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बोड़ो जनजाति पर टिप्पणी करने के मामले में रोमिला थापर और संजय हजारिका के खिलाफ एफआईआर

संयुक्त जनजातीय संगठन, असम का कहना है कि लेखकों ने जिस प्रकार से पूरे समुदाय पर हिंसा और रक्तपात करने का आरोप लगाया है पूरी तरह अनुचित और आधारहीन है। सत्पर्नी गुण की खबर :

“हम दो लेखकों पर अपने पुस्तकों में बोड़ो जाति के विरुद्ध आपत्तिजनक लेख सामग्री प्रकाशित करने के कारण एफआईआर दर्ज करने के लिए बाध्य हैं।” ये बातें यूनाईटेड ट्राइबल आर्गेनाइजेशन ऑफ असम (यूटीओए) के अध्यक्ष मार्कस बासुमतारी ने बीते 7 अगस्त 2018 को कोकराझाड़ प्रेस क्लब में हुए एक प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कही।

रोमिला थापर

बासुमतारी ने संजय हजारिका की पुस्तक ‘स्ट्रेंजर्स नो मोर : न्यू नैरेटिव्स फ्रॉम इंडिया’स नॉर्थइस्ट’  का हवाला देते हुए कहा कि जिस तरह से पुस्तक में ‘बोड़ो द्वारा विस्फोटकों का उपयोग’, ‘रक्त रंजित बोड़ो काउंसिल’ और ‘बोड़ो आतंकवादियों’ का क्रमशः पृष्ठ संख्या 187, 185 और 187 में वर्णन किया गया है, उससे स्वदेशी बोड़ो समुदाय की भावनाओं को बहुत ठेस पहुंचा है। उन्होंने कहा कि हजारिका ने बोड़ो समुदाय की प्रमिला रानी ब्रह्मा पर, जो की असम सरकार में एक मंत्री पद पर हैं, अप्रत्यक्ष रूप से हिंसावादी घटनाओं में शामिल होने का आरोप लगाया है। बासुमतारी ने यह भी कहा कि हजारिका ने इन आरोपों की जांच करने की जरुरत नहीं समझी और इसी कारण बोड़ो समुदाय के लोग नाराज हैं।

संजय हजारिका

बताते चलें कि यूटीओए ने प्रसिद्ध इतिहासकार रोमिला थापा की पुस्तक ‘एन्शन्ट इन्डियन सोशल हिस्ट्री: सम इंटर्प्रिटेशन्स’ के पृष्ठ संख्या 378 में वर्णित एक वाक्य को भी मुद्दा बनाया है जिसमें बोड़ो जाति को एक आतंकवादी समूह के तौर पर बताया गया है। थापर ने इसमें कहा है, “भारत में कुछ आतंकवादी समूह हैं जो उपमहाद्वीप क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों में सक्रिय हैं। इनका इस्लामी परंपराओं से कोई लेना देना नहीं है …… पूर्वोत्तर में बोड़ो, उल्फा, ये कुछ ऐसे समूह हैं जो पिछले पचास वर्षों से यहां सक्रिय हैं।”

बासुमतारी ने कहा कि इस प्रकार सामान्य रूप में उन्हें आतंकवादी के तौर पर देखा जाना बोड़ो समुदाय के प्रति एक नकारात्मक धारणा पैदा करता है। पुस्तक में सम्पूर्ण समुदाय की बजाय कुछ समूहों के बारे में लिखा जा सकता था।

मामला 1989 अधिनियम, अनुसूचित जाति और अनुसूची जनजाति की धारा 3 (1) (पी), (आर) और (यू) के तहत दर्ज किया गया है। यूटीओए ने लेखकों के विरुद्ध मामला दर्ज कराने से पहले उन्हें इस मामले पर अपनी सफाई देने का अवसर दिया था।

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गौरतलब है कि बोडो असम का एक स्वदेशी समुदाय है। वे अपने सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग बोड़ोलैंड राज्य की मांग करते रहे हैं।

कोकराझार प्रेस क्लब में संवाददाता सम्मेलन के दौरान यूओटीए के सदस्यगण

बोड़ो असम का एक स्थानीय समुदाय है और अपनी सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक अधिकारों की रक्षा के लिए उन्होंने एक अलग राज्य की मांग की है। बोड़ो समुदाय ने उन प्रसिद्ध इतिहासकारों की निंदा की है जिन्होंने उन्हें एक आतंकवादी समुदाय  में शामिल किया है। पूर्वोत्तर के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में इसको लेकर भारी विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें बोड़ोलैंड विश्वविद्यालय, कोकराझाड़, उत्तर पूर्वी हिल विश्वविद्यालय (एनईएचयू), शिलांग (मेघालय), और कपास विश्वविद्यालय, गुवाहाटी, भी शामिल थे। इस विरोध प्रदर्शन का उद्देश्य लेखकों और प्रकाशकों का ध्यान आकर्षित करना और ये बताना था कि किसी समुदाय के एक छोटे से हिस्से द्वारा किए गए कृत्य के लिए पूरे समुदायों को आपराधिक समुदाय कहना गलत है।

(संपादकीय टिप्प्णी : फारवर्ड प्रेस स्वतंत्रतापूर्वक अभिव्यक्ति के लिए सदैव प्रतिबद्ध है। हमारा मानना है कि तथ्यों, तर्कों, व्याख्यानों, विवादों को किसी भी सामुदायिक भावनाओं द्वारा बाधित नहीं किया जा सकता।)

(अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद : अनुपमा, कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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