के पहले आरक्षण नीति में बदलाव का सवाल ही नहीं है। वैसे भी, एएमयू ने धर्म-जाति के आधार पर किसी को आरक्षण नहीं दिया।

(कॉपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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