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‘जाति का विनाश’ में समाहित हैं बाबा साहेब के विचार

‘जाति का विनाश’ का संघर्ष अति प्राचीन है। बुद्ध ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने जाति व्यवस्था के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष किया। डॉ. आंबेडकर ने जाति के विरुद्ध संघर्ष को जटिल संघर्ष बताया है। बिना हिन्दू धर्म के विनाश के जाति खत्म नहीं हो सकती है। बीते 12 अगस्त 2008 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में वक्ताओं ने एक स्वर में हिन्दू धर्म को जाति व्यवस्था का पोषक बताया

 यूपी के गोरखपुर में ‘जाति का विनाशऔरवेटिंग फार वीजापुस्तक का लोकार्पण

बीते 12 अगस्त 2018 को फारवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित पुस्तकजाति का विनाशएवं सावित्री बाई फुले प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ‘वेटिंग फार वीजाका लोकार्पण प्रेस क्लब, गोरखपुर (उत्तर प्रदेश) में किया गया। सावित्रीबाई फुले प्रकाशन, गोरखपुर के तत्वावधान में इस कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो. गोपाल प्रसाद (विभागाध्यक्ष, राजनीति विज्ञान, गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर) ने की। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ शायर बी.आर. विप्लवी उपस्थित थे तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. अलख निरंजन ने किया।


कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. अलख निरंजन ने दोनों पुस्तकों की पृष्ठभूमि की चर्चा करते हुए कहा किजाति का विनाशपुस्तक की रचना डा. भीमराव आंबेडकर ने 1936 में की थी। मूलतः यह पुस्तकजात पात तोड़क मंडल, लाहौरके लिए तैयार की गयी थी। लेकिनजात पात तोड़क मंडलके पदाधिकारियों का बाबासाहब के निष्कर्षों से सहमत होने के कारण यह भाषण नहीं दिया जा सका। हालांकि यह पुस्तक जाति पर केन्द्रित है लेकिन इसमें बाबा साहब का सम्पूर्ण दर्शन समाहित है। इसीलिए यह पुस्तक बाबासाहब की रचनाओं में विशेष स्थान रखती है। वहीं ‘वेटिंग फार वीजाको बाबासाहब ने 1935 से 1938 के बीच लिखा था। इस पुस्तक में बाबासाहब ने अपने कटु अनुभवों का उल्लेख किया है। इस पुस्तक को बाबासाहब ने विदेशियों कोअस्पृश्यताके व्यवहार को समझाने के लिए लिखा था।

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वहीं मनोज सिंह ने कहा किजाति के विनाशका संघर्ष अति प्राचीन है। बुद्ध ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने जाति व्यवस्था के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष किया। डॉ. आंबेडकर ने जाति के विरुद्ध संघर्ष को जटिल संघर्ष बताया है। बिना हिन्दू धर्म के विनाश के जाति खत्म नहीं हो सकती है। जाति व्यवस्था हिन्दू धर्म मानवता के विरुद्ध है। महेन्द्र गौतम नेवेटिंग फार वीजापर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर को पढ़े लिखे होने के बावजूद भी अस्पृश्यता का दंश झेलना पड़ा। दफ्तर में चपरासी उनके ऊपर फाइल फेंक देता था, होटल में कमरा नहीं मिलता था, दुगुना किराया देने के बावजूद भी घोड़ा गाड़ी नहीं मिलती थी। आज भी दलित दूल्हे को घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालने के लिए न्यायालय प्रशासन से गुहार लगानी पड़ती है। जाति को तोड़े बिना इस देश में मानवीय गरिमा स्थापित हो ही नहीं सकती है।

‘जाति का विनाश’ और ‘वेटिंग फॉर वीजा’ का लोकार्पण करते अतिथिगण

सभा को सम्बोधित करते हुए फौजदार राजभर ने कहा किहिन्दूशब्द भारतीय शब्द है ही नहीं और जिस धर्म कोहिन्दू धर्मकहा जा रहा है वह जातियों और वर्णों का धर्म है जो मानवता के विकास में बाधक है। अशोक चौधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि डा. आंबेडकर के पास एक वैश्विक दृष्टि थी जो उन्हें देशविदेश में अध्ययन के दौरान प्राप्त हुई थी। वे उस समय में सभी तरह के शोषणउत्पीड़न के विरुद्ध थे। वे सम्पूर्ण मानवता की मुक्ति चाहते थे। उनकी नजर में जाति धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक है। जाति एक राजनीतिक व्यवस्था का अंग है जो लोकतंत्र, समानता, स्वतंत्रता, बन्धुत्व न्याय जैसे आधुनिक मूल्यों के विरुद्ध है। आज भारत में जाति के विरुद्ध चौतरफा संघर्ष चल रहा है हमें इन संघर्षों में साझीदार होना पड़ेगा।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे वरिष्ठ शायर एवं लेखक बी.आर. विप्लवी ने कहा कि जाति देश के विकास में बाधा है। जाति की उत्पत्ति और इसके विनाश पर बाबा साहब के विचार आज लोकार्पित होने वाली पुस्तकजाति का विनाशमें व्यक्त किये गये हैं। इसका अनुवाद हाल ही में दिवंगत हुए समाजवादी चिन्तक  राजकिशोर जी ने किया है। इसलिए यह पुस्तक अनुदित नहीं बल्कि हिन्दी में लिखी गयी मूल रचना लगती है। इसकी भाषा सरल एवं ग्राह्य है। इस पुस्तक में दिया गया फुटनोट अन्य पुस्तकों से इसे अलग करता है। इससे पूर्व प्रकाशित किसी भी हिन्दी संस्करण में फुटनोट नहीं है। इसके लिएफारवर्ड प्रेसबधाई का पात्र है। दूसरी पुस्तक जो आज लोकार्पित हो रही है। उसका प्रकाशन भी अति महत्वपूर्ण है। इस पुस्तक में बाबा साहब ने अपने साथ हुए दुर्व्यवहार का वर्णन किया है। ये दोनों पुस्तकें बाबा साहब के विचारों को फैलाने में सहायक सिद्ध होगी। अध्यक्ष प्रो. गोपाल प्रसाद ने कहा कि ये दोनों पुस्तकें बाबा साहब के जीवन दर्शन के साथसाथ भारतीय समाज व्यवस्था को समझने में अति उपयोगी है। इन पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद शोधार्थियों एवं हिन्दी भाषा भाषी सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

सभा में ईश कुमार, आशीष भारती, ध्रुवराम बौद्ध, रामाश्रय बौद्ध, असीम सत्यदेव सहित वरिष्ठ कथाकार मदन मोहन ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर रामचन्द्र प्रसादत्यागी’, आनंद पांडे, अरुण कुमार, प्रदीप कुमार, गौतम सिद्धार्थ, वसंत कुमार, अमोल राय,… आदि उपस्थित थे। इस कार्यक्रम में रोशन आरा, श्रवण कुमार, जनार्दन शर्मा, मनोज की विशेष भूमिका थी। अन्त में कार्यक्रम के संयोजक इमामुद्दीन ने सभी आगन्तुकों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

(कॉपी संपादन : एफपी डेस्क)


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