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उच्च शिक्षा के मापदंड पर सरकार की ‘पीएचडी’ कितनी कारगर?

उच्च शिक्षण संस्थानों में सरकार ने शिक्षकों के लिए पीएचडी अनिवार्य कर दी है। एचआरडी मंत्री के बयान को गौर से पढ़ना चाहिए। सवाल है क्या इससे सार्वभौम स्तर पर उच्चशिक्षा में जैसी चुनौतियां हैं, उनसे निपटा जा सकता है? हम कितना लक्ष्य हासिल कर सकेंगे जबकि सरकार की कोशिश स्वदेशी तरीके से शिक्षकों को तैयार करने की है? कमल चंद्रवंशी की रिपोर्ट :

बीते 18 जुलाई 2018 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अधिसूचना जारी कर दी है। बताया जा रहा है कि अब शिक्षक बनने के लिए पीएचडी की डिग्री अनिवार्य होगी। कारण के रूप में यह कहा जा रहा है कि सरकार उच्च शिक्षा को गुणवत्ता युक्त बनाना चाहती है। इस संबंध में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं, भारत में विश्वस्तरीय छात्रों की मौजूदगी के बावजूद शिक्षकों की कमी और गुणवत्ता में सुधार के लिए सरकार दुनिया भर में कार्यरत श्रेष्ठतम भारतीय शिक्षकों को स्वदेश में शिक्षण कार्य में शामिल करने के प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा, सभी आईआईटी मिलकर वैश्विक स्तर पर शिक्षकों की भर्ती करेंगे। इसमें भारतीय मूल के श्रेष्ठ शिक्षकों को भारत में पढ़ाने और इस बावत सभी सुविधाएं और अन्य जरूरी छूट देने की पहल की जाएगी।

शिक्षकों के एक कार्यक्रम में प्रकाश जावड़ेकर राष्ट्रपति के साथ (फोटो : आईई, गुरुग्राम)

यूजीसी ने एक अधिसूचना जारी करके देशभर के उच्च शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों के लिए नए भर्ती नियम लागू किए हैं। यूजीसी ने कॉलेज और यूनिवर्सिटी शिक्षकों की भर्ती नियम के लिए अलग नियम व मापदंड पर निर्धारित अधिसूचना जारी की। अधिसूचना के तहत विश्वविद्यालयों में अब शिक्षक बनने के लिए 2021-22 से पीएचडी अनिवार्य होगी। कॉलेज और यूनिवर्सिटी शिक्षक भर्ती नियम अधिसूचना के तहत एपीआई में भी बदलाव किया है, जिसमें अब कॉलेज शिक्षकों को प्रमोशन के लिए रिसर्च नहीं करनी पड़ेगी, बल्कि उनका काम छात्रों को बेहतर शिक्षा मुहैया करवाना है। जबकि वर्ष 2021-22 सत्र से यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती के लिए पीएचडी अनिवार्य होगी। जबकि कॉलेजों में पहले की भांति नेट और मास्टर डिग्री के आधार पर शिक्षक बन सकते हैं लेकिन कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर तैनात शिक्षक को प्रमोशन चाहिए होगा तो पीएचडी जरूरी होगी।

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नई अधिसूचना कहती है, ‘यदि कोई कॉलेज शिक्षक यूनिवर्सिटी में जाकर सेवा देना चाहता है तो भी पीएचडी की डिग्री अनिवार्य होगी। ओलंपिक, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स के मेडल विजेताओं के लिए विशेष वर्ग बनाया गया है, जिसमें असिस्टेंट डायरेक्टर/कॉलेज डायरेक्टर, फिजिक्ल एजूकेशन, स्पोर्ट्स और डिप्टी डायरेक्टर, फिजिकल एजूकेशन के तहत भर्ती होंगी।

पीएचडी थीसिस में नकल व फर्जीवाड़ा रोकने की कोशिश

जावड़ेकर ने कहा ” पीएचडी थीसिस में नकल के मामले हमारे संज्ञान में आए हैं, इसे रोकने के लिए हमने शोधकार्यों में नकल और चोरी को सॉफ्टवेयर की मदद से रोकने को अनिवार्य करने की व्यवस्था की है। शोध जर्नल में नकल की समस्या के बारे में पूरक सवाल पर जावड़ेकर ने कहा देश में मौजूद सभी 900 विश्वविद्यालयों से पीएडी थीसिस में नकल को सॉफ्टवेयर से जांचने और पकड़ने को कहा गया है। जावड़ेकर ने कहा कि इससे थीसिस में कहीं से भी की गई नकल को पकड़ा जा सकेगा। सरकार द्बारा हाल ही में घोषित विशिष्ट संस्थानों की सूची में एक प्रस्तावित संस्थान को भी शामिल किए जाने को लेकर जावड़ेकर ने स्पष्ट किया कि प्रस्तावित जियो संस्थान को ‘ग्रीनफील्ड श्रेणी’ के तहत इस सूची में शामिल किया गया। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के तीन चिन्हित संस्थानों की सूची में ही इसका जिक्र किए जाने के कारण भ्रम पैदा हो गया।

एचटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रीनफील्ड श्रेणी में उन संस्थानों को शामिल किया जाता है जो अभी प्रस्तावित हैं और इन्हें निजी क्षेत्र के सहयोग से स्थापित किया जाना है। तमाम देशों में धनी लोगों के अपने दान की पूंजी से ऐसे विश्वस्तरीय संस्थान स्थापित किए गए। ऐसे प्रस्तावित संस्थानों की ग्रीनफील्ड श्रेणी में 11 आवेदन आए थे उनमें से चयनित एक संस्थान को अभी विशिष्ट संस्थान का तमगा नहीं दिया है, सिर्फ इस आशय का पत्र दिया गया है। अगले तीन साल में इसके दावे के मुताबिक किए गए प्रदर्शन की समीक्षा के बाद ही इसकी सिफारिश की जा सकेगी।

कसौटी पर पीएचडी और गुणवत्ता

शिक्षाविद् निरंजन कुमार ने कहा है कि शिक्षा में नियोजन को लेकर हम भारतीयों की स्थिति अत्यंत दयनीय है। हमारी योजनाओं में कई बार न केवल एक तदर्थता या एड हॉकिज्म का भाव दिखाई पड़ता है, बल्कि अनेक बार ये सुविचारित भी नहीं होते। खास तौर से उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तो यह स्पष्ट दिखाई देता है। एक महाशक्ति के रूप में भारत के उभरने की आकांक्षा को पूरा करने में उच्च शिक्षा की बड़ी भूमिका होगी। इसके लिए उच्च शिक्षा और शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ाने की जरूरत है। इस गुणवत्ता को बढ़ाने में अन्य विकल्पों के अलावा यह भी अत्यंत जरूरी है कि उच्च शिक्षण संस्थानों में योग्यतम शिक्षकों की भर्ती हो।

कुल मिलाकर सरकार में उच्च शिक्षा में फिलहाल न सिर्फ शिक्षकों की कमी है बल्कि शोध और गुणवत्ता का भी गहरा संकट है। सरकार की नई पहल से लगता है कि उसने विश्वस्तर की शिक्षा को समझने के लिए चार से पांच साल से ज्यादा देरी की है क्योंकि उसका ढांचा 2015 से तेजी से बदला है। उच्च शिक्षा का स्वरूप सार्वभौम हुआ है लेकिन हम अब तक अंगड़ाई लेकर जाग ही रहे हैं।

आईआईटी हैदराबाद में कार्यरत जानेमाने वैज्ञानिक और हिंदी कवि (हरजिंदर सिंह) लाल्टू 25 साल पहले कहते थे मैं कुछ समय से एक साल के लिए अमेरिका से भारत आता हूं तो लगता है साइंस की दुनिया में पांच साल पीछे चला गया हूं। वह आज भी अपनी बात पर कायम हों तो इसे अतिशयोक्ति नहीं समझाना चाहिए। इसलिए भी कि आजतक जितनी भी कथित अच्छी पीएचडी होती हैं- वो नकल को असल करने से ज्यादा नहीं मानी गई हैं। हां, जो होती हैं उसे करने वाले दुनिया के बड़े विश्वविद्यालयों में चले जाते हैं और वह इसलिए कि हमारे उच्चशिक्षा के ढांचे में कुछ भी ऐसा नहीं जो युवा सोच और विज्ञान को आगे कर सकने की ताकत रखता हो। इस सच्चाई को स्वीकार करने में सरकार को भी संकोच नहीं होना चाहिए।

(काॅपी एडिटर : नवल)


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लेखक के बारे में

कमल चंद्रवंशी

लेखक दिल्ली के एक प्रमुख मीडिया संस्थान में कार्यरत टीवी पत्रकार हैं।

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